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शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

पवाँली कांठा- केदारनाथ पदयात्रा का खूबसूरत पड़ाव Panwali Kantha

गंगौत्री से केदारनाथ पदयात्रा-5
अगली सुबह चार बजे सब सोकर उठ गये थे। नहा धोकर सुबह 6 बजे तक आगे के सफ़र पर चल दिये थे। भैरों चटटी से कोई 2 किलोमीटर आगे तक मार्ग समतल ही है। बीच-बीच में जोंक दिखाई दे जाती थी। जिससे बच कर निकल रहे थे। मैं सबसे आगे चल रहा था, दो किलोमीटर बाद एक दोराहा आ गया यानि Y आकार में मार्ग आ गया, अब क्या करे? कोई बताने वाला भी नहीं था। करने लगे अपने साथियों का इंतजार, कुछ देर बाद वो आये। तब उन्होंने कहा कि अब केवल उल्टे हाथ पर ही मुडना गौरीकुंड तक सीधे हाथ पर कहीं नहीं मुडना है। इस मोड के बाद तो ढलान ही ढलान थी। वह भी कोई छोटी मोटी नहीं, पूरे 11-12 किलोमीटर लम्बी थी। यहाँ एक बात और हुई कि भैरों चट्टी से दो कुत्ते हमारे साथ-साथ ही चल रहे थे। जिन्होंने हमारा पीछा नहीं छोडा। तीन घन्टे बाद जाकर ये उतराई समाप्त हुई। अब कच्ची मिटटी का मार्ग आ गया था जो काफ़ी फ़िसलन भरा था। कोई 300-400 मीटर तक ये कच्चा मार्ग रहा था, इसके बाद जाकर एक गॉव आया, जिसका नाम है भाट गाँव। इस गाँव तक अब सडक मार्ग बन चुका है, जो कि दस किलोमीटर का है, जबकि हम सिर्फ़ दो किलोमीटर के पैदल मार्ग से मुख्य सडक तक गये। इस भाट गाँव से जो पैदल मार्ग है वहाँ से मुख्य सडक दिखाई देती है, और सडक इतनी गहरी खाई में है कि पहली बार देखने में तो होश ही उड जाते है। यहाँ से एकदम सीधी गहरी खाई में से होता हुआ पैदल मार्ग जाता है इस मार्ग पर सीढीदार खेत बने हुए है जहाँ पर किसान काम कर रहे थे। हम यह ढलान मात्र 40-50 मिनट में उतर गये थे और मुख्य सडक पर बने पुल पर आ गये थे। जहाँ से हमें उल्टे हाथ की ओर जाना था, इस पुल से घुत्तू मात्र 5-6 किलोमीटर ही रह जाता है।


ऐसी ही पगडंडियाँ से होकर जाना होता है।

जिधर देखो उधर एक से एक नजारे।

गुरुवार, 6 अक्टूबर 2011

PANWALI KANTHA पवाँली कांठा(बुग्याल)

बुढाकेदार से पैदल यात्रा के लिये दूरी


आज आपको PANWALI KANTHA पवाँली कांठानाम के शानदार बुग्याल के बारे में बता रहा हूँ। इस दिलकश जगह पर मैं दो बार गया हूँ। यहाँ जाने के लिये दिल्ली के मुख्य बस अडडे से उतराखण्ड रोडवेज की बस घनस्याली के लिये मिलती है जो पूरी रात चलकर सुबह घनस्याली पहुँचा देती है। घनस्याली जाने के दो मार्ग है एक चम्बा नई टिहरी होते हुए व दूसरा श्रीनगर से आगे केदारनाथ वाले मार्ग की ओर, तीसरा मार्ग भी है जो कि उतरकाशी से चौरंगीखाल, लम्ब गाँव होते हुए घनस्याली तक ले जाता है। घनस्याली पहाडों के हिसाब से एक काफ़ी बडा शहर है यहाँ हर तरह की सुख सुविधा आसानी से मिल जाती है। यहाँ से आगे घुत्तू जाना होता है जिसके लिये बसे नहीं मिलती है वहाँ जाने के लिये लोकल जीप पर निर्भर रहना होता है, पहाडों में खासकर उतराखण्ड में बसों की सुविधा कम ही है, जीप के भरोसे ही यहाँ का जीवन चलता रहता है। वैसे यहाँ पर आने के लिये एक पैदल मार्ग और है जो आपको बुढाकेदार से यहाँ तक ले आता है उसके लिये पहले बुढाकेदार जाना होता है, वहाँ से बुढाकेदार दर्शन करने के बाद विनयखाल नामक जगह से होते हुए, भैरों चटटी मन्दिर के दर्शन करते हुए घुत्तू तक शाम होने तक आ सकते हो। इस मार्ग में सिर्फ़ तीन-तीन किमी के दो बार चढाई के झटके झेलने पडते है बाकि तो ढलान ही ढलान है।


ये तो आगाज है।
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