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बुधवार, 21 सितंबर 2011

पौंटा साहिब गुरुद्धारा से दिल्ली तक


देख लो हथनीकुण्ड बैराज जाने का मार्ग बोर्ड के मोड पर खडे होकर भीगे हुए कपडे दिखाये जा रहे है।

हमारी यह श्रीखण्ड महादेव यात्रा आज अन्तिम (समाप्ति) भाग 14 तक आ पहुँची है। 
अब तक हम दिल्ली (DELHI) से पिन्जौर गार्डन (PINJORE GARDEN, शिमला (SHIMLA), कुफ़री (KUFRI), नारकण्डा (NARKANDA), सैंज (SAINJ), जलोडी जोत (JALORI PAAS), रघुपुर किला (RAGHUPUR FORT), सरेउलसर झील (SAROLSAR LAKE), अन्नी (ANNI), रामपुर बुशहर (RAMPUR BUSHAHR), बागीपुल (BAGHIPUL), जॉव (JAON), सिंहगाड (SINHAGAD), थाचडू (THACHADU), काली घाटी (KALI GHATI, काली कुंड (KALI KUND), भीम डवार (BHEEM DWAR), पार्वती बाग (PARVATI BAGH), नैन सरोवर (NAIN SAROVAR), भीम शिला (BHEEM SHILA), एवं श्रीखण्ड महादेव दर्शन (SRIKHAND MAHADEV DARSHAN) करने के बाद वापसी में रामपुर (RAMPUR) से रोहडू (ROHRU), त्यूणी (TUNI), चकराता(CHAKRATA), टाईगर फ़ाल (TIGER FALL), कालसी (KALSI), सम्राट अशोक का शिलालेख (ASHOK SHILALEKH), विकास नगर (VIKAS NAGAR), हर्बटपुर (HERBERTPUR), आसन्न बैराज (AASAN BAIRAJ) यमुना पुल (YAMUNA RIVER BRIDGE) होते हुए यहाँ श्री पौंटा साहिब गुरुद्धारे (PAONTA SAHIB GURUDWARA) तक आ पहुँचे है। 
यहाँ से अब सिर्फ़ सहारनपुर (SAHRANPUR), शामली (SHAMLI), कांधला (KANDHLA), बडौत (BARAUT), बागपत (BAGHPAT), खेकडा (KHEKRA), लोनी (LONI), होते हुए दिल्ली (DELHI) तक जाना है। जो यहाँ से सिर्फ़ 235 किमी दूर है अगर अम्बाला से जायेंगे तो 305 किमी जाना होगा।   

पहाड समाप्त होते ही कुछ आगे जाने पर हथनीकुण्ड बैराज जाने का मार्ग भी आता है।

इस यात्रा को शुरु से देखने के लिये यहाँ चटका लगाये।


रविवार, 18 सितंबर 2011

PAUNTA SAHIB पौंटा साहिब गुरुद्धारा


पौंटा साहिब का कवि दरबार से लिया गया चित्र है।


हमारी यह यात्रा श्रीखण्ड महादेव भाग 13 में यहाँ तक आ पहुँची है। हम पौंटा साहिब गुरुद्धारे शाम को अंधेरा होने से काफ़ी पहले आ चुके थे। चारों ही यहाँ पहली बार आये थे, इसलिये यहाँ के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था कि अन्दर कहाँ रुकना है किससे पूछे इसी उधेडबुन में मुख्य दरवाजे के बाहर पास में ही अपनी-अपनी बाइक खडी कर दी व अन्दर जाकर सबसे पहले तो रात को रुकने के बारे में मालूम किया तो पता चला कि अन्दर घुसते ही उल्टे हाथ पर एक खिडकी से रात को रुकने वालो को परची दी जा रही है इसी परची को दिखाकर अपनी-अपनी बाइक भी गुरुद्धारे की चारदीवारी के अन्दर ला सकते हो। तो जी हम भी लग गये लाइन में जब हमारा नम्बर आया तो परची काटने वाले बंदे ने कोई भी पहचान पत्र दिखाने को कहा, उस समय मेरे पास पहचान पत्र नही था नीरज ने अपना पहचान पत्र दिखाया, अपना नाम पता व कितने बंदे हो सब कुछ लिखवाया था। जब सब खानापूर्ति हो गयी तो उसने हमें परची दे दी, हम परची ले बाहर आये व अपनी-अपनी बाइक को मुख्य द्धार से चारदीवारी के अन्दर ले आये। मुख्य द्धार से प्रवेश करते ही जहाँ से परची ली थी ठीक उसी के सामने ही कुछ दूरी पर बाइके खडी करने का स्थान है जहाँ पर सैंकडों की संख्या में बाइक खडी हुई थी। हमने भी अपनी-अपनी बाइक स्थान देख कर वही पर लगा दी। यहाँ पर ज्यादातर बाइक वाले हेमकुंठ साहिब की यात्रा से आने वाले या यात्रा पर जाने थे। वैसे मैं हेमकुंठ साहिब की यात्रा पाँच साल पहले इसी नीली परी पर कर चुका हूँ। वो यात्रा फ़िर कभी होगी आज तो सिर्फ़ और सिर्फ़ पौंटा साहिब के बारे में ही होगा। 
                               
                                इस यात्रा को शुरु से देखने के लिये यहाँ चटका लगाये।
दूसरा कोना
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