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शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2017

Trek complete on the top of Kund village कुन्ड गांव की चोटी पर ट्रैक समाप्त


देहरादून-मालदेवता यात्रा-04                                      लेखक -SANDEEP PANWAR
इस यात्रा में अभी तक देहरादून में गंधक पानी में स्नान सहस्रधाराटपकेश्वर मंदिर के दर्शन उपरांत मालदेवता से आगे ट्रैकिंग मार्ग में गंधक पानी के श्रोत तक यात्रा कर चुके हो। इस लेख में स्नान के बाद कुन्ड गाँव तक की भयंकर चढाई के बारे में पढने के इच्छुक है तो इस यात्रा का यह अंतिम भाग अवश्य पढ लीजिए। इस यात्रा को आरम्भ से पढने के लिये यहाँ क्लिक करना न भूले। इस लेख की यात्रा दिनांक 14 & 15-08-2016 को की गयी थी
DANGER TREK-Maldevta to Kund Village सौंदणा गाँव से कुंड गाँव तक खतरनाक ट्रैकिंग
जौंक का आतंक

बुधवार, 4 अक्टूबर 2017

Trekking to Kund village Via Gandak stream कुन्ड गाँव की ट्रैकिंग वाया गंधक पानी



देहरादून-मालदेवता यात्रा-03                                      लेखक -SANDEEP PANWAR
देहरादून की इस यात्रा में अभी तक गंधक पानी में स्नान सहस्रधाराटपकेश्वर मंदिर के दर्शन उपरांत मालदेवता की यात्रा हो चुकी है। मालदेवता से आगे ट्रैकिंग मार्ग में गंधक पानी के श्रोत में स्नान के बाद कुन्ड गाँव तक की भयंकर चढाई के सुख-दुख, के पलों के बारे में पढने के इच्छुक है तो इस यात्रा पर साथ बने रहिए।
इस लेख की यात्रा दिनांक 14 & 15-08-2016 को की गयी थी
SAUNDNA VILLAGE to Gandak Kund सौंदणा गाँव से गंधक कुंड तक ट्रैकिंग
गंधक पानी में स्वर्ग की अनुभूति

सोमवार, 2 अक्टूबर 2017

Tapkeshwar temple & Mal Devta Dehradoon टपकेश्वर मंदिर व मालदेवता प्राचीन शिवालय देहरादून



देहरादून-मालदेवता यात्रा-02                                      लेखक -SANDEEP PANWAR
देहरादून की इस यात्रा में, अभी तक आप गंधक पानी में स्नान करने की प्रसिद्ध जगह सहस्रधारा देख चुके है। अब हम बूँद-बूँद जल टपकने के कारण मशहूर टपकेश्वर मंदिर जा रहे है।
टपकेश्वर मंदिर के दर्शन उपरांत हमारी टीम देहरादून-सरकुंडा देवी सडक मार्ग पर स्थित मालदेवता की ओर प्रस्थान करेगी। मालदेवता से आगे ट्रैकिंग मार्ग में गंधक पानी के श्रोत में स्नान के बाद कुन्ड गाँव तक की भयंकर चढाई के सुख-दुख वाले पलों के बारे में पढने के इच्छुक है तो इस यात्रा पर साथ बने रहिए।
इस लेख की यात्रा दिनांक 14-08-2016 को की गयी थी
TAPKESHWAR MAHADEV TEMPLE & Maldevta Picnic Spot टपकेश्वर महादेव मंदिर और मालदेवता शिवालय व पिकनिक स्थल
टपकेश्वर महादेव की जय

शनिवार, 30 सितंबर 2017

Sahastradhara, Dehradun सहस्र धारा, देहरादून



देहरादून-मालदेवता यात्रा-01                               AUTHOR-SANDEEP PANWAR
देहरादून की इस यात्रा में आपको स्नान करने की प्रसिद्ध जगह सहस्रधारा, बूँद-बूँद जल के टपकने वाले टपकेश्वर मंदिर के साथ गंधक पानी के श्रोत में स्नान के अलावा कुन्ड गाँव तक की भयंकर चढाई के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है। इस यात्रा में पहली बार पहाड में बरसात के भरपूर मौसम में एक पहाडी नदी को को दो बार पार कर आगे चलना पडा था। इस लेख की यात्रा दिनांक 14-08-2016 को की गयी थी
DELHI TO SAHASTRADHARA दिल्ली से सहस्रधारा भ्रमण व स्न्नान

बुधवार, 27 अगस्त 2014

Kampty Fall-Mussoorie to Delhi कैम्पटी फ़ॉल मसूरी से दिल्ली तक

BIKE YATRA WITH WIFE-03

पेंचर वाली बाइक मोड पर ही थोडा गडबड करती थी अन्यथा बाइक आसानी से 40 की गति से दौडी जा रही थी। सीधी सडक पर बाइक चलाने में कोई समस्या नहीं आयी। जहाँ सडक खराब आती थी वही बाइक ज्यादा धीमे निकालनी पडती थी। ट्यूब कटने की चिन्ता नहीं थी। उसके बारे में तो सोच ही लिया था कि नई डलवानी ही पडेगी। 
इस यात्रा के तीनों लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से हरिदवार व ऋषिकेश यात्रा।
02- उत्तरकाशी से यमुनौत्री मन्दिर तक
03- कैम्पटी फ़ॉल, मसूरी देहरादून दिल्ली तक

शनिवार, 3 नवंबर 2012

सुरकण्डा देवी मन्दिर, धनौल्टी, मसूरी, देहरादून, शाकुम्बरी देवी मन्दिर


आप बता सकते थे कि कार के अगले पहिये में क्या हुआ था? लेकिन कोई नहीं बता पाया इससे साबित हुआ कि लोग अंदाजा भी नहीं लगाना चाहते है। मैं आज आपको बता रहा हूँ कि कार के अगले पहिये में चालक वाली साइड में नहीं बल्कि दूसरी तरफ़ वाले पहिये में आवाज आ रही थी। जैसे ही मैंने कार रोक कर नीचे उतर कर पहिया देखने गया तो सबसे पहले मेरी नजर टायर पर नहीं गयी थी मैंने पहले तो टायर के पीछे लटकने वाली रबर को देखा कि कही यह तो टायर में रगड नहीं खा रही है। लेकिन वह टायर से काफ़ी दूरी पर थी। जैसे ही मेरी नजर टायर पर गयी तो एक बार को सिर चकरा गया क्योंकि टायर में पेंचर होने के कारण हवा बिल्कुल नहीं बची थी। कार में एक टायर स्पेयर में रहता है आगे जाने से पहले टायर बदलना जरुरी था। टायर निकालने के लिये डिक्की खोलनी पडी, वहाँ से सारा सामान जैसे पताशे का टोकरा कपडे का थैला, नारियल का थैला गाडी से बाहर निकालने पडे थे। यह सारा सामान निकालने के बाद जाकर टायर बाहर निकाला जा सका।


सोमवार, 29 अक्टूबर 2012

समूह में पहली बार कैम्पटी फ़ॉल भ्रमण(कोहरे का कहर) kampty fall group tour


लोग कहते है कि घुमक्कडी में पैसे खर्च करना फ़िजूल खर्ची है लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता। दूसरी बात पैसे खर्च करके भी कोई साधु महात्मा जितनी घुमक्कडी और भी करता होगा। मुझे नहीं लगता। जबकि मैं हमेशा कहता आया हूँ कि घुमक्कडी किस्मत से मिलती है समय व पैसों से नहीं, लेकिन कई लोग ऐसे भी मिल जायेंगे जिन्हे मेरी इस बात पर भी आपत्ति होगी। ऐसे लोगों को उनके हाल पर छोड देनी में ही अपनी भलाई है। जिससे मैं अपनी मनमौजी घुमक्कडी पर लगा रहता हूँ। तो चलिये दोस्तों आज आपको अपनी ऐसी पहली घुमक्कडी के बारे में बताता हूँ जिसमें मेरे साथ कई और युवक व युवती भी गये थे। युवती के फ़ोटो मैं नेट पर लगाना नहीं चाहता हूँ अत: कोई इस बारे में कुछ ना कहे। बात सन 2003 के दिसम्बर माह के आखिरी सप्ताह की बात है। मेरी मौसी व मामा का परिवार देहरादून में ही रहता है जिस कारण वहाँ साल में दो तीन बार आना-जाना हो ही जाता है। इसी तरह उपरोक्त तिथि को मेरी मौसी की लडकियाँ जिनकी ससुराल हमारे घर से 4-5 किमी दूर ही है। मौसी की लडकियों ने फ़ोन कर मुझे बताया कि वह व उनका देवर कुछ अन्य दोस्तों के साथ मसूरी घूमने जा रहे है। अगर तुम्हे चलना है तो शाम तक बता देना, क्योंकि रात को यहाँ से चल देना है। 

शनिवार, 27 अक्टूबर 2012

सुरकण्डा देवी surkanda devi की बर्फ़ व उत्तरकाशी से नरेन्द्रनगर तक बारिश bike trip


वर्ष सन 2003 में फरवरी माह के आखिरी सप्ताह की बात है। कुछ दोस्तों ने कहा कि “संदीप भाई चलो महाशिवरात्रि नजदीक आ रही है कही घूम कर आते है”। मैंने कहा ठीक है चलो लेकिन मेरी एक शर्त है कि जहाँ भी जाना है, बाइक पर ही चलेंगे, अगर मानते हो तो मैं तैयार हूँ। उन्होंने कहा अरे भाई आपने तो हमारे मन की बात कह दी है, हम भी तो बाइक पर ही जाना चाहते है, लेकिन कोई साथ जाने वाला मिल ही नहीं रहा है। इसलिये तो हम आपके पास आये है। तो दोस्तों इस तरह यह बाइक यात्रा तैयार हो गयी थी। इस bike trip में कुल तीन बाइक शामिल हुई थी। जिसमें से एक बजाज की, दूसरी एलमएल की, तीसरी अपनी हीरो होंडा।


रविवार, 7 अक्टूबर 2012

Delhi-Dehradun-mussoorie-kampty fall bike trip दिल्ली से देहरादून-मसूरी-कैम्पटी फ़ॉल बाइक यात्रा


एक कहावत है कि पूत के पॉव पालने में दिख जाते है लेकिन मैं कहता हूँ कि पालना भी तो ऐसा हो जिसमें हाथ पैर चले ताकि दिखे तो सही। चलिये कहावत को मारो गोली। आज आप सबको लेकर चलता हूँ पहाड की लगभग हजार किमी लम्बी बाइक यात्रा पर घुमा कर लाता हूँ जिसमें मेरे साथ मेरी माताजी घूमने गयी थी। क्यों क्या कहते हो? ऐसा नहीं हो सकता। चलिए इस बात का प्रमाण दिखाने के लिये एक फ़ोटो भी लगा देता हूँ नीचे देख लो। यात्रा शुरु होती है सन 2001 के फ़रवरी माह के आखिरी सप्ताह की बात है देहरादून के भन्डारी बाग में रहने वाले मेरे मामाजी चौ० हरवीर सिंह तोमर की बडी लडकी की शादी का अवसर था। हमारा परिवार सहित बुलावा आना ही था, लेकिन उस समय तक हमारा परिवार ज्यादा बडा नहीं था, हमारे परिवार में मात्र तीन प्राणी थे। मैं, मेरा छोटा भाई और हमारी माताजी, भाई तो उस समय भी उतरकाशी जनपद में तैनात था। पहले तो हम दोनों ने देहरादून में शादी समारोह के लिये बस से यात्रा करने की सोची थी, लेकिन भाई ने कहा कि नई बाइक किस काम आयेगी? बाइक लेकर शादी में आ जाओ ताकि शादी के बाद बाइक से ही आगे उतरकाशी तक आ जाना। यह बात मुझे पसन्द आ गयी थी। अत: मैने शादी में बाइक से जाने की बात माताजी को बतायी तो उन्होंने कहा कि मैं भी तुम्हारे साथ बाइक से ही जाऊँगी। उस समय हमारे पास पैसन बाइक थी जो आज भी हमारे पास है। इस बाइक ने लगभग डेढ लाख किमी से ज्यादा दूरी नाप रखी है।

शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

MUSSOORIE- GUN HILL and KAMPTY FALL मसूरी- गनहिल व कैम्पटी फ़ॉल

               यह सीरीज शुरू से यहाँ से देखे                                          इस पोस्ट से पहला भाग यहाँ है  
जिस दिन मसूरी जाना था, वह दिन मेरे लिये बहुत बडी खुशी का दिन था। अरे बन्धु, मसूरी जाने के नाम पर तो आज भी लोग जान छिडकते है मैं तो फ़िर भी बीस साल पहले की बात बता रहा हूँ कई लोग सोच रहे होंगे कि क्या जाट भाई भी फ़ालतू की बिना फ़ोटॊ वाली यात्राएँ लिखे जा रहा है? लेकिन मैं जानता हूँ कि मेरे लिये यह बिना फ़ोटो वाली कई यात्राएँ कितनी कीमती है? बिना फ़ोटो यात्रा लिखने पर यह तो पता लगा कि कुछ लोग सच में लिखा हुआ पढना पसन्द करते है। केवल फ़ोटो देखने ही नहीं आते है। हाँ तो दोस्तों शुरु करते है अपनी पहली मसूरी यात्रा विवरण, सुबह कुछ ज्यादा ही जल्दी आँख खुल गयी थी, या यूँ कह सकते हो कि रात को ठीक से नींद ही नहीं आ पायी थी। कारण आप सब जानते ही हो कि यही आज वाला यात्रा का पंगा। पंगे व पहाड से याद आया कि दोनों में मुझे बहुत मजा आता है। सुबह सबसे पहले उठकर नहा धोकर तैयार हो गया, मामीजी ने सुबह सात बजे ही खाना बना कर दे दिया था। उस दिन शायद मामाजी की दोनों लडकियों का परीक्षा फ़ल आने वाला था। उनके परीक्षा फ़ल से ज्ञात हुआ कि वे भी C.B.S.E  से सम्बंधित स्कूल में ही पढते है जैसे हम दिल्ली में पढते है। देहरादून का गुरु राम राय पब्लिक स्कूल केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त है। मैं और बबलू (नवीन) तैयार होकर रेलवे स्टेशन के बीच से होते हुए मसूरी अडडे पर जा पहुँचे, वैसे भी भण्डारी बाग से मसूरी अडडा आने-जाने के लिये मुख्य सडक से होकर जाना पडता है, लेकिन जिन लोगों को मालूम है, वे सीधे स्टेशन से होते हुए उस अडडे तक चले जाया करते थे। आजकल शायद स्टेशन पर खासकर प्लेटफ़ार्म पर भी टिकट (plate form) लेकर जाना पडता है। उस समय हर आधे घन्टे पर मसूरी के लिये बस मिला करती थी आज क्या स्थिति है मुझे नहीं मालूम? मैं चाहता तो मामाजी को फ़ोन करके पता कर सकता था लेकिन मुझे यह बात ठीक नहीं लगी इसलिये पता नहीं किया।




मंगलवार, 21 अगस्त 2012

DEHRADUN TO HARIDWAR-RISHIKESH TRIP देहरादून से हरिद्धार व ऋषिकेश यात्रा

इस यात्रा को शुरु से यहाँ से पढे।                                       इस लेख से पहला लेख यहाँ से पढे।
देहरादून से हरिद्धार घूमने का कार्यक्रम तो बन गया था, साथ ही यह भी तय हो गया था कि वहाँ से ऋषिकेश चले जाना है जहाँ से शाम को वापस आ आना है? लेकिन सबसे बडी समस्या मन को समझाने की आ रही थी। मन तो पहले देहरादून से मसूरी व उससे आगे कैम्पटी फ़ॉल देखने को कर रहा था। जबकि मामाजी ने कहा कि पहले हरिद्धार गंगा स्नान कर आओ। मसूरी एक दो दिन बाद चले जाना। मुझे देहरादून आये कई दिन हो चुके थे। घर से मुझे वापसी बुलाने के लिये फ़ोन आने वाला था। मैं ऊपर वाले से कह रहा था कि अभी तीन-चार दिन फ़ोन मत आने देना। ऊपर वाला भी अपना दोस्त है, पूरे एक सप्ताह तक मेरे लिये फ़ोन नहीं आया था। हाँ तो, मैं आपको बता रहा था कि जिस दिन हमें देहरादून से हरिद्धार घूम कर आना था उस दिन हम सुबह-सुबह बिना नहाये-धोये एक-एक जोडी कपडे एक थैले में डाल कर सुबह ठीक छ: बजे चलने वाली पैसेंजर ट्रेन में जा बैठे। उस समय देहरादून स्टेशन पर टिकट किसी दूसरी जगह मिलते थे। आजकल टिकट के लिये एक अलग स्थान बना दिया गया है। जहाँ आजकल टिकट मिलता है शायद पहले वहाँ आरक्षण के लिये लाईन में लगना पडना था। आजकल आरक्षण के लिये स्टेशन के ठीक सामने एक अलग स्थान बना दिया गया है। हमने दो टिकट भी ले लिये थे। वैसे जब मैंने यह यात्रा की थी तो उस समय तक मैंने अपने रेलवे रुट पर कई बार बिना टिकट यात्रा की थी। बचपन में टिकट चैकर भी हमें ज्यादा तंग नहीं करता था। पहले तो हमने यही सोचा था कि चलो यहाँ से हरिद्धार तक भी निशुल्क घूम कर आते है। उस समय देहरादून से हरिद्धार तक शायद तीन रुपये या हो सकता है कि पाँच रुपये किराया लगता हो। (ठीक से याद नहीं आ रहा है)

शनिवार, 18 अगस्त 2012

DEHRADUN RAILWAY STATION, BICYCLE TRIP साईकिल यात्रा व देहरादून स्टेशन भ्रमण

यह यात्रा शुरु से यहाँ से देखे                                           इस यात्रा का इस लेख से पहला भाग यहाँ से देखे।
चौथे या पाँचवे दिन की बात है, शाम को  यह तय हुआ था कि संदीप व बबलू को हरिद्धार या ऋषिकेश में से किसी एक जगह घूम-घाम कर शाम तक देहरादून वापिस घर आ जाना है। इसी कारण अगली सुबह मैं फ़टाफ़ट नहा-धोकर तैयार हो गया था। लेकिन अचानक मामाजी का फ़ोन आया कि ट्रक का एक पहिया पेन्चर हो गया है, स्टपनी वाला टायर जो रिजर्व में रहता है वह भी एक दिन पहले ट्रक में कुछ काम कराने के लिये मिस्त्री के यहाँ रखवाया हुआ था। अत: बबलू को स्कूटर लेकर मामाजी के पास जाना पडा उस समय तक मुझे काम चलाऊ स्कूटर चलाना आता था। स्कूटर घर से कोई दस किमी या उसके आसपास स्थित प्रेमनगर की दिशा में लेकर जाना था। बबलू ने कहा अब तो आज कही बाहर जाना नहीं हो पायेगा, तुम घर पर ही आराम करो। इस बीच मामीजी ने आवाज लगायी कि संदीप खाना तैयार है खा लो। सुबह के आठ बज चुके थे। बबलू बिना खाना खाये (शायद उसने खाया था, ठीक से याद नहीं) स्कूटर लेकर चला गया। बबलू के जाने से पहले मैंने उससे कहा कि क्या मैं तुम्हारी साईकिल लेकर कहीं घूम आऊँ? उसने कहा “ठीक है, तुम आज भी मेरी साईकिल लेकर जा सकते हो, क्योंकि आज मुझे साईकिल से कुछ भी काम नहीं है।

बुधवार, 15 अगस्त 2012

F.R.I. FOREST RESEARCH INSTITUTE & LAXMAN SIDDH TEMPLE वन अनुसंधान संस्थान व लक्ष्मण सिद्ध मन्दिर

इस यात्रा का शुरु का लेख यहाँ से देखे                          इस यात्रा का इससे पहला लेख यहाँ से देखे
आज के दिन हमारा कार्यक्रम देहरादून शहर में स्थित व पूरे भारत भर में मशहूर वन अनुसंधान संस्थान देखने जाने का बनाया हुआ था। इसे छोटे रुप में F.R.I. कहते है। जहाँ पर जाने के बाद मुझे कई बातों के बारे में पहली बार पता चला था। चलो.. आपको भी इसके बारे में बता ही देता हूँ। बबलू और संदीप (उस समय तक संदीप को संदीप के नाम से ही बोला जाता था आज की तरह जाट देवता कहकर नहीं पुकारा जाता था।) बीस साल में कुछ तो फ़र्क आना ही था। हाँ तो मैं आपको बता रहा था कि हम दोनों अगले दिन सुबह आठ बजे घर से F.R.I. देखने के लिये निकल पडे थे। वैसे F.R.I. के नाम से यह स्थान पूरे देहरादून में जाना जाता है पर शहर में बहुत कम ही लोग ऐसे होंगे जो इसके हिन्दी वाले बडे नाम से भी जानते होंगे। घर से निकल कर हम सबसे पहले सहारनपुर चौक पहुँचे, जहाँ से हमने एक ऑटो वही तीन पहिया वाला सवारी ढोने का कानूनी जुगाड, हमें सहारनपुर चौक से F.R.I. के पास तक के लिये मिल गया था। यहाँ चौक से टेडी-मेडी सडकों से होता हुआ, यह कानूनी जुगाड हमें F.R.I. के मुख्य गेट तक ले गया था। यहाँ हमने ऑटो छोड दिया व पैदल चल पडे।


रविवार, 12 अगस्त 2012

SAHASTRADHARA & TAPKESHWAR MAHADEV TEMPLE, DEHRADUN सहस्रधारा व टपकेश्वर महादेव मंदिर, देहरादून

इस यात्रा को शुरू से यहाँ से देखे 
इस यात्रा का इस लेख से पहला वाला लेख यहाँ से देखे 
धमालचौकडी करने के इरादे लिये हमारे पास लगभग पूरा दिन ही पडा था। यहाँ मैंने क्या-क्या गजब ढहाया वो बताता हूं। सहस्रधारा में कितनी धारा है? यहाँ आने से पहले मेरे मन में यही प्रश्न बार-बार कोंध रहा था। जैसे ही बस से बाहर निकला तो एक ठन्डी हवा का झोंका ऐसा आया कि उसने मार्च की गर्मी में भी ठण्डक का अहसास करा गया कि यहाँ गर्मी में लोग ऐसे ही नहीं आते है कुछ तो खास बात है। बस से उतर कर हम दोनों आगे की ओर बढ चले। मामाजी का लडका नवीन उर्फ़ बबलू यहाँ पहले भी कई बार आया था, जिस कारण उसे यहाँ के बारे में अधिकतर जानकारी पहले से ही थी। जिसका फ़ायदा मुझे बहुत हुआ। सबसे पहले हम दोनों गुरु द्रोणाचार्य की गुफ़ा में गये। यह गुफ़ा अब शायद मन्दिर के रुप में बना दी गयी है। बीस साल पहले ऐसा नहीं था। तब शायद यह एक साधारण सी गुफ़ा ही थी जिसके बारे में बताया गया था कि यह महाभारत के कौरवों व पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य की गुफ़ा है, वे यहाँ कुछ दिन रहे थे। बताने वाले तो यही बताते है कि देहरादून का नाम गुरु द्रोण के कारण ही पडा है। अब इस बात में कितनी सच्चाई है, मैं नहीं जानता। उस गुफ़ा को देखकर, हम दोनों आगे की ओर बढे। 

शनिवार, 11 अगस्त 2012

DEHRADUN RAILWAY STATION & SAHASTRADHARA देहरादून शहर व सहस्रधारा भ्रमण

इस यात्रा को शुरू से पढ़े       
देहरादून का माजरा बीस साल पहले जरुर गाँव था लेकिन आज ऐसा नहीं है। आज यह गाँव भी पूरी तरह शहरीकरण के रंग में रंग चुका है। मैंने आपको बताया था कि माजरा गाँव से पहले एक लोहे का पुल आया था। आज से बीस साल पहले की बात बता रहा हूँ कही आप आज 2012 में वहाँ जाकर तलाशने लगो कि लोहे का पुल तो हमने पार ही नहीं किया। वैसे आज भले ही वह तत्कालीन लोहे का पुल पार नहीं करना होता है लेकिन वह पुल आज भी अपनी जगह पर ही मौजूद है। उस लोहे के पुल की बायी तरफ़ देहरादून जाते समय, सीमेंट वाला बडा व नया पुल कई साल पहले बना दिया गया था। लोहे वाला पुल भले ही एक गाडी के आवागमन के लिये रहा होगा, क्योंकि वह पुल अंग्रेजों का बनवाया हुआ था। उस पुल की एक खासियत यह थी कि उसमें एक भी नट-वोल्ट व वेल्डिंग का प्रयोग नहीं हुआ था। जिन लोगों ने दिल्ली का यमुना नदी पर बना लोहे का पुराना पुल देखा होगा उन्हे याद आ गया होगा कि कैसा पुल रहा होगा। पुल पार करने के लिये यहाँ भी वाहन चालकों को सामने से आने वाली गाडी का ध्यान रखना होता है। यहाँ वैसी परेशानी नहीं आयी जैसी डाट वाली गुफ़ा पार करने वाले पुल पर आती है। डाट वाली गुफ़ा के पास वाला जो मन्दिर है उसके बारे में एक बात एक ब्लॉगर महिला मित्र ने मेरे ब्लॉग पर बतायी है कि देहरादून व आसपास जब भी कोई नया वाहन खरीदता है तो वह इस मन्दिर में जरुर प्रसाद चढाता है। मेरे मामाजी के पास कई ट्रक है और एक बार नया ट्रक लेने के अवसर पर मैं भी वही देहरादून में मौजूद था। मामाजी भी अपने नये ट्रक को लेकर यहाँ इसी मन्दिर पर आये थे। उसके बाद ही उन्होंने ट्रक को अपने कार्य में लगाया गया था।

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

SAHARANPUR TO DEHRADUN सहारनपुर से देहरादून मार्ग विवरण

इस यात्रा को शुरू से पढ़े यहाँ से 
ट्रेन अपनी गति से चली जा रही थी और मैं अपनी मस्ती में खोया हुआ था। अपने वाले दिल्ली-लोनी-बागपत वाले रेल मार्ग पर जब बागपत रोड नाम की जगह आती है तो पहले-पहले मैं इसी स्टेशन को बागपत शहर समझा करता था। लेकिन यह मुझे कई साल बाद जाकर पता लगा कि बागपत शहर यहाँ से लगभग 5-6 किमी की दूरी पर, सडक वाले मार्ग पर स्थित है। यहाँ ट्रेन से उतरकर सडक मार्ग से मेरठ व सोनीपत जाया जा सकता है। जहाँ बागपत रोड वाला स्टेशन है, उस गाँव का नाम टटीरी है। जो आज एक ठीक-ठाक कस्बे का रुप धारण कर चुका है। कुछ ऐसा ही सूरते-हाल लोनी स्टेशन का है रेलवे रिकार्ड में लोनी LONI को नोली NOLI लिखा गया है। अगर आपमें से कोई वहाँ से गया हो तो सोच में जरुर पडा होगा कि लोग तो कहते है लोनी आयेगा लेकिन यह नोली कहाँ से आ गया? कई बार नई-नई सवारियाँ इस नाम के चक्कर में रेल के अन्दर बैठी रह जाती है। 

सोमवार, 6 अगस्त 2012

DELHI TO DEHRADUN चले देहरादून की ओर


दोस्तों नई यात्राएँ तो होती ही रहेंगी, लेकिन कई पुरानी यात्राएं भी है जिनका जिक्र करना जरूरी है अगर नई-नई यात्रा का विवरण ही बताता रहा तो पुरानी का नम्बर कभी भी नहीं आयेगा क्योंकि जिस गति से अपनी नई-नई यात्राओं की संख्या बढती जा रही है उससे तो ऐसा नहीं लगता कि यह सिलसिला जीते जी कभी रुकने वाला भी है। पुरानी यात्राओं में वैसे तो मैंने सबसे पहले देहरादून के पास सह्रसधारा की यात्रा की थी। उसके बाद देहरादून के पास के लगभग सारे स्थान मैंने साईकिल पर ही छानमारे थे। मंसूरी, धनौल्टी, चम्बा, सुरकन्डा देवी, बाइक पर उतराखण्ड के चार धाम गंगौत्री-यमुनौत्री-केदारनाथ-बद्रीनाथ, फ़ूलों की घाटी, हेमकुंठ साहिब, चोपता, रोहतांग, मणिकर्ण, ज्वालामुखी आदि-आदि न जाने कितनी यात्राएँ अभी बाकि है? अबकी बार मैं आपको उन्ही सब पुरानी यात्राओं में से कुछ के बारे में बताने जा रहा हूँ, मेरी कोशिश क्रमवार यात्रा विवरण बताने की रहेगी। समय काफ़ी बीत चुका है जिस कारण सब यात्राओं का समय तो ठीक-ठीक याद नहीं है लेकिन फ़िर भी जितना हो सका, उतना इन्साफ़ जरुर करने की कोशिश जरुर करूँगा। इन यात्राओं में मैंने लगभग सभी साधन प्रयोग किये है जैसे कि साईकिल, बस, रेल, ट्रक, कार आदि तो आज आपको दिल्ली से सहारनपुर तक की रेल यात्रा के बारे में बताने जा रहा हूँ।


मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

DEHRADOON TO DELHI देहरादून से दिल्ली

हर की दून बाइक यात्रा-
चकराता से देहरादून तक आने में पूरे 3 घन्टे लग गये थे। देहरादून के स्टेशन पर ठीक 11 बजे पहुँचे, वहाँ रेलवे आरक्षण केन्द्र पर भीड देखकर सांगवान के होश ही उड गये। फ़िर भी उसने प्रयत्न जारी रखा कि कैसे भी बात बने, लेकिन पूरे एक घन्टा बीत जाने पर भी जब किसी तरह भी उम्मीद नहीं रही कि अब काऊंटर बाबू तक पहुँचने में अभी घन्टा और लग जायेग, तो सांगवान बाहर आ गया, मैं भी घन्टे भर से अपनी बाइक पर बैठा-बैठा सांगवान को मन ही मन में उल्टी-सीधी बके जा रहा था कि बडा आया पैसे बचाने के लिये अब 12 बजने वाले है लगता है कि अब शाम 7:50 बजे की राजधानी भी निकल जायेगी। राजधानी का टिकट तो तत्काल में कराया गया था उसके तो टिकट वापसी में कुछ भी नहीं मिलने वाला था। अब सांगवान ने वो टिकट वहाँ के पार्किंग वाले को मुफ़्त में देने की कोशिश की, लेकिन उसने भी यह कहकर टिकट नहीं लिया कि इतनी भीड में कौन लाईन में लगेगा। आखिर सांगवान ने गुस्से में वो टिकट वहीं फ़ाड दिया, टिकट फ़ाडा यानि पूरे 450 रु गये काम से। 

देहरादून स्टेशन के बाहर का फ़ोटो है, ठीक 12 बजे लिया गया था।

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