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बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

Shimla- Jakhu Temple शिमला की सबसे ऊँची चोटी व सबसे ऊँची मूर्ति के जाखू हनुमान मन्दिर

किन्नर कैलाश यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।

KINNER KAILASH TREKKING-10                                         SANDEEP PANWAR

शिमला आने के बाद मेरे साथ बैठी सवरियों ने बताया कि यही उतर जाओ। बस से उस जगह उतर गया जहाँ से जाखू मन्दिर पैदल जाने का मार्ग सबसे कम है। आड़े-तिरछे मोड़ चढ़ते हुए मैं रिज के पास चर्च के सामने पहुँच गया यहाँ से आगे का मार्ग मुझे मालूम था। क्योंकि मैं शिमला वाली ट्राय ट्रेन की यात्रा करते हुए शिमला की सबसे ऊँची चोटी जिसकी ऊँचाई 2455 मीटर(8000 फ़ु) है जाखू मन्दिर पहले भी सन 2007 में आ चुका था। जैसा कि मैं बता चुका हूँ कि मैं पहले भी यहाँ आ चुका हूँ तो दूसरी बार क्यों? मेरी आदत है कि मैं लगभग हर जगह कम से कम दो बार तो अवश्य जाता ही रहा हूँ। जब मैं चर्च के सामने पहुँचा तो मुझे अपनी कई साल पहले की वह यात्रा याद हो आयी, उस यात्रा के दौरान शिमला जैसा छोड़ कर गया था आज भी ज्यादातर वैसा ही दिखायी दे रहा था। चर्च के सामने ही एक पुस्तकालय अर्थात लाइब्रेरी है इसी के बराबर से होकर ऊपर जाने वाला मार्ग जाखू पर्वत पर बने हनुमान मन्दिर जाता है। जब मैं पहली बार यहाँ आया था तो उस वर्ष तक जाखू मन्दिर में हनुमान जी की 108 फ़ुट ऊँची महाविशाल मूर्ति का निर्माण कार्य नहीं हुआ था। जहाँ तक मुझे याद पड़ता है उस यात्रा के समय इसका कार्य भी आरम्भ नहीं हुआ था। यह विशाल मूर्ति शिमला के रिज व अन्य कई स्थलों से साफ़-साफ़ दिखायी देती है।




सोमवार, 7 अक्टूबर 2013

Tangling Nala To Forest room तंगलिंग गाँव के नाले से वन विभाग के कमरे तक

किन्नर कैलाश यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।

KINNER KAILASH TREKKING-03                                         SANDEEP PANWAR
पिछले लेख में आपको बताया गया था कि तंगलिंग गाँव के शीर्ष पर पहुँचने के बाद उसके आगे बढ़ते ही एक पहाड़ी साफ़ पानी के नाले की गहराई में उतरना पड़ता है। अब उससे आगे चलते है- किन्नर कैलाश यात्रा में पीने के पानी की भयंकर कमी बतायी गयी थी इसलिये हम पहले ही अपनी बोतले भर कर चले थे। पानी की इतनी कमी रहेगी इस बात को जानने के बाद, मैं दिल्ली से ही पानी की दो बोतले लेकर चला था। वैसे भी मुझे भूख से तो बहुत ज्यादा परेशानी नहीं होती, यदि किसी मजबूरी से दो-एक दिन खाने को ना भी मिले तो चल जायेगा लेकिन पानी की कमी पड़ेगी तो समस्या मेरे लिये भी दिक्कत करेगी। दो-चार घन्टे तक तो पानी की कमी झेली भी जा सकती है लेकिन यदि पानी 8-10 घन्टे बाद मिले और अपने पास पानी हो ही ना तो फ़िर मामला गंभीर हो सकता है। यह नाला किन्नर कैलाश यात्रा में आने वाली पार्वती कुन्ड़ के किनारे से होकर आता है। यहाँ आने वाले लोगों ने बताया भी कि इस नाले की शुरुआत पार्वती कुन्ड़ से होती है लेकिन मुझे ऐसा बिल्कुल नहीं लगा। 



शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2013

Powari to Tangling पोवारी से तंगलिंग गाँव के शिखर तक

किन्नर कैलाश यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।

KINNER KAILASH TREKKING-02                                         SANDEEP PANWAR
इस यात्रा के पहले लेख में आपको दिल्ली से पोवारी तक की यात्रा के बारे में बताया गया था। अब उससे आगे- जैसे ही सड़क किनारे लगे बोर्ड़ पर पोवारी नामक स्थान का बोर्ड़ दिखायी दिया हमने तुरन्त बस चालक से बस रोकने को कहा मैं काफ़ी देर से सड़क किनारे लगे दूरी सूचक बोर्डों को बड़े ध्यान से देखता हुआ चला आ रहा था कि कही पोवारी पीछे ना छूट जाये? जब शांगठांग नामक बड़ा सा लोहे वाला पुल आया तो वहाँ से पोवारी की दूरी मात्र दो किमी शेष बची थी जितनी जानकरी हमें थी उसके अनुसार हमारी ट्रेकिंग आरम्भ करने का स्थान पोवारी आ गया था यहाँ से किन्नर कैलाश की ट्रेकिग आरम्भ करने का स्थान बताया जाता है


बुधवार, 2 अक्टूबर 2013

Let's go to Kinner kailash-Kinnaur District आओ किन्नर कैलाश की ट्रेकिंग पर चले

किन्नर कैलाश यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।

KINNER KAILASH YATRA-01                                                SANDEEP PANWAR
भोलेनाथ शंकर जी के कुल 5 कैलाश है जिनके नाम है मणिमहेश दो बार देखा जा चुका है, श्रीखन्ड़ महादेव एक बार देखा गया है, किन्नर कैलाश इस यात्रा में, आदि कैलाश अगले साल तय है, कैलाश मानसरोवर अभी कुछ तय नहीं है, इनमें से सबसे ऊँचे व दुर्गम कैलाश किन्नर है। बीते वर्ष यहाँ का कार्यक्रम बनते-बनते रह गया था अबकी बार जैसे ही यहाँ की यात्रा आरम्भ हुई तो किन्नर कैलाश के आधार तंगलिंग गाँव के स्थानीय देवता ने (पता नहीं, देवता के नाम पर गाँव वाले नाटक क्यों करते है?) बोल दिया कि अबकी बार यात्रा नहीं होगी। मैंने पहले से ही तैयारी की हुई थी कि अबकी बार जैसे ही किन्नर कैलाश यात्रा की जानकारी मिलेगी, मैं तुरन्त चला जाऊँगा, लेकिन जब यह समाचार मिला कि स्थानीय देवता इस साल नाराज है जिस कारण इस साल यात्रा नहीं होगी तो सोचा कि चलो आदि कैलाश की यात्रा कर आता हूँ। 


गुरुवार, 19 सितंबर 2013

Lotus Temple बहाई धर्म- कमल का मन्दिर

TOURIST PLACE IN NEW DELHI-02                                                   SANDEEP PANWAR 
दिल्ली की यात्रा में आज बहाई धर्म के पूजा स्थल कमल मन्दिर की ओर चलते है। लाल किला देखने के बाद कालकाजी मन्दिर की ओर जाने वाली वातानूकुलित बस की इन्तजार करते हुए कई मिनट बीत गये लेकिन लाल वाली AC bus नहीं आयी। बदरपुर वाले रुट पर जाने वाली कई लाल बस निकल चुकी थी। आखिरकार हम भी बदरपुर जाने वाला एक लाल रंग की बस में सवार हो गये। पूरे दिन टिकट लेने की आवश्यकता तो थी ही नहीं क्योंकि हमने सुबह ही 50 वाला बस पास बनवाया लिया था। DTC की बसों में कन्ड़क्टर अधिकतर तो टिकट लेने के लिये टोकते ही नहीं है यदि टोकते भी है तो पास कहने के बाद दुबारा कुछ नहीं कहते है। हमारी बस दिल्ली गेट, आई टी ओ(बाल भवन भी यही नजदीक ही है।) प्रगति मैदान, उच्च न्यायालय(सुप्रीम कोर्ट), पुराना किला, चिडियाघर, हुमायूँ का मकबरा, निजामुददीन होते हुए मथुरा रोड़ पर चलती रही। 


गुरुवार, 12 सितंबर 2013

Jagannath temple and Rath Yatra road पुरी जगन्नाथ मन्दिर व रथ यात्रा मार्ग

UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-28         SANDEEP PANWAR
पुरी बस स्टैन्ड़ से उतर कर फ़िर से उसी दुकान पर आ गया जहाँ चिल्का जाते समय बड़े व मटर की सब्जी खायी थी। दोपहर होने जा रही थी इसलिये पहले यहाँ से पेट पूजा करनी उचित लगी, उसके बाद शाम तक कुछ मिले ना मिले उसकी फ़िक्र नहीं रहेगी। यहाँ से खा पी कर मन्दिर की ओर चल दिया। यहाँ से ही रथयात्रा वाला चौड़ा मार्ग शुरु हो जाता है। बस स्टैन्ड़ से मन्दिर तक ऑटो मिलते रहते है लेकिन मेरा मन पैदल चलने का था। ट्रेकिंग करना मेरा जुनून है इसलिये मैं अपनी दैनिक जिन्दगी में साईकिल का प्रयोग अधिकतर कार्यों के लिये करता हूईँ ताकि हमेशा फ़िट रहू। अब तो बेचारी मेरी नीली परी भी महीने में एक दो बार ही स्टार्ट होती है। पैदल चलता हुआ मन्दिर की ओर बढ़ता रहा। आधा घन्टा भी नहीं लगा होगा कि मैं मन्दिर के सामने पहुँच गया। वैसे मन्दिर काफ़ी दूर से ही दिखायी देने लग गया था। 


सोमवार, 12 अगस्त 2013

Harsiddhi Temple सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य देवी मन्दिर

UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-05                              SANDEEP PANWAR
सम्राट वीर विक्रमादित्य के नवरत्न दरबार के एकदम नजदीक ही सीधे हाथ पर हरसिद्धी देवी का मन्दिर है। इस देवी मन्दिर को राजा विक्रम की आराध्य कुल देवी भी कहा जाता है। यह मन्दिर देखने में भी काफ़ी शानदार है लेकिन पहली नजर में यह मन्दिर बहुत पुराना नहीं लगता है हो सकता है कि इस मन्दिर का पुननिर्माण कराया गया हो। मन्दिर के बाहर लगे एक शिला पट से पता चलता है कि यह मन्दिर सन 1447 में मराठों ने बनवाया था। मन्दिर के अन्दर बने दीप स्तम्भ भी मराठा शैली के बारे में ही इंगित कर रहे है। तांत्रिक परम्परा में इस हरसिद्धी मन्दिर का विशेष महत्व बताया गया है। हो सकता है कि इसी मन्दिर के योगी ने राजा विक्रम को अपने तंत्रजाल में फ़ँसाकर भूत बेताल को पकड़ लाने का आदेश दिया हो। खैर इतिहास कुछ भी रहा हो, आप यहाँ की यात्रा फ़ोटो के जरिये करते रहिये।


शनिवार, 10 अगस्त 2013

Omkareshwar Jyotirlinga Temple ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर

UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-03                              SANDEEP PANWAR
आज के लेख में ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा करायी जा रही है वैसे मैं इस जगह कई साल पहले जा चुका हूँ लेकिन अपने दोस्त यहाँ पहली बार गये थे। जैसा कि आपको पहले लेख में पता लग ही चुका है कि प्रेम सिंह अपने साथियों के साथ महाशिवरात्रि से दो दिन पहले ही दिल्ली से इन्दौर के बीच चलने वाली इन्टर सिटी ट्रेन से यहाँ पहुँच गये थे। इन्दौर तक उनकी रेल यात्रा मस्त रही। दोपहर के एक बजे उनकी ट्रेन इन्दौर पहुँच गयी थी। यहाँ स्टेशन से बाहर निकलते ही उन्होंने सबसे पहले पेट पूजा करने के लिये केले व समौसा का भोग लगाया, उसके बाद स्टेशन के बाहर से ही ओमकारेश्वर जाने वाली मिनी बस में बैठकर ओमकारेश्वर पहुँच गये। मैंने उन्हे कहा था कि अगर तुम्हे इन्दौर से बड़वाह पातालपानी होकर ओमकारेश्वर रोड़ की ओर अकोला तक जाने वाली मीटर गेज वाली छोटी ट्रेन मिल जाती है तो यह सुनहरा मौका मत छोड़ना, लेकिन अफ़सोस उन्हे वह रेल नहीं मिल पायी। 


शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

Mahakaal Jyotiringa Temple-Ujjain महाकालेश्वर-महाकाल मन्दिर उज्जैन

UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-02                              SANDEEP PANWAR
मन्दिर के आसपास बहुत ज्यादा भीड़ थी, उसमें उन्हे कहाँ तलाश करता? सोचा उन्हे फ़ोन ही लगा दूँ कि मैं मन्दिर के सामने वाली गली में ही हूँ। प्रेम सिंह ने फ़ोन पर कहा कि हम भी इसी गली में बनी दुकानों से सामान खरीद रहे है। मन्दिर की तरफ़ आते समय उल्टे हाथ वाली लाईन में हम मिल जायेंगे। मैं उन्हे देखता हुआ मन्दिर की ओर बढ़ता गया। मन्दिर से 100 मीटर पहले ही प्रेम सिंह एन्ड़ पार्टी वहाँ दिखायी दी। उनके माथे पर लगे लम्बे तिलक को देखकर मैं समझ गया कि यह सभी मन्दिर होकर आ चुके है। लेकिन फ़िर भी मैंने कहा कि मन्दिर में दर्शन करके आये कि नहीं। उन्होंने कहा कि हमने तो रात को भी आराम से दर्शन किये थे। सुबह भी पहले ही लाइन में लग गये थे जिससे जल्दी दर्शन हो गये। 


मंगलवार, 23 जुलाई 2013

Mathura-Krishna Birth place and Vrindavan मथुरा कृष्ण जन्म भूमि व वृन्दावन

AGRA-MATHURA-VRINDAVAN-03                             SANDEEP PANWAR 
आगरा से मथुरा की सड़क मार्ग से दूरी लगभग 50 किमी है सड़क भी बेहतरीन है क्योंकि दिल्ली आगरा राष्ट्रीय राज मार्ग जो है। अगर यह राष्ट्रीय राज मार्ग नहीं होता तो यहाँ की सड़क की दुर्दशा भी बेहद ही बुरी होती! जैसे हमारे घर वाले मार्ग यमुनौत्री राज्य मार्ग की है। बस में आगरा निकलने तक जल्द ही इतनी भीड़ हो गयी कि एक बन्दा बोला आप बच्चों को गोद में बैठा लो। मैंने कहा क्यों तुम्हे खड़ा नहीं रहा जा रहा तो दूसरी बस में आ जाना। हम बस अड़डे से खाली सीट देखकर बैठे थे, इसलिये बैठ कर ही जायेंगे। जब उस बन्दे का सीट के कोई जुगाड़ नहीं दिखा तो उसने कन्ड़कटर को आवाज लगायी।

शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

Tirumal- Tirupati Balaji Temple त्रिरुमला पर्वत पर त्रिरुपति बालाजी मन्दिर देवस्थानम

LTC-  SOUTH INDIA TOUR 06                                                                           SANDEEP PANWAR
रामेश्वरम स्टेशन से सप्ताह में एक बार चलने वाली ओखा-रामेश्वरम ट्रेन से हमने अपने टिकट त्रिरुपति तक बुक किये थे। हमारी ट्रेन रात को 8:30 मिनट पर जाने वाली थी, हम स्टेशन लगभग 6:30 बजे ही जा पहुँचे थे। दो घन्टे बैठकर प्लेटफ़ार्म पर ट्रेन लगने का इन्तजार किया। ठीक आठ बजे ट्रेन प्लेटफ़ार्म पर लगा दी गयी। अपनी-अपनी सीट देखकर उस पर अपना डेरा जमा दिया। जब हमने इस ट्रेन के टिकट बुक किये थे तो उस समय हमारी वेटिंग चल रही थी जो मात्र 2/3 ही थी इसलिये यात्रा वाले दिन से पहले ही हमारी टिकट पक्की हो चुकी थी। लेकिन इस ट्रेन में शयनयान के टिकट हमने बुक किये थे।

This is not my photo.

गुरुवार, 18 जुलाई 2013

Rameshwaram Temple and Ram Setu रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग व राम सेतू

LTC-  SOUTH INDIA TOUR 05                                                                           SANDEEP PANWAR
सुबह उठकर रामेश्वरम के लिये निकलना था। इसलिये सुबह पाँच उठकर नहा धोकर तैयार भी हो गये। बस वाले ने सुबह 6 बजे का समय दिया था। लेकिन जब सवा 6 बजे तक भी हमें लेने कोई नहीं आया तो मन में खटका हुआ कि हमें यही छोड़कर तो नहीं भाग गये? लेकिन शुक्र रहा कि ठीक 6:30 पर हमें लेने के लिये एक बन्दा आया हम उसके साथ बस तक चले गये। जिस बस से कन्याकुमारी से मदुरै तक आये वह बस मदुरै से ही वापिस कन्याकुमारी चली जाती है यहाँ से दूसरी बस में बैठकर रामेश्वरम के लिये निकलने की तैयारी होने लगी। दूसरी बस कल वाली बस से बड़ी थी या यह कहे कि आज वाली बस है कल वाली मिनी बस थी। 
दिन में

बुधवार, 8 मई 2013

Vaan to Vedni Bugyal वाण से वेदनी बुग्याल तक

ROOPKUND-TUNGNATH 03                                                                           SANDEEP PANWAR

वाण गाँव की आखिरी दुकान वाले से अपनी आगामी दो दिन की ट्रेकिंग के लिये जरुरी खाने लायक 5-6 बिस्कुट के पैकेट ले लिये। अपना हैलमेट लोक करने की जगह उस दुकान में ही रखवा दिया। जहाँ से अपने खाने के लिये सामान लिया था। वापसी में बाइक तो यहाँ से लेनी ही थी इसलिए हैलमेट बाइक पर बाँधने से क्या लाभ? अभी दिन छिपने में तीन घन्टे बाकि थे। जिसमें मैं आसानी से 10 किमी की चढ़ाई चढ़ सकता था। मैंने दुकानवाले से पता किया कि यहाँ से अगला ठिकाना कितने किमी बाद है? दुकानवाले ने बताया कि यदि आपके पास स्लीपिंग बैग हो तो यहाँ से आगे गैरोली पाताल नामक जगह पर रात रुकने का प्रबंध हो सकता है लेकिन अपने सामान के बिना वहाँ रुकने की सम्भावना ना के बराबर ही है। यदि आप आज किसी भी तरह वेदनी तक पहुँच जाओ तो वहाँ अकेले बन्दे के लिये रहने की कोई समस्या नहीं आयेगी।


बुधवार, 1 मई 2013

Mamleshwar Mahadev Temple ममलेश्वर महादेव मन्दिर, करसोग

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की यात्रा 09                                                       SANDEEP PANWAR

कामाक्षा देवी मन्दिर देखने के बाद हमें ममेल गाँव में ममलेश्वर महादेव मन्दिर जाना था। कामाख्या/कामाक्षा मन्दिर के पुजारी ने हमारी बाते सुनकर बताया कि थोड़ी देर में ही बस आने वाली है। यहाँ तक तो हम दोनों पैदल ही आये थे अब आगे की यात्रा बस से करने के कारण हमारे समय व ऊर्जा की बचत होने जा रही थी। हम मन्दिर के आँगन में ही बैठे हुए थे कि बस का होरन सुनाई दिया। बस आते ही हम उसमें सवार होकर ममेल गाँव की ओर चल दिये। बस पीछे किसी गाँव से आ रही थी। यह बस सीधे शिमला जा रही थी। जिस सड़क को हम दूर से देखते हुए आये थे अब उसे बस में बैठकर देखना अच्छा लग रहा था। इस मार्ग की चौड़ाई बहुत ही कम थी। सामने से आ रही एक बस के कारण हमारी बस को आगे बढ़ने से पहले बैक ले जाना पड़ा, जिससे सामने वाली बस के निकलने लायक जगह बन सके। कामाख्या मन्दिर तक शिमला से सीधी बस सेवा उपलब्ध है। यदि किसी को सीधे मन्दिर जाना हो तो सीधी वाली बस से अपनी यात्रा कर सकते है। जैसे ही कंड़क्टर ने टिकट के लिये पैसे माँगे तो हमने पैसे देते हुए कहा हमें ममलेश्वर मन्दिर जाना है।


सोमवार, 22 अप्रैल 2013

Manimahesh lake and parvat/mountain मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में डुबकी।

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-15                                                                        SANDEEP PANWAR

रात को सोते समय हमने एक-एक कम्बल ही लिया था, लेकिन जैसे-जैसे समय बीत रहा था तेजी से वहाँ का तापमान भी गिरता जा रहा था। जल्दी ही हमें दूसरा कम्बल भी लेना पड़ गया। रात में ठन्ड़ ज्यादा तंग ना करे, इसलिये दो कम्बल ऊपर व एक कम्बल नीचे बिछा लिया गया था। जहाँ हम सो रहे थे ठीक हमारे सामने ही उसी दुकान में 3-4 लोग और भी बैठे हुए थे। वे सभी दारु पीने में लगे हुए थे। उन्हे दारु पीते देख मुझे राजेश जी की याद आ गयी। अपने राजेश जी भी इनका साथ देने के तैयार हो सकते थे। यदि वे यहाँ होते तो! राजेश जी का पता नहीं चल पाया कि वे रात में कहाँ तक पहुँचे थे यह बात तो निश्चित थी कि वे गौरीकुन्ड़ तक नहीं पहुँच पाये थे। क्योंकि गौरीकुन्ड़ तक आने के बाद मणिमहेश तक पहुँचना बेहद आसान है। विधान अंधेरा होने से पहले हमारे पास झील पर पहुँच चुका था विधान के अनुसार राजेश जी घोड़े वाले की इन्तजार में रुक गये थे। घोड़े वाला उन्हे लेकर आ जायेगा। लेकिन राजेश जी सुबह होने पर ही ऊपर पहुँच पाये थे। रात आराम से कट गयी, कई-कई कम्बल लेने का फ़ायदा यह हुआ कि हमें सोते समय ठन्ड़ ने तंग नहीं किया। मणिमहेश पर्वत की समुन्द्र तल से ऊँचाई 5653 मीटर यानि 18564 फ़ुट है। झील की ऊँचाई 4950 मीटर है। यह पर्वत हिमालय के पीरपंजाल पर्वतमाला में आता है।



शनिवार, 20 अप्रैल 2013

Gauri Kund to manimahesh lake and parvat पार्वती/गौरी कुन्ड़

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-14                                                                        SANDEEP PANWAR


गौरीकुन्ड़ मणिमहेश यात्रा में मणिमहेश झील व पर्वत से लगभग एक किमी पहले ही पगड़न्ड़ी के किनारे उल्टे हाथ आता है। इसलिये ऊपर जाते समय पहले ही गौरीकुन्ड़ की यह छोटी सी झील भी देख लेनी चाहिए। वैसे हमने यह झील जाते समय नहीं बल्कि वापसी आते समय देखी थी लेकिन हम तीन बन्दों के अलावा अन्य सभी ने यह झील जाते समय ही देख ली थी इसलिये आप सबको भी गौरीकुन्ड़ की यात्रा पहले ही करा देते है। यात्रा के दिनों में यहाँ पुरुषों का आना मना है इसलिये पहली बार वाली यात्रा में मैंने यह झील बाहर से ही देखी थी अबकी बार हमने इस झील को किनारे पर जाकर अच्छी तरह देखा था। मणिमहेश की तुलना में यह झील उसकी आधी तो छोड़ो चौथाई भी नहीं लगती है। हमने इस झील के सभी कोणों से फ़ोटो लेकर अपनी संतुष्टि की थी। हम तो यहाँ यात्रा आरम्भ होने से लगभग महीने भर से ज्यादा समय से पहले ही आ गये थे। इसलिये यहाँ किसी किस्म की रुकावट नहीं थी। यहाँ से आगे चलने के तुरन्त बाद एक चाय की दुकान दिखायी देती है। हम भी सीधे हाथ वाले मार्ग बन्दर घाटी वाले से काफ़ी जल्दी पहुँच गये थे। इस दुकान पर पहुँवने से पहले हल्की-हल्की बारिश की बूँदाबांदी आरम्भ हो गयी थी। हमें वहाँ कुछ पन्नी पड़ी हुई दिखायी दी हमने इन पन्नी को ओढ़कर बारिश से अपना बचाव किया था। ऊपर वाले का शुक्र/शनि जो भी हो सही रहा कि बारिश कहर बरपाने से पहले ही बन्द हो गयी थी।


शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

Dancho to Bhairo Ghati धनछो से भैरो घाटी तक।

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-13                                                                        SANDEEP PANWAR

विधान दिल्ली वालों के साथ पीछे ही रह गया था। अकेला होने का मुझे यह लाभ हुआ कि मैं अपनी तेजी से चढ़ता चला गया। पुल से चलते ही पहली बार एक दुकान मिली थी लेकिन मुझे यहाँ कुछ खाने-पीने की इच्छा नहीं हो रही थी। मैंने दुकान की ओर देखते हुए अपना सफ़र जारी रखा। दुकान वाला ललचाई नजरों से मेरी तरफ़ देखता रहा। यहाँ दिन भर में मुश्किल से ही 10-12 बन्दे आ रहे होंगे जिस कारण इन 10-12 बन्दों में से एक बन्दा भी बिना कुछ खाये-पिये दुकान से आगे निकल जाये तो दुकान वालों पर क्या बीतती होगी? यह तो दुकान वाले के दिल से पता करना चाहिए। दुकान से आगे जाने पर अब लगातार हल्की चढ़ाई से सामना हो रहा था। मैंने धन्छों के पुल तक अपनी तेजी बराबर बनाये रखी। चूंकि मैं यहाँ पहले भी पधार चुका था इसलिये मुझे मालूम था कि यहाँ अब दुबारा से कठिन वाली चढ़ाई कहाँ जाकर आयेगी? अब एक किमी का धन्छो पार करने तक चढ़ाई की कोई समस्या नहीं थी। लेकिन जैसे ही धन्छो समाप्त होता है, वैसे ही चढ़ाई की नानी सामने दिखायी देने लगती है। यहाँ धन्छो से ऊपर जाने के लिये दो मार्ग हो जाते है। पहली बार मैं उल्टे हाथ वाले मार्ग से गया था। वापसी भी उसी मार्ग से आया था। इसलिये अबकी बार मेरा इरादा सीधे हाथ नदी का पुल पार कर, ऊपर जाने वाले मार्ग से यह चढ़ाई करने का था। 



गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

Manimahesh trekking Hadsar/Harsar to Dhancho हड़सर से धनछो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-12                                                                        SANDEEP PANWAR

रात में हमने मणिमहेश की यात्रा के आरम्भ स्थल हड़सर में तीन कमरे 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से तय कर लिये। यहाँ हमें सिर्फ़ एक रात्रि ही हडसर में रुकना था, दूसरी रात्रि तो हमने ऊपर पहाड पर मणिमहेश झील के किनारे ही रुकने का कार्यक्रम बनाया हुआ था। रात का खाना खाने के लिये हमें अपने कमरे से लगभग 300 मीटर पीछे  जाकर रात्रि भोजन करने के जाना पड़ा था। जहाँ हम ठहरे हुए थे वहाँ पर सिर्फ़ काम चलाऊ कमरे थे। रात का खाना खाकर सोने के लिये कमरे में पहुँचे तो वहाँ पर हमने कमरे वाले से पीने के लिये पानी माँगा तो उसके नौकर ने दूसरे कमरे के शौचालय से ही बोतले भरनी शुरु कर दी थी उसे शौचालय से पीने का पानी भरता देख खोपड़ी खराब हो गयी। पहले तो उसे जमकर सुनाया उसके बाद उन बोतलों को वही फ़ैंक कर अपनी बोतले लेकर बाहर सड़क पर आ गये। खाना खाकर आते समय मैने एक नल से पानी बहता हुआ देखा था। उस नल से रात्रि में पीने के लिये काम आने लायक जल भरकर कमरे में पहुँचे। हमारे कमरे के बराबर से नीचे बहती नदी के पानी की जोरदार आवाज पूरी रात आती रही। सुबह पहाड़ पर 15000 फ़ुट की ऊँचाई 14-15 किमी में  चढ़नी थी। अपना नियम सुबह जल्दी चलने का रहता है इस बात को सबको बता दिया गया था। साथ ही चेतावनी भी दे दी गयी थी कि सुबह जो देर करेगा वो बाद में आता रहेगा। सुबह ठीक 6 बजे हड़्सर छोड़ देने का फ़ैसला रात में ही बना लिया था।

मानचित्र

गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

Naina Devi Temple नैना देवी मन्दिर से ज्वाला जी तक

हिमाचल स्कारपियो-बस वाली यात्रा-02                                                                   SANDEEP PANWAR

इस यात्रा के पहले लेख में आपको यहाँ हिमाचल के बिलासपुर जिले में माता नैना देवी मन्दिर तक पहुँचने की कहानी के बारे में विस्तार से बताया गया था। अब उससे आगे.....  हमने नैना मन्दिर पहुँचने के बाद अपने महाराष्ट्र वाले दोस्तों को तलाश करना शुरु किया। चूंकि यह कस्बा कोई बहुत ज्यादा बड़ा नहीं है इसलिये हमें उन्हे तलाश करने में ज्यादा समय नहीं लगा। संतोष तिड़के व उसके दोस्त दो बाइक पर ही महाराष्ट्र से यहाँ नैना देवी तक तीन दिन में ही आ गये थे। पहले दिन वे चारों मेरे साथ मेरे घर पर ही रुके थे। अगले दिन हमारा कार्यक्रम बाइक से साथ ही हिमाचल यात्रा पर जाने का था लेकिन अचानक स्कारपियो से जाने के कारण सिर्फ़ महाराष्ट्र वाली बाइके ही इस यात्रा में आ पायी थी। नैना देवी पहुँचने के बाद हमने उनकी बाइक वहाँ के होटलों में देखनी शुरु की थी, हमने लगभग चार-पाँच होटल ही देखें होंगे कि उनकी बाइक दिखायी दे गयी। होटल वालों ने बताया कि वे घन्टा भर से ऊपर गये है अब तो आते ही होंगे।

जय हो प्रभु

यही मुख्य मन्दिर है।

शनिवार, 6 अप्रैल 2013

Grishneshwar Temple (Verul-Daultabad-Aurangabad) घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन (दौलताबाद-औरंगाबाद)

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-12                                                                    SANDEEP PANWAR

रात में कैमरे व मोबाइल चार्ज कर लिये गये थे इसलिये अगले दिन इस बात की कोई समस्या नहीं थी कि किसी की बैट्री की टैं बोल जायेंगी। सुबह 5 बजे मोबाइल के अलार्म बजते ही हम दोनों उठकर औरंगाबाद जाने की तैयारी करने लगे। नहा-धोकर पौने 6 बजे हमने कमरा छोड़ दिया था। कमरा लेते समय कमरे वाली ने हमसे 100 रुपये फ़ालतू जमा कराये थे इसलिये सुबह उनको चाबी देते समय अपने 100 रुपये लेना हम नहीं भूले। हम अभी मुख्य सड़क पर आकर बस अड़ड़े की ओर चल दिये। मुश्किल से आधे किमी ही गये होंगे कि एक बस हमारी ओर आती हुई दिखायी दी। हमने हाथ का इशारा कर बस को रुकवा लिया। इस बस से हम नाशिक पहुँच गये। नाशिक पहुँचकर हम औरंगाबाद जाने वाली बस में बैठ गये। नाशिक से औरंगाबाद लगभग 150 किमी दूर है इसलिये हम आराम से अपनी सीट पर पसरे हुए थे। बस बीच-बीचे में वहाँ के कई शहरों से होकर चलती रही। हम अपनी सीट पर पड़े-पड़े उन्हे देखते रहे।



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