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शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

Satopanth Lake trek & Swargarohini trek सतोपंथ ताल व स्वर्गरोहिणी पर्वत



स्वर्गरोहिणी पर्वत व सतोपंथ ताल यात्रा।
दोस्तों, अभी तक आपने पढा व देखा कि हम चक्रतीर्थ से आगे ग्लेशियरों के ऊपर से होकर सतोपंथ तक पहुँचे। सुबह के 10 बजे सतोपंथ पहुँचे। अच्छी खासी धूप खिली हुई थी। धूप का आनन्द लेने के लिये बैग एक तरफ रख घास में लुढक गये। खुले आसमान के नीचे यू निढाल होकर घास में लौटने का सुख, ऐसे ही नसीब नहीं हो जाता है। इसके लिये कठिन पद यात्रा करनी होती है। कई घंटे की थकान के बाद यू पैर फैलाकर आराम करने का सुख, करोडों की दौलत के ऐशों आराम भी नहीं दिला सकते। मैं और सुमित आधा घंटा ऐसे ही बैठे रहे। आज की यात्रा सिर्फ 2-3 किमी की ही रही। हम कल भी यहाँ आराम से पहुँच सकते थे। हमारे ग्रुप में एक-दो ढीले प्राणी भी थे। उन्हे भी साथ लेना होता था। इस यात्रा में अमित व सुमित ही ऐसे बन्दे थे जो मेरी तरह धमा-धम चलने वाले थे। बाकि सभी मस्तखोर थे। आगे बढने के नाम पर तेजी से सरकते ही नहीं थे। हम ठिकाने पर काफी पहले पहुँच जाते थे। कई भाई तो तीन-तीन घंटे लेट आते देखे गये। पता नहीं रास्ते में बैठ कर सो जाते थे या गपशप करने लग जाते थे। अपना पूरा ग्रुप लगभग ठीक था। बस एक दो छुटपुट घटनाये इस पूरी यात्रा में हुई। जिसका मुझे बहुत बुरा लगा। मुझे किसी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन साथी को बिन चेतावनी कोई बुरा कहे तो वह भी गलत लगता है। मान सम्मान सबका होता है। खैर, मैं अभी यहाँ, किसी का नाम उजागर नहीं कर रहा हूँ। हो सकता है लेख के अन्त में कुछ ईशारा आपको मिल जाये।

स्वर्गरोहिणी, स्वर्ग की सीढी, मरने का शौंक है तो चढ जाओ, भाई

गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

Trek to Satopanth Lake सतोपंथ झील का ट्रैक



महाभारत काल के 5 पाँडवों अंतिम यात्रा की गवाह, स्वर्गरोहिणी पर्वत व पवित्र झील सतोपंथ की पद यात्रा।

दोस्तों, अभी तक आपने पढा कि सतोपंथ व स्वर्गरोहिणी के लिये हमारी यह यात्रा बन्द्रीनाथ, माणा, आनन्द वन, चमटोली बुग्याल, लक्ष्मी वन, सहस्रधारा होते हुए चक्रतीर्थ के ठीक सामने एक विशाल पहाडी धार तक पहुँच चुकी थी। अब चलते है उससे आगे। पोर्टर से पता लगा कि इसी धार को चढकर ही पार करना होगा तभी उस पार जाया जा सकता है। सामने वाली उस धार को दूर से देखकर वहाँ की ठंडी में ही पसीने आ रहे थे। कल सुबह उस पर चढेंगे तो पता लगेगा कि यह क्या हाल करती है? शाम को एक अन्य ग्रुप के दो-तीन पोर्टर आगे सतोपंथ की ओर जा रहे थे। मैं उन पोर्टर को उस धार पर चढने में लगने वाले समय को देखने लगा। उन पोर्टर ने हमारे टैंट से लेकर उस धार की चोटी तक जाने में 45 मिनट का समय लगाया। दूरी रही होगी, एक सवा किमी के आसपास। पोर्टर को सामान के साथ जितना समय लगा है। मैं मान रहा हूँ कि हमें अपने सामान के साथ उसके बराबर समय लग ही जायेगा। चलो, कल देखते है यह धार कितनों की नानी याद दिलायेगी। चक्र तीर्थ की धार तो कल सुबह देखी जायेगी। अभी तो दिन के तीन ही बजे है हल्की-हल्की बारिश भी शुरु हो। पहले इस बारिश से ही निपटते है। आज, जहाँ हम ठहरे हुए है, वहाँ बडे-बडे तिरछे पत्थर की कुदरती बनी हुई दो गुफा थी। एक गुफा में हमारे पोर्टर घुस गये। दूसरी गुफा पर जाट देवता व सुमित ने कब्जा जमा लिया। बीनू व कमल ने मेरी व सुमित की गुफा के सामने ही अपना टैंट लगा डाला। जिस गुफा में हम अपना ठिकाना बना रहे थे उसकी छत वैसे तो बहुत मोटे पत्थर की थी लेकिन उस मोटे पत्थर का गुफा के दरवाजे वाले किनारे वाला भाग भूरभूरा हो गया था। जिससे वह पकडते ही टूटने लग जाता था। 
ध्यान मग्न

सोमवार, 26 दिसंबर 2016

Trekking to the base of Neelkanth, Charan Paduka, Badrinath चरण पादुका व नीलकंठ पर्वत के आधार की ओर



बद्रीनाथ धाम में आये तो यह सब भी देखे।
इस यात्रा में अभी तक आपने पढा कि कैसे हम दिल्ली से एक रात व एक दिन में हरिद्वार से बद्रीनाथ तक बस से यात्रा करते हुए पहुँचे। सबसे पहले बद्री-विशाल मन्दिर के दर्शन करने पहुँचे। वहाँ से लौट कर कमरे पर वापिस आये तो देखा कि सभी साथी मन्दिर दर्शन से लौट कर आ चुके थे। सबसे मुलाकात की। यहाँ सिर्फ़ दो साथी अलग मिले तो दिल्ली से साथ नहीं आये थे। एक सुशील कैलाशी भाई जो पटियाला से आये थे और दूसरे रमेश शर्मा जो उधमपुर जम्मू से आये थे। हरिद्वार से सुशील व रमेश जी उसी बस में साथ आये थे जिस में अन्य सभी साथी सवार थे। मुझे और बीनू को अलग बस के चक्कर में इन दोनों से बद्रीनाथ पहुँचकर ही मिलना हो पाया। बीनू का कैमरा उसके बैग में ही रह गया था।
इस यात्रा में कुछ पुराने साथी थे जिनसे पहले भी मुलाकात हो चुकी है

1 कमल कुमार सिंह जिन्हे नारद भी कहते है। बनारस के रहने वाले है।
2 बीनू कुकरेती बरसूडी गाँव, उत्तराखण्ड के रहने वाले है।
3 अमित तिवारी को बनारसी बाबू कहना ज्यादा उचित है।
4 सचिन त्यागी मंडौली दिल्ली के रहने वाले है।

नये दोस्त, जो इस यात्रा में पहली बार मिले, इनसे पहली बार मुलाकात हुई।

1 योगी सारस्वत गाजियाबाद में रहते है।
2 संजीव त्यागी दिल्ली के कृष्णा नगर के निवासी है।
 3 विकास नारायण ग्वालियर के रहने वाले है।
4 सुमित नौटियाल श्रीनगर, उत्तराखन्ड के रहने वाले है।
5 सुशील कैलाशी पटियाला, पंजाब के रहने वाले है।  
6 रमेश शर्मा उधमपुर, जम्मू के रहने वाले है।

रविवार, 25 दिसंबर 2016

Badinath temple yatra बद्रीनाथ मन्दिर यात्रा की तैयारी कैसे करे।


    जय बद्री विशाल। बद्रीनाथ धाम के दर्शन मात्र करना ही अपने आप में सम्पूर्ण यात्रा है। यदि बद्रीनाथ के साथ-साथ, नीलकंठ पर्वत, चरण पादुका, माणा गाँव, नर नारायण पर्वत के दर्शन, वसुधारा जल प्रपात, भीम पुल, सरस्वती नदी, व्यास गुफा, गणेश गुफा जैसे आसानी से पहुँच में आने वाले स्थल तो कदापि नहीं छोडने चाहिए। हमने इस बार की यात्रा में महाभारत काल के पाँच पांडव भाई व उनकी पत्नी (युधिष्टर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव के साथ इनकी एकमात्र पत्नी द्रौपदी) के स्वर्ग जाने वाले मार्ग का ही अनुसरण किया। इस यात्रा में हमने स्वर्गरोहिणी पर्वत के दर्शन व सतोपंथ झील में स्नान करना मुख्य है। यदि आप कभी भी बद्रीनाथ गये हो और उपरोक्त स्थलों को देखे बिना ही वापिस लौट आये हो तो यकीन मानिये कि आपने अपनी बद्रीनाथ यात्रा में बहुत कुछ छोड दिया है। कुछ भक्त/ यात्री केवल बद्रीनाथ मन्दिर के दर्शनों को ही महत्व देते है तो उनके लिये अन्य स्थलों के दर्शन करने का कोई महत्व ही नहीं रह जाता। मुझ जैसे कुछ घुमक्कड प्राणी भी होते है उनके लिये बद्रीनाथ धाम केवल रात्रि विश्राम व अन्य आवश्यक सामग्री एकत्र करने के लिये एक आधार मात्र ही होता है। हमारे ग्रुप की मंजिल (सतोपंथ व स्वर्गरोहिणी पर्वत) इससे (बद्रीनाथ धाम) बहुत आगे पैदल मार्ग पर तीन दिन की कठिन ट्रैकिंग करने के उपरांत ही आ पाती है। हमारी मंजिल जहाँ होती है वहाँ तक पहुँचने के लिये ढेरों जल प्रपात व घास के विशाल मैदानों, तीखी फिसलन वाली ढलानों, बहते नदी-नालों के साथ टूटे हुए पहाड के विशाल पत्थरों (बोल्डर) को पार करना पडता है। यदि आप ऐसी जगह जाने के लिये मचलते हो तो यह लेख आपके बहुत काम का है। इस यात्रा का लेखन कार्य कई लेख चरणों में पूरा किया गया है। 



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