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सोमवार, 28 मार्च 2016

Travel to Barsuri village-Pauri Distt. यात्रा बरसूडी गाँव की ओर



बरसूडी गाँव- हनुमान गढी - भैरो गढी यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।    लेखक- SANDEEP PANWAR

चित्र में उल्टे हाथ की ओर से डा० श्याम सुन्दर, रुपेश भाई, एकलव्य भार्गव, नीरज अवस्थी, सीधे हाथ सबसे आगे बीनू कुकरेती



यात्रा लेखन से मन पूरी तरह उठ चुका था। बीते साल 2015 में हालात कुछ ऐसे बने कि इक्की-दुक्की यात्रा के अलावा कोई खास बडी यात्रा भी नहीं हो पायी। खैर बीता साल बीत गया। अब नये साल 2016 की ओर चलते है। यात्रा लेखन का मन तो अब भी पूरी तरह नहीं बन पाया है। यह यात्रा भी सिर्फ़ बीनू के अनुरोध के कारण लिख रहा हूँ। फ़ेसबुक पर मैं सन 2011 से जुडा हुआ हूँ लेकिन अभी दिसम्बर में सोनीपत निवासी भाई संजय कौशिक के अनुरोध पर व्हाटसअप पर भी जुड गया। लेकिन व्हाटसअप मुझे परेशानी ज्यादा लगा। फ़ेसबुक इससे कही बेहतर है। खैर इस राम कहानी की बात तो आगे भी होती रहेगी, आज जिस यात्रा की बात आरम्भ करनी है उसका तो अभी तक जिक्र भी नहीं हो पाया। चलो अब इसी यात्रा की बात करते है।

शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

Jhansi to Delhi ( controversial train journey ) झांसी के प्लेटफ़ार्म पर विवाद के बाद ट्रेन यात्रा

KHAJURAHO-ORCHA-JHANSI-13                               SANDEEP PANWAR, Jatdevta
 इस यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।
01-दिल्ली से खजुराहो तक की यात्रा का वर्णन
02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल 
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट 
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद

आज का लेख इस यात्रा का आखिरी लेख है। आज के लेख में दिनांक 28-04-2014 को की गयी यात्रा के बारे में बताया जा रहा है। यदि आपको इस यात्रा श्रृंखला के बारे में शुरु से पढना है तो ऊपर दिये गये लिंक पर क्लिक करे। इस यात्रा में अभी तक आपने खजुराहो, ओरछा, व झांसी किले की शानदार यात्रा के बारे में देखा व जाना। अब उससे आगे। झांसी का किला देखने के बाद, किले से बाहर निकला तो किले की दीवार के पास एक लडका खाने की कोई वस्तु बेच रहा था। मुझे मालूम नहीं था कि उसका नाम क्या है? उसने नाम बताया भी था लेकिन अब याद नहीं आ रहा है। यह वस्तु देखने में पतले-पतले पापड की चूरे जैसे लग रही थी। अरे भाई यह खाने में कैसी लगती है? उसने जवाब दिया, “नमकीन जैसी लगेगी।“ ठीक है दस रुपये की बना दे। उसने दस रु की पापड के चूरे जैसी चीज मुझे दे दी। नमकीन चीज खाता हुआ किले के सामने वाली सडक पर आ गया। यहाँ से झांसी के रेलवे स्टेशन जाने के लिये तिपहिया ऑटो मिल जाते है।

सोमवार, 23 जून 2014

Khajuraho to Orcha by local Train journey खजुराहो से ओरछा तक रेल यात्रा

KHAJURAHO-ORCHA-JHANSI-06

आज के लेख में दिनांक 27-04-2014 की यात्रा के बारे में बताया जा रहा है। खजुराहो रेलवे स्टेशन के प्लेटफ़ार्म पर पहुँचकर बोर्ड का फ़ोटो लिया। एक स्थानीय बुजुर्ग भी मेरे पीछे-पीछे पैदल चले आ रहे थे। उनको कैमरा थमा कर मैंने बोर्ड के साथ अपना फ़ोटो भी खिंचवा लिया। बुजुर्ग का फ़ोटो भी ले लिया साथ ही उन्हे धन्यवाद बोलकर स्टेशन आ पहुँचा। ट्रेन चलने के समय में अभी एक घन्टा बाकि है। सामने ठन्डे पानी दिखायी दे रहा था। ठन्डा पानी पीया व बोतल में भरकर रख लिया। थोडी देर में झांसी की ओर से एक सवारी गाडी आयेगी तो कुछ देर रुककर वापिस झांसी की दिशा में लौट जायेगी। जब तक ट्रेन आयेगी तब मैं टिकट भी ले लूँगा। सबसे पहले स्टेशन की मुख्य इमारत का फ़ोटो लेने के लिये बाहर आना पडा। स्टेशन की इमारत खजुराहो के मन्दिरों की तरह की निर्मित की गयी है। स्टेशन के बाहर काफ़ी शानदार पार्क बनाया गया है। यहाँ की पार्किंग भी काफ़ी बडी है जिसमें एक साथ सैकडो वाहन खडे हो जाते है।
इस यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।01-दिल्ली से खजुराहो तक की यात्रा का वर्णन
02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल 
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट 
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद


टिकट खिडकी अभी बन्द थी। रिजर्वेसन काउंटर जरुर खुला था लेकिन उसमें अपना काम नहीं हो सकता था। सवारी गाडी का टिकट लेने के लिये कुछ लोग लाइन में लगना आरम्भ हो गये थे। लाइन लम्बी हो उसके पहले मैं साधारण टिकट लेने के लिये लाइन में गया। कुछ देर में टिकट बाबू आया और टिकट देना शुरु कर दिया। कुछ लोग बहुत देर से टिकट खिडकी के पास खडे हुए थे। जब टिकट बाबू ने कहा कि लाइन के बिना टिकट नहीं दूँगा तो हिन्दी जानने वाले सभी लोग लाइन में घुस गये लेकिन एक अमेरिकन जो शायद हिन्दी नहीं जानता था।(या अच्छी हिन्दी नहीं जानता/समझता होगा) वह लाइन के बराबर में ही खडा रहा।
चार-पाँच टिकट के बाद जब उसने टिकट के लिये रुपये देने चाहे तो टिकट बाबू ने लाइन में ना होने का हवाला देकर टिकट नहीं दिया। टिकट देने से इन्कार होने की बात पर वह अमेरिकन काफ़ी देर तक बडबड करता रहा। मैने उसकी मदद करनी चाही तो उसने मेरी बात नहीं सुनी। ना सुन, जा भाड में। हो सकता है उसे उस समय मेरी देशी स्टाइल वाली अंग्रेजी समझ ना आयी हो। टिकट की लाइन में मेरा नम्बर 11 वाँ था। अब तक टिकट की लाइन लम्बी हो चुकी थी। धीरे-धीरे मेरा नम्बर भी आ गया मैंने ओरछा का एक टिकट ले लिया। खजुराहो से ओरछा की दूरी 190 किमी है और किराया 35 रुपये है।
मैं रेल व बस की यात्रा करते समय अधिकतर खुल्ले रुपये पैसे रखने की हर सम्भव कोशिश करता हूँ। इसलिये मुझे यहाँ समस्या नहीं आयी। जबकि कुछ लोग खुल्ले के चक्कर में परेशान हुए जा रहे थे। टिकट लेने के बाद मैंने देखा कि लाइन से निकाला गया वह अमेरिकी सबसे पीछे जाकर लग गया है। अब उसका नम्बर करीब 40 सवारी के बाद आयेगा। महिलाओं के लिये सामान्यत: अलग लाइन नहीं होती। महिलाएँ एक-एक कर इसी लाइन में से टिकटे लेती रहती है। अमेरिकी ने मेरी बात नहीं सुनी। मैं कौन सा उसे जानता हूँ? टिकट लेकर प्लेटफ़ार्म पर आया और जगह देखकर बैठ गया। ट्रेन अपने समय से आ गयी थी। जैसे ही ट्रेन आयी तो देखा कि यह ट्रेन से मात्र 5 डिब्बे वाली ही है इतनी छोटी ट्रेन?
यह ट्रेन तो शिमला/माथेरान/ऊटी/दार्जिलिंग वाली ट्रेन की तरह थी। उनमें भी 5-6 डिब्बे ही होते है। पहाड वाली ट्रेन के डिब्बे में 30 सवारियाँ भी नहीं आ पाती है जबकि इस ट्रेन के एक डिब्बे में 100 सवारियाँ आसानी से आ जायेगी। सवारियों के उतरते ही खिडकी वाली सीट पर कब्जा जमा लिया। मैं सोच रहा था कि कम डिब्बे होने के कारण ट्रेन में काफ़ी मारामारी मचने वाली है लेकिन थोडी देर बाद जब सब कुछ सामान्य हो गया तो डिब्बे में देखा। वहाँ तो अब भी कई सीटे खाली पडी है। ट्रेन में सीट पर बैठकर प्लेटफ़ार्म का नजारा देखने में बडा मजा आता है। ट्रेन से उतरी कुछ सवारियाँ अपना सामान समेटने में लगी थी तो कुछ सवारियाँ प्लेटफ़ार्म पर ही तैयार हो रही थी। ऐसी ही दो तीन ग्रामीण महिलाएं अपने बच्चों को तैयार करने में लगी थी। उनका परिवार काफ़ी बडा था थोडी में जब सभी तैयार हो गये तो उन्होंने अपना सामान अपने सिर पर लादा और बाहर चले गये।
ट्रेन अपने तय समय दोपहर 12:30 मिनट पर चलने के तैयार थी जैसे ही सिगनल मिला ट्रेन ने सीटी बजा दी। खजुराहो से महोबा के बीच सिर्फ़ दो सवारी गाडी चलती है एक सुबह सवेरे 5 बजे चलती है तो दूसरी यह दोपहर को चलती है। अगर आपको भारतीय रेल के किसी भी दो स्टेशन के बीच चलने वाली ट्रेनों का किराया, समय आदि जानना है तो erail.in पर क्लिक कर जान सकते हो। आपको यहाँ पर ट्रेनों में सीटो की स्थिति की जानकारी भी मिल जायेगी। खजुराहो से अगला स्टेशन राजनगर के के नाम से आता है। के का अर्थ कालोनी है या कुछ ओर नहीं मालूम। यहाँ पर दो बन्दों की ट्रेन छूट गयी थी। उनके पास कुछ सामान था जिसके चक्कर में उनकी ट्रेन छूट गयी थी।
इस स्टेशन से चलते ही एक चना बेचने वाली बुजुर्ग डिब्बे में दिखायी दी। आज सुबह तीन-चार लडडू व तीन मटठी खायी थी कुछ नमकीन खाने की इच्छा थी। नीम्बू चना देखकर यह इच्छा और तीव्र हो गयी। दस रुपये का नीम्बू चना ले लिया गया। कुछ देर तक नीम्बू चने का स्वाद लिया गया। रेलवे लाइन किनारे पानी का एक बडा सा तालाब दिखायी दिया। जिसके बारे में पता लगा कि यह पक्षी विहार या किसी अन्य परियोजना का हिस्सा है। जिस पर बाँध का निर्माण कार्य भी चल रहा है। आगे चलकर बांध का कार्य होता हुआ दिखायी भी दे जाता है।
अगला स्टेशन सिंहपुर डुमरा आया था। इसे आगे रगोली व चितहरी जैसे नाम वाले छोटे-छोटे हाल्ट/स्टेशन आते-जाते रहे। लगभग घन्टा भर की यात्रा के बाद महोबा आया तो एक साथ कई रेलवे लाइन दिखायी दी। अब तक सिर्फ़ स्टेशनों पर ही कई लाइन दिखायी देती थी। मेरे हाथ में बडा सा कैमरा देखकर कुछ लोग काफ़ी देर तक घूरते रहते थे। मैं आज नहाया नहीं था इसलिये घूरते थे या बडा कैमरा होने के चलते उनका हाव भाव ऐसा हो गया था।
महोबा स्टेशन पर हमारी ट्रेन में इलाहाबाद की ओर से आने वाली दूसरी सवारी गाडी के डिब्बे जुडेंगे। जब तक दूसरी गाडी नहीं आयेगी। हमारी गाडी के पाँच डिब्बे यही अटके रहेंगे। दूसरी सवारी गाडी जो इलाहाबाद से आ रही थी उसके बारे में उदघोषणा हुई कि उसके आने में एक घन्टा बाकि है। ट्रेन के अन्दर गर्मी लग रही थी। इसलिये प्लेटफ़ार्म पर घूमकर समय काटना शुरु कर दिया। मैं कैमरा लेकर महोबा के बोर्ड का फ़ोटो लेने पहुँच गया। यहाँ रेलवे लाइन पर नजर गयी तो नागिन की बलखाती हुई रेलवे लाइन दिखायी देने लगी। झांसी से आने वाली मुख्य रेलवे लाइन को कुछ मोडकर बना हुआ देखा तो मन में प्रश्न जगा कि ऐसा अटपटा कार्य करने के पीछे क्या कारण हो सकता है?
एक घन्टा की देरी से इलाहाबाद से आने वाली सवारी गाडी आ गयी। हमारी गाडी का इन्जन पहले ही अलग होकर एक तरफ़ खडा किया जा चुका था। जब इलाहाबाद वाली सवारी गाडी दूसरी ओर के प्लेटफ़ार्म पर आकर खडी हुई तो मन उतावला हो गया कि हमारे डिब्बे किस दिशा में लगने वाले है? इलाहाबाद वाली गाडी का इन्जन अलग कर दिया गया। इन्जन अलग होता या जुडता पहले भी कई बार देखा है लेकिन  हर बार ऐसा लगता है कि आज कुछ नया होने वाला है। इन्जन अलग होकर हमारी गाडी के पीछे वाले डिब्बे में आकर लग गया।
अब तक हमारी गाडी का जो डिब्बा सबसे पीछे वाला था महोबा के बाद वह सबसे आगे वाला बनने जा रहा है। इन्जन जुडते समय लोगों का काफ़ी हजुम था जिससे अभी आने किसी यात्री को यह अंदाजा लगाने में गलती हो सकती थी कि स्टेशन पर कोई दुर्घटना तो घटित नहीं हुई है। हमारी ट्रेन को खींचकर इन्जन झांसी की ओर कुछ दूर तक चला। उसके बाद इन्जन हमारे डिब्बों को वापिस धकेलता हुआ इलाहाबाद वाली गाडी के आगे लगा कर माना। थोडी देर में दोनों ट्रेन आपस में जुड चुकी थी। अब हमारी ट्रेन झांसी की ओर बढने लगी।
हरपालपुर नामक स्टेशन पर रेलवे लाइन में काफ़ी तिरछापन है जिससे दूसरी तरफ़ का प्लेटफ़ार्म दिखायी दे जाता है। यहाँ आसपास देखकर लगा कि यह कस्बा काफ़ी बडा होगा। यहाँ प्लेटफ़ार्म किनारे लगे एक बोर्ड से मालूम हुआ कि खजुराहो की दूरी यहाँ से केवल 100 किमी है। खजुराहो जाने के लिये यहाँ से सीधी सडक है जबकि ट्रेन महोबा होकर आती है। यहाँ एक अन्य ट्रेन का क्रास होने के बाद हमारी ट्रेन आगे बढी। यहाँ से हमारे डिब्बे में एक नया युगल सवार हुआ। जिन्हे उनकी माँ, हो सकता है कि लडकी की माँ प्लेटफ़ार्म तक विदा करने आयी थी। उनकी उम्र व हाव-भाव से साफ़ पता लग रहा था कि यह जोडा ज्यादा पुराना नहीं है।
बीच में कई छोटे-छोटे स्टेशन आये और गये। बरुआ सागर नामक स्टेशन आते ही प्लेटफ़ार्म के पीछे वाली दीवार पर सब्जियों की पन्नियाँ भरी लाइन लगी दिखायी दी। पहले तो कुछ समझ नहीं आया कि दीवार पर सब्जियों की पोलीथीन क्यों रखी हुई है? लेकिन ट्रेन रुकते ही उन पोलीथीन को लाने वाले/वालियों ने ट्रेन में बेचना शुरु किया तो सब समझ आ गया कि यह सब्जी बेचने वालो का जुगाड है। टमाटर, बैंगन, भिण्डी, करेले, ककडी आदि कई तरह की सब्जियाँ उन पोलीथीन में पैक थी। अधिकतर की सब्जियाँ बिक गयी।
जिनकी सब्जी बच गयी थी आखिर में उन्होंने औने-पौने दाम पर बेच डाला। सब्जियों की सभी थैली का एक ही दाम था मात्र 10 रुपये। सभी में एक किलो से ऊपर सब्जी थी। इतनी सस्ती सब्जी यहाँ कहाँ से आती होगी? इस बात का जवाब मेरे पास बैठे एक बुजुर्ग से मिला। उन्होंने बताया कि बरुआ सागर में नदी किनारे होने से पानी की समस्या नहीं है जिससे यहाँ काफ़ी सब्जियाँ पैदा होती है। कुछ महिला तो दुबारा जाकर और सब्जियाँ ले आयी थी। मैंने यहाँ ककडी ली थी। दस रुपये की ककडी खाने में पेट फ़ुल हो चुका था।
ओरछा स्टेशन आने से ठीक पहले बेतवा नदी का पुल आता है यह पुल लोहे का बना हुआ है। बेतवा काफ़ी चौडी नदी है। बरसात में इसमें बहुत पानी आ जाता है। लोहे के पुल में चलती ट्रेन से सामने सडक वाला पुल दिखायी दे रहा था। उसका फ़ोटो लेने के लिये कई फ़ोटो लिये तब जाकर नीचे लगाया गया फ़ोटो मिल पाया। नहीं तो बाकि फ़ोटो में लोहे वाले पुल के गार्टर आ गये थे। पुल पार करते ही ओरछा का रेलवे स्टेशन आ गया। ट्रेन से बाहर निकलते ही ओरछा जाने की आवाज लगाता एक शेयरिंग ऑटो दिखायी दिया।
मैं अभी ऑटो वाले से कुछ बात करता, उससे पहले वो खजुराहो वाला अमेरिकन भी वहाँ आ गया। अमेरिकन ने ऑटो वाले से किराया पूछा तो उसने 100 रुपये (हन्डरेड) बता दिया। मुझे लगा कि इस प्रकार के ऑटो (सभी लोगों) वालों के कारण हमारे देश की नकारात्मक छवि बन गयी है। मैंने उस अमेरिकन से कहा, यू नो हिन्दी, उसने कहा कि थोडी-थोडी। चलो अच्छा है मुझे यह पता लग गया कि इसे कुछ हिन्दी आती है अगर मैं इसके सामने हिन्दी में कुछ उल्टा-सीधा बोल बैठता तो क्या सोचता?
खैर, ट्रेन जाने की विपरीत दिशा में प्लेटफ़ार्म समाप्त होते ही फ़ाटक है। यहाँ से ओरछा के शेयरिंग ऑटो मिलते रहते है। एक ऑटो वाला अमेरिकन को देखते ही शिकारी की तरह झपटा तो मैंने कहा यह मेरे साथ है। मेरा जवाब सुनकर ऑटो वाले का जोश ठन्डा पड गया। हम दोनों एक ऑटो में सवार होकर ओरछा के एतिहासिक स्थलों को देखने चल दिये। ओरछा रेलवे स्टेशन से ओरछा नगरी की दूरी मात्र 6 किमी है। सडक पर वाहनों की ज्यादा रेलम पेल नहीं है| सडक की स्थिति बहुत शानदार है जिस पर ऑटो में आगे वाली सीट पर चालक के साथ यात्रा करने में मजा आया। ओरछा नगरी में देखने लायक स्थलों की सूची में राम राजा मन्दिर, चतुर्भुज मन्दिर, जहाँगीर महल, गगन चुम्बी सावन-भादो मीनार, शहीद चन्द्रशेखर आजाद स्थल, बेतवा नदी का कंचना घाट, प्रमुख है इनमें से कुछ स्थल आपको दिखाये जायेंगे जो मैंने अपनी ओरछा यात्रा में देखे है। ओरछा के बाद झांसी का रानी लक्ष्मी बाई का किला भी देखा है। (यात्रा जारी है।)

























शुक्रवार, 23 मई 2014

Delhi To Khajuraho दिल्ली से खजुराहो की यात्रा

KHAJURAHO-ORCHA-JHANSI-01

यह यात्रा इसी साल सन 2014 के अप्रैल माह में की गयी है। मध्यप्रदेश के खजुराहो इलाके में जाने का विचार मन में कई बार आता था। एक दिन बनारस के रहने वाले फ़ेसबुकिया दोस्त (अभी तक मुलाकात नहीं हुई) चन्द्रेश ने अपनी खजुराहो यात्रा का फ़ोटो फ़ेसबुक पर डाला तो खजुराहो जाने के मचल रहा, शैतानी मन उतावला हो बैठा। लेपटॉप चालू था इसलिये जेब से ATM निकाल कर सामने रख लिया। सबसे पहले erail.in पर जाकर दिल्ली से खजुराहो जाने व झांसी से वापसी आने की सीटों की खाली स्थिति की जाँच पडताल की। जब आने व जाने की टिकटे मिलने की सम्भावना प्रबल हो गयी तो irctc.co.in पर जाकर अपनी टिकटे आरक्षित कर ली।

इस यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।01-दिल्ली से खजुराहो तक की यात्रा का वर्णन
02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल 
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट 
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद



जाने की 5 वेटिंग थी जबकि वापसी की टिकट झांसी से थी जो बुक करते समय ही पक्की हो चुकी थी। मैंने सोचा था कि यदि जाते समय टिकट RAC में ही रही तो देखा जायेगा कि कैसे सोया जायेगा? RAC में सबसे बडा पंगा यही होता है हमें पूरे दाम चुकाने के बाद भी अपनी सीट दूसरे के साथ साझी करनी होती है। दूसरे बन्दे का क्या पता? कैसा हो? अगर ठीक-ठाक हुआ तो रात बीत जायेगी लेकिन उल्टा नक चढा हुआ तो ना खुद चैन से बैठेगा, ना दूसरे को बैठने देगा। सोने की बात तो गयी तेल लेने।
ट्रेन चलने से चार घन्टे पहले चार्ट बनकर तैयार हो जाता है लेकिन ऑनलाइन दिखने में केवल तीन घन्टे पहले ही पता लग पाता है। मैं अपनी आदत अनुसार ट्रेन के चलने के वास्तविक समय से दो घन्टे पहले घर से निकल जाता हूँ इसलिये घर छोडने से पहले नेट पर अपनी सीट की वर्तमान स्थिति देखी। अब मेरी सीट पक्की हो चुकी थी। मेरी सीट S4 में थी। अब रात सोते हुए बीतेगी। अब किसी किस्म की चिन्ता नहीं है। सुबह आँख खुलेगी तो महोबा या खजुराहो पहुँच ही जाऊँगा। कल पूरे दिन घूमने में बीतेगा इसलिये नहाने का समय मिलना मुश्किल है। अत: घर से चलने से पहले नहा धोकर चलना ही बढिया रहेगा। नहाधोकर रेलवे स्टेशन जाने के लिये चल दिया। घर से करीब डेढ किमी तक पैदल ही जाना पडता है। तब जाकर आनन्द विहार व सराय काले खाँ/निजामुददीन तक सीधी बस मिलती है।
सीधी बस मिलने से पैसे की बचत होती है साथ ही धक्का-मुक्की से राहत भी मिलती है। इसलिये सीधी बस के इन्तजार में आधा घन्टा भी खडा होना पडे तो चिन्ता की कोई बात नहीं है। जैसे ही लोनी मोड पर अम्बेडकर कालेज के सामने वाले बस स्टॉप पर पहुँचा तो 210 नम्बर की बस आती दिखायी दी। यह बस सराय काले खाँ तक जाती है। सराय काले खाँ बस टर्मिनल का नाम है जबकि वहाँ से 200 मीटर दूरी पर निजामुददीन रेलवे स्टॆशन है शायद अगले साल के अन्त तक हमारे घर के नजदीक से मैट्रो रेल भी आरम्भ हो जायेगी। हमारे घर के नजदीक से जो मैट्रो लाइन बनने वाली है। वह आनन्द विहार, निजामुददीन होकर मेडिकल, धौला कुआँ, पंजाबी बाग, आजादपुर होते हुए मुकुन्दपुर बाइपास तक जायेगी। यह दिल्ली की सबसे लम्बी मैट्रो लाइन होगी। उसके बाद समय व मुसीबत में कमी हो जायेगी।
इस बस में मात्र 15 रु का टिकट लगा। वैसे भी दिल्ली की साधारण बसों में सबसे ज्यादा किराया 15 रु ही लगता है सबसे लम्बी बस सेवा चाहे 50 किमी से ज्यादा की दूरी ही क्यों ना तय करती हो। दिल्ली में रिंग रोड पर चलने वाली बाहरी मुद्रिका नाम की बस सेवा एक चक्कर में करीब 90 किमी से ज्यादा चलती है उसका अधिकतम किराया भी 15 रु ही है। AC बस का किराया 25 रु है। इसी तरह एक दिन का बस पास मात्र 40/50 रु में बनता है। जिसमें दिल्ली परिवहन निगम की बसों में दिनभर यात्रा की जा सकती है। दिल्ली परिवहन निगम की कुछ विशेष बसों में यह पास मान्य नहीं होता है जैसे हवाई अडडा जाने वाली बस, जिसका किराया ही 100 रु है। दिल्ली से बाहर जैसे गाजियाबाद या फ़रीदाबाद जाने वाली बसों में पास मान्य नहीं होता है। जिस बस में मैं सवार था उसने लगभग घन्टॆ भर में सराय काले खाँ बस अडडे के सामने उतार दिया।
मैं बस अडडे की ओर जा रहा था कि मेरी नजर एक ऐसी युवती पर पडी जिसकी काया देख नजरे हटाने का मन नहीं कर रहा था। वह युवती मेरे सामने ही चल रही थी। थोडी देर उसे निहारने के बाद उससे आगे निकलता हुआ रेलवे स्टेशन जा पहुँचा। ट्रेन चलने में आधा घन्टा बाकि था अभी रात के 8 भी नहीं बजे थे। थोडी देर में ट्रेन प्लेटफ़ार्म पर आ गयी। ट्रेन के रुकते ही उसमें घुसने के लिये मारामारी मच गयी। जब खिडकी खाली हुई तो अपुन भी डिब्बे में दाखिल हुए। डिब्बे में घुसते ही पता लग गया कि इसमें सीटों की संख्या से कही ज्यादा यात्री घुसे हुए है।  
मैं अपनी सीट पर पहुँचा तो देखा कि नीचे सही से खडे होने की जगह भी मुश्किल से बची है। मेरी सीट साइड में ऊपर वाली थी। मेरे नीचे जो सीट थी, उसमें RAC के दो बन्दे थे लेकिन उस सीट पर चार लोग बैठे थे। थोडी देर बाद पता लगा कि नीचे वाली सीट पर बैठे लोग एक ही परिवार से है उन लोगों के पास दो सीटे है जबकि वे कुल 6 लोग है। वह परिवार अपना जरुरत मन्द का अधिकतर सामान लेकर आया था। जिसमें कई शूटकेस के अलावा लोहे का एक बडा सा बक्सा भी था। बाद में पता लगा कि ये लोग सीजनल कार्य करने वाले है जो कुछ माह दिल्ली में रहते है तो कुछ माह अपने गाँव वापिस लौट आते है। सामान इनके लिये जी का जंजाल बन जाता है।
लोहे के बडे बाक्स के आने-जाने वाली जगह में रखने के कारण आने-जाने के लिये बिल्कुल भी जगह नहीं थी। जिस कारण लोगों को आने-जाने में बडी मुश्किल आ रही थी। वह बाक्स सीट के नीचे भी नही आ पा रहा था। पास बैठी कई सवारियों ने उस पर आपत्ति भी जतायी। लेकिन अब बाक्स को रखे तो कहाँ रखे। मैंने उस परिवार को कहा कि जब ट्रेन चल पडे तो इस बाक्स को सामने वाली सीटों के बीच फ़ैला देना जिससे कि वहाँ बैठी सवारियाँ उस पर अपना पैर फ़ैला कर बैठ जाये।
मेरी बात पर बक्से वाली ने तो कुछ नहीं कहा लेकिन सामने वाली सीट पर विराजमान एक महाशय को मेरी सलाह कुछ ज्यादा ही कडुवी लगी। उसने तुरन्त जवाब दिया। लोगों को सलाह देने के अलावा कुछ काम नहीं होता। उसकी बात सुनकर अब मेरी बोलती बन्द हो चुकी थी। मैं मौके की तलाश में चुपचाप बैठा रहा। लगभग 10-12 मिनट बाद मुझे चौका मारने का मौका मिल गया। मेरी बोलती बन्द करने वाला बन्दा काफ़ी देर से ज्यादा चपर-चपर कर रहा था।
उसने एक ऐसी बात बोल ही दी कि जिसकी बेसब्री से प्रतीक्षा थी। वह देश के वर्तमान हालत पर बोल रहा था। उसकी बातों से लग रहा था कि वह देशभक्त तो बिल्कुल नहीं है। जब उसने कहा कि इस देश के फ़ौजी दुश्मनों का सामना करने से डरते है तो मैंने तुरन्त कहा। अरे हमें तो पता ही नहीं था कि अभी तक दुश्मन देशों के रहमो कर्म पर यह देश सुरक्षित है। जब तक हमारे देश में देशद्रोही, अलगाववादी दल्ले जिन्दा है तब तक सैनिकों की शहादत पर सवाल उठते रहेंगे। मेरी बात सुनकर उसको जैसे साँप सूंघ गया। मेरी बात का लगभग सभी लोगों ने समर्थन किया। कुछ देर तक शांति छायी रही। मैं काफ़ी देर तक उसे देखता रहा कि अबकी बार अगर यह फ़िर से बोला तो इस साले की बोलती फ़िर से बन्द करनी पडेगी लेकिन वो कायर नहीं बोला।
मैंने घन्टा भर बीतने के बाद सोने की तैयारी कर दी। नीचे वाली सीट पर बैठे बन्दे से कहा कि जरा लाइट बन्द कर दे। ऊपर वाली सीट पर लाईट बहुत तंग करती है। तीन सीट वाली लाइन में तो सबसे ऊपर सही से बैठा भी नहीं जाता है। आधे घन्टे बाद टिकट निरीक्षक आया। टिकट मोबाइल में था लेकिन मोबाइल देखने के बाद भी, वह पहचान पत्र दिखाने को कहता इसलिये मैंने पहले ही आधार कार्ड निकाल लिया था। आधार कार्ड देखने के बाद वह आगे चलता बना। टीटी के जाने के बाद सोने की कोशिश करने लगा। नीन्द देर से ही आ पायी। रात में दो बार आँखे खुली। लेकिन ऊपर की सीट पर होने के कारण पता नहीं लग पाया कि कहाँ है? इसलिये फ़िर से सो जाता।
जब दिन का उजाला हो गया तो ट्रेन के किसी स्टेशन पर रुकने की प्रतीक्षा करने लगा। जैसे ही ट्रेन रुकी तो ऊपर से नीचे उतर गया। ट्रेन खडी थी। इसलिये बाहर आकर देखा कि कौन सा स्टेशन है? महोबा। अरे अभी महोबा पहुँचे है। इसका अर्थ है कि ट्रेन अपने समय से देरी से चल रही है। यहाँ ट्रेन काफ़ी देर खडी रही। मैं जिस डिब्बे में था उसके आगे एक डिब्बा छोडकर जनरल डिब्बा लगा हुआ था। बीच में जनरल डिब्बा क्यों लगाया गया है? समझ नहीं पाया। मन में विचार आया कि चलो ट्रेन के पहले डिब्बे तक घूम कर आता हूँ।
मैं अभी कुछ मीटर आगे गया था कि ट्रेन ने चलने के लिये हार्न बजा दिया। लेकिन यहाँ हार्न उल्टी दिशा में बजा था। इसका अर्थ हुआ कि ट्रेन अब उल्टी दिशा में जायेगी। महोबा जंक्सन से खजुराहो की लाइन अलग होती है। दिल्ली से जाने वाली गाडियों को महोबा से उल्टा चलना होता है। ट्रेन चल पडी। लेकिन यह क्या हुआ? जहाँ मैं खडा था वहाँ के डिब्बे तो वैसे ही खडे थे जबकि मेरा वाला डिब्बा उल्टी दिशा में चल दिया था। मैं भाग कर अपने डिब्बे में बैठ गया।
यदि मैं तीन चार डिब्बे पार गया होता तो गजब हो जाता। मैं इस चक्कर में खडा रहता कि ट्रेन तो अभी चली ही नहीं है जबकि मेरी ट्रेन वहाँ से जा चुकी होती। दिल्ली से खजुराहो आने वाली ट्रेन में आधे डिब्बे खजुराहो आते है जबकि आधे डिब्बे आगे चले जाते है। आज अच्छा दिल्लीवाला (खुजली वाला जिसे बहका दे वैसा उल्लू) बन जाता यदि मैं आगे के डिब्बे तक घूमने चला जाता तो? लेकिन अन्त भला तो सब भला। महोबा से वापिस आते समय ट्रेन ने कुछ आगे बढते ही झांसी वाली लाइन छोड दी। दो छोटी सी पहाडियों के बीच से होकर हमारी ट्रेन खजुराहो के लिये चलती रही। खजुराहो से पहले रेलवे लाइन किनारे पानी की एक विशाल झील दिखायी दी। जैसे ही खजुराहो आया तो सभी यात्रियों ने उतरना आरम्भ कर दिया।
खजुराहो स्टेशन पर उतरते ही कई फ़ोटो लिये। स्टेशन के बाहर आते ही बहुत सारे ऑटो वाले खडे रहते है। खजुराहो की आवाज लगाने वाले ऑटो में सवार हो गया। एक सवारी ने किराया पूछा तो उसने कहा 15 रु। सवारी बोली 10 रु लगते है। कोई पहली बार आया हूँ।  ऑटो वाला 15 से कम पर नहीं माना। कुछ देर में ऑटो भर गया। मैंने किनारे वाली सीट पर कब्जा जमाया हुआ था। फ़टाफ़ट ढेर सारे ऑटो भरते जा रहे थे और वहाँ से चलते जा रहे थे। एक बस भी खडी थी। कुछ देर में बस भी भर जायेगी तो खजुराहो जायेगी। ऑटो वाला हमें लेकर चल दिया। रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते समय ऑटो वाले ने 10 रु टैक्स चुकाया। यह शायद पार्किंग शुल्क रहा होगा।
स्टेशन से बाहर आने के बाहर 300-400 मीटर ही चले होंगे कि एक बडी सडक आ गयी। यह सडक खजुराहो जायेगी। वैसे अभी तक ट्रेन सिर्फ़ खजुराहो तक ही आती है लेकिन आगामी वर्षों में यह लाइन आगे भी जायेगी। आगे अभी शायद कुछ किमी तक ही लाइन बनी है। खजुराहो का रेलवे फ़ाटक पार करने के बाद खजुराहो शहर की ओर चलने लगे। सडक किनारे एक जैसे पेड अधिक संख्या में थे। यह मुझे बाद में पता लगा कि वे महुआ के पेड है। महुआ के पेड के नीचे कई जगह बच्चे व बडे महुआ के छोटे-छोटे फ़ल इकटठा करते हुए मिले। महुआ का फ़ल खाने में बुरा नहीं लगता है। मैंने पहली बार खाया तो स्वाद कुछ अजीब सा लगा। जिसे ना स्वादिष्ट कहना चाहूँगा ना बुरा। स्थानीय लोग इसकी मिठाई व सब्जी भी बनाते है।
महुआ के पेड काफ़ी बडे होते है। मजबूत होते है कि नहीं यह तो नहीं पता। लेकिन छायादार जरुर होते है। रेलवे स्टेशन से खजुराहो की दूरी लगभग 7-8 किमी है। 20 मिनट में खजुराहो बस अडडे के सामन पहुँच गये। बस अडडा एकदम सुनसान पडा हुआ था। कुछ सवारियाँ वही उतर गयी जबकि चार सवारी वही बैठी रही। उनके साथ मैं भी बैठा रहा। खजुराहो का मुख्य आकर्षण पश्चिमी मन्दिर समूह है। जब ऑटो इसके करीब से होकर निकलने लगा तो मैंने कहा, ऑटो वाले यह बताओ कि पूरा खजुराहो घूमा सकते हो। ऑटो वाला बोला पहले ये दोनों सवारी छोड दूँ। उसके बाद चाय की दुकान पर आपसे बात करुँगा।
उन सवारी को छोडने के बाद ऑटो वाला चाय की एक दुकान के सामने पहुँच गया। जब उसने दो चाय के लिये कहा तो मैंने कहा दूसरी चाय किसके लिये? आपके लिये। मैं चाय नहीं पीता। कुछ मटठी आदि तो लोगे। नहीं मैं अपने साथ लडडू व मटठी लेकर आया हूँ। तुम अपना किराया बताओ। खजुराहो के सभी मन्दिर दिखाने है उनमें जैन मन्दिर भी है। ऑटो वाला बोला 350 रु दे देना। कितना समय लगेगा। वह बोला सभी को देखने में कम से कम 4 घन्टे तो लगेंगे। ठीक है अभी सवा सात बजे है। 10 बजे मुझे स्टेशन के लिये छोड देना। 250 रु में सौदा मंजूर है तो बताओ। वह बोला रेलवे स्टेशन तक नहीं छोडूँगा। ठीक है लेकिन बस अडडे तक छोडना होगा। वहाँ से 10 रु में दूसरा ऑटो मिल जायेगा।
उसने चाय पी ली और मैंने लडडू व मटठी खा ली तो उसने मुझे पश्चिम मन्दिर समूह की ओर लेकर आ गया। मन्दिर के बराबर में ही एक विशाल तालाब दिखायी दिया। जिसमें बहुत सारे कमल के फ़ूल दिखायी दिये। कमल का फ़ूल भारत का राष्ट्रीय फ़ूल है। यह भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की पार्टी का चुनाव चिन्ह भी है। टिकट खिडकी के सामने पहुँचाकर कहा कि अब आप यहाँ से टिकट लेकर अन्दर चले जाओ। मैं टिकट लेने लगा तो टिकट बाबू ने 100 रु का नोट खोलने से मना कर दिया। टिकट का दाम मात्र 10 रु था। ऑटो वाले ने 50 रु दिये। उसके बाद मैंने खजुराहो के सेक्सी मन्दिर कहे जाने वाले पश्चिमी मन्दिर समूह को देखने के लिये प्रवेश किया। अगले लेख में इस समूह के सभी मन्दिरों के फ़ोटो दिखाये जायेंगे। (यात्रा जारी है।)




























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