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शनिवार, 3 दिसंबर 2011

LARGEST PINE TREE TRUNK IN ASIA एशिया का सबसे मोटा चीड/देवदार पेड/वृक्ष


   इस यात्रा का पहला भाग यहाँ है।                               इस यात्रा का इस पोस्ट से पहला भाग यहाँ है।

एशिया के सबसे लम्बे पेड की समाधी देखने के बाद आज रात तक चकराता से आगे पौंटा साहिब के पास तक जाने का इरादा था। लेकिन यही(लम्बे पेड के पास) शाम के चार बजने वाले थे, जिस कारण चकराता पहुँचना सम्भव नहीं दिख रहा था। लम्बे पेड के पास मुश्किल से 15-20 मिनट रुकने के बाद हम अपने आगे से सफ़र पर चल दिये थे। हम अभी कोई 8-10 किमी ही गये होंगे कि तभी एक बोर्ड नजर आया जिस पर कुछ लिखा था। बाइक रोकने के बाद देखा तो उस पर लिखा था, हनोल देवता प्राचीन शिव मंदिर। ये मन्दिर कोई 1500-1600 वर्ष पुराना बना हुआ है। इसके बारे में एक विशेष बात और पता चली कि उतराखण्ड सरकार इसको यमुनौत्री, गंगौत्री, केदारनाथ व बद्रीनाथ के साथ पाँचवे धाम के रुप में अगले सीजन यानि 2012 में प्रचारित करने जा रही है। यह मन्दिर सडक से सौ मी की दूरी पर ही है, सडक के साथ ही एक विश्राम भवन भी बना हुआ है जो कि यहाँ आने वाले लोगों के बहुत काम का है अगर कोई यहाँ आना चाहता है तो यहाँ तक आने व रुकने में कोई समस्या नहीं है। मैंने दूर से भगवान जी को जाट देवता का नमस्कार किया व फ़िर कभी आमने-सामने होने की कह आगे की ओर चल दिया। आप भी सोच रहे होंगे कि इस मन्दिर को क्यों छोडा? बताता हूँ अगर मैंने इसे भी देख लिया होता तो अगली बार यहाँ इतनी दूर आने का कोई कारण नहीं रहता।  
ये है भारत का सबसे मोटा चीड का पेड।

रविवार, 11 सितंबर 2011

ROCK EDICT ASHOKA, KALSI सम्राट अशोक का शिलालेख, कालसी


ये रहा भारत का राजकीय प्रतीक/चिन्ह चार शेर।

   ये नेट से लिया गया है।

कालसी अशोक का शिलालेख देखने की इच्छा बहुत दिनों से थी, जो आज पूरी होने जा रही थी। एक बार चार साल पहले भी इस जगह के बहुत पास से होकर जा चुका हूँ, महाराष्ट्र वाले दोस्त अपनी सूमों में तथा मैं अपनी इसी नीली परी पर सवार था। चार धाम के लिये गये थे, उसी सफ़र में यमुनोत्री के बाद गंगोत्री जाते समय डबरानी के पास पहाड खिसक जाने पर हम गंगनानी के गर्मागर्म पानी में नहा धोकर जब वापिस आ रहे थे तो भटवाडी से पहले भी सडक खिसक कर गंगा में समाती हुई देखी है, सडक पर एक सीमेंट से भरा हुआ ट्रक भी उसके साथ-साथ मैंने पानी में जाता हुआ देखा था। सडक खिसकने के बाद सिर्फ़ इतना मार्ग बचा था जिसपर पैदल यात्री या बाइक ही जा सकती थी। मेरी बाइक तो निकल गयी थी महाराष्ट्र वाले दोस्तों की सूमो तीन दिन बाद जाकर निकल पायी थी। वो सफ़र फ़िर कभी?
यहाँ से यमुना घाटी का प्यारा सा नजरा।

सोमवार, 5 सितंबर 2011

CHAKRATA चकराता (TIGER FALL टाइगर फ़ाल)


ये है चकराता।


ये हमारी यात्रा श्रीखण्ड महादेव भाग 11 से वापसी में यहाँ चकराता तक आ पहुँची है। इस यात्रा को शुरु से पढने के लिये यहाँ क्लिक करना होगा फ़िर लीजिए इस यात्रा का पूरा आनन्द। सहिया नामक जगह पर हम लोग रात में रुके थे। यह ठीक-ठाक कस्बा है, जहाँ हर तरह की सुविधा उचित कीमत पर मिल जाती है, ये जगह चकराता से सिर्फ़ 22 किलोमीटर दूरी पर है। सुबह ठीक 8 बजे नहा धो कर चकराता का विश्व प्रसिद्ध झरना, जो कि टाइगर-फ़ॉल के नाम से जाना जाता है को देखने के लिये चल दिये थे, वापसी भी इसी मार्ग से आना था, अत: अपने बैग व लठ भी यहीं पर छोड दिये थे, जब वापसी इसी मार्ग से है तो बेवजह 80 किलोमीटर सामान को क्यों ढोया जाए? जब यहाँ से चले तो मौसम के हालात कुछ ठीक नहीं लग रहे थे, अत: अपने-अपने रैन-कोट पहन लिये थे, यहाँ सडक बहुत ही अच्छी थी जिससे सफ़र का पता ही नहीं चला।

ये है चकराता की साफ़ व शान्त सडक।

रविवार, 28 अगस्त 2011

श्रीखण्ड महादेव वापसी (रामपुर-रोहडू-चकराता) भाग 10

रामपुर में ये दूरी का बोर्ड एक दीवार पर बना हुआ था।

रामपुर में मजे से सारी रात पंखे के नीचे गुजारने के बाद आज बारी थी, घर की ओर जाने की दिल्ली से रामपुर तक आने के लिये शिमला होते हुए आना होता है, व वापसी भी शिमला होते हुए ही जाया जाता है, लेकिन मैं ठहरा कुछ अलग खोपडी का इंसान अरे जब वाहन अपना, चालक हम स्वयं तो फ़िर क्यों बसों की सवारियों की तरह लाचार होकर, उन मार्गों से ही वापस जाया जाये जहाँ से हम आये थे जबकि हमारे पास दूसरे विकल्प भी हो तो। तो जी मेरी इस मार्ग से जाने की राय तीनों ने मानी, वैसे दो तो बेचारे हमारे साथ मौज-मस्ती के लिये थे, मार्ग से उन्हे कोई लेना देना नही था। मार्ग कि चिंता तो दो को ही थी, वो भी कुछ खास नहीं थी। हमने यहाँ आने से पहले नक्शा खोल के भी देख लिया था।
रामपुर में ये पुल नदी के दोनों ओर शहर में आने जाने के लिये बना हुआ है।

शाम को तो सब नहाये थे ही फ़िर भी सब सुबह नहा धो कर तैयार हो गये थे। समय वही पुराना 7 बजने वाले थे, जब यहाँ से चले तो सामने ही एक दीवार पर दूरी दर्शाने वाला बोर्ड था। रामपुर काफ़ी बडा शहर है, अत: हमने यहाँ से ही अपनी बाइक में पेट्रोल लेना उचित समझा, तो जी हम चल दिये पेट्रोल पम्प की तलाश में, ये दो-तीन किलोमीटर का शहर पार हो गया पर हमें पम्प नहीं मिला, जब एक जीप वाले से पूछा कि भाई पेट्रोल पम्प कहाँ है? वो उल्लू की पूँछ पम्प तो बताने से रहा बल्कि हमारे लठ देखकर बोला कि पहले गन्ना खिलाओ तब बताऊँगा कि पेट्रोल पम्प कहाँ है, जब उसके मुँह के आगे लठ अडा दिये तो उसकी आँखे फ़टी की फ़टी रह गयी कि गन्ने लठ कैसे हो गये। खैर हमें जब पम्प नहीं मिला तो हम वापस शिमला की ओर चल दिये, रामपुर से 10 किलोमीटर पहले एक पम्प आता है। यहाँ से अपनी बाइक की टंकी फ़ुल करा कर आगे की यात्रा पर चल दिये।

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