एक कहावत है कि पूत के पॉव पालने में दिख जाते है लेकिन मैं कहता हूँ कि पालना भी तो ऐसा हो जिसमें हाथ पैर चले ताकि दिखे तो सही। चलिये कहावत को मारो गोली। आज आप सबको लेकर चलता हूँ पहाड की लगभग हजार किमी लम्बी बाइक यात्रा पर घुमा कर लाता हूँ जिसमें मेरे साथ मेरी माताजी घूमने गयी थी। क्यों क्या कहते हो? ऐसा नहीं हो सकता। चलिए इस बात का प्रमाण दिखाने के लिये एक फ़ोटो भी लगा देता हूँ नीचे देख लो। यात्रा शुरु होती है सन 2001 के फ़रवरी माह के आखिरी सप्ताह की बात है देहरादून के भन्डारी बाग में रहने वाले मेरे मामाजी चौ० हरवीर सिंह तोमर की बडी लडकी की शादी का अवसर था। हमारा परिवार सहित बुलावा आना ही था, लेकिन उस समय तक हमारा परिवार ज्यादा बडा नहीं था, हमारे परिवार में मात्र तीन प्राणी थे। मैं, मेरा छोटा भाई और हमारी माताजी, भाई तो उस समय भी उतरकाशी जनपद में तैनात था। पहले तो हम दोनों ने देहरादून में शादी समारोह के लिये बस से यात्रा करने की सोची थी, लेकिन भाई ने कहा कि नई बाइक किस काम आयेगी? बाइक लेकर शादी में आ जाओ ताकि शादी के बाद बाइक से ही आगे उतरकाशी तक आ जाना। यह बात मुझे पसन्द आ गयी थी। अत: मैने शादी में बाइक से जाने की बात माताजी को बतायी तो उन्होंने कहा कि मैं भी तुम्हारे साथ बाइक से ही जाऊँगी। उस समय हमारे पास पैसन बाइक थी जो आज भी हमारे पास है। इस बाइक ने लगभग डेढ लाख किमी से ज्यादा दूरी नाप रखी है।
दो दिन बाद ही हमें शादी के लिये जाना था, अत: हम दिल्ली अपने घर से देहरादून जाने के लिये सुबह-सुबह दिन निकलते ही घर से चल पडे। फ़रवरी समाप्त होने को जरुर थी लेकिन ठन्ड भी अपने चरम पर थी जिस कारण हम दोनों ने ही ठन्ड से बचने के लिये के मोटे-मोटे गर्म कपडे पहन लिये थे। हम अपनी बाइक से दिल्ली से लोनी मोड शाहदरा स्टेशन से मात्र चार किमी दूर होते हुए, लोनी, खेकडा, काठा, बागपत,(यहाँ से मेरठ जाया जा सकता है) सरुरपुर, बडौत, बावली, एलम, कांधला, शामली(यहाँ से पानीपत जा सकते है) होते हुए, सिक्का, थाना भवन, रामपुर मनिहारन, होते हुए सहारनपुर (यहाँ से अम्बाला जा सकते है) पार करते हुए लगभग छ: घन्टे में देहरादून पहुँच गये थे। मेरी तो छोडो माताजी ने भी पूरे मार्ग में उफ़ तक ना की थी। मैंने तो फ़िर भी बाइक पर कई यात्रा की थी लेकिन माताजी की यह पहली लम्बी यात्रा थी। जिसमें उन्हें लगभग 1000 किमी की बाइक यात्रा करनी थी। हम दोनों मात्र एक दिन शादी के लिये ही देहरादून में रुके थे।
उसके बाद तीसरे दिन हम शादी के कामों से निपट कर अपनी पहाड की यात्रा पर चल दिये, लेकिन सुबह-सुबह जैसे ही देहरादून की शादी में आये रिश्तेदारों को पता लगा कि हम बाइक से ही दिल्ली से यहाँ तक आये है तथा अब आगे मसूरी-धनौल्टी-सुरकंडा देवी होते हुए उतरकाशी तक जा रहे है तो सबने कहा, कि अगर जाना ही है तो मसूरी होते हुए धनौल्टी पार करके मत जाओ, बल्कि नरेन्द्र नगर होते हुए चलो जाओ। लेकिन हमने कहा कि जाना है तो धनौल्टी होते हुए, नहीं तो वापिस दिल्ली लौट जायेंगे। हम सुबह सात बजे देहरादून से मसूरी से लिये निकल पडे।उन्होंने हमें रोकने की बहुत कोशिश की। लेकिन हम कहाँ किसी की सुनने वाले थे। एक ने कहा कि अगर जाना ही है तो नरेन्द्रनगर वाले मार्ग से जाओ, क्योंकि धनौल्टी मार्ग में दो दिन पहले बर्फ़बारी हुई है जिस कारण वहाँ बाइक चलानी खतरनाक हो जायेगी।
जबकि मैं पहले ही ठान चुका था कि देहरादून में सुबह-सुबह ज्यादा भीड नहीं थी जिस कारण जल्दी ही हम देहरादून शहर पार कर गये थे। देहरादून पार करने के बाद शिव मन्दिर आ गया था जहाँ हम थोडी देर रुके थे। वहाँ उस मन्दिर में प्रसाद व दान चढाना मना है। लेकिन जब भी कोई भक्त मन्दिर में दर्शन करने जाता है तो पुजारी जी प्रत्येक भक्त को खिचडी जैसा लगने वाला प्रसाद जरुर देते है। मैंने लगभग आठ-नौ बार इस मन्दिर में दर्शन किये है जिसमें से सात बार खिचडी मिली और दो बार नमकीन जैसा कुछ बना हुआ प्रसाद मिला था। इस मन्दिर में बाहर एक खास बात और है कि यहाँ पूरे साल आइसक्रीम वाली कम्पनी की ओर से एक दुकान चलायी जाती है यहाँ मिलने वाली आइसक्रीम का दाम बाजार से काफ़ी कम होता है। अत: जो कोई आइसक्रीम खाने का शौकीन हो तो यहाँ जरुर अपनी पसन्द का स्वाद चख कर आगे जाये।
खिचडी व आइसक्रीम का स्वाद हमने भी ले लिया था। वैसे तो ठन्ड लग रही थी लेकिन ठन्ड में आइसक्रीम खाने का अपना मजा है। गर्मी में जहाँ आइसक्रीम जल्दी-जल्दी खानी पडती है, उसके उल्ट सर्दी में आराम-आराम से स्वाद लेते हुए खायी जाती है। इस मन्दिर से आगे बढने पर पहाड की जोरदार चढाई शुरु हो जाती है। हम बाइक पर सवार होकर बढते जा रहे थे। कि एक जगह से पीछे छूटा हुआ मार्ग बेहद ही शानदार व सुन्दर दिखायी दे रहा था। मैंने कैमरा निकाल माताजी के साथ मार्ग का एक फ़ोटो भी ले लिया था। जो आज इस लेख में काम आ गया है। यहाँ से आगे बढते हुए हम मंसूरी में प्रवेश कर जाते है। मंसूरी में हम सीधे लाईब्रेरी चौक होते हुए, कैम्पटी फ़ॉल तक चले गये थे। बीच-बीच में मैंने कई बार अपनी माताजी से यह भी पता करता रहा था कि पहाड व गहरी खाई देख कर डर तो नहीं लग रहा है? लेकिन माताजी का जवाब सुनकर मन खुश हो जाता था। मेरे टोकने पर माताजी बोलती थी कि पहाड व खाई देखकर तो डर नहीं, अच्छा लग रहा है।
कैम्पटी फ़ॉल देखकर हम वापिस मसूरी आ गये। अबकी बार मैंने आर्य समाज मन्दिर के पास से होकर जाने वाले जीप वाले मार्ग से धनौल्टी जाने के बारे में जानकारी ले ली थी। लेकिन जैसे ही मैं माल रोड से धनौल्टी वाले मार्ग पर मुडा तो मेरे होश उड गये। सामने पहाड पर बनी सडक लगभग 60 डिग्री के कोण पर बनी हुई दिखाई दी। मैं अकेला होता तो कोई बात नहीं थी। लेकिन मेरे पीछे माताजी बैठी हुई थी। वह भयंकर चढाई देख मुझे लगा कि अगर हम दोनों बाइक पर बैठे हुए इसे पार करेंगे तो बाइक आगे से उठ जायेगी। जिस कारण मैंने माताजी को बाइक से उतार दिया और बोला कि आप इस सौ मीटर चढाई पर पैदल पार कर जाओ, बाइक पर डर है कि आगे से उठ सकती है। माताजी पैदल चलती हुई उस चढाई को चढने लगी। जब माताजी उस चढाई को पार कर गयी तो मैंने बाइक स्टार्ट की और उस चढाई को पार करने लगा। मुझे उस चढाई पर बाइक चलाते हुए लग रहा था कि माताजी अगर पीछे बैठी होती तो बाइक से गिर सकती थी। यह अच्छा हुआ कि माताजी ने यह चढाई पैदल पार कर ली है। यहाँ इस जगह तो सचमुच बडा खतरा लगता है।
जब मैं माताजी के पास पहुँचा तो देखा कि माताजी का साँस उस चढाई पर चढने से फ़ूला हुआ था। हमने थोडी देर वहाँ रुक आराम किया उसके बाद आगे बढ चले। आधा किमी बाद उसी प्रकार की एक और डराने वाली चढाई और आ गयी थी। अबकी बार हम यह सोच ही रहे थे कि क्या करे कि तभी एक बाइक पर दो बन्दे हमारे पीछे से आये और आराम से उस खतरनाक चढाई पर बैठे-बैठे चढ गये। उन्हें बाइक समेत चढते देख मुझे बडी राहत मिली। जिस कारण मैंने माताजी से कहा कि मम्मी आप मुझे कस कर पकड लेना अबकी बार इस वाली चढाई को बाइक पर बैठे-बैठे ही पार करके देखेंगे जब वे दोनों पार हो गये तो क्या हम दोनों पार नहीं हो सकते है? इसके बाद मैंने बाइक चालू कर पहला गियर डाल बाइक पहाड पर चढानी शुरु कर दी, जैसे-जैसे बाइक पहाड पर चढती जा रही थी हमारे दिलों की धडकन बढती जा रही थी बाइक ऊपर तक चढ भी पायेगी या नहीं? उस चढाई चढने में बाइक का काफ़ी जोर लग गया था जिस कारण बाइक काफ़ी शोर कर रही थी।
सारा यात्रा वर्णन इसी भाग में पढोगे क्या? बाकि अगले भाग में..........तब तक राम-राम। (1336 शब्द)
11 टिप्पणियां:
बाइक में घूमना, प्रकृति के साथ दौड़ना..
आपकी माता को पहली बार देखा है . धन्य है आप जिसने संदीप भाई जैसे बेटे को पैदा किया है. बाइक की यात्रा माँ के साथ मुबारक हो .
अब आपका ब्लॉग का चेहरा बहुत सुन्दर लग रहा है .
माताजी को प्रणाम , मै सोचता था कि आपने बाइक पर माताजी को कहां कहां घुमाया है अब लिखने से पता चलना शुरू हुआ । आपके ब्लाग की नकल मार दी है मेने टेम्पलेट में
मजेदार यात्रा..शुभकामनाएं..
कुछ कहना है -
बिल्कुल कहना है।
जीजाबाई थीं, इसीसे शिवाजी थे।
संदीप की हिम्मत के हम पहले ही कायल थे, आज एक और वजह पता चली। माताजी को सादर प्रणाम।
घुमक्कड़ी वाली पोस्ट हमेशा की तरह शानदार। पैशन बाईक वाले जाटदेवता के पास सच में घुमक्कड़ी का पैशन है।
जैसी माँ वैसा बेटा माँ कब खतरों से खेलने से डरती है .आनुवंशिक गुण लिए आए हो घुमक्कड़ी का .बधाई .ये कांग्रेसी हरकारों का युग नहीं है उल्का पात का युग है .सूचना ऊपर से आती है सौ साल बाद कंस रावण की तरह तमाम मूल्यों को नष्ट करने वाली कोंग्रेस भी एक प्रतीक बन जायेगी लोग कहेंगे इस मुल्क में कंस की तरह कांग्रेस भी होती थी ,कांग्रेसी भी .अगले चुनाव में इनकी जीत की बात करते हो आप ?
मेरी दुनिया हैं माँ तेरे आँचल में. संदीप जी एक इंसान के लिए दुनिया में माँ बाप से बड़ा कोई नहीं होता हैं. जब तक उनका साया अपने ऊपर होता हैं. एक हिम्मत ओर ताकत बनी रहती हैं. आपके यात्रा संस्मरण पढकर बहुत अच्छा लगा. धन्यवाद. वन्देमातरम..
सब से पहले तो माता जी को प्रणाम, जब बेटा साथ हो तो मां बाप को कोई दिक्कत नही होती, उन्हे अपने बच्चे पर पुरा विश्वास होता हे बाल्कि उन्हे बच्चे की ज्यादा फ़िक्र होती हे, बहुत सुंदर...
Mataji ko mera pranaam, there is a very charismatic and peaceful aura surrounding her. :)
Mataji ki himmat ka jawab nahi... kitna kuch sikha dete hain mata pita humein bina kuch kahein hi. Apki yeh bike yatra ka varnan padhkar bahut acha laga. Wish you happy and safe travels ahead.
इस साहसिक यात्रा के सकुशल संपन्न होने पर बधाई .दरअसल किसी के भी प्रति अतिशय प्रेम हमें शंकालु बना देता है .यही आपके साथ हो रहा था सौ मीट्रि चढ़ाई पर .
दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र, संकरी एवं टेडी- मेडी सड़कें, सफ़र को और भी सुहाना बना देते , हालाँकि जोखिम भी कम नहीं है इस सफ़र मैं.......बावजूद इन सबके यात्रा सकुशल संपन्न होने पर बधाई...
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