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मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

Mana Village -Last Village of India भारत का आखिरी गांव- माणा



भारत के अंतिम गाँव/ग्राम माणा में आये तो यह सब भी देखे।
दोस्तों, माणा गाँव इस रुट पर भारत का अंतिम गाँव कहलाता है। वैसे सांगला छितकुल वाले रुट पर छितकुल अंतिम गांव कहलाता है। इस प्रकार देखा जाये तो भारत की सीमा की ओर जाते सभी मार्गों पर कोई ना कोई तो गाँव होगा ही, उस तरह वे सभी उस रुट के अंतिम गाँव ही कहलायेंगे। बद्रीनाथ से माणा की दूरी केवल 3 किमी ही है। जीप वाले ने हमें 5-6 मिनट में माणा पहुँचा दिया। माना करीब 8 साल पहले सन 2007 देखा था। उस समय मैं अपनी बाइक नीली परी पर यहाँ आया था। तब के माणा और आज के माणा में काफी अन्तर दिखायी देता है। उस समय पार्किंग की आवश्यकता नहीं थी। आज यहाँ प्रतिदिन हजारों पर्यटक आते है जो बद्रीनाथ धाम से अधिकतर किराये के या अपने वाहन से ही आते है सैकडों वाहनों को खडा करने के लिये पार्किंग गाँव के बाहर ही बनायी हुई है। अगर हम बाइक से आते तो गाँव के काफी अन्दर तक चले आते। 

यहाँ माणा गाँव के अन्दर आकर देखा कि बद्रीनाथ की तरह यहाँ भी बहुत भीड है। अंतिम गाँव ही सही, लोग सडक बनने के बाद यहाँ आने तो लगे है। इससे गाँव वालों को काफी लाभ होगा। गाँव की औरते सडक किनारे बैठकर भेड व बकरी के बालों से बनी ऊन से टोपियाँ व स्वेटर आदि बनाने व बने हुओं को बेचने में व्यस्त थी। मैंने पिछली यात्रा में एक टोपी यहाँ से ली थी जो काफी गर्म रखती थी। थोडा और अन्दर जाने पर मार्ग दो टुकडों में बँट जाता है। यहाँ से नीचे की ओर जाने वाला मार्ग भीमपुल, सरस्वती नदी, वसुधारा की ओर जाता है तो ऊपर वाला मार्ग गणेश गुफा व व्यास गुफा की ओर ले जाता है।


गुरुवार, 7 मार्च 2013

Mana-Bheem Pul to Ghangaria (Base of Vally of flower) भारत के अंतिम गाँव माणा में भीम पुल से घांघरिया तक

बद्रीनाथ-फ़ूलों की घाटी-हेमकुन्ठ साहिब-केदारनाथ यात्रा-02

बद्रीनाथ मन्दिर के नजदीक कमरा लेने के बाद दर्शन करने के उपराँत हम भारत की सीमा का अंतिम गाँव माणा देखने के लिये निकल पड़े। होटल वाले से माणा के मार्ग की थोड़ी भी ले ली थी। उसने बताया था कि माणा यहाँ से केवल 3 किमी दूरी पर स्थित है। बाइक से जाने में वहाँ कोई समस्या नहीं है लेकिन बीच-बीच में कई झरने आते है जहाँ पर बिना भीगे वे नाले पार नहीं किये जा सकते है। हमने जूते पहने हुए थे पहले सोचा कि चलो बैग से चप्पल निकाल कर पहन ली जाये। लेकिन वहाँ की ठन्ड़ को देखते हुए यही फ़ैसला हुआ कि चलो देखा जायेगा अगर जरुरत पड़ी तो जूते निकाल कर नाला पार कर लिया जायेगा। तीन किमी के मार्ग में कुल चार नाले मिले थे जिनमे से दो नाले तो थोड़े से शरीफ़ निकले, जिन्होंने हमें बिना किसी परेशानी के आगे जाने दिया। आखिरी के दो नाले तो जबरदस्त थे जिन्हे पार करने से पहले बाइक रोककर यह तय किया गया था कि इन्हे पार कैसे करना है? मैंने अपने साथी को इन दोनों नालों पर बाइक से उतार दिया था। बाइक इन पर पार करते समय बेहद सावधानी से पार करनी पड़ती थी। जब मैं पहले नाले को पार कर रहा था तो अगले पहिया के आगे एक पत्थर आ गया, जिसके कारण पहिया हिलने से बाइक का संतुलन बिगड़ने से मुझे अपना एक पैर पानी में रखना पड़ गया था। यह सब इतनी  तेजी से हुआ था कि कब बाइक अटकी, कब पार हुई और कब जूते को पानी ने छु लिया, तेजी से बदलते घटनाक्रम ने बाइक यात्रा के रोमांच से हमें सरोबार कर दिया था। नाला पर करके पहले तो अपना पैर देखा कि कितना भीगा है जब लगा कि अरे बस इतना ही गीला हुआ, तो जान में जान आयी। जूता सिर्फ़ पंजे की ओर से भीगा था। इसके बास एक और नाला आया, यहाँ पर दुबारा से जूते गीले ना हो इस बात पर विचार किया गया। इसका सिर्फ़ एक ही समाधान निकला कि.......

यह माणा गाँव से आगे भीम पुल नाम की जगह है।

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