इस यात्रा का पहला भाग यहाँ है। इस यात्रा का इस पोस्ट से पहला भाग यहाँ है।
एशिया के सबसे लम्बे पेड की समाधी देखने के बाद आज रात तक चकराता से आगे पौंटा साहिब के पास तक जाने का इरादा था। लेकिन यही(लम्बे पेड के पास) शाम के चार बजने वाले थे, जिस कारण चकराता पहुँचना सम्भव नहीं दिख रहा था। लम्बे पेड के पास मुश्किल से 15-20 मिनट रुकने के बाद हम अपने आगे से सफ़र पर चल दिये थे। हम अभी कोई 8-10 किमी ही गये होंगे कि तभी एक बोर्ड नजर आया जिस पर कुछ लिखा था। बाइक रोकने के बाद देखा तो उस पर लिखा था, हनोल देवता प्राचीन शिव मंदिर। ये मन्दिर कोई 1500-1600 वर्ष पुराना बना हुआ है। इसके बारे में एक विशेष बात और पता चली कि उतराखण्ड सरकार इसको यमुनौत्री, गंगौत्री, केदारनाथ व बद्रीनाथ के साथ पाँचवे धाम के रुप में अगले सीजन यानि 2012 में प्रचारित करने जा रही है। यह मन्दिर सडक से सौ मी की दूरी पर ही है, सडक के साथ ही एक विश्राम भवन भी बना हुआ है जो कि यहाँ आने वाले लोगों के बहुत काम का है अगर कोई यहाँ आना चाहता है तो यहाँ तक आने व रुकने में कोई समस्या नहीं है। मैंने दूर से भगवान जी को जाट देवता का नमस्कार किया व फ़िर कभी आमने-सामने होने की कह आगे की ओर चल दिया। आप भी सोच रहे होंगे कि इस मन्दिर को क्यों छोडा? बताता हूँ अगर मैंने इसे भी देख लिया होता तो अगली बार यहाँ इतनी दूर आने का कोई कारण नहीं रहता।