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सोमवार, 29 जुलाई 2013

Chandra Bhaga/Chenab river Bridge चन्द्रभागा/चेनाब नदी पर बना शुकराली पुल

SACH PASS, PANGI VALLEY-06                                                                      SANDEEP PANWAR
रात दस बजे के करीब पांगी घाटी की मुख्य तहसील किलाड़ कस्बे में हमारा आगमन हुआ। छोटा हाथी वाला हमारी बाइके समेत एक होटल के सामने आकर रुक गया। वहाँ उसने कमरे के लिये पता किया लेकिन जवाब मिला कि कोई कमरा खाली नहीं है। उस होटल के आसपास कई होटल और भी थे लेकिन किसी में कमरा खाली नहीं मिला। कमरा देखना छोड़कर पहले हमने गाड़ी से अपनी बाइके उतारी, उसके बाद किलाड़ में वापसी की ओर चल दिये। मैंने अपनी बाइक स्टार्ट की ओर कुछ सौ मीटर वापिस आकर कमरा देखने चल दिया। यहाँ आते समय मुख्य बस अडड़े वाले मोड़ पर एक ढ़ाबे में खाना-पीना चल रहा था। हम सीधे उसी ढ़ाबे वाले के पास आये


रविवार, 28 जुलाई 2013

PANGI VALLEY-Killar पांगी वैली में हुआ पंगा

SACH PASS, PANGI VALLEY-05                                                                      SANDEEP PANWAR
मेरी बाइक (नीली परी) उस बर्फ़ीले नाले से सुरक्षित पार हो गयी, लेकिन जब साथी बाइकर की बाइक उस नाले की रफ़्तार में उलझ गयी और पानी की दिशा में उछल गयी। हम उस घटना को बाइक से दूर खड़े देख रहे थे मैंने तुरन्त अपनी बाइक साइड़ स्टैन्ड़ पर लगायी और बर्फ़ीले पानी में दूसरी बाइक को बहने से बचाने के लिय भागा। पानी के नाले के दूसरी और खड़े दोनों साथी देवेन्द्र रावत व विशेष मलिक इस घटना को देख अचम्भित थे। पल्सर बाइक को घटना के समय महेश रावत चला रहा था, पल्सर के मालिक देवेन्द्र रावत को तो लगा होगा कि बाइक भी गयी व महेश भी गया। मुझे ड़र था कि कही बाइक रोकने के चक्कर में महेश भी बहकर नीचे दूसरी ओर ढ़लान में बर्फ़ वाली दीवार में बनी गुफ़ा में ना सरक जाये। उधर पानी के दूसरी ओर से देवेन्द्र रावत जी बाइक व महेश को बचाने के लिये भागे।


शनिवार, 27 जुलाई 2013

Complete detail near Sach Pass साच पास/जोत/दर्रा के आसपास का पूरा हाल

SACH PASS, PANGI VALLEY-04                                                                      SANDEEP PANWAR
सतरुन्ड़ी नामक जगह पर बने हुए टीन की छत वाले एकमात्र ढाबे कम विश्रामालय में साथियों ने चाय पीकर अपने शरीर को काफ़ी राहत पहुँचायी होगी। मुझे तो पता ही नहीं है कि लोग चाय क्यों पीते है? चाय पीने वाले साथियों को हर 4-5 घन्टे बाद चाय की तलब लग ही जाती थी। अभी समय क्या हुआ था मोबाइल निकाल कर समय देखा तो उसमें अभी दिन के तीन भी नहीं बजे थे मौसम भी कुल मिलाकर ठीक-ठाक सा ही लग रहा था। सतरुन्ड़ी के एकमात्र ढ़ाबे वाले ने हमें बताया कि इस साल आप पहले बाइक वाले हो जो साच पास पार कर रहे हो। पहले क्यों? क्या इस साल कोई बाइक वाला यहाँ नहीं आया? उस छोटे से ढ़ाबे कम रात्रि विश्राम स्थल वाले ने बताया कि साच पास कल ही खुला है वैसे भी जुलाई में मुश्किल से ही गिने चुने बाइक वाले इसे पार करने की हिम्मत उठाते है। साच पास पार करने के लिये सितम्बर का महीना सर्वोत्तम माना जाता है। हमें अभी तक तो सब कुछ आसान ही लगता आ रहा है फ़िर कठिनाई कहाँ आयेगी? अभी आप साच पास से 12 किमी दूर हो, यहाँ से आगे कई कैंची मोड़ आयेंगे वहाँ देखना आपकी बाइके आपको रुलायेगी?


शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

Banikhet to Saatrundi बनीखेत से सतरुन्ड़ी तक via Chamera Lake

SACH PASS-PANGI VALLEY-03                                                                       SANDEEP PANWAR
पेंचर वाला कुछ देर में ही नीचे चला आया, उसने अपनी दुकान खोली और सबसे पहले पहिये की वालबोड़ी टाइट करने वाला पेचकस ले आया। वालबोड़ी टाइट करने के बाद उसने पिछले पहिये में हवा भर दी। मैंने कहा एक बार पहिया खोलकर चैक कर लो क्या पता! पेंचर ही हो लेकिन पेंचर वाला बोला, रात में अगले पहिये को खोलकर देखा था मुझे लगता है कि हवा भरकर पहिये को कुछ देर तक छोड़ देते है यदि बारिश रुकने तक हवा कम हो गयी या निकल गयी तो फ़िर पहिये को खोलकर देखना ही पडेगा। लेकिन 15—20 मिनट तक हवा जरा सी भी कम नहीं हुई तो यह पक्का हो गया कि वालबोड़ी में ही कुछ ना कुछ गड़बड़ थी। तब तक बारिश भी लगभग रुक सी गयी थी, महेश अपनी बाइक लेकर उसकी हवा चैक करवाने आ पहुँचा। दोनों बाइकों की हवा चैक कराने के बाद हमने अपने बैग अपने कंधे पर लाद लिये और चम्बा व साच पास की ओर प्रस्थान कर दिया।
चमेरा झील/लेक 

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

Baniket and Dalhousie बनीखेत व ड़लहौजी

SACH PASS-PANGI VALLEY-02                                                    SANDEEP PANWAR
जालंधर शहर के बाहरी इलाके में खाना खाने के बाद हम चम्बा के लिये चल दिये। यहाँ से पठानकोट की सड़क मार्ग से दूरी लगभग 110 किमी रह जाती है। जिस गति से हम चले आ रहे थे उससे यह दूरी पार करने में लगभग दो घन्टे का समय लगना तय था। ठीक 01:30 मिनट पर हमने जालंधर छोड़ दिया था। दिल्ली से सुबह 04:30 पर हमने आज की बाइक यात्रा की शुरुआत की थी। इस तरह देखा जाये तो दोपहर तक हमने काफ़ी यात्रा तय कर ली थी। दिल्ली से अम्बाला व लुधियाना आते आते तो मौसम ठीक-ठाक ही था लेकिन लुधियाना पार करने के बाद जालंधर आते-आते मौसम भी गर्म होने लग गया था। जब जालंधर से चले तो सूरज महाराज हमारी परीक्षा लेने के लिये सड़क पर ही तैयार खड़े थे।


गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

Chamba dispute, change vehicle चम्बा विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से

हिमाचल स्कारपियो यात्रा (समाप्त)-19                                                                     SANDEEP PANWAR

भरमौर का चौरासी मन्दिर देखने के बाद चम्बा के लिये प्रस्थान कर दिया गया। भरमौर से मात्र दो-तीन किमी की पद यात्रा करने पर भरमाणी माता का मन्दिर भी है बाइक वाले तो उसे भी देख आये थे, गाड़ी होने व थकावट के कारण हमने भरमाणी मन्दिर देखने की योजना छोड़ देनी पड़ी। अगर थके ना होते तो भरमाणी तक जरुर जाते। हमारे साथ तीन धुरन्धर ऐसे थे जिनके बारे में यह अनुमान नहीं लग रहा था कि यह पहाड़ों में आये ही क्यों थे? गाड़ी वाले ज्यादातर गाड़ी के अन्दर ही बैठे रहने में खुश रहते थे। गाड़ी वालों की आपसी बातचीत से यह शंका होने लगी कि कही यह चम्बा से ही वापसी तो नहीं भाग जायेंगे। चलिये पहले चम्बा चलते है वहाँ रात को ठहरना ही है तब कुछ सोच-विचार किया जायेगा कि अगली मंजिल कौन सी होगी? असली घुमक्कड़ वही है जो पहले से तय मंजिल को भी हालात देखते हुए तुरन्त बदल ड़ालने में देरी ना करे। चम्बा से काफ़ी पहले एक पुल पार करना पड़ता है जहां पहाड़ से आयी एक नदी ने पहाड़ को बहुत घिसा हुआ था। कुछ मिनट यहाँ रुककर इस कुदरत के करिश्में  को देखा गया। इसके बाद उसी मार्ग पर चलते हुए आगे आने वाली सुरंग पार कर चम्बा में उसी मार्ग से प्रवेश किया जिस मार्ग से यहाँ हड़्सर तक आये थे। भरमौर से चम्बा आते-जाते समय एक जगह से मणिमहेश पर्वत की चोटी दिखायी देती है। जाते समय तो चोटी दिखायी दी थी वापिस आते समय देखने की फ़ुर्सत ही नहीं हुई।

भरमौर से राख-चम्बा की ओर जाते समय यह नजारा आता है।

बुधवार, 24 अप्रैल 2013

Bharmour Temple- The group of 84 temples भरमौर स्थित चौरासी मन्दिरों का समूह

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-18                                                                        SANDEEP PANWAR

हड़सर से भरमौर कस्बा की सड़क दूरी मात्र 12 किमी ही है इसलिये अपना वाहन हो तो इस दूरी को पार करने में 15-20 मिनट मुश्किल से लगते है। लेकिन यदि अपना वाहन नहीं है तो यही दूरी पार करने में कई घन्टे से ज्यादा भी लग सकते है। भरमौर पहुँचने से पहले ही हड़सर से चलते समय ही मैंने बाइक व गाड़ी वालों को बता दिया था कि भरमौर में एक हजारों साल पुराना मन्दिरों का समूह है जिसमें 84 मन्दिर बताये जाते है। जिसे मन्दिर नहीं देखना हो, वह मन्दिर के बाहर सड़क पर ही खड़ा रह सकता है। जो देखना चाहेगा वो मन्दिर परिसर में जाकर मन्दिर देख आयेगा। मन्दिर देखने के लिये आधे घन्टे का समय मिलेगा। जैसे ही हमारी गाड़ी भरमौर के मुख्य मोड़ पर पहुँची तो वहाँ बने एक प्रवेश द्धार से यह अंदाजा लगाने में आसानी हो गयी कि यही मार्ग भरमौर के चौरासी मन्दिर समूह तक जाता है। यह मन्दिर तो मैंने भी पहले नहीं देखा था। इसलिये गाड़ी से उतरकर पहले एक दुकान वाले से मन्दिर की दूरी मालूम की, दुकान वाले ने बताया था कि मन्दिर यहाँ से लगभग 300-350 मीटर दूर ही होगा। मन्दिर के पास गाड़ी खड़ी होने की जगह नहीं थी इसलिये सबको बताया गया कि मन्दिर आधा किमी दूर भी नहीं है लेकिन वहाँ गाड़ी खड़ी करने की जगह नहीं है इसलिये मन्दिर तक पैदल ही जाना होगा। पैदल जाने के नाम से अथवा थकावट के नाम से गाड़ी वाले तीनों दिलदार अपनी सीट से ऐसे चिपक कर बैठ गये जैसे उन्हे फ़ेविकोल से चिपकाया गया हो। गाड़ी वालों ने मन्दिर देखने से साफ़ मना कर दिया।


गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

Khajiar to Hadsar खजियार से हड़सर तक (मणिमहेश का बेस कैम्प)

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-11                                                                        SANDEEP PANWAR

खजियार के मैदान से बाहर आते ही सड़क पर एक बोर्ड़ लगा हुआ है जिस पर चम्बा की दूरी मात्र 24 किमी व भरमौर (मणिमहेश का बेस कैम्प) की दूरी 90 किमी दर्शायी हुई है। अभी दोपहर बाद 3 साढ़े तीन का समय हुआ था। हमें भरमौर तक पहुँचने में मुश्किल से दो घन्टे लगने वाले थे। खजियार से बाहर आने के बाद कुछ दूर चलते ही उल्टे हाथ भोले नाथ की एक विशाल मूर्ति दिखायी दे रही थी। हम तो वैसे भी भोलेनाथ के असली निवास पाँच कैलाश में से एक मणिमहेश कैलाश पर ही जा रहे थे इसलिये इस मानव निर्मित मूर्ति को देखने के लिये गाड़ी से नीचे नहीं उतरे। गाड़ी में बैठे-बैठे ही उस विशाल मूर्ति के फ़ोटो लिये और वहाँ से आगे चम्बा की ओर बढ़ लिये। यहाँ से चम्बा तक लगातार हल्की सी उतराई का मार्ग था। चम्बा तक बिना रुके लगातार चलते रहे। जब हम चम्बा पहुँचे तो शाम के 5 बजने वाले थे। चम्बा में हमें रात में रुकना नहीं था इसलिये यहाँ से भरमौर के लिये बढ़ते रहे। यहाँ मनु ने एक मेड़िकल स्टोर से अपनी पैदल यात्रा के लिये काम आने वाली जरुरी वस्तुएँ दवाई आदि खरीद ली थी। चम्बा में प्रवेश करते ही हमने एक नदी का पुल पार कर उसके दूसरे किनारे पर आगे की यात्रा जारी रखी थी।

खजियार को राम राम

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

चन्डी देवी, अन्जना देवी, नीलकंठ महादेव, ऋषिकेश, भ्रमण Chandi devi, Anjana devi, Neelkanth Mahadev,



इस यात्रा का पहला भाग यहाँ से पढे।

मैंने कार मंशा देवी पार्किंग में सही जगह देख खडी कर दी थी, जिसके बाद सामने ही दिखाई दे रहे टिकटघर से चार टिकट लेकर, हम सब ऊडन खटोले की ओर बढ चले। बच्चों के टिकट लेने की आवश्यकता ही नहीं पडी थी, क्योंकि ज्यादा छोटे बच्चों का टिकट ही नहीं लगता था। यहाँ इस मन्दिर में मैं पहले भी आ चुका था जबकि परिवार के अन्य सदस्य पहली बार ही यहाँ पर आये थे। मैंने यहाँ की पहली यात्रा पैदल की थी। आज दूसरी यात्रा उडन खडोले से की जा रही थी। उडन खटोले से उडते हुए पहाड पर चढना भी अलग ही रोमांच का अनुभव करा रहा था। जब उडन खटोला काफ़ी ऊँचाई पर पहुँच गया तो वहाँ से नीचे झाँक कर देखा तो एक बार को तो साँस, जहाँ थी वही अटक गयी सी महसूस हुई, लेकिन जल्द ही साँसों पर काबू पा लिया गया। मेरे नीचे देखने के बाद सबने नीचे देखा और शुरु में डरते-डरते बाद में सामान्य होकर रोमांच का जी-भर कर आनन्द उठाया। उडन खटोले से तीन किमी का सफ़र सिर्फ़ तीन मिनट में सिमट कर रह गया था। पैदल चढते हुए इस यात्रा को एक घन्टा लग जाता है सुना है कि आजकल पैदल मार्ग पर कुछ बाइक वाले भी मिलते है जो यात्रियों से कुछ शुल्क लेकर मन्दिर तक यात्रा भी करवा देते है।
दो रत्न

शनिवार, 27 अक्टूबर 2012

सुरकण्डा देवी surkanda devi की बर्फ़ व उत्तरकाशी से नरेन्द्रनगर तक बारिश bike trip


वर्ष सन 2003 में फरवरी माह के आखिरी सप्ताह की बात है। कुछ दोस्तों ने कहा कि “संदीप भाई चलो महाशिवरात्रि नजदीक आ रही है कही घूम कर आते है”। मैंने कहा ठीक है चलो लेकिन मेरी एक शर्त है कि जहाँ भी जाना है, बाइक पर ही चलेंगे, अगर मानते हो तो मैं तैयार हूँ। उन्होंने कहा अरे भाई आपने तो हमारे मन की बात कह दी है, हम भी तो बाइक पर ही जाना चाहते है, लेकिन कोई साथ जाने वाला मिल ही नहीं रहा है। इसलिये तो हम आपके पास आये है। तो दोस्तों इस तरह यह बाइक यात्रा तैयार हो गयी थी। इस bike trip में कुल तीन बाइक शामिल हुई थी। जिसमें से एक बजाज की, दूसरी एलमएल की, तीसरी अपनी हीरो होंडा।


गुरुवार, 11 अक्टूबर 2012

माताजी के साथ बाइक पर धनौल्टी-चम्बा-टिहरी-उतरकाशी-यात्रा Bike trip-Dhanaulti-Chamba-Tihri-Uttarkashi alongwith mother


इस सीरिज के अन्य भाग

बाइक पर हम दोनों कसकर बाइक पकडकर बैठे हुए थे और बाइक पहाड की तेज ढलान पर धीरे-धीरे चढने लगी। उस तेज चढाई पर बाइक का लगभग सारा जोर लग गया था। तेज ढलान पर बाइक चढाते समय कई बार ऐसा लगा था कि कही बाइक आगे से घोडे की तरह उठ तो नहीं जायेगी? लेकिन शुक्र रहा कि कोई अनहोनी घटना नहीं घटी जिससे बाइक आसानी से उस खतरनाक दिखने वाली तेज ढलाने पर चढ गयी थी। यहाँ बाइक चढाने के बाद मैंने रुककर पीछे मुडकर उस ढलान को काफ़ी देर तक निहारता रहा था। उसके बाद हम दोनों माँ-बेटा एक बार फ़िर अपने आगे की यात्रा पर बाइक पर सवार होकर चल दिये। कोई आधा किमी जाने पर एक दौराहा आता है जहाँ से सीधा जाने वाला मार्ग धनौल्टी होते हुए चम्बा की ओर जाता है। जबकि सीधे हाथ नीचे की जाने वाला मार्ग देहरादून की ओर उतर जाता है जो कुछ आगे जाने पर मसूरी की ओर भी मुड जाता है अगर कोई देहरादून से सीधा धनौल्टी जाना चाहे तो उसे मसूरी में अन्दर घुसने की आवश्यकता नहीं है बल्कि उसे मसूरी के बाहर से ही धनौल्टी जाने के लिये सीधे हाथ पर तीन किमी पहले ही एक मार्ग मिल जायेगा। जहाँ से मसूरी बाई पास हो जाती है।

हम दोनों सीधे चम्बा वाले मार्ग पर चल पडे थे, यह मार्ग मसूरी से चम्बा तक पहाड के लगभग शीर्ष पर ही चलता रहता है जिससे कि मार्ग में दोनों तरफ़ के दिलकश नजारे देखते हुए कब सफ़र बीत जाता है पता ही नहीं चल पाता? हम लगभग 18-20 किमी यात्रा कर आगे ही आये थे कि एक जगह कई वाहनों की लाईन लगी देखी, पहले तो कुछ समझ नहीं आया लेकिन जब मैं bike उन वाहनों से आगे ले गया तो बात समझ में आ गयी कि यह वाहन वहाँ क्यों खडे हुए थे? उन वाहनों से आगे ले जाकर मुझे भी अपनी बाइक रोकनी पड गयी। सडक पर बर्फ़ ही बर्फ़ दिखायी दे रही थी। मैंने बाइक वही किनारे लगा कर पैदल ही आगे मोड तक, कुछ दूर तक देख कर आनी की सोची और मैं माताजी को बाइक के पास छोडकर आगे के मार्ग के हालात को देखने चल पडा था। लगभग तीन सौ मीटर जाने पर मैंने पाया कि मार्ग में हर सौ-दौ सौ मीटर के बाद लगभग 10-20 मीटर बर्फ़ पडी मिल रही थी। लेकिन बर्फ़ इतनी ज्यादा थी कि उसमें से कार भी नहीं निकल पा रही थी जिस कारण कार वाले पीछे ही रुके खडे थे।


दो मतवाले माँ-बेटे अपनी धुन के पक्के।

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