पौंटा साहिब का कवि दरबार से लिया गया चित्र है।
हमारी यह यात्रा श्रीखण्ड महादेव भाग 13 में यहाँ तक आ पहुँची है। हम पौंटा साहिब गुरुद्धारे शाम को अंधेरा होने से काफ़ी पहले आ चुके थे। चारों ही यहाँ पहली बार आये थे, इसलिये यहाँ के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था कि अन्दर कहाँ रुकना है किससे पूछे इसी उधेडबुन में मुख्य दरवाजे के बाहर पास में ही अपनी-अपनी बाइक खडी कर दी व अन्दर जाकर सबसे पहले तो रात को रुकने के बारे में मालूम किया तो पता चला कि अन्दर घुसते ही उल्टे हाथ पर एक खिडकी से रात को रुकने वालो को परची दी जा रही है इसी परची को दिखाकर अपनी-अपनी बाइक भी गुरुद्धारे की चारदीवारी के अन्दर ला सकते हो। तो जी हम भी लग गये लाइन में जब हमारा नम्बर आया तो परची काटने वाले बंदे ने कोई भी पहचान पत्र दिखाने को कहा, उस समय मेरे पास पहचान पत्र नही था नीरज ने अपना पहचान पत्र दिखाया, अपना नाम पता व कितने बंदे हो सब कुछ लिखवाया था। जब सब खानापूर्ति हो गयी तो उसने हमें परची दे दी, हम परची ले बाहर आये व अपनी-अपनी बाइक को मुख्य द्धार से चारदीवारी के अन्दर ले आये। मुख्य द्धार से प्रवेश करते ही जहाँ से परची ली थी ठीक उसी के सामने ही कुछ दूरी पर बाइके खडी करने का स्थान है जहाँ पर सैंकडों की संख्या में बाइक खडी हुई थी। हमने भी अपनी-अपनी बाइक स्थान देख कर वही पर लगा दी। यहाँ पर ज्यादातर बाइक वाले हेमकुंठ साहिब की यात्रा से आने वाले या यात्रा पर जाने थे। वैसे मैं हेमकुंठ साहिब की यात्रा पाँच साल पहले इसी नीली परी पर कर चुका हूँ। वो यात्रा फ़िर कभी होगी आज तो सिर्फ़ और सिर्फ़ पौंटा साहिब के बारे में ही होगा।
इस यात्रा को शुरु से देखने के लिये यहाँ चटका लगाये।
दूसरा कोना