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सोमवार, 29 अप्रैल 2013

Paragliding point Bir-Billing monastery पैराग्लाईडिंग सरताज बीड़ की तिब्बती मोनेस्ट्री।

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की यात्रा 06                                                       SANDEEP PANWAR
बैजनाथ मन्दिर देखने के बाद विपिन को मन्दिर में ही छोड़ मैं सीधा बस अड़ड़े बस में जा पहुँचा। मेरे जाते ही बस चल पड़ी। बस अड़ड़े से निकलते ही बस मन्दिर के आगे पहुँच गयी तो विपिन भी मन्दिर के बाहर ही बस पकड़ने के लिये खड़ा हुआ मिल गया। विपिन के बस में आने के बाद हमारी बस बीड़ के लिये चल पड़ी। हमारी बस मन्ड़ी वाले हाईवे पर आगे बढ़ती हुई अज्जू/आहजू नामक गाँव के मोड़ से उल्टे हाथ ऊपर की ओर मुड़ गयी। यहाँ इस मोड़ पर सीधे हाथ छोटी रेलवे लाईन का स्टेशन भी दिखाई दे रहा था। अगर किसी दोस्त को पठानकोट से इस रेल में बैठकर बीड़ या बिलिंग के लिये आना है तो इस आहजू/अज्जू नामक गाँव पर आकर उतर जाये। यहाँ से उत्तर दिशा में पहाड़ की तीखी चढ़ाई पर बनी सीधी सड़क पर जाने के लिये वाहन मिल जाते है। इस गाँव से जो तेज चढ़ाई बस में बैठकर दिखायी दे रही थी, ऐसी तेज चढ़ाई तो फ़्लाईओवर पर चढ़ते समय भी दिखाई नहीं देती है। बस चालक ने इस चढ़ाई पर बस चढ़ाते समय दूसरे गियर से आगे बढ़ने की हिम्मत की तो बस लोड़ मानकर रुकने लगी जिससे दुबारा से बस को दूसरे गियर में लाना पड़ा। यदि ऐसी सीधी खड़ी चढ़ाई पर परमात्मा ना करे किसी गाड़ी का उतरते समय ब्रेक फ़ेल हो जाये तो उसका क्या होगा? होगा क्या, जितना बड़ा वाहन होगा उतनी बड़ी दुर्घटना घटने की प्रबल सम्भावना बढ़ जायेगी। बस अपनी पूरी ताकत लगाकर 20-25 की गति से ऊपर चढ़ती जा रही थी। इस चढ़ाई को देख हमें साँस लेने की फ़ुर्सत निकालनी पड़ रही थी, नहीं तो हम किसी काम के नहीं रहते। 


बुधवार, 17 अप्रैल 2013

Paragliding experience at Khajjiar खजियार में पैराग्लाईड़िंग का अनुभव

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-10                                                                        SANDEEP PANWAR

हमने आधे मैदान का चक्कर होने के बाद कुछ देर धमाल-चौकड़ी की, उसके बाद वहाँ से आगे चलना आरम्भ किया। आगे चलते हुए हम सड़क किनारे जा पहुँचे। यहाँ हमने सड़क किनारे गाडियों की लम्बी लाईन देख कर सोचा था कि लगता है कि खजियार तक ही सड़क का आखिरी छोर है इसके बाद चम्बा जाने के लिये हमें पार्किंग के पास से ही किसी अन्य दिशा वाले मार्ग पर जाना पड़ेगा। लेकिन यहाँ लगे एक बोर्ड को देखकर माथा ठनक गया उस पर लिखा था। चम्बा और भरमौर जाने की दूरी लिखी हुई थी। सड़क के बोर्ड़ तो गलत हो नहीं सकते थे अत: हमने अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिये एक वाहन चालक से मालूम कर लिया कि यही मार्ग सीधा चम्बा होते हुए आगे चला जायेगा। हमें वहाँ घूमते हुए काफ़ी देर हो गयी थी हमारा जयपुर वाला साथी भी अब तक ऊपर पहाड पर पहुँच गया होगा। किसी भी पल उनके आने की सूचना आ सकती थी इसलिये हमने उनके आने व लेंड़िग करते हुए देखने के लिये मैदान में लौटना उचित समझा।

खजियार बर्फ़बारी के बाद, यह फ़ोटो उधार का है।

खजियार हरियाली के बाद
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