चाय के बागान अभी समाप्त भी नहीं हुए थे कि खेतों मॆं तिब्बती लोगों द्धारा लगाये जाने वाली रंग बिरंगी झंड़ियाँ दिखायी देने लगी। इन झंड़ियों को तिब्बती लोग बड़ी पवित्र मानते है। इन पर तिब्बती धर्म ग्रन्थ लिखे होते है। पहले फ़ोटो में खेत में लगी बहुत सारी झड़ियाँ दिखायी दे रही है। जहाँ यह झडियाँ लगी हुई थी वहाँ पर चाय के खेत नहीं थे। इन खेतो में कुछ स्थानीय महिलाएँ कार्य कर रही थी। हम कुछ देर तक उन्हे खेतों मॆं कार्य करते देखते रहे। इसके बाद हम आगे की ओर चल दिये। आगे चलने पर हमें एक और मोनेस्ट्री जैसी दिखायी देने लगी लगी। यहाँ इसके बाहर सड़क पर बहुत सारे रंग बिरंगे पत्थर रखे हुए थे। जिसपर तिब्बती भाषा में कुछ ना कुछ तो अवश्य लिखा हुआ था। पहले हम दोनों इसके अन्दर जाने की सोच रहे थे फ़िर मैंने अपना इरादा बदल दिया, विपिन से कहा कि अगर तुम्हे जाना है तो जाओ नहीं तो चलो आगे मन्ड़ी की ओर चलते है। विपिन बोला नहीं संदीप भाई दोनों देख कर आयेंगे। मैंने कहा देख भाई बात सिर्फ़ फ़ोटो लेने की ही है मैंने इसे बाहर से देख लिया तो मेरे लिये यह ही बहुत बड़ी बात है। जा भाई जा तुम फ़ोटो ले आओ मैं फ़ोटो देखकर ही खुश हो जाऊँगा।
खेर्तों में लगी तिब्बती झडियाँ।े |
मोनेस्ट्री देखकर एक बार फ़िर उसी सड़क पर चलने लगे जिस पर चलते हुए आ रहे थे। कुछ देर में ही हम एक तिराहे पर पहुँच गये। यह वही तिराहा था जहाँ से हमें अज्जू के लिये सीधे हाथ नीचे ढ़लान की ओर जाना था। सुबह से कई किमी चल रहे थे। इसलिये अब ज्यादा चलने का मन नहीं कर रहा था। सड़क पर एक कार वाला खड़ा था वह पालपुर कांगड़ा की आवाज लगा रहा था। हमें तो सिर्फ़ दो किमी नीचे तक ही जाना था। उससे नीचे तक छोड़ने को कहा तो उसने मना कर दिया। वह कई मिनट खड़ा लेकिन उसे सिर्फ़ एक सवारी ही मिल सकी। आखिरकार उसने हमें नीचे अज्जू मोड़ तक बैठा लिया। कार ढ़लान पर उतरते समय ढ़लान की भयंकरता साफ़ दिख रही थी। ऐसी मजेदार ढ़लान देखकर रोमांच जैसा शब्द फ़ीका पड़ने लगता है। कार वाले ने हमें कुछ ही देर में अज्जू मोड़ पर लाकर छोड़ दिया। यहाँ से हमें उल्टे हाथ मन्ड़ी की ओर जाना था। सीधे हाथ जाने पर पठानकोट आना था।
सड़क पर कार से उतरकर अभी दम भी नहीं लिया था कि सड़क पर खड़े होते ही हमें पठानकोट से सुन्दर नहर की ओर जाने वाली बस आती दिखायी दी। हमने यहाँ इस जगह से सीधी सुन्दर की बस मिलने की उम्मीद सपने में भी नहीं की थी। बस को रुकने का ईशारा किया, बस रुकते ही हम सीधे बस के अन्दर, बस में बहुत ज्यादा भीड़ नहीं थी आखिर की कई सीटे खाली पड़ी हुई थी। हम भी उनमें से अपनी पसन्द की सीट पर जाकर जम गये। बस अपनी यात्रा में आने वाले कई स्थलों से होकर आगे चलती रही। पहाड़ों की यात्रा करते समय यदि अपना वाहन हो तो सोने पे सुहागा वाली बात हो जाती है इसके विपरीत सरकारी या निजी बस में घूमना पड़ जाये तो खिड़की वाली सीट मिल जाये तो भी बल्ले-बल्ले हो जाती है। किस्मत से हिमाचल की यात्रा में अभी तक हमें खिड़की वाली सीट मिलती जा रही थी। हमने शायद ही दो-चार मिनट बस के अन्दर देखने में लगाये होंगे। हमारा सारा ध्यान बाहर के नजारे देखने में लगा रहता था।
हमारी बस जोगिन्द्रनगर जैसे शहर से होकर आगे बढ़ती रही। जोगिन्द्रनगर भी मन्ड़ी की तरह काफ़ी बड़ा शहर है। यहाँ हमारी बस दो-तीन मिनट रुकने के बाद आगे बढ़ चली। मन्ड़ी पहुँचने तक मनमोहक नजारे हमें अपने मोहपाश में बाँधे रहे। बीच में ऐसी कोई खास घटना नहीं हुई जिसकी बात आज के लेख में की जाये। इसलिये यात्रा को सीधे मन्ड़ी लेकर चलते है। यहाँ मन्ड़ी शहर मैंने अब तक कई बार देखा है लेकिन हर बार मन्ड़ी से मनाली वाले मार्ग की ओर ही देखा है। आज पहली बार पठानकोट से कांगड़ा वाले मार्ग पर मन्ड़ी के दर्शन हो रहे थे। इस मार्ग पर आते समय हमारी बस व्यास नदी ने किनारे पर काफ़ी दूर तक चलती रहती है। व्यास नदी बहुत ज्यादा लम्बी दूरी इस मार्ग के साथ तय नहीं करती है। मैंने व्यास में एक बार स्नान किया है। यह नदी महाराणा प्रताप सागर झील/बाँध का निर्माण करती है जिसे पोन्ग ड़ैम भी कहते है। मैंने सतलुज नदी में भी स्नान किया है जो कैलाश मानसरोवर से आरम्भ हुई बताई जाती है। जिसने मेंरे श्रीखन्ड़ कैलाश महादेव वाली यात्रा देखी होगी उन्हे यह स्नान जरुर याद होगा। सतलुज नदी पर भाखड़ा नाँगल ड़ैम बना हुआ है। मन्ड़ी में आने के बाद नदी पार कई मन्दिर दिखायी देने लगते है। अभी शाम के पाँच बजने वाले थे।
हमारी बस जोगिन्द्रनगर जैसे शहर से होकर आगे बढ़ती रही। जोगिन्द्रनगर भी मन्ड़ी की तरह काफ़ी बड़ा शहर है। यहाँ हमारी बस दो-तीन मिनट रुकने के बाद आगे बढ़ चली। मन्ड़ी पहुँचने तक मनमोहक नजारे हमें अपने मोहपाश में बाँधे रहे। बीच में ऐसी कोई खास घटना नहीं हुई जिसकी बात आज के लेख में की जाये। इसलिये यात्रा को सीधे मन्ड़ी लेकर चलते है। यहाँ मन्ड़ी शहर मैंने अब तक कई बार देखा है लेकिन हर बार मन्ड़ी से मनाली वाले मार्ग की ओर ही देखा है। आज पहली बार पठानकोट से कांगड़ा वाले मार्ग पर मन्ड़ी के दर्शन हो रहे थे। इस मार्ग पर आते समय हमारी बस व्यास नदी ने किनारे पर काफ़ी दूर तक चलती रहती है। व्यास नदी बहुत ज्यादा लम्बी दूरी इस मार्ग के साथ तय नहीं करती है। मैंने व्यास में एक बार स्नान किया है। यह नदी महाराणा प्रताप सागर झील/बाँध का निर्माण करती है जिसे पोन्ग ड़ैम भी कहते है। मैंने सतलुज नदी में भी स्नान किया है जो कैलाश मानसरोवर से आरम्भ हुई बताई जाती है। जिसने मेंरे श्रीखन्ड़ कैलाश महादेव वाली यात्रा देखी होगी उन्हे यह स्नान जरुर याद होगा। सतलुज नदी पर भाखड़ा नाँगल ड़ैम बना हुआ है। मन्ड़ी में आने के बाद नदी पार कई मन्दिर दिखायी देने लगते है। अभी शाम के पाँच बजने वाले थे।
मन्ड़ी के बस अड़ड़े में कई मिनट खड़ी रहने के बाद हमारी बस सुन्दर नगर के लिये चल पड़ी। इस बस से हमें सुन्दर नगर तक ही जाना था। वैसे बस की अंतिम मंजिल भी सुन्दर नगर ही थी। सुन्दर नगर पहुँचकर करसोग जाने वाली बस पकड़नी थी। जैसे ही बस सुन्दर नगर के बस अड़ड़े पहुँची तो यात्रियों में बस से उतरने की होड़ मच गयी। हम तो सबसे आखिर वाली सीट पर जमे हुए थे। इसलिये हमें उतरने की कोई जल्दी नहीं थी। बस से सबसे आखिर में उतरकर बाहर आये। सुन्दर नगर बाइक यात्राओं मॆं कई बार देखा है। लेकिन आज पहली बार यहाँ के बस अडड़े में भी आना हो गया। हमने करसोग जाने वाली बस के बारे में पता किया। जहाँ से बसे अन्दर जाती है वही कुछ अन्दर जाने पर करसोग वाली एक बस खड़ी थी। हम बस में दाखिल हो गये, शुरु से लेकर आखिर तक सारी सीट देख ली लेकिन एक भी सीट खाली नहीं थी। सुन्दर नगर से करसोग तक लगभग तीन घन्टे की बस यात्रा थी। तीन घन्टे बस में खड़े-खड़े पक जाने थे इसलिये बस से बाहर निकल आये। दूसरी बस की इन्तजार करने लगे। लेकिन एक घन्टा इन्तजार करने पर करसोग की दुसरी बस नहीं आयी। अब हमें यही रात होने की चिंता सताने लगी। आखिरकार फ़ैसला हुआ कि यदि अंधेरा होने से पहले बस मिली तो ठीक नहीं तो कल सुबह जायेंगे। (क्रमश:)
हिमाचल की इस बस व रेल यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है। सबसे नीचे स्कारपियो वाली यात्रा के लिंक दिये है।
हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम।
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया।
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम।
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया।
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
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