मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

Sunder Nagar-Rohanda-Chindi-Karsog-Kamaksha Devi Temple सुन्दरनगर से रोहान्ड़ा, करसोग घाटी के कामाक्षा देवी मन्दिर तक की यात्रा।

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की यात्रा 08                                                       SANDEEP PANWAR
सुन्दर नगर बस अडड़े पर जब हमें करसोग की बस मिलने की उम्मीद समाप्त होती दिखी तो हमने वहाँ बैठकर आगे की बात सोचनी शुरु की ही थी कि हिमाचल रोड़वेज की मनाली से रिकांगपियो तक जाने वाली बस आकर खड़ी हो गयी। हमें इस बात का अंदाजा नहीं था कि यह बस करसोग से होकर जायेगी। हमने अनमने मन से बस कंड़क्टर से पूछा कि यह करसोग के आसपास से होकर जायेगी कि नहीं। जब कंड़क्टर ने कहा कि यह करसोग के बस अड़ड़े पर उतारने के बाद वापिस मुख्य सड़क पर आयेगी, उसके बाद सैंज-रामपुर वाले रुट के लिये चली जायेगी। हमने यह भी पता किया था कि यह बस रिकांगपियो सुबह 5 बजे के आसपास पहुँचा देती है। हमने बस में घुसकर देखा तो सबसे आखिरी की सीट पर तीन सवारी लायक स्थान बचा हुआ था। हमने समय ना गवाते हुए, अपने बैग उन सीट पर रख सीट आरक्षित कर ली। चूंकि बस में गर्मी लग रही थी इसलिये हम बस के बाहर खड़े होकर बस चलने की प्रतीक्षा करने लगे। कुछ आधे घन्टे बाद बस वहाँ से चल पड़ी। सुन्दर नगर से हमारी बस मन्ड़ी की ओर चलने लगी। लेकिन एक-दो किमी बाद ही हमारी बस दाँए हाथ की ओर मुड़ गयी।

करसोग बस अडड़े पर लगा सूचना पट

सोमवार, 29 अप्रैल 2013

Bid Monastery to Sunder Nagar via Mandi बीड़ मोनेस्ट्री से मन्ड़ी होकर सुन्दर नगर तक की यात्रा।

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की यात्रा 07                                                       SANDEEP PANWAR
चाय के बागान अभी समाप्त भी नहीं हुए थे कि खेतों मॆं तिब्बती लोगों द्धारा लगाये जाने वाली रंग बिरंगी झंड़ियाँ दिखायी देने लगी। इन झंड़ियों को तिब्बती लोग बड़ी पवित्र मानते है।  इन पर तिब्बती धर्म ग्रन्थ लिखे होते है। पहले फ़ोटो में खेत में लगी बहुत सारी झड़ियाँ दिखायी दे रही है। जहाँ यह झडियाँ लगी हुई थी वहाँ पर चाय के खेत नहीं थे। इन खेतो में कुछ स्थानीय महिलाएँ कार्य कर रही थी। हम कुछ देर तक उन्हे खेतों मॆं कार्य करते देखते रहे। इसके बाद हम आगे की ओर चल दिये। आगे चलने पर हमें एक और मोनेस्ट्री जैसी दिखायी देने लगी लगी। यहाँ इसके बाहर सड़क पर बहुत सारे रंग बिरंगे पत्थर रखे हुए थे। जिसपर तिब्बती भाषा में कुछ ना कुछ तो अवश्य लिखा हुआ था। पहले हम दोनों इसके अन्दर जाने की सोच रहे थे फ़िर मैंने अपना इरादा बदल दिया, विपिन से कहा कि अगर तुम्हे जाना है तो जाओ नहीं तो चलो आगे मन्ड़ी की ओर चलते है। विपिन बोला नहीं संदीप भाई दोनों देख कर आयेंगे। मैंने कहा देख भाई बात सिर्फ़ फ़ोटो लेने की ही है मैंने इसे बाहर से देख लिया तो मेरे लिये यह ही बहुत बड़ी बात है। जा भाई जा तुम फ़ोटो ले आओ मैं फ़ोटो देखकर ही खुश हो जाऊँगा।

खेर्तों में लगी तिब्बती झडियाँ।े

Paragliding point Bir-Billing monastery पैराग्लाईडिंग सरताज बीड़ की तिब्बती मोनेस्ट्री।

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की यात्रा 06                                                       SANDEEP PANWAR
बैजनाथ मन्दिर देखने के बाद विपिन को मन्दिर में ही छोड़ मैं सीधा बस अड़ड़े बस में जा पहुँचा। मेरे जाते ही बस चल पड़ी। बस अड़ड़े से निकलते ही बस मन्दिर के आगे पहुँच गयी तो विपिन भी मन्दिर के बाहर ही बस पकड़ने के लिये खड़ा हुआ मिल गया। विपिन के बस में आने के बाद हमारी बस बीड़ के लिये चल पड़ी। हमारी बस मन्ड़ी वाले हाईवे पर आगे बढ़ती हुई अज्जू/आहजू नामक गाँव के मोड़ से उल्टे हाथ ऊपर की ओर मुड़ गयी। यहाँ इस मोड़ पर सीधे हाथ छोटी रेलवे लाईन का स्टेशन भी दिखाई दे रहा था। अगर किसी दोस्त को पठानकोट से इस रेल में बैठकर बीड़ या बिलिंग के लिये आना है तो इस आहजू/अज्जू नामक गाँव पर आकर उतर जाये। यहाँ से उत्तर दिशा में पहाड़ की तीखी चढ़ाई पर बनी सीधी सड़क पर जाने के लिये वाहन मिल जाते है। इस गाँव से जो तेज चढ़ाई बस में बैठकर दिखायी दे रही थी, ऐसी तेज चढ़ाई तो फ़्लाईओवर पर चढ़ते समय भी दिखाई नहीं देती है। बस चालक ने इस चढ़ाई पर बस चढ़ाते समय दूसरे गियर से आगे बढ़ने की हिम्मत की तो बस लोड़ मानकर रुकने लगी जिससे दुबारा से बस को दूसरे गियर में लाना पड़ा। यदि ऐसी सीधी खड़ी चढ़ाई पर परमात्मा ना करे किसी गाड़ी का उतरते समय ब्रेक फ़ेल हो जाये तो उसका क्या होगा? होगा क्या, जितना बड़ा वाहन होगा उतनी बड़ी दुर्घटना घटने की प्रबल सम्भावना बढ़ जायेगी। बस अपनी पूरी ताकत लगाकर 20-25 की गति से ऊपर चढ़ती जा रही थी। इस चढ़ाई को देख हमें साँस लेने की फ़ुर्सत निकालनी पड़ रही थी, नहीं तो हम किसी काम के नहीं रहते। 


रविवार, 28 अप्रैल 2013

Baba Baijnath Temple बाबा बैजनाथ मन्दिर

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की यात्रा 05                                                       SANDEEP PANWAR
पालमपुर के चाय बागान देखने के बाद जिस बस में बैठकर हम बैजनाथ की ओर आ रहे थे, उस बस वाले से हमने बैजनाथ तक का टिकट लेकर कहा कि बीड़-बिलिंग जाने के कहाँ से बस मिल सकती है? बस वाले ने कहा आपको बीड़ कब जाना है? हमने कहा कि हम तो बैजनाथ के मन्दिर में घूमने के बाद सीधे बीड़-बिलिंग के लिये ही जायेंगे। मन्दिर में कितनी देर का काम है? पहले यह देख लो। हाँ मन्दिर में पूजा-पाठ करने के चक्कर में हम नहीं थे। हमें सिर्फ़ मन्दिर देखना है और फ़ोटो लेकर वापिस चले आना है। बस वाले ने कहा यह बस भी बीड़ तक जा रही है, यदि आप 15-20 मिनट में मन्दिर देखकर आ सकते हो तो इसी बस में आगे चले जाना क्योंकि बस बैजनाथ बस अड़ड़े पर 20 मिनट रुक कर आगे जायेगी। अगली बस आपको घन्टे भर बाद मिलेंगी। हमने कंड़क्टर की सलाह पर गहन विचार के बाद निर्णय लिया कि ठीक है बस अडड़े पर बस आते ही तुरन्त मन्दिर के लिये चले जायेंगे। अपने बैग बस में अपनी सीट पर ही छोड़ देंगे, ताकि कोई सीट पर कब्जा करके ना बैठ जाये। जैसे ही बस ने बैजनाथ शहर में प्रवेश किया तो बस अड़ड़े से कुछ पहले एक बोर्ड दिखायी दिया उस पर बैजनाथ मन्दिर जाने के बारे में लिखा हुआ था। इसके जरा सा आगे चलते ही बस उल्टे हाथ मुड़कर 20 मीटर ही चली होगी कि सीधे हाथ पर बने हुए बस अड़ड़े में घुसने लगी। जैसे ही विपिन बस से उतरने लगा तो तभी कंड़क्टर बोला सामने सीधे हाथ वाले प्रवेश मार्ग से मन्दिर चले जाओ। जल्दी पहुँच जाओगे।
बाबा बैजनाथ मन्दिर, भारत में कुल तीन बाबा बैजनाथ मन्दिर है।

शनिवार, 27 अप्रैल 2013

Palampur Tea garden पालमपुर के चाय के बागान में घुमक्कड़ी

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की यात्रा 04                                                       SANDEEP PANWAR

पालमपुर स्टेशन पर ट्रेन से उतरकर कुछ दूर जाने पर पालमपुर जाने वाली सड़क मिल गयी। इस स्टेशन से पालमपुर शहर कई किमी दूरी पर था। हमें सबसे पहले रात्रि विश्राम हेतू पालमपुर शहर पहुँचना था। सड़क से पालमपुर जाने के लिये बस आटो/जुगाड़ आदि के इन्तजार में खड़े हो गये। 10-15 मिनट बाद जाकर एक बस आयी हम उस बस में सवार होकर पालमपुर पहुँच गये। बस ने हमें पालमपुर के बस अड़ड़े पर उतार दिया। पालमपुर का विशाल बस अड़ड़ा देखकर मैं दंग रह गया। इतना बड़ा बस अड़ड़ा वो भी पहाड़ों में मिलना एक करिश्में जैसा लग रहा था। कमरा देखने के पहले बस अड़ड़े पर एक चाऊमीन की दुकान पर पहुँचे, दुकान वाला दुकान बन्द करने की तैयारी करने लगा था। हमने उसे चाउमीन बनाने के लिये कहा तो वो तैयार हो गया। थोड़ी देर में ही दुकान वाले ने गर्मागर्म चाउमीन बनाकर हमारे सामने पेश कर दी। हमने बड़े सुकून से चटखारे ले ले कर चाउमीन का रात्रि भोजन किया। जब चाउमीन खाकर दुकान वाले को पैसे देने लगे तो लगे हाथ दुकान वाले से रात में रुकने का बढ़िया उचित दर की कीमत वाला ठिकाना मालूम कर लिया। दुकान वाले ने बताया था कि बस अड़ड़े से बाहर निकलते ही आपको एक गेस्ट हाऊस दिखायी देगा उसमें कमरे व डोरमेट्री में आपको आसानी सही कीमत में स्थान मिल जायेगा।

Pathankot-Kangra-Jogindernagar narrow gauge Toy/hill Train पठानकोट-कांगड़ा-जोगिन्द्रनगर की नैरो गेज वाली रेलवे लाइन की यात्रा।

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की बस यात्रा 03                                                SANDEEP PANWAR

नगरोटा सूरियाँ नामक गाँव में बस व छोटी रेल दोनों ही आती है। नगरोटा नाम से हिमाचल में दो जगह है एक का नाम नगरोटा है दूसरे का नाम नगरोटा सूरियाँ है। हमने बस वाले से कहा "देख भाई हमें नगरोटा से छोटी  रेल में बैठकर पालमपुर व बैजनाथ की ओर जाना है। इसलिये हमें ऐसी जगह उतार देना जहाँ से रेलवे स्टेशन नजदीक पड़ता हो। पीर बिन्दली से नगरोटा तक का सफ़र छोटी-मोटी सूखी सी पहाडियाँ के बीच होकर किया गया था। फ़ोटॊ खेचने के लिये एक भी सीन ऐसा नहीं आया जिसका फ़ोटॊ लेना का मन किया हो। जैसे ही नगरोटा में बस दाखिल हुई तो हमने एक बार फ़िर बस कंड़क्टर को याद दिलाया कि भूल मत जाना। कंड़क्टर भी हमारी तरह मस्त था बोला कि आपको तसल्ली बक्स उतार कर स्टॆशन वाला मार्ग बताकर आगे जायेंगे। थोड़ा सा आगे चलते ही कंड़क्टर ने हमें खिड़की पर पहुँचने को कहा। जैसे ही बस रुकी तो देखा कि हमारी बस एक पुल के ऊपर खड़ी है, मैंने सोचा कि यहाँ कोई नदी-नाला होगा, जिसका पुल यहाँ बना हुआ है। जब कंड़क्टर ने कहा कि यह पुल रेलवे लाईन के ऊपर बना हुआ है। आप इस पुल के नीचे उतर कर उल्टे हाथ आधे किमी तक पटरी के साथ-साथ चले जाना आपको स्टेशन मिल जायेगा।

जाट देवता कांगड़ा नैरो गेज की यात्रा पर है।

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

Masroor- Rock cut Temples मशरुर- शैल मूर्तिकला के 15 मन्दिरों का समूह

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की बस यात्रा 02                                                SANDEEP PANWAR

मशरुर जाने वाली बस ने पीर बिन्दली से 5-6 मिनट में ही हमें मशरुर पहुँचा दिया। मन्दिर से आधा किमी पहले बने बस सटैंड़ पर बस ने हमें उतार दिया था। इसके बाद बस वहाँ से मुड़कर वापिस चली गयी। हमने मन्दिर की ओर चलना शुरु कर दिया। कुछ दूर चलते ही सड़क ऊपर जाती हुई मुड़ जाती है। हमने समझा कि सड़क एक चक्कर लगाकर इस पहाड़ पर आयेगी। इसलिये हम सड़क छोड़कर सीधे पहाड़ पर चढ़ गये। पहाड़ पर चढ़्ते ही हमें एक गाँव जैसा माहौल दिखायी दिया। वहाँ कुछ लोग खेतों में कार्य कर रहे थे। हम दोनों उनके खेतों से होते हुए उनके गाँव में पहुँच गये। गाँव में जाकर एक आदमी से पता किया कि मन्दिर कहाँ है? उन्होंने कहा कि इन घरो के पीछे जो स्कूल है उसके पार करते ही मन्दिर है। मन्दिर के पास रहने वाले किसान जाट बिरादरी से सम्बन्ध रखते है। यहाँ आसपास बहुत ज्यादा आबादी तो नजर नहीं आ रही थी फ़िर इतनी कम आबादी के लिये स्कूल बनाना समझ नहीं आ रहा था। जैसे ही स्कूल पार किया तो शैल मन्दिर के अवशेष दिखायी देन लगे।

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

Bus journey Chamba to (Kangra) Masroor चम्बा से कांगड़ा के मशरुर तक की बस यात्रा

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की बस यात्रा 02                                                SANDEEP PANWAR

चम्बा में गाड़ी वालों ने सही समय पर बता दिया था कि वे दिल्ली वापिस जा रहे है। जिससे हमें अपना यात्रा कार्यक्रम बदलने का समय मिल गया। मैंने और विपिन ने कांगड़ा की छोटी रेल व करसोग घाटी सहित कुछ अन्य स्थल देखने की योजना बना ड़ाली। मनु भी हमारे साथ चलने को कह रहा था लेकिन मनु के पास भारी बैग था जिस कारण हमने मनु को भी दिल्ली भेज दिया। विधान व उसके दोस्त सिर्फ़ मणिमहेश तक के लिये ही आये थे। हमारे यात्रा कार्यक्रम बदलने का सबसे ज्यादा प्रभाव बाइक वालों पर हुआ। लेकिन कहते है जो हुआ अच्छा ही हुआ। मराठे दो बाइक से यहाँ तक चले आये थे। जबकि उनके पास एक बाइक बजाज की मात्र 100 cc की प्लेटिना थी। मैंने पहली बार बाइक देखते ही बोल दिया था कि यह बाइक दो सवारी पर पूरी यात्रा नहीं करवा सकती है। हमारी यात्रा बदलने पर संतोष तिड़के ने कहा अब हम कहाँ जाये? मैंने अपनी तरफ़ से कोई सलाह देने से पहले उनके मन की लेने की सोची थी। मराठे बोले कि उन्हे बद्रीनाथ जाना है। अरे वाह, बद्रीनाथ जाने का जोश मणिमहेश यात्रा के बाद भी बना हुआ था। मैंने संतोष को अम्बाला तक इसी मार्ग से वापिस जाने की सलाह दी। अम्बाला के बाद मराठे सहारनपुर देहरादून होकर बद्रीनाथ के लिये हमारे चलने के कुछ देर बाद ही प्रस्थान कर गये थे।


Chamba dispute, change vehicle चम्बा विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से

हिमाचल स्कारपियो यात्रा (समाप्त)-19                                                                     SANDEEP PANWAR

भरमौर का चौरासी मन्दिर देखने के बाद चम्बा के लिये प्रस्थान कर दिया गया। भरमौर से मात्र दो-तीन किमी की पद यात्रा करने पर भरमाणी माता का मन्दिर भी है बाइक वाले तो उसे भी देख आये थे, गाड़ी होने व थकावट के कारण हमने भरमाणी मन्दिर देखने की योजना छोड़ देनी पड़ी। अगर थके ना होते तो भरमाणी तक जरुर जाते। हमारे साथ तीन धुरन्धर ऐसे थे जिनके बारे में यह अनुमान नहीं लग रहा था कि यह पहाड़ों में आये ही क्यों थे? गाड़ी वाले ज्यादातर गाड़ी के अन्दर ही बैठे रहने में खुश रहते थे। गाड़ी वालों की आपसी बातचीत से यह शंका होने लगी कि कही यह चम्बा से ही वापसी तो नहीं भाग जायेंगे। चलिये पहले चम्बा चलते है वहाँ रात को ठहरना ही है तब कुछ सोच-विचार किया जायेगा कि अगली मंजिल कौन सी होगी? असली घुमक्कड़ वही है जो पहले से तय मंजिल को भी हालात देखते हुए तुरन्त बदल ड़ालने में देरी ना करे। चम्बा से काफ़ी पहले एक पुल पार करना पड़ता है जहां पहाड़ से आयी एक नदी ने पहाड़ को बहुत घिसा हुआ था। कुछ मिनट यहाँ रुककर इस कुदरत के करिश्में  को देखा गया। इसके बाद उसी मार्ग पर चलते हुए आगे आने वाली सुरंग पार कर चम्बा में उसी मार्ग से प्रवेश किया जिस मार्ग से यहाँ हड़्सर तक आये थे। भरमौर से चम्बा आते-जाते समय एक जगह से मणिमहेश पर्वत की चोटी दिखायी देती है। जाते समय तो चोटी दिखायी दी थी वापिस आते समय देखने की फ़ुर्सत ही नहीं हुई।

भरमौर से राख-चम्बा की ओर जाते समय यह नजारा आता है।

बुधवार, 24 अप्रैल 2013

Bharmour Temple- The group of 84 temples भरमौर स्थित चौरासी मन्दिरों का समूह

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-18                                                                        SANDEEP PANWAR

हड़सर से भरमौर कस्बा की सड़क दूरी मात्र 12 किमी ही है इसलिये अपना वाहन हो तो इस दूरी को पार करने में 15-20 मिनट मुश्किल से लगते है। लेकिन यदि अपना वाहन नहीं है तो यही दूरी पार करने में कई घन्टे से ज्यादा भी लग सकते है। भरमौर पहुँचने से पहले ही हड़सर से चलते समय ही मैंने बाइक व गाड़ी वालों को बता दिया था कि भरमौर में एक हजारों साल पुराना मन्दिरों का समूह है जिसमें 84 मन्दिर बताये जाते है। जिसे मन्दिर नहीं देखना हो, वह मन्दिर के बाहर सड़क पर ही खड़ा रह सकता है। जो देखना चाहेगा वो मन्दिर परिसर में जाकर मन्दिर देख आयेगा। मन्दिर देखने के लिये आधे घन्टे का समय मिलेगा। जैसे ही हमारी गाड़ी भरमौर के मुख्य मोड़ पर पहुँची तो वहाँ बने एक प्रवेश द्धार से यह अंदाजा लगाने में आसानी हो गयी कि यही मार्ग भरमौर के चौरासी मन्दिर समूह तक जाता है। यह मन्दिर तो मैंने भी पहले नहीं देखा था। इसलिये गाड़ी से उतरकर पहले एक दुकान वाले से मन्दिर की दूरी मालूम की, दुकान वाले ने बताया था कि मन्दिर यहाँ से लगभग 300-350 मीटर दूर ही होगा। मन्दिर के पास गाड़ी खड़ी होने की जगह नहीं थी इसलिये सबको बताया गया कि मन्दिर आधा किमी दूर भी नहीं है लेकिन वहाँ गाड़ी खड़ी करने की जगह नहीं है इसलिये मन्दिर तक पैदल ही जाना होगा। पैदल जाने के नाम से अथवा थकावट के नाम से गाड़ी वाले तीनों दिलदार अपनी सीट से ऐसे चिपक कर बैठ गये जैसे उन्हे फ़ेविकोल से चिपकाया गया हो। गाड़ी वालों ने मन्दिर देखने से साफ़ मना कर दिया।


sundrasi-Dancho to hadsar सुन्दरासी से धन्छो होकर हड़सर जाकर ट्रेकिंग का समापन

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-17                                                                        SANDEEP PANWAR

बरसात के पानी वाले सीधे शार्टकट से उतरते ही सुन्दरासी दिखायी देने लगता है। सुन्दरासी पहुँचते-पहुँचते आसमान में सूरज देवता ने अपना गर्म रुप दिखाना आरम्भ कर दिया था। ऊपर नहाते समय शरीर का हर अंग ठन्ड़ के कारण तबला-वादन/कथक कली और ना जाने क्या-क्या करने लगा था। जब सूर्य महाराज की शरण में अपुन का शरीर आया तो शरीर को गर्म करने के लिये ओढ़ी गयी गर्म चददर भी उतार कर कंधे पर ड़ाल दी गयी। धन्छो पहुँचने तक यह गर्म चददर बैग के अन्दर पहुँच चुकी थी। सुन्दरासी आने के बाद मार्ग में लगातार तेज ढ़लान मिलनी शुरु हो जाती है। तेज ढ़लान का लाभ यह है कि शरीर तेजी के साथ नीचे की ओर भागने को तैयार रहता है लेकिन लगातार तीखी ढ़लान ही उतराई में पैरों के पंजे में दर्द उत्पन्न होने से सबसे बड़ी दुश्मन भी बन जाती है। सुन्दरासी पहुँचकर लगभग आधे साथियों ने दस मिनट का विश्राम लिया। कई साथी यहाँ बिना विश्राम किये धन्छो के लिये प्रस्थान कर गये थे। मैने बड़े वाला शार्टकट मार कर अपना काफ़ी समय और मार्ग बचा लिया था उसका लाभ यहाँ कुछ मिनट विश्राम कर उठाया गया। विश्राम करने के बाद यहाँ से चलने की बारी थी। सिर्फ़ दिल्ली वाले राजेश जी की टीम सबसे पीछे चल रही थी, बाकि अन्य सभी आगे जा चुके थे।

मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

Manimahesh to Sudrasi मणिमहेश से सुन्दरासी तक बर्फ़ीला व पथरीला सफ़र

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-16                                                                        SANDEEP PANWAR

हिमालय की पवित्र झील में स्नान और देव तुल्य समान पर्वत के दर्शनों के बाद वहाँ ठहरने का कोई अन्य कारण नहीं था। यहाँ के नजारे तो कल शाम को ही तसल्ली से देखते हुए आये थे। ऊपर आते समय शारीरिक थकान व आसमान में बादलों के आ जाने के कारण फ़ोटो लेने में भी दिल भरा नहीं था। लेकिन पहाड़ों की सबसे बड़ी खासियत यही होती है दोपहर बाद भले ही कितने बुरे हालात हो जाये, सुबह सवेरे सुहावना दिलखुश मौसम मिल ही जाता है। ऐसा मैंने लेह वाली बाइक यात्रा में भी देखा है। अब तक लगभग 100 से ज्यादा बार पहाड़ों में घूमने के लिये जा चुका हूँ जिसमें से अपवाद स्वरुप एक-दो यात्रा में ही सुबह के समय भी खराब मौसम से सामना हुआ है। मणिमहेश से गौरीकुन्ड तक की सवा किमी यात्रा करने में कोई खास समस्या नहीं आती है। यहाँ वापसी में मैंने एक बार फ़िर से पीछे रहकर चलने में ही अपनी भलाई समझी। दिल्ली वाले राजेश जी बाद में पहुँचे व विधान के सबसे आखिर में स्नान करने के कारण सभी को देर ना हो इसलिये अन्य साथियों को कह दिया गया कि जिसे चढ़ाई में समस्या आई थी कृप्या वे नीचे उतराई में जाते समय सावधानी से व अन्य साथियों से पहले चलने का कष्ट करे। यहाँ मनु, मराठे आदि कई बन्दे कुछ मिनट पहले ही नीचे भेज दिये गये थे। मेरे साथ विपिन रह गया था।




सोमवार, 22 अप्रैल 2013

Manimahesh lake and parvat/mountain मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में डुबकी।

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-15                                                                        SANDEEP PANWAR

रात को सोते समय हमने एक-एक कम्बल ही लिया था, लेकिन जैसे-जैसे समय बीत रहा था तेजी से वहाँ का तापमान भी गिरता जा रहा था। जल्दी ही हमें दूसरा कम्बल भी लेना पड़ गया। रात में ठन्ड़ ज्यादा तंग ना करे, इसलिये दो कम्बल ऊपर व एक कम्बल नीचे बिछा लिया गया था। जहाँ हम सो रहे थे ठीक हमारे सामने ही उसी दुकान में 3-4 लोग और भी बैठे हुए थे। वे सभी दारु पीने में लगे हुए थे। उन्हे दारु पीते देख मुझे राजेश जी की याद आ गयी। अपने राजेश जी भी इनका साथ देने के तैयार हो सकते थे। यदि वे यहाँ होते तो! राजेश जी का पता नहीं चल पाया कि वे रात में कहाँ तक पहुँचे थे यह बात तो निश्चित थी कि वे गौरीकुन्ड़ तक नहीं पहुँच पाये थे। क्योंकि गौरीकुन्ड़ तक आने के बाद मणिमहेश तक पहुँचना बेहद आसान है। विधान अंधेरा होने से पहले हमारे पास झील पर पहुँच चुका था विधान के अनुसार राजेश जी घोड़े वाले की इन्तजार में रुक गये थे। घोड़े वाला उन्हे लेकर आ जायेगा। लेकिन राजेश जी सुबह होने पर ही ऊपर पहुँच पाये थे। रात आराम से कट गयी, कई-कई कम्बल लेने का फ़ायदा यह हुआ कि हमें सोते समय ठन्ड़ ने तंग नहीं किया। मणिमहेश पर्वत की समुन्द्र तल से ऊँचाई 5653 मीटर यानि 18564 फ़ुट है। झील की ऊँचाई 4950 मीटर है। यह पर्वत हिमालय के पीरपंजाल पर्वतमाला में आता है।



शनिवार, 20 अप्रैल 2013

Gauri Kund to manimahesh lake and parvat पार्वती/गौरी कुन्ड़

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-14                                                                        SANDEEP PANWAR


गौरीकुन्ड़ मणिमहेश यात्रा में मणिमहेश झील व पर्वत से लगभग एक किमी पहले ही पगड़न्ड़ी के किनारे उल्टे हाथ आता है। इसलिये ऊपर जाते समय पहले ही गौरीकुन्ड़ की यह छोटी सी झील भी देख लेनी चाहिए। वैसे हमने यह झील जाते समय नहीं बल्कि वापसी आते समय देखी थी लेकिन हम तीन बन्दों के अलावा अन्य सभी ने यह झील जाते समय ही देख ली थी इसलिये आप सबको भी गौरीकुन्ड़ की यात्रा पहले ही करा देते है। यात्रा के दिनों में यहाँ पुरुषों का आना मना है इसलिये पहली बार वाली यात्रा में मैंने यह झील बाहर से ही देखी थी अबकी बार हमने इस झील को किनारे पर जाकर अच्छी तरह देखा था। मणिमहेश की तुलना में यह झील उसकी आधी तो छोड़ो चौथाई भी नहीं लगती है। हमने इस झील के सभी कोणों से फ़ोटो लेकर अपनी संतुष्टि की थी। हम तो यहाँ यात्रा आरम्भ होने से लगभग महीने भर से ज्यादा समय से पहले ही आ गये थे। इसलिये यहाँ किसी किस्म की रुकावट नहीं थी। यहाँ से आगे चलने के तुरन्त बाद एक चाय की दुकान दिखायी देती है। हम भी सीधे हाथ वाले मार्ग बन्दर घाटी वाले से काफ़ी जल्दी पहुँच गये थे। इस दुकान पर पहुँवने से पहले हल्की-हल्की बारिश की बूँदाबांदी आरम्भ हो गयी थी। हमें वहाँ कुछ पन्नी पड़ी हुई दिखायी दी हमने इन पन्नी को ओढ़कर बारिश से अपना बचाव किया था। ऊपर वाले का शुक्र/शनि जो भी हो सही रहा कि बारिश कहर बरपाने से पहले ही बन्द हो गयी थी।


शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

Dancho to Bhairo Ghati धनछो से भैरो घाटी तक।

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-13                                                                        SANDEEP PANWAR

विधान दिल्ली वालों के साथ पीछे ही रह गया था। अकेला होने का मुझे यह लाभ हुआ कि मैं अपनी तेजी से चढ़ता चला गया। पुल से चलते ही पहली बार एक दुकान मिली थी लेकिन मुझे यहाँ कुछ खाने-पीने की इच्छा नहीं हो रही थी। मैंने दुकान की ओर देखते हुए अपना सफ़र जारी रखा। दुकान वाला ललचाई नजरों से मेरी तरफ़ देखता रहा। यहाँ दिन भर में मुश्किल से ही 10-12 बन्दे आ रहे होंगे जिस कारण इन 10-12 बन्दों में से एक बन्दा भी बिना कुछ खाये-पिये दुकान से आगे निकल जाये तो दुकान वालों पर क्या बीतती होगी? यह तो दुकान वाले के दिल से पता करना चाहिए। दुकान से आगे जाने पर अब लगातार हल्की चढ़ाई से सामना हो रहा था। मैंने धन्छों के पुल तक अपनी तेजी बराबर बनाये रखी। चूंकि मैं यहाँ पहले भी पधार चुका था इसलिये मुझे मालूम था कि यहाँ अब दुबारा से कठिन वाली चढ़ाई कहाँ जाकर आयेगी? अब एक किमी का धन्छो पार करने तक चढ़ाई की कोई समस्या नहीं थी। लेकिन जैसे ही धन्छो समाप्त होता है, वैसे ही चढ़ाई की नानी सामने दिखायी देने लगती है। यहाँ धन्छो से ऊपर जाने के लिये दो मार्ग हो जाते है। पहली बार मैं उल्टे हाथ वाले मार्ग से गया था। वापसी भी उसी मार्ग से आया था। इसलिये अबकी बार मेरा इरादा सीधे हाथ नदी का पुल पार कर, ऊपर जाने वाले मार्ग से यह चढ़ाई करने का था। 



गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

Manimahesh trekking Hadsar/Harsar to Dhancho हड़सर से धनछो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-12                                                                        SANDEEP PANWAR

रात में हमने मणिमहेश की यात्रा के आरम्भ स्थल हड़सर में तीन कमरे 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से तय कर लिये। यहाँ हमें सिर्फ़ एक रात्रि ही हडसर में रुकना था, दूसरी रात्रि तो हमने ऊपर पहाड पर मणिमहेश झील के किनारे ही रुकने का कार्यक्रम बनाया हुआ था। रात का खाना खाने के लिये हमें अपने कमरे से लगभग 300 मीटर पीछे  जाकर रात्रि भोजन करने के जाना पड़ा था। जहाँ हम ठहरे हुए थे वहाँ पर सिर्फ़ काम चलाऊ कमरे थे। रात का खाना खाकर सोने के लिये कमरे में पहुँचे तो वहाँ पर हमने कमरे वाले से पीने के लिये पानी माँगा तो उसके नौकर ने दूसरे कमरे के शौचालय से ही बोतले भरनी शुरु कर दी थी उसे शौचालय से पीने का पानी भरता देख खोपड़ी खराब हो गयी। पहले तो उसे जमकर सुनाया उसके बाद उन बोतलों को वही फ़ैंक कर अपनी बोतले लेकर बाहर सड़क पर आ गये। खाना खाकर आते समय मैने एक नल से पानी बहता हुआ देखा था। उस नल से रात्रि में पीने के लिये काम आने लायक जल भरकर कमरे में पहुँचे। हमारे कमरे के बराबर से नीचे बहती नदी के पानी की जोरदार आवाज पूरी रात आती रही। सुबह पहाड़ पर 15000 फ़ुट की ऊँचाई 14-15 किमी में  चढ़नी थी। अपना नियम सुबह जल्दी चलने का रहता है इस बात को सबको बता दिया गया था। साथ ही चेतावनी भी दे दी गयी थी कि सुबह जो देर करेगा वो बाद में आता रहेगा। सुबह ठीक 6 बजे हड़्सर छोड़ देने का फ़ैसला रात में ही बना लिया था।

मानचित्र

Khajiar to Hadsar खजियार से हड़सर तक (मणिमहेश का बेस कैम्प)

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-11                                                                        SANDEEP PANWAR

खजियार के मैदान से बाहर आते ही सड़क पर एक बोर्ड़ लगा हुआ है जिस पर चम्बा की दूरी मात्र 24 किमी व भरमौर (मणिमहेश का बेस कैम्प) की दूरी 90 किमी दर्शायी हुई है। अभी दोपहर बाद 3 साढ़े तीन का समय हुआ था। हमें भरमौर तक पहुँचने में मुश्किल से दो घन्टे लगने वाले थे। खजियार से बाहर आने के बाद कुछ दूर चलते ही उल्टे हाथ भोले नाथ की एक विशाल मूर्ति दिखायी दे रही थी। हम तो वैसे भी भोलेनाथ के असली निवास पाँच कैलाश में से एक मणिमहेश कैलाश पर ही जा रहे थे इसलिये इस मानव निर्मित मूर्ति को देखने के लिये गाड़ी से नीचे नहीं उतरे। गाड़ी में बैठे-बैठे ही उस विशाल मूर्ति के फ़ोटो लिये और वहाँ से आगे चम्बा की ओर बढ़ लिये। यहाँ से चम्बा तक लगातार हल्की सी उतराई का मार्ग था। चम्बा तक बिना रुके लगातार चलते रहे। जब हम चम्बा पहुँचे तो शाम के 5 बजने वाले थे। चम्बा में हमें रात में रुकना नहीं था इसलिये यहाँ से भरमौर के लिये बढ़ते रहे। यहाँ मनु ने एक मेड़िकल स्टोर से अपनी पैदल यात्रा के लिये काम आने वाली जरुरी वस्तुएँ दवाई आदि खरीद ली थी। चम्बा में प्रवेश करते ही हमने एक नदी का पुल पार कर उसके दूसरे किनारे पर आगे की यात्रा जारी रखी थी।

खजियार को राम राम

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

Paragliding experience at Khajjiar खजियार में पैराग्लाईड़िंग का अनुभव

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-10                                                                        SANDEEP PANWAR

हमने आधे मैदान का चक्कर होने के बाद कुछ देर धमाल-चौकड़ी की, उसके बाद वहाँ से आगे चलना आरम्भ किया। आगे चलते हुए हम सड़क किनारे जा पहुँचे। यहाँ हमने सड़क किनारे गाडियों की लम्बी लाईन देख कर सोचा था कि लगता है कि खजियार तक ही सड़क का आखिरी छोर है इसके बाद चम्बा जाने के लिये हमें पार्किंग के पास से ही किसी अन्य दिशा वाले मार्ग पर जाना पड़ेगा। लेकिन यहाँ लगे एक बोर्ड को देखकर माथा ठनक गया उस पर लिखा था। चम्बा और भरमौर जाने की दूरी लिखी हुई थी। सड़क के बोर्ड़ तो गलत हो नहीं सकते थे अत: हमने अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिये एक वाहन चालक से मालूम कर लिया कि यही मार्ग सीधा चम्बा होते हुए आगे चला जायेगा। हमें वहाँ घूमते हुए काफ़ी देर हो गयी थी हमारा जयपुर वाला साथी भी अब तक ऊपर पहाड पर पहुँच गया होगा। किसी भी पल उनके आने की सूचना आ सकती थी इसलिये हमने उनके आने व लेंड़िग करते हुए देखने के लिये मैदान में लौटना उचित समझा।

खजियार बर्फ़बारी के बाद, यह फ़ोटो उधार का है।

खजियार हरियाली के बाद

Khajjiar-Switzerland of India खजियार भारत का स्विटजरलैंड़

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-09                                                                        SANDEEP PANWAR

हमारी स्कारपियो खजियार की हरी भरी वादियों की ओर बढ़ चली। पहाड़ के ऊपर 12 किमी की दूरी से देखने में खजियार बहुत छोटा सा दिखायी दे रहा था। हम थोड़ी ही देर में खजियार के विशाल मैदान के पास आ पहुँचे। सबसे पहले गाड़ी को पार्किंग में लगाया उसके बाद हम खजियार के मैदान की ओर चल दिये। पार्किंग मैदान के एकदम आरम्भ में ही थी जिस कारण हमें ज्यादा पैदल नहीं चलना था। जैसे ही हम मैदान के एक छोर पर पहुँचे तो इतना सुन्दर हरा-भरा विशाल मैदान देखकर हम अचम्भित खड़े रह गये। मैंने इससे पहले बहुत बड़े-बड़े बुग्याल देखे है। (बुग्याल पहाड़ों के शीर्ष पर बने हुए मैदानों को कहा जाता है।) यहाँ की हरी-भरी घास देखकर तो यह भी एक बुग्याल जैसा ही दिखायी दे रहा था। इसमें और बुग्यालों में सबसे बड़ा अन्तर यही था कि इसके चारों ओर विशाल पेड़ थे जबकि बुग्याल के चारों ओर पर्वतों की गहरी खाई ही दिखायी देती है। थोड़ी देर तक तो हम खम्बे जैसे खड़े होकर इस मैदान को निहारते रहे।

आज देखिये खजियार
भारते के स्विटजरलैंड़ से असली वाले की दूरी।

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

Full enjoyment in a group journey at Kala top टोली या ग्रुप में काला टोप की यात्रा करने का जमकर आनन्द उड़ाया

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-08                                                                        SANDEEP PANWAR

काला टोप से अन्य सबसे पहले ही पैदल चलने का लाभ यह हुआ कि हम वहाँ के वन जीवन को नजदीक से देखते हुए एक किमी से ज्यादा दूरी तय कर गये थे। मराठे अपनी बाइक पर हमारे पास आ पहुँचे, हम दोनों मराठों की बाइक पर लद लिये, यहाँ आते समय मैंने के विशाल पेड़ गिरा हुआ देखा था। इसलिये वापसी में उस पेड़ के साथ उलजुलूल हरकत करने को जी चाह रहा था। जैसे ही हमारी बाइक उस पेड के पास पहुँची तो मैं बाइक से कूद गया। मैंने कहा जाओ मैं नहीं जा रहा तुम्हारे साथ, मैं तो गाड़ी में बैठ कर आऊँगा। मराठे अपनी बाइक लेकर जैसे ही चलने को तैयार हुए तो मैंने कहा ओये ताऊ जरा रुक जा यहाँ और आधे घन्टे रुक कर देख जाट की खोपड़ी क्या गुल खिलाती है? मराठे अभी कुछ समझ पाते मैं भाग कर इस गिरे हुए पेड़ पर जा चढ़ा। मुझे पेड़ पर चढ़ता देख मराठे अपनी बाइक बीच कच्ची सड़क में छोड़कर मेरे पास दौड़े चले आये। हम पेड़ पर बैठकर मस्ती काट ही रहे थे कि स्कारपियो वाले भी वहाँ आ पहुँचे। अब कुल बारह मनमौजी में से आधे मनमौजी तो पेड़ पर चढ़े मस्ती कूट रहे थे, इन्हें मजे लेते देख बाकि के गाड़ी में भला कैसे बैठे रहने वाले थे? सारे के सारे पेड़ पर टूट पड़े।

गाड़ी की सवारी में क्या आनन्द आया होगा?

Kala Top- beautiful place near Dalhousie काला टोप- ड़लहौजी के पास सुन्दरतम स्थल।

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-07                                                                        SANDEEP PANWAR

ड़लहौजी से आगे लकड़मन्ड़ी में हमारी तीनों गाड़ी एक स्कारपियो व दो बाइक से वन विभाग ने अपना टैक्स वसूल किया था, लेकिन उसके बिल्कुल पास में ही काला टोप जाने वाला मार्ग अलग होता है यहाँ पर हमें एक बार फ़िर टैक्स जमा कराना पड़ा। पहले तो सोचा कि चलो 300 रुपये बच जायेंगे, 3 किमी ही तो है, पैदल ही चलते है। लेकिन फ़िर विचार विमर्श के बाद तय हुआ कि यदि यहाँ पर 6 किमी आने जाने में ही दो घन्टे से ज्यादा लग जायेंगे फ़िर तो आगे की यात्रा में आज भरमौर तक पहुँचना सम्भव नहीं हो पायेगा। इसलिये वहाँ से काला टोप के लिये गाड़ी का शुल्क अदा कर गाड़ी में ही काला टोप पहुँच गये। 

काला टोप का बंगला

कैसा लगा?

सोमवार, 15 अप्रैल 2013

Dalhousie- Panjpulla a beautiful place ड़लहौजी में पंचपुला ने दिल खुश कर दिया।

हिमाचल की स्कार्पियो-बस वाली यात्रा-06                                                             SANDEEP PANWAR

सुबह जब हम नुरपुर से चले थे तो सड़क किनारे मिले ताजे-ताजे आम खाते हुए चले आ रहे थे। इसी तरह 24 किमी कब पार हो गये पता ही नहीं चला। आगे चलकर एक तिराहा आया। वहाँ लगे बोर्ड़ से मालूम हुआ कि हम कितनी 24 किमी दूर आ गये है। इस तिराहे का तीसरा मार्ग धर्मशाला की ओर चला जाता है। उन दिनों इस सड़क पर निर्माण कार्य होने के कारण हम उधर से नहीं आये थे। इस तिराहे से जरा सा आगे चलते ही एक नदी के पुल से ठीक पहले हिमाचल पुलिस का बैरियर/कम चैक पोस्ट बना हुआ है। जब हम आम खा रहे थे तो स्कारपियो वाले हमारे से आगे निकल गये थे। जैसे ही हम इस चैक पोस्ट के आगे पहुँचे तो पुलिस वालों ने हमारी बाइक पर महाराष्ट्र के नम्बर देखकर हमें रोक कर बाइक के पेपर व लाइसेंस दिखाने को कहा। अब उस समय हमारे पास ना तो लाईसेंस थे ना ही बाइक के पेपर। हमारे बैग व मराठों के बैग गाड़ी में रखे हुए थे। हमारे लाइसेंस व बाइक के पेपर उन्ही बैग में रखे हुए थे। पहले तो पुलिस वालों ने अपनी दहाड़ी बनाने की पूरी कोशिश की, हमने उन्हे सारी बात बतायी भी लेकिन वे बिना पेपर देखे हमें आगे जाने देने को तैयार नहीं थे। दहाड़ी बनाने वाले पुलिस वालों की औकात देखिये उन्होंने ड़र के मारे दिल्ली के नम्बर की स्कारपियों के पेपर आदि देखे बिना ही जाने दिया था। अगर उनके पेपर देखे होते तो शायद तब तक हम भी वहाँ पहुँच जाते! हमने गाड़ी वालों को फ़ोन कर रुकने को कहा। इतने में मनु भाई को अपना दैनिक जागरण में काम करने वाला भाई याद आ गया। मनु ने पुलिस वालों को अपने दैनिक जागरण से जुड़े होने के बारे में बताया तो पुलिस वाला एकदम गिरगिट की तरह रंग पलट कर बोला, अरे आपने पहले क्यों नहीं बताया कि आप अखबार वाले हो? खैर पुलिस वालों ने हमारे 5-7 मिनट खराब कर दिये थे।



रविवार, 14 अप्रैल 2013

kangra vally to Dalhousie कांगड़ा घाटी से ड़लहौजी मार्ग पर सड़क पर बिखरे मिले खूब सारे पके-पके आम।

हिमाचल की स्कार्पियो-बस वाली यात्रा-05                                                                 SANDEEP PANWAR
ज्वाला जी मन्दिर में जलती हुई ज्वाला रुपी ज्योत के दर्शन कर, वापिस उसी स्थान पर आ गये, जहाँ मराठों की बाइक पार्किंग में खड़ी थी। अब आगे की यात्रा लगभग साथ ही करनी थी इसलिये हम भी उनके साथ ही गाड़ी में चलते रहे। कुछ आगे जाने पर मनु-विधान-विपिन- व संदीप को बाइक पर यात्रा करने की सनक सवार हो गयी। आगे जाकर बाइक वालों को रुकवाकर गाड़ी में बैठाया गया। अब हम चारों ने बाइक पर कब्जा जमा लिया। दो दिन से गाड़ी में अन्दर घुसकर बैठे थे इसलिये घुटन सी महसूस होने लगी थी। बाइक चलाने के दो महारथी बाइक चलाने लगे, मेरे पीछे विपिन बाइक का लगभग अनाड़ी सवार था जबकि मनु के पीछे बाइक चालक विधान सवार हो चुका था। हमने लगभग 100 किमी की बाइक यात्रा उस दिन की होगी। बाइक चलाने के लिये यह पठानकोट-मंड़ी वाला हाईवे पहाड़ पर सर्वोत्तम मार्ग है। इस मार्ग के किनारे पर गहरी खाई कभी कभार ही आती है। इस सडक पर अंधे मोड़ भी मुश्किल से ही दिखाये देते है। ज्यादा ऊँचा नीचा भी नहीं होता कि अब चढ़ाई आयी अब उतराई। इतना कुछ होने के बाद भी हरियाली के मामले में यह किसी भी अन्य पहाड़ी मार्ग से कम सुन्दर दिखायी नहीं देता है। चूंकि मैंने इस मार्ग पर पहले भी अपनी बाइक से यात्रा की हुई है इसलिये मुझे इस मार्ग के बारे में काफ़ी मालूम था।

बाथू खड़ नामक स्थल पर पहली बार इतने नजदीक सड़क व रेल आती है।

लगता है रेल अभी नहीं आयेगी

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

Maa Jawala ji Temple माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी जी मन्दिर दर्शन।

हिमाचल स्कारपियो-बस वाली यात्रा-04                                                                    SANDEEP PANWAR

ज्वाला जी को कुछ लोग ज्वाला मुखी भी बोलते है। जब हम ऊपर मन्दिर के प्रागंण मॆं पहुँचे तो देखा कि वहाँ पर लगभग 200 मीटर लम्बी लाईन लगी हुई है। अगर यहाँ जलती ज्वाला रुपी ज्योत देखने की बात ना रही होती तो मैं लाईन में लगना पसन्द नहीं करता लेकिन अपने मराठे व जयपुरिया दोस्त तो यहाँ पहली बार आये थे, इसलिये मैं भी उनके साथ लाईन में लग ही गया। लाईन बहुत ज्यादा गति से नहीं बढ़ रही थी इसलिये मुझे वहाँ खड़े-खड़े झुन्झलाहट होने लगी थी। लाईन की लम्बाई को सीमित स्थान में रखने के लिये उसको बलखाती पाईपों में मोड़ दिया गया था। चूंकि हम तो यहाँ अपनी गाड़ी में आये थे। मैं पहली बार यहाँ अपनी नीली परी बाइक पर आया था। अपने वाहन से यात्रा करने का अलग ही आनन्द है। पठानकोट से मात्र 212 किमी है, अम्बाला से 273 किमी दूरी है। ज्वालामुखी मंदिर की चोटी पर सोने की परत चढी हुई है। आगे बढ़ने से पहले आपको यहाँ की कुछ काम की जानकारी दे दी जाये। तब तक लाईन भी आगे सरक जायेगी और आपको मन्दिर के दर्शन भी करा दूँगा। समुन्द्र तल से मन्दिर की ऊँचाई 2100 मीटर के आसपास है।
सोने का छत्र

यही सामने वाले भवन में ज्वाला जी अग्नि रुप में जलती रहती है।

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

Bhakra Nangal Dam to Jawala Mukhi ji Temple भाखड़ा नांगल बाँध होते हुए ज्वाला जी मुखी तक

हिमाचल स्कारपियो-बस वाली यात्रा-03                                                                    SANDEEP PANWAR

नैना देवी मन्दिर में मुख्य मूर्ति के दर्शन करने के उपरांत अपना काफ़िला ज्वाला जी ओर चल दिया। बाइक वाले दोस्त एक घन्टा पहले ही आगे की मंजिल के लिये प्रस्थान कर गये थे। हमने भी वहाँ ज्यादा समय ना लगाते हुए ज्वाला जी के लिये प्रस्थान कर दिया। नैना देवी के पहाड़ पर चढ़ते ही सतलुज नदी पर बना बांध के कारण रुका हुआ पानी दिखायी देने लगता है। यहाँ एक बात स्पष्ट कर रहा हूँ कि बोलने में तो सभी भले ही भाखड़ा-नांगल बांध बोलते हो लेकिन भाखड़ा और नांगल दो अलग-अलग बांध है जिसमें से नांगल बांध नीचे बना है और भाखड़ा बांध इससे 13-14 किमी ऊपर बना हुआ है। यहाँ आने से पहले तो मेरे लिये दोनों बांध एक ही हुआ करते थे। भाखड़ा बांध को ही गोविन्द सागर झील कहा जाता है। हिमाचल में ही एक अन्य बांध पोन्ग बांध भी देखने घूमने लायक स्थान है। पोन्ग बांध को महाराणा प्रताप सागर बान्ध कहा जाता है। नैना देवी के ऊपर पहाड़ से ही भाखड़ा बांध के दर्शन होने आरम्भ हो जाते है। इसलिये हम इसी बान्ध के साथ-साथ चलते हुए चले आ रहे थे।

अति सुन्दर
देखा

गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

Naina Devi Temple नैना देवी मन्दिर से ज्वाला जी तक

हिमाचल स्कारपियो-बस वाली यात्रा-02                                                                   SANDEEP PANWAR

इस यात्रा के पहले लेख में आपको यहाँ हिमाचल के बिलासपुर जिले में माता नैना देवी मन्दिर तक पहुँचने की कहानी के बारे में विस्तार से बताया गया था। अब उससे आगे.....  हमने नैना मन्दिर पहुँचने के बाद अपने महाराष्ट्र वाले दोस्तों को तलाश करना शुरु किया। चूंकि यह कस्बा कोई बहुत ज्यादा बड़ा नहीं है इसलिये हमें उन्हे तलाश करने में ज्यादा समय नहीं लगा। संतोष तिड़के व उसके दोस्त दो बाइक पर ही महाराष्ट्र से यहाँ नैना देवी तक तीन दिन में ही आ गये थे। पहले दिन वे चारों मेरे साथ मेरे घर पर ही रुके थे। अगले दिन हमारा कार्यक्रम बाइक से साथ ही हिमाचल यात्रा पर जाने का था लेकिन अचानक स्कारपियो से जाने के कारण सिर्फ़ महाराष्ट्र वाली बाइके ही इस यात्रा में आ पायी थी। नैना देवी पहुँचने के बाद हमने उनकी बाइक वहाँ के होटलों में देखनी शुरु की थी, हमने लगभग चार-पाँच होटल ही देखें होंगे कि उनकी बाइक दिखायी दे गयी। होटल वालों ने बताया कि वे घन्टा भर से ऊपर गये है अब तो आते ही होंगे।

जय हो प्रभु

यही मुख्य मन्दिर है।

बुधवार, 10 अप्रैल 2013

Let's go to Manimahesh Kailash चले हिमाचल प्रदेश के मणिमहेश कैलाश की यात्रा पर

हिमाचल स्कारपियो-बस वाली यात्रा-01                                                                    SANDEEP PANWAR


जय मणिमहेश- जी हाँ दोस्तों आज से आपको अपनी दूसरी मणिमहेश यात्रा के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है। बीते साल जुलाई माह की बात है, मैंने बाइक से हिमाचल जाने का 10-11 दिन का कार्यक्रम बनाया हुआ था। मैंने अपने इस कार्यक्रम के बारे में अपने ब्लॉग के सूचना पट "आगामी यात्रा" कॉलम में कई महीने पहले ही लिख दिया था। मेरा कार्यक्रम कुछ इस प्रकार से था दिल्ली से चलकर नैना देवी, ज्वाला मुखी देवी, होते हुए ड़लहौजी-खजियार देखकर चम्बा पहुँचने के बाद मणिमहेश यात्रा के लिये भरमौर-हड़सर तक बाइक से जाने की तैयारी की गयी थी। उसके बाद दो दिन की मणिमहेश पद यात्रा कर वापसी चम्बा होकर साच-पास होते हुए उदयपुर होकर चन्द्रताल देखकर लाहौल स्पीति के काजा होकर रिकांगपियो देखते हुए शिमला रुट से दिल्ली तक की यात्रा का विचार बनाया गया था लेकिन कहते है ना होनी को कुछ और ही मंजूर था। हमारी यात्रा वापसी में चम्बा आने के बाद अचानक अंतिम पलो में गाड़ी वालों के कारण बदलनी पड़ी। लेकिन असली घुमक्कड़ वही है जो अंतिम पलों में अपनी यात्रा बदल कर कही भी चला जाये। जिस कारण मैं वापसी में हजारों साल पुराने मशरुर मन्दिर देखकर, कांगड़ा छोटी रेलवे लाइन की सवारी करता हुआ। पालमपुर जा पहुँचा था। पालमपुर चाय के बागान में घूमता हुआ आगे मैंने बैजनाथ दर्शन कर बीड़ की सैर भी की थी, वहाँ से सुन्दरनगर होते हुए, करसोग घाटी के कई स्थलों को देखता हुआ। वापसी में चिन्दी, ततापानी, शिमला होते हुए दिल्ली पहुँचा था।
यात्रा पर जाने का वाहन

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

Daulatatabad Fort-Aurangabad city-Nashik-Delhi Journey दौलताबाद किले से औरंगाबाद नाशिक होते हुए दिल्ली तक यात्रा वर्णन।

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-16                                                                    SANDEEP PANWAR

वापसी की कहानी भी कम मजेदार नहीं थी हम दोनों ने किला देखने के बाद वहाँ से नीचे उतरना शुरु किया। उतरने से पहले हमने वहाँ चारों कोनों में घूम-घूम कर अपनी तसल्ली कर ली थी कि इससे बढ़िया नजारा और कुछ है या नहीं। यहाँ टॉप से नीचे देखने पर किले की चारदीवारी बहुत पतली लाइन जैसी दिखायी दे रही थी। ऊपर से देखने पर किले की चारदीवारी की संख्या साफ़ दिखायी दे रही थी। नीचे खड़े होकर जो बाते हमारी समझ से बाहर थी वह सब कुछ ऊपर से समझ आ रहा था। हमने धीरे-धीरे वहाँ से नीचे उतरना आरम्भ किया। यहाँ शीर्ष से नीचे उतरने के लिये हमें एक लम्बे घुमावदार मार्ग से होकर ऊपर आना पड़ा था वापसी में भी उसी मार्ग का उपयोग करना पड़ा। इस मार्ग को देखकर मुझे राजस्थान के जोधपुर शहर में गढ़ की याद हो आयी वहाँ भी इसी प्रकार की जोरदार चढ़ाई बनायी गयी है। जोधपुर का मेहरानगढ़ दुर्ग इसके सामने बच्चा लगता है।

शीर्ष पर स्थित झरोखे से शहर

कुछ देर बाद हम अंधेरी सुरंग के मुहाने पर पहुँच चुके थे। यहाँ आकर हमने एक मन्दिर देखा। जिसके बारे में बताया गया कि यह यहाँ के मराठा राजाओं का बनाया हुआ है। गणॆश भगवान की मूर्ति यहाँ होने के कारण इसे गणेश मन्दिर कहा जाता है। गणेश जी को राम-राम कर हम वहाँ से आगे अंधेरी गुफ़ा में घुसने के लिये चल दिये। गुफ़ा में ऊपर आते समय काफ़ी सावधानी बरतते हुए आये थे लेकिन नीचे जाते समय उससे भी ज्यादा सावधान रहना पड़ा। ऊपर चढ़ते समय गिरने से सिर्फ़ घुटने फ़ुटने का अंदेशा रहता है, लेकिन नीचे उतरते समय सब कुछ, मतलब सब कुछ, फ़ुटने का ड़र बना रहता है। धीरे-धीरे हम अंधेरी पार कर नीचे उस पुल तक आ गये, जिसे यहाँ आने का एकमात्र मार्ग माना जाता है। अबकी बार हमने पुल के पास खड़े होकर वहाँ के हालात का जायजा अच्छी तरह से लिया था। लोहे वाले पुल के नीचे एक अन्य पत्थर की सीढियाँ वाला पुल दिखायी दे रहा था जिससे यह समझ आने लगा कि लोहे वाला पुल आजादी के बाद पर्य़टकों की सहायता के लिय बनाया गया होगा। पहले सीढियों वाले पुल पर नीचे उतरकर ऊपर चढ़ते समय हमलावर पर हमला करने में आसानी रहती थी।

परकोटे/महाकोट का नजारा

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

Hill area in (Devagiri/ Daulatatabad Fort near Aurangabad city औरंगाबाद के निकट दौलताबाद/ देवागिरी किले/दुर्ग का पहाड़ी भाग।

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-15                                                                    SANDEEP PANWAR

किले के मैदानी भाग में जहाँ चलने फ़िरने में समस्या नहीं आ रही थी उसके उल्ट यहाँ किले के पहाड़ी भाग की ओर चलते ही साँस फ़ूलने लगी। विशाल कहने लगा संदीप भाई सामने देखने पर लग रहा है कि किले का शीर्ष अभी एक किमी दूरी पर है। मैंने कहा हाँ भाई लगता तो ऐसे ही है बाकि चल के पता लगेगा। हम ऊपर पहाड़ी की ओर चढ़ने लगे। अभी आधा किमी दूरी ही पार नहीं की होगी कि एक बार फ़िर एक दरवाजे से टेढ़े-मेड़े होकर आगे बढ़्ना पड़ा। पहले दरवाजे के पास टेढ़े-मेड़े रास्ते इसलिये बनाये जाते थे ताकि बाहर से आने वाला हमलावर यहाँ आकर कमजोर पड़ जाये। क्योंकि हमलावर कितनी भी बड़ी संख्या में हो, ऐसे दरवाजे से तो उसको पंक्ति बद्ध होकर ही आगे बढ़ना होगा। यही पंक्ति ही कमजोर कड़ी होती थी। जिस पर थोड़े से सैनिक भी बहुत बड़ी सेना पर भारी पड जाते थे। यहाँ कुछ बन्दर/लंगूर बैठे हुए थे। लेकिन हम जैसे वनमानुष को देखकर उन्होंने जाते समय तो कुछ नहीं कहा, आते की बात आते समय बतायी जायेगी।

किले के चारों और ऐसी ही खाई है।

Plain area in (Devagiri/ Daulatatabad Fort near Aurangabad city औरंगाबाद के निकट दौलताबाद/ देवागिरी किले/दुर्ग का मैदानी भाग।

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-14                                                                    SANDEEP PANWAR

दौलताबाद किले के भीतर जाने वाले मुख्य गलियारे के सामने जीप से उतर गये। यहाँ सड़क पार किले में जाने का मार्ग दिखायी दे रहा था। किले में जाने वाले मार्ग के दोनों ओर सूचना पट पर किले के बारे में कुछ जानकारी लिखी हुई थी। हमने वो जानकारी पढ़ने के बाद आगे चलना शुरु किया। मैंने इस लम्बे व ऊँचे किले को दो लेख में विभाजित किया है। पहल लेख में किले के मैदान वाले भाग के बारे में विवरण दिया गया है। दूसरे भाग में किले के पहाड़ी वाले भाग के बारे में बताया गया है। जैसा आपको फ़ोटो में दिखायी दे रहा है कि किले के बाहर ही पार्किंग बनायी गयी है। अपने वाहन से आने वालों के लिये किले से ज्यादा पैदल नहीं चलना पड़ता है। चलिये अब किले के अन्दर प्रवेश करते है। किले के बाहर से जो शानदार नजारा दिखाई दे रहा था, अन्दर जाकर असली व भव्य नजारा देखते है। अभी तक तो फ़ोटो में यह किला देखा था आज जाकर असलियत में यह किला देखना है। इस किले को ही पहले देवागिरी किला कहा जाता था।


चले अन्दर

शानदार पार्क

रविवार, 7 अप्रैल 2013

Ajanta-Ellora caves to Daultabad Fort अजन्ता ऐलौरा गुफ़ा से दौलताबाद किले तक।

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-13                                                                    SANDEEP PANWAR


घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर देखकर आगे चल दिये, यहाँ से बाहर आते ही हमें एक मकबरा जैसा भवन दिखाई दिया। चूंकि यह हमारे पैदल मार्ग के एकदम किनारे पर ही था इसलिये हमने इसे देखे बिना नहीं छोड़ा। इसके पास जाकर पता लगा कि यह मकबरा/समाधी महान मराठा योद्धा वीर छत्रपति शिवाजी के पिताजी शाह जी की है। जिस दिन हम वहाँ थे उससे कुछ दिन पहले से ही यह समाधी मरम्मत कार्य के लिये बन्द की हुई थी। यह देख कर थोड़ा सा आश्चर्य हुआ कि जहाँ यह समाधी बनी हुई है वहाँ पर पहली नजर में देखने पर ऐसा लगता है कि जैसे इस समाधी पर सालों से किसी संस्था का ध्यान नहीं दिया गया है। इस समाधी को बाहर से ही देख-दाख कर, हम दोनों पैदल ही आगे मुख्य सड़क की ओर बढ़ते रहे। सड़क पर पहुँचते ही हम उल्टे हाथ की ओर चलने लगे। सीधे हाथ की ओर से हम सुबह यहाँ आये थे।

  शिवाजी महाराज के बापू की समाधी।

शनिवार, 6 अप्रैल 2013

Grishneshwar Temple (Verul-Daultabad-Aurangabad) घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन (दौलताबाद-औरंगाबाद)

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-12                                                                    SANDEEP PANWAR

रात में कैमरे व मोबाइल चार्ज कर लिये गये थे इसलिये अगले दिन इस बात की कोई समस्या नहीं थी कि किसी की बैट्री की टैं बोल जायेंगी। सुबह 5 बजे मोबाइल के अलार्म बजते ही हम दोनों उठकर औरंगाबाद जाने की तैयारी करने लगे। नहा-धोकर पौने 6 बजे हमने कमरा छोड़ दिया था। कमरा लेते समय कमरे वाली ने हमसे 100 रुपये फ़ालतू जमा कराये थे इसलिये सुबह उनको चाबी देते समय अपने 100 रुपये लेना हम नहीं भूले। हम अभी मुख्य सड़क पर आकर बस अड़ड़े की ओर चल दिये। मुश्किल से आधे किमी ही गये होंगे कि एक बस हमारी ओर आती हुई दिखायी दी। हमने हाथ का इशारा कर बस को रुकवा लिया। इस बस से हम नाशिक पहुँच गये। नाशिक पहुँचकर हम औरंगाबाद जाने वाली बस में बैठ गये। नाशिक से औरंगाबाद लगभग 150 किमी दूर है इसलिये हम आराम से अपनी सीट पर पसरे हुए थे। बस बीच-बीचे में वहाँ के कई शहरों से होकर चलती रही। हम अपनी सीट पर पड़े-पड़े उन्हे देखते रहे।



शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

Tyimbak- Trimbakeshwar 12 Jyotirlinga Shiva Temple त्रयम्बकेश्वर/त्र्यम्बकेश्वर 12 ज्योतिर्लिंग मन्दिर के दर्शन।

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-11                                                                    SANDEEP PANWAR

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि हम दोनों गोदावरी नदी का उदगम बिन्दु स्थल देखने के उपराँत पैदल टहलते हुए त्रयम्बक ज्योतिर्लिंग की ओर चले आये थे। जब हमने अपनी चप्पल जूता घर में जमा करा कर मन्दिर के प्रांगण में प्रवेश किया तो सबसे पहला झटका हमें वहाँ की भीड़ देखकर लगा। इसके बाद अगला झटका हमें दरवाजे पर खड़े मन्दिर के सेवकों की निष्पक्ष भावना देखकर हुआ। जब हमने वहाँ पर मन्दिर दर्शन के लिये भक्तों की लम्बी घुमावदार लाइन देखी और हम भौचक्के से वहाँ खड़े के खड़े रह गये तो हमें लम्बी लाईन के कारण अचम्भित खड़ा देख मन्दिर के सेवक बोले, “क्या आप बिना लाईन के जल्दी दर्शन करना चाहे हैं? हमने पूछा आप इस सेवा के बदले क्या फ़ीस लेते हो। तो उसने कहा था कि आपको 100 रुपये में हम बिना लाईन के मन्दिर दर्शन करा लायेंगे। हमने उनकी बात नकारते हुए उस लम्बी लाईन में लगना स्वीकार कर लाईन में लग गये।




गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

Sant Gyaneshwar's elder brother Nivartinath Samadhi सन्त ज्ञानेश्वर के बड़े भाई और उनके गुरु श्री निवृत्ति का समाधी स्थल

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-10                                                                    SANDEEP PANWAR

हम बारिश से बचते हुए किसी तरह राम तीर्थ स्थल तक तो पहुँच गये, लेकिन राम तीर्थ आते ही जिस जोरदार बारिश से हमारा सामना हुआ वो शब्दों में ब्यान नहीं किया जा सकता है। हम भारी बारिश से बचने के लिये एक चाय की बन्द दुकान के छप्पर में घुस गये। यहाँ बैठने के लिये बहुत सारी जगह थी इसलिये हम आराम से वहाँ बैठे रहे। बारिश का जोश देखकर लग रहा था कि आज की रात बारिश रुकेगी नहीं। हमें वहाँ उस भयंकर बारिश में बैठे-बैठे 10 मिनट ही हुई होंगी कि सीढियों पर एकदम से जोरदार आवाज करता हुआ पानी का सैलाब आता हुआ दिखायी दिया। मैंने पानी का सैलाब विशाल को दिखाया और कहा ये देखो कुदरत का कहर, क्या पानी की इतनी भारी मात्रा में इन सीढियों पर कोई उतर पायेगा। विशाल का जवाब था नहीं। जब हमें वहाँ बैठे-बैठे आधा घन्टा हो गया तो हमें अंधेरा होने की चिंता सताने लगी। यह शुक्र रहा कि बारिश आधे घन्टे तक पूरे शबाब के साथ बरसने के साथ एकदम अचानक से बेहद ही धीमी हो गयी। यह धीमी बारिश हमारे लिये एक शुभ संकेत था कि बच्चों यदि यहाँ से निकलना है तो यह बिल्कुल सही समय है निकल भागो यहाँ से, नहीं तो पूरी रात यही जागरण करते रहना। मैंने विशाल की आँखों में देखा और इशारों ही इशारों में वहाँ से चलने की हाँ कर दी। सीढियों पर बरसात का पानी अभी पूरे जोश-खरोश से बहता जा रहा था। इसलिये हमने अत्यधिक सावधानी पूर्वक सीढियों से नीचे उतरना आरम्भ कर दिया। सीढियाँ पानी की वजह से काफ़ी खतरनाक हो चली थी, पानी में फ़िसलकर कर हमारे हाथ-पैर या कोई अन्य हड़ड़ी ना टूटे, इसलिये हम उन पर तिरछे पैर रख उतरने में लगे पड़े थे।
समाधी मन्दिर की मुख्य मूर्ति

समाधी मन्दिर में जाने का प्रवेश मार्ग। 

बुधवार, 3 अप्रैल 2013

Godawari River starting point and other place गोदावरी उदगम स्थल सहित अन्य स्थल।

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-09                                                                    SANDEEP PANWAR

हम तेजी से ऊपर चढ़ते जा रहे थे। कुछ तो बारिश में फ़ँसने की चिंता, कुछ अंधेरा होने का ड़र। जब हम पहाड़ के लगभग शीर्ष पर पहुँचे ही थे तो हल्की-हल्की बूँदाबांदी भी शुरु हो गयी थी। हम अपने साथ बैग भी नहीं लाये थे। मेरे बैग में हमेशा एक छाता रहता है लेकिन क्या करे? सबसे पहले मैंने विशाल से कहा कि हम इस पहाड़ के सबसे दूर वाले के कोने में पहले चलते है ताकि उसके बाद सिर्फ़ वापसी करते हुए ही आना होगा। इसलिये हम पहले गोदावरी नदी का उदगम स्थल देखने नहीं गये। जब हम इस पहाड़ पर पहुँचे थे तो हमें वहाँ अपने अलावा कोई और दिखाई भी नहीं दे रहा था। जहाँ यह सीढियाँ समाप्त होती है उससे लगभग आधे किमी से ज्यादा दूरी तक हम सीधे हाथ की दिशा में चलते गये। जब आगे जाने का मार्ग दिखायी नहीं दिया तो मैं वही ठहर गया। विशाल फ़ोटो लेता हुआ पीछे-पीछे आ रहा था। मैंने विशाल से कहा आगे तो जाने के लिये मार्ग ही नहीं है।

पहाड़ के शीर्ष से त्रयम्बक शहर कैसा दिखायी देता है।

बस आ गया पहाड़।

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