बरसात के पानी वाले सीधे शार्टकट से उतरते ही सुन्दरासी दिखायी देने लगता है। सुन्दरासी पहुँचते-पहुँचते आसमान में सूरज देवता ने अपना गर्म रुप दिखाना आरम्भ कर दिया था। ऊपर नहाते समय शरीर का हर अंग ठन्ड़ के कारण तबला-वादन/कथक कली और ना जाने क्या-क्या करने लगा था। जब सूर्य महाराज की शरण में अपुन का शरीर आया तो शरीर को गर्म करने के लिये ओढ़ी गयी गर्म चददर भी उतार कर कंधे पर ड़ाल दी गयी। धन्छो पहुँचने तक यह गर्म चददर बैग के अन्दर पहुँच चुकी थी। सुन्दरासी आने के बाद मार्ग में लगातार तेज ढ़लान मिलनी शुरु हो जाती है। तेज ढ़लान का लाभ यह है कि शरीर तेजी के साथ नीचे की ओर भागने को तैयार रहता है लेकिन लगातार तीखी ढ़लान ही उतराई में पैरों के पंजे में दर्द उत्पन्न होने से सबसे बड़ी दुश्मन भी बन जाती है। सुन्दरासी पहुँचकर लगभग आधे साथियों ने दस मिनट का विश्राम लिया। कई साथी यहाँ बिना विश्राम किये धन्छो के लिये प्रस्थान कर गये थे। मैने बड़े वाला शार्टकट मार कर अपना काफ़ी समय और मार्ग बचा लिया था उसका लाभ यहाँ कुछ मिनट विश्राम कर उठाया गया। विश्राम करने के बाद यहाँ से चलने की बारी थी। सिर्फ़ दिल्ली वाले राजेश जी की टीम सबसे पीछे चल रही थी, बाकि अन्य सभी आगे जा चुके थे।
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बुधवार, 24 अप्रैल 2013
sundrasi-Dancho to hadsar सुन्दरासी से धन्छो होकर हड़सर जाकर ट्रेकिंग का समापन
हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-17 SANDEEP PANWAR
मंगलवार, 23 अप्रैल 2013
Manimahesh to Sudrasi मणिमहेश से सुन्दरासी तक बर्फ़ीला व पथरीला सफ़र
हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-16 SANDEEP PANWAR

हिमालय की पवित्र झील में स्नान और देव तुल्य समान पर्वत के दर्शनों के बाद वहाँ ठहरने का कोई अन्य कारण नहीं था। यहाँ के नजारे तो कल शाम को ही तसल्ली से देखते हुए आये थे। ऊपर आते समय शारीरिक थकान व आसमान में बादलों के आ जाने के कारण फ़ोटो लेने में भी दिल भरा नहीं था। लेकिन पहाड़ों की सबसे बड़ी खासियत यही होती है दोपहर बाद भले ही कितने बुरे हालात हो जाये, सुबह सवेरे सुहावना दिलखुश मौसम मिल ही जाता है। ऐसा मैंने लेह वाली बाइक यात्रा में भी देखा है। अब तक लगभग 100 से ज्यादा बार पहाड़ों में घूमने के लिये जा चुका हूँ जिसमें से अपवाद स्वरुप एक-दो यात्रा में ही सुबह के समय भी खराब मौसम से सामना हुआ है। मणिमहेश से गौरीकुन्ड तक की सवा किमी यात्रा करने में कोई खास समस्या नहीं आती है। यहाँ वापसी में मैंने एक बार फ़िर से पीछे रहकर चलने में ही अपनी भलाई समझी। दिल्ली वाले राजेश जी बाद में पहुँचे व विधान के सबसे आखिर में स्नान करने के कारण सभी को देर ना हो इसलिये अन्य साथियों को कह दिया गया कि जिसे चढ़ाई में समस्या आई थी कृप्या वे नीचे उतराई में जाते समय सावधानी से व अन्य साथियों से पहले चलने का कष्ट करे। यहाँ मनु, मराठे आदि कई बन्दे कुछ मिनट पहले ही नीचे भेज दिये गये थे। मेरे साथ विपिन रह गया था।

सोमवार, 22 अप्रैल 2013
Manimahesh lake and parvat/mountain मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में डुबकी।
हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-15 SANDEEP PANWAR

रात को
सोते समय हमने एक-एक कम्बल ही लिया था, लेकिन जैसे-जैसे समय बीत रहा था तेजी से वहाँ का तापमान भी गिरता जा रहा था।
जल्दी ही हमें दूसरा कम्बल भी लेना पड़ गया। रात में ठन्ड़ ज्यादा तंग ना करे, इसलिये
दो कम्बल ऊपर व एक कम्बल नीचे बिछा लिया गया था। जहाँ हम सो रहे थे ठीक हमारे सामने
ही उसी दुकान में 3-4 लोग और भी बैठे हुए थे। वे सभी दारु पीने
में लगे हुए थे। उन्हे दारु पीते देख मुझे राजेश जी की याद आ गयी। अपने राजेश जी भी
इनका साथ देने के तैयार हो सकते थे। यदि वे यहाँ होते तो! राजेश जी का पता नहीं चल
पाया कि वे रात में कहाँ तक पहुँचे थे यह बात तो निश्चित थी कि वे गौरीकुन्ड़ तक नहीं
पहुँच पाये थे। क्योंकि गौरीकुन्ड़ तक आने के बाद मणिमहेश तक पहुँचना बेहद आसान है।
विधान अंधेरा होने से पहले हमारे पास झील पर पहुँच चुका था विधान के अनुसार राजेश जी
घोड़े वाले की इन्तजार में रुक गये थे। घोड़े वाला उन्हे लेकर आ जायेगा। लेकिन राजेश
जी सुबह होने पर ही ऊपर पहुँच पाये थे। रात आराम से कट गयी, कई-कई
कम्बल लेने का फ़ायदा यह हुआ कि हमें सोते समय ठन्ड़ ने तंग नहीं किया। मणिमहेश पर्वत की समुन्द्र तल से ऊँचाई 5653 मीटर यानि 18564 फ़ुट है। झील की ऊँचाई 4950 मीटर है। यह पर्वत हिमालय के पीरपंजाल पर्वतमाला में आता है।
शनिवार, 20 अप्रैल 2013
Gauri Kund to manimahesh lake and parvat पार्वती/गौरी कुन्ड़
हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-14 SANDEEP PANWAR
गौरीकुन्ड़
मणिमहेश यात्रा में मणिमहेश झील व पर्वत से लगभग एक किमी पहले ही पगड़न्ड़ी के किनारे
उल्टे हाथ आता है। इसलिये ऊपर जाते समय पहले ही गौरीकुन्ड़ की यह छोटी सी झील भी देख
लेनी चाहिए। वैसे हमने यह झील जाते समय नहीं बल्कि वापसी आते समय देखी थी लेकिन हम
तीन बन्दों के अलावा अन्य सभी ने यह झील जाते समय ही देख ली थी इसलिये आप सबको भी गौरीकुन्ड़
की यात्रा पहले ही करा देते है। यात्रा के दिनों में यहाँ पुरुषों का आना मना है इसलिये
पहली बार वाली यात्रा में मैंने यह झील बाहर से ही देखी थी अबकी बार हमने इस झील को
किनारे पर जाकर अच्छी तरह देखा था। मणिमहेश की तुलना में यह झील उसकी आधी तो छोड़ो चौथाई
भी नहीं लगती है। हमने इस झील के सभी कोणों से फ़ोटो लेकर अपनी संतुष्टि की थी। हम तो
यहाँ यात्रा आरम्भ होने से लगभग महीने भर से ज्यादा समय से पहले ही आ गये थे। इसलिये
यहाँ किसी किस्म की रुकावट नहीं थी। यहाँ से आगे चलने के तुरन्त बाद एक चाय की दुकान
दिखायी देती है। हम भी सीधे हाथ वाले मार्ग बन्दर घाटी वाले से काफ़ी जल्दी पहुँच गये
थे। इस दुकान पर पहुँवने से पहले हल्की-हल्की बारिश की बूँदाबांदी आरम्भ हो गयी थी।
हमें वहाँ कुछ पन्नी पड़ी हुई दिखायी दी हमने इन पन्नी को ओढ़कर बारिश से अपना बचाव किया
था। ऊपर वाले का शुक्र/शनि जो भी हो सही रहा कि
बारिश कहर बरपाने से पहले ही बन्द हो गयी थी।
शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013
Dancho to Bhairo Ghati धनछो से भैरो घाटी तक।
हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-13 SANDEEP PANWAR

विधान दिल्ली वालों के साथ पीछे ही रह गया था। अकेला होने
का मुझे यह लाभ हुआ कि मैं अपनी तेजी से चढ़ता चला गया। पुल से चलते ही पहली बार एक
दुकान मिली थी लेकिन मुझे यहाँ कुछ खाने-पीने की इच्छा नहीं हो रही थी। मैंने दुकान की ओर देखते हुए
अपना सफ़र जारी रखा। दुकान वाला ललचाई नजरों से मेरी तरफ़ देखता रहा। यहाँ दिन भर
में मुश्किल से ही 10-12 बन्दे आ रहे होंगे
जिस कारण इन 10-12 बन्दों में से एक
बन्दा भी बिना कुछ खाये-पिये दुकान से आगे निकल जाये तो दुकान वालों पर क्या बीतती
होगी? यह तो दुकान वाले के दिल से पता करना
चाहिए। दुकान से आगे जाने पर अब लगातार हल्की चढ़ाई से सामना हो रहा था। मैंने
धन्छों के पुल तक अपनी तेजी बराबर बनाये रखी। चूंकि मैं यहाँ पहले भी पधार चुका था
इसलिये मुझे मालूम था कि यहाँ अब दुबारा से कठिन वाली चढ़ाई कहाँ जाकर आयेगी? अब एक किमी का धन्छो पार करने तक चढ़ाई की कोई
समस्या नहीं थी। लेकिन जैसे ही धन्छो समाप्त होता है, वैसे ही चढ़ाई की नानी सामने दिखायी देने लगती
है। यहाँ धन्छो से ऊपर जाने के लिये दो मार्ग हो जाते है। पहली बार मैं उल्टे हाथ
वाले मार्ग से गया था। वापसी भी उसी मार्ग से आया था। इसलिये अबकी बार मेरा इरादा
सीधे हाथ नदी का पुल पार कर, ऊपर जाने वाले मार्ग से यह चढ़ाई करने का था।

गुरुवार, 18 अप्रैल 2013
Manimahesh trekking Hadsar/Harsar to Dhancho हड़सर से धनछो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग
हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-12 SANDEEP PANWAR
रात में हमने मणिमहेश की यात्रा के आरम्भ स्थल हड़सर में तीन कमरे 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से तय कर लिये। यहाँ हमें सिर्फ़ एक रात्रि ही हडसर में रुकना था, दूसरी रात्रि तो हमने ऊपर पहाड पर मणिमहेश झील के किनारे ही रुकने का कार्यक्रम बनाया हुआ था। रात का खाना खाने के लिये हमें अपने कमरे से लगभग 300 मीटर पीछे जाकर रात्रि भोजन करने के जाना पड़ा था। जहाँ हम ठहरे हुए थे वहाँ पर सिर्फ़ काम चलाऊ कमरे थे। रात का खाना खाकर सोने के लिये कमरे में पहुँचे तो वहाँ पर हमने कमरे वाले से पीने के लिये पानी माँगा तो उसके नौकर ने दूसरे कमरे के शौचालय से ही बोतले भरनी शुरु कर दी थी उसे शौचालय से पीने का पानी भरता देख खोपड़ी खराब हो गयी। पहले तो उसे जमकर सुनाया उसके बाद उन बोतलों को वही फ़ैंक कर अपनी बोतले लेकर बाहर सड़क पर आ गये। खाना खाकर आते समय मैने एक नल से पानी बहता हुआ देखा था। उस नल से रात्रि में पीने के लिये काम आने लायक जल भरकर कमरे में पहुँचे। हमारे कमरे के बराबर से नीचे बहती नदी के पानी की जोरदार आवाज पूरी रात आती रही। सुबह पहाड़ पर 15000 फ़ुट की ऊँचाई 14-15 किमी में चढ़नी थी। अपना नियम सुबह जल्दी चलने का रहता है इस बात को सबको बता दिया गया था। साथ ही चेतावनी भी दे दी गयी थी कि सुबह जो देर करेगा वो बाद में आता रहेगा। सुबह ठीक 6 बजे हड़्सर छोड़ देने का फ़ैसला रात में ही बना लिया था।
रात में हमने मणिमहेश की यात्रा के आरम्भ स्थल हड़सर में तीन कमरे 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से तय कर लिये। यहाँ हमें सिर्फ़ एक रात्रि ही हडसर में रुकना था, दूसरी रात्रि तो हमने ऊपर पहाड पर मणिमहेश झील के किनारे ही रुकने का कार्यक्रम बनाया हुआ था। रात का खाना खाने के लिये हमें अपने कमरे से लगभग 300 मीटर पीछे जाकर रात्रि भोजन करने के जाना पड़ा था। जहाँ हम ठहरे हुए थे वहाँ पर सिर्फ़ काम चलाऊ कमरे थे। रात का खाना खाकर सोने के लिये कमरे में पहुँचे तो वहाँ पर हमने कमरे वाले से पीने के लिये पानी माँगा तो उसके नौकर ने दूसरे कमरे के शौचालय से ही बोतले भरनी शुरु कर दी थी उसे शौचालय से पीने का पानी भरता देख खोपड़ी खराब हो गयी। पहले तो उसे जमकर सुनाया उसके बाद उन बोतलों को वही फ़ैंक कर अपनी बोतले लेकर बाहर सड़क पर आ गये। खाना खाकर आते समय मैने एक नल से पानी बहता हुआ देखा था। उस नल से रात्रि में पीने के लिये काम आने लायक जल भरकर कमरे में पहुँचे। हमारे कमरे के बराबर से नीचे बहती नदी के पानी की जोरदार आवाज पूरी रात आती रही। सुबह पहाड़ पर 15000 फ़ुट की ऊँचाई 14-15 किमी में चढ़नी थी। अपना नियम सुबह जल्दी चलने का रहता है इस बात को सबको बता दिया गया था। साथ ही चेतावनी भी दे दी गयी थी कि सुबह जो देर करेगा वो बाद में आता रहेगा। सुबह ठीक 6 बजे हड़्सर छोड़ देने का फ़ैसला रात में ही बना लिया था।
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