सोमनाथ से मन्दिर दर्शन करने के उपरांत हमने
मन्दिर के सामने वाले बस अड़ड़े से बस पकड़नी चाही थी लेकिन यह क्या? आज
महाशिवरात्रि तयौहार होने के कारण सभी बसे मन्दिर से कई किमी दूर वेरावल में ही रोक दी गयी थी।
इसलिये सबसे पहले हम एक किमी तक पैदल आये वहाँ एक चौराहे से हमें वेरावल जाने के
लिये एक मिनी बस मिल गयी। मिनी बस वाले ने बताया कि रोडवेज बस से जामनगर जाने के लिये
सुबह व शाम को ही एक-एक सीधी बस सेवा है अगर आपको आज ही जामनगर जाना है तो आपको
पहले पोरबन्दर या जूनागढ़ जाना होगा। हमने पोरबन्दर जाने का निश्चय किया। पोरबन्दर
से जामनगर तक रेल सेवा भी उपलब्ध है। बस में बैठकर हम पोरबन्दर के लिये प्रस्थान
कर गये।
वेरावल से पोरबन्दर वाला मार्ग |
मस्त सफ़र |
वाह गुजराती ताऊ |
वेरावल से आगे की सड़क यात्रा जिस मार्ग से
होकर जा रही थी। यह पूरा मार्ग एक से एक खूबसूरत नजारे से भरा हुआ था। इस मार्ग का
ज्यादातर हिस्सा तो समुन्द्र किनारे ही रहता है, जिस कारण नारियल के पेड़ काफ़ी
संख्या में सड़क के दोनों और चलते रहते है। यहाँ जिस बस में बैठकर हम पोरबन्दर आ
रहे थे। वह निजी बस थी। बस बीच-बीच में आने वाले अड़ड़े से सवारियाँ उतारकर चढ़ा
रही थी। लोकल बसों में यात्रा करने का लाभ यह हो रहा था कि बस छोटे-छोटे स्थानों
पर रुकते हुए चल रही थी। बस में स्थानीय महिलाये व पुरुष भी आ-जा रहे थे। स्थानीय महिला
व पुरुष की स्थानीय वेशभूषा देखकर मन नजर हटाने को नहीं कर रहा था। मैंने बस में
बैठी एक स्थानीय महिला का चित्र स्थानीय वेश भूषा में लिया है तथा एक स्थानीय
पुरुष का सड़क पर बस के सामने आने पर लिया है।
छकड़ा है या छकड़ी |
हम पोरबन्दर तक कब पहुँच गये हमें पता ही नहीं
लगा। हम
सोच रहे थे कि यह सफ़र जाट देवता का सफ़र jatdevta ऐसे
ही चलता रहे। जब पोरबन्दर की शहरी आबादी आई तो हमारा ध्यान टूटा कि अरे हम हमारा
सपना जैसी यात्रा समाप्त कैसे हो गयी? हमने बस वाले से पहले ही कह दिया था कि हमें
रेलवे स्टॆशन जाना है जिस कारण बस चालक ने हमें रेलवे स्टेशन के सामने सड़क पर
उतार दिया था। बस अड़ड़ा यहाँ से अभी एक किमी दूरी पर था। हम बस से उतर कर सीधे रेलवे
स्टेशन पहुँच गये। वहाँ जाकर पता लगा कि जामनगर जाने के लिये कोई ट्रेन उपलब्ध ही
नहीं है। यहाँ से सभी ट्रेन पहले राजकोट जाती
है उसके बाद अन्य स्थानों की ओर। रेल से जाने के लिये रात में ही एक ट्रेन थी
इसलिये हमने बस से जामनगर जाने की योजना बना ड़ाली। चूंकि बस अड़ड़ा एक किमी दूरी
पर ही था इसलिये हम पैदल ही बस अड़ड़े की ओर चल पड़े। मैं और रावत आगे चल रहे थे।
जबकि प्रेम सिंह व अनिल हमसे कुछ मीटर पीछे रह गये थे। गिरनार की चढ़ाई व उतराई के
बाद शायद उनका शरीर अकड़ना शुरु हो गया था। जिस कारण उन्होंने एक ऑटो रुकवा लिया था, हमे
ऑटो का पता तब लगा, जब वे हमारे आगे आकर बोले कि बैठ जाओ। अरे अब तो आधा किमी ही
बचा होगा और तुम बैठ गये। मैं और रावत उनके साथ नहीं गये वे दोनों हमसे पहले बस
अड़ड़े चले गये। उनके जाने के बाद हमें एक आइसक्रीम वाला मिला। हमने एक-एक
आइस्क्रीम ली और आराम से उसका स्वाद लेते हुए बस अड़्ड़े आ पहुँचे। जब हम बस
अड़ड़े पहुँचे तो देखा कि जामनगर जाने के लिये एक बस तैयार खड़ी है। अनिल व प्रेम
इसी बस में बैठे हुए मिल गये।
यहाँ के मर्द भी कान में बड़ी-बड़ी बाली पहनते है। |
वाह ताऊ मूछे हो तो ताऊ जैसी |
पोरबन्दर से आती हुई रेल |
एक जगह यह किला पहाड़ पर दिखायी दिया था। |
जल्दी-जल्दी पी नहीं तो बस निकल जायेगी |
बस यात्रा के दौरान एक बरसाती रपटा |
इतने बड़े सींग |
पोरबन्दर से जामनगर जाने में बस ने जिस खुबसूरत
पहाड़ी मार्ग का प्रयोग किया था वह मेरी जिंदगी का सबसे सुन्दर मार्ग है। इस मार्ग
पर बस जिस पहाड़ी उतराव-चढ़ाव से होकर जा रही थी वह अपने आप में एक यदगार यात्रा
थी। चूकिं हम सबसे पीछे वाली सीट पर बैठे हुए थे इसलिये हमने खड़े होकर व बैठकर उस
सुन्दर मार्ग का जी भर आनन्द उठाया था। अगर मुझे कभी फ़िर से इस मार्ग पर यात्रा करने का मौका लगा तो मैं बाइक से इसी
मार्ग पर पोरबन्दर से जामनगर तक की यात्रा एक बार फ़िर करना चाहूँगा। हमारी बस को
जामनगर पहुँचने में लगभग अंधेरा हो गया था। जामनगर का बस अड़ड़ा तो हमने देखा ही
था अत: यहाँ से हमें दो किमी दूर रेलवे स्टेशन ही तो जाना था। जहाँ से हमारी रेल
सुबह ठीक पाँच बजे की थी।
यह जामनगर का बस अड़ड़ा है। |
पता नहीं कहाँ का है? |
जब हम स्टॆशन की ओर बढ़ रहे थे तो हम वहाँ के
राजा के निवास स्थान के सामने से होकर आये थे। इससे कुछ आगे जाकर हमें आइसक्रीम की
एक दुकान दिखाई दी। यहाँ पर एक किलो वाला डिब्बा ले लिया गया था। सबने जीभर कर
आइसक्रीम का आनन्द उठाया था। इसके बाद हम सीधे रेलवे स्टॆशन पहुँच गये। हमने रात
का खाना लगभग 9 बजे ही खा
लिया था। स्टेशन पर मिलने वाली पूड़ी सब्जी ही हमारा रात का भोजन था जो हमने जी
भरकर खाया था। रात में सोने के लिये हमने स्टेशन पर मिलने वाले शयन रुम के बारे
में पता किया, लेकिन उस रात तीन कमरों में से एक भी खाली नहीं था। पहले तो हम वेटिंग रुम
में पहुँच गये। लेकिन रात को 12 बजे के
बाद उन्होंने भी सबको बाहर कर ताला लगा दिया था। जब हम वेटिंग रुम से बाहर आये तो
देखा कि बाहर हॉल में तो लोगों की भीड़ सोयी पड़ी है। हम चारों भी एक जगह देखकर उस
भीड़ का हिस्सा बन गये। रात में नीन्द किसे आनी थी? ड़र था कि कही ट्रेन ना निकल
जाये। इसलिये हम चार बजे ही प्लेटफ़ार्म पर जाकर बैठ गये थे। जैसे ही रेल आई हम
अपनी-अपनी सीट पर लम्बे पैर पसार कर, उपर से अपनी चादर ओढ़कर सो गये।
साबरमती नदी |
अहमदाबाद के रेलवे स्टेशन पर अपना एक खास दोस्त हमारा
इन्तजार कर रहा था। आपने जिसने भी मेरी हर की दून वाली यात्रा देखी होगी, आप धर्मेन्द्र सांगवान के बारे में जरुर जानते होंगे।
अहमदाबाद के रहने वाले सांगवान अहमदाबाद रेलवे स्टेशन पर हमारा इन्तजार कर रहे थे। जब रेल
अहमदाबाद रुकी तो हर की दून का साथी हमारे सामने उपस्थित था। पहले तो हम गले मिले
उसके बाद सबसे परिचय कराया गया। धर्मेन्द्र ने मुझसे पहले ही फ़ोन पर पता कर लिया
था कि हम कितने आदमी है इसलिये धर्मेन्द्र सांगवान Dharmendra Sangwan अपने साथ एक बड़ी सा थैला लाया था जिसमें सांगवान हम चारों
के लिये घर का बना हुआ स्वादिष्ट व लजीज भोजन लाया हुआ था। हमने स्टेशन पर एक
फ़ोटो लिया, उसके कुछ देर बाद ट्रेन चल
पड़ी। इस यात्रा के बाद सांगवान से एक बार फ़िर दिल्ली में मुलाकात हो चुकी है। अब
जल्दी ही अहमदाबाद में ही सांगवान से फ़िर से मुलाकत होने वाली है। ट्रेन का आगे
का सफ़र भी मस्त रहा। रात में खाना खाकर जल्दी सो गये थे।
नीली कमीज में हर की दून वाला साथी धर्मेन्द्र सांगवान है। |
सांगवान हमें यही मिला था। |
चलो भाई अब दिल्ली 564 किमी दूर है। |
अगली सुबह दिल्ली के नजदीक जाकर आँख खुली तो ध्यान आया कि अरे यह खूबसूरत यात्रा तो समाप्त हो रही है। लगता था जैसे कोई सपना देखा हो?
गुजरात यात्रा के सभी लेख के लिंक क्रमानुसार नीचे दिये गये है।
भाग-01 आओ गुजरात चले।
भाग-02 ओखा में भेंट/बेट द्धारका मन्दिर, श्री कृष्णा निवास स्थान
भाग-03 द्धारकाधीश का भारत के चार धाम वाला मन्दिर
भाग-04 राधा मन्दिर/ श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी रुक्मिणी देवी का मन्दिर
भाग-05 नागेश्वर मन्दिर भारते के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक
भाग-06 श्रीकृष्ण के दोस्त सुदामा का मन्दिर
भाग-07 पोरबन्दर गाँधी का जन्म स्थान।
भाग-08 जूनागढ़ का गिरनार पर्वत और उसकी 20000 सीढियों की चढ़ाई।
भाग-09 सोमनाथ मन्दिर के सामने खूबसूरत चौपाटी पर मौज मस्ती
भाग-10 सोमनाथ मन्दिर जो अंधविश्वास के चलते कई बार तहस-नहस हुआ।
भाग-11 सोमनाथ से पोरबन्दर, जामनगर, अहमदाबाद होते हुए दिल्ली तक यात्रा वर्णन
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5 टिप्पणियां:
ये बालिया ही वहां के लोगो की पहचान है
अब कौन सी यात्रा करवाओगे जाट भाई
गुजरात की यात्रा वाकई ही खुबसूरत रही ...धरमेंदर जी को पहचान गई ...अजी हमारे धरमेंदर पा जी नहीं आपके धरमेंदर सांगवान जी ...
बढिया यात्रा, अच्छी तस्वीरें
पूरी यात्रा आनन्दभरी रही।
चारों को पढ़कर बहुत खुशी हुई क्योंकि मुझे इसे पढ़ने में बहुत मज़ा आया। जिस तरह से आप अपने यात्रा के अनुभव की व्याख्या करते हैं वह वास्तव में बहुत बढ़िया है। आप अपनी जानकारी हमारे साथ साझा करने के लिए धन्यवाद। भारत टैक्सी पोरबंदर में किराए पर अपनी टैक्सी के लिए एक अच्छी तरह से जाना जाता है और साथ ही टैक्सी के 24 घंटे की सेवा को बनाए रखने के लिए। पोरबंदर में टैक्सी किराए पर लेने की सेवा के लिए एक उचित मूल्य और त्वरित सहायता उपलब्ध है, हमें हमारी बुकिंग नंबर 9696000999 पर कॉल करें या हमारी वेबसाइट पर जाएं टैक्सी सेवाएं पोरबंदर में ।
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