हर की दून-
सुबह दस बजे से चलते-चलते दोपहर के एक बजने वाले थे, अपुन को तो कुछ नहीं हुआ क्योंकि पानी जगह-जगह उपलब्ध था। लेकिन सांगवान को चाय की हुडक लगी थी मार्ग में एक दो जगह इस बारे में बात भी होती रही कि अगर चाय की इच्छा हुई तो बेहिचक बोल देना, मेरे चक्कर में मत रहना। एक जगह तो मार्ग पूरा खिसक कर नदी में समाया हुआ था कुछ पहले किसी ऊपर के मार्ग से आना-जाना किया हुआ था। यहाँ मैं तो एक छ्लांग लगाकर खाई में कूद गया लेकिन जब सांगवान की बात आयी तो भाई ने सबसे पहले तो अपना बैग फ़ैका था उसके बाद जाकर सम्भलते हुए आराम से उस खाई में उतर गये थे। इसी खाई में वापसी में तो चढने की कोशिश भी नहीं की थी, किसी और पगडंडी से चढ गये थे। यहाँ खाई से आगे बढने पर बडा ही खतरनाक मार्ग हो चला था जिसके कारण ऊपर से पत्थर गिरने का भय था। खैर बिना किसी परेशानी के ये खाई पार हो गयी थी।
सुबह दस बजे से चलते-चलते दोपहर के एक बजने वाले थे, अपुन को तो कुछ नहीं हुआ क्योंकि पानी जगह-जगह उपलब्ध था। लेकिन सांगवान को चाय की हुडक लगी थी मार्ग में एक दो जगह इस बारे में बात भी होती रही कि अगर चाय की इच्छा हुई तो बेहिचक बोल देना, मेरे चक्कर में मत रहना। एक जगह तो मार्ग पूरा खिसक कर नदी में समाया हुआ था कुछ पहले किसी ऊपर के मार्ग से आना-जाना किया हुआ था। यहाँ मैं तो एक छ्लांग लगाकर खाई में कूद गया लेकिन जब सांगवान की बात आयी तो भाई ने सबसे पहले तो अपना बैग फ़ैका था उसके बाद जाकर सम्भलते हुए आराम से उस खाई में उतर गये थे। इसी खाई में वापसी में तो चढने की कोशिश भी नहीं की थी, किसी और पगडंडी से चढ गये थे। यहाँ खाई से आगे बढने पर बडा ही खतरनाक मार्ग हो चला था जिसके कारण ऊपर से पत्थर गिरने का भय था। खैर बिना किसी परेशानी के ये खाई पार हो गयी थी।