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गुरुवार, 20 जून 2013

Orange Garden and back to Nanded संतरे के बगीचे में भ्रमण व नान्देड़ रवानगी

EAST COAST TO WEST COAST-18                                                                   SANDEEP PANWAR
हम वापिस बाइक के पास आये तो संतोष की माताजी व पिताजी जो कि खेत में ही निवास करते है। दोपहर के भोजन की तैयारी में संतोष की माताजी तैयार बैठी थी, जब हम उनके पास पहुँचे तो चूल्हे पर बनी ताजी रोटियाँ देखकर हम अपने आप को रोक ना सके। रोटियाँ खाते समय बसन्ता की बात का भी ध्यान रख रहे थे उसने कहा था कि दोपहर का खाना उसके घर पर खाना है। माताजी के हाथ व चूल्हे पर रोटियाँ का स्वाद बेहद ही स्वादिष्ट था। हमने कब तीन-तीन रोटियाँ चट कर डाली, पता ही नहीं लगा। हम रोटी खाकर उठे भी नहीं थे कि बसन्ता वहाँ आ पहुँचा। उसने हमें रोटी खाते देखकर कहाँ मैं आपके लिये दोपहर का भोजन बनवा कर तैयार करवा रखा है और आपने यही पेट फ़ुल कर लिया, अब हमारे घर क्या खाओगे? मैंने कहा देख भाई तेरा पाला अब से पहले जाट से नहीं पड़ा है जाट वो बला है जिससे मुगल तो मुगल अंग्रेज भी थर्राते थे।



Village journey with Ape and Imali खेतों में लहलहाती फ़सल के बीच इमली व लंगूर

EAST COAST TO WEST COAST-17                                                                   SANDEEP PANWAR
शाम का समय था कैमरा मेरी जेब में ही था सोचा चलो सूर्यास्त के दो चार फ़ोटो ले लिये जाये। गाँव से खेत मुश्किल से एक किमी दूरी पर भी नहीं है जब घर से निकले तो सूर्य देवता आसमान में काफ़ी ऊपर लटके हुए अपनी सेब जैसी लाली बिखेर रहे थे। लेकिन पता नहीं क्या नाराजगी थी कि दो-तीन मिनट में हम खेत में पहुँच ही गये थे लेकिन सूर्य महाराज कहाँ गायब हो गये, आसमान से गिरकर कही नीचे खेतों में घुस चुके थे। मजबूरन उसी हालत में एक फ़ोटो लेकर अपना काम चलाना पड़ा। खेत में बाबूराव की गाय-भैसे बंधी रहती है गाँव के नजदीक खेत होने का लाभ खेत में ही पालतु पशु बाँध कर लिया जा रहा है। जब तक बाबू राव के छोटे भाई ने गाय व भैंस का दूध निकाला तब तक मैंने आसपास घूमते हुए फ़ोटो लेने जारी रखे। खेत में जहाँ पालतु पशु बंधे हुए थे उनके ठीक ऊपर इमली का एक विशाल पेड़ था जिसमें बहुत सारी इमली लटकी पड़ी थी। महाराष्ट्र में इमली के बडे-बड़े पेड़ जगह-जगह दिखाई देते रहते है। इमली के पेड़ के फ़ोटो लेकर आगे बढ़ा।




बुधवार, 19 जून 2013

Marriage Ceremony in Maharashtrian Village महाराष्ट्र में ग्रामीण शादी समारोह का चित्रमय विवरण

EAST COAST TO WEST COAST-16                                                                   SANDEEP PANWAR
लड़की के घर पर हमें कुछ काम-धाम तो था नहीं इसलिये हम सीधे गाँव के मन्दिर पहुँचे वहाँ से दुल्हा और दुल्हन की गाड़ी के साथ-साथ बाइक चलाते हुए कुरुन्दा पहुँच गये। कुरुन्दा में शादी के लिये स्थानीय लोगों की भीड़ उमड़ना आरम्भ हो चुकी थी। यहाँ पन्ड़ाल में औरतों यानि महिलाओं के बैठने के लिये अलग स्थान बनाया गया था। जबकि पुरुषों के बैठने के लिये अलग स्थान बनाया गया था। मैं सोच रहा था कि हमारी तरह यहाँ भी शादी में सीमित संख्या में ही आमंत्रित लोग आते होंगे, लेकिन मेरा यह भ्रम उस समय चकनाचूर हो गया जब वहाँ मौजूद लोगों की संख्या हजार से भी ज्यादा हो गयी। शादी में इतने सारे स्त्री-पुरुष एक साथ महसूस होता है कि गाँव की संस्कृति में आज भी अपनापन बना हुआ है।


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