पहली हिमाचल बाइक यात्रा-01
हिमाचल प्रदेश में रोहतांग दर्रा के नाम से
शायद ही कोई अछूता हो? बात सन 2009
के जुलाई माह की बात है, मैंने
और गुजरात व गौमुख-केदार यात्रा में साथ जाने वाले अनिल ने बाइक से लेह-लद्धाख
जाने का कार्यक्रम बनाया हुआ था। वैसे मुझे घुमक्कड़ी करते हुए 22 साल
से ज्यादा का समय हो गया है। इस यात्रा से पहले मैंने दिल्ली से गंगौत्री व
यमुनौत्री तक कई बार बाइक पर आना-जाना किया हुआ था। हिमाचल में इससे पहले मैं एक
बार शिमला तक ही गया था। शिमला वाली उस यात्रा में मैं दिल्ली से कालका तक पैसेंजर
रेल से गया था। उसके बाद कालका से सुबह 4:30 मिनट पर चलने वाली छोटी
रेल/खिलौना रेल toy train से कालका से शिमला तक की यात्रा की थी। उस यात्रा में
ज्यादा फ़ोटो नहीं लिये थे। इस यात्रा के समय भी रील वाला कैमरा मेरे पास था। रील
वाले कैमरे को प्रयोग करते समय बहुत ज्यादा कंजूसी दिखानी पड़ती थी। इसलिये आज मैं
आपको ज्यादा फ़ोटो नहीं दिखा पाऊँगा। चलिये यात्रा पर चलते है....
कुल्लू से पहले एक बाँध पर यह नजारा है। |
हम चार बन्दे दो बाइक पर तय समय लेह यात्रा के
लिये चल दिये। हमारी यात्रा की शुरुआत तो हमेशा से ही दिल्ली बार्ड़र के घर से ही
हुआ करती है, इसलिये मैं और विशेष मलिक मेरी सदाबहार ambition बाइक पर सवार होकर लेह के लिये चल दिये। अनिल और उसका छोटा
भाई जो उत्तर प्रदेश पुलिस UP
POLICE में कार्यरत है। इस यात्रा के लिये पन्द्रह दिन
का अवकाश लेकर आया था। अनिल और उसके भाई को हमें बागपत शहर के चौराहे पर मिलना था।
जब हम बागपत पहुँचे तो वे दोनों वहाँ पहले से ही मौजूद थे। हमारे आते ही वे भी
तुरन्त चल दिये। अभी हम बड़ौत पार करने के बाद रमाला नामक गाँव में पहुँचे ही थे
कि यहाँ अनिल मुझसे आगे चल रहा था, अनिल के आगे एक भैसा-बुग्गी आने के कारण उसने
अपनी बाइक रोक दी, जबकि मुझे आगे निकलने की जगह मिलने के कारण मैं आगे बढ़
गया। जब मैंने थोड़ा सा आगे जाने पर महसूस किया कि अनिल पीछे नहीं आ रहा है तो
बाइक सड़क के किनारे रोक दी। अनिल लगभग 5 मिनट के बाद बाइक पर आता हुआ दिखायी दिया। जब
वे हमारे पास आये तो उन्होंने अपने लहुलूहान पैर खून से लथपथ पैर मुझे दिखाये तो
मैं आश्चर्यचकित रह गया कि अरे अभी तो मैं तुम्हे सही सलामत छोड़ कर आया था और अब
तुम खून से लथपथ हो। आखिर तुम्हे हुआ क्या? इतनी चोट लगी कैसे?
रोहतांग अभी 11 किमी दूर है। |