EAST COAST TO WEST COAST-18 SANDEEP PANWAR

हम वापिस बाइक के पास आये तो संतोष की माताजी व पिताजी
जो कि खेत में ही निवास करते है। दोपहर के भोजन की तैयारी में संतोष की माताजी तैयार
बैठी थी, जब हम उनके पास पहुँचे तो चूल्हे पर बनी ताजी रोटियाँ देखकर हम अपने आप को
रोक ना सके। रोटियाँ खाते समय बसन्ता की बात का भी ध्यान रख रहे थे उसने कहा था कि
दोपहर का खाना उसके घर पर खाना है। माताजी के हाथ व चूल्हे पर रोटियाँ का स्वाद बेहद
ही स्वादिष्ट था। हमने कब तीन-तीन रोटियाँ चट कर डाली, पता ही नहीं लगा। हम रोटी खाकर
उठे भी नहीं थे कि बसन्ता वहाँ आ पहुँचा। उसने हमें रोटी खाते देखकर कहाँ मैं आपके
लिये दोपहर का भोजन बनवा कर तैयार करवा रखा है और आपने यही पेट फ़ुल कर लिया, अब हमारे
घर क्या खाओगे? मैंने कहा देख भाई तेरा पाला अब से पहले जाट से नहीं पड़ा है जाट वो
बला है जिससे मुगल तो मुगल अंग्रेज भी थर्राते थे।
