KANGRA VELLY लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
KANGRA VELLY लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 23 नवंबर 2013

Nagarkot/ Kangra Fort नगरकोट कांगड़ा दुर्ग किला

करेरी-कांगड़ा-धर्मशाला यात्रा के लिंक नीचे दिये है।

01- आओ करेरी झील धर्मशाला देखने चले।
02- धर्मशाला से करेरी गाँव की ट्रेकिंग भयंकर बारिश के बीच।
03- करेरी गाँव के शानदार नजारे, और भूत बंगला
04- धर्मशाला की ड़ल लेक।
05- धर्मशाला के चाय बागान के बीच यादगार घुमक्कड़ी।
06- कुनाल पत्थरी माता मन्दिर, शक्ति पीठ माता के 52 पीठ में से एक।
07- नगरकोट कांगड़ा का मजबूत दुर्ग / किला
08- मैक्लोड़गंज के भागसूनाग स्विमिंग पुल के ठन्ड़े पानी में स्नान  Back to Delhi

KARERI-KANGRA-DHARAMSHALA-07


कुनाल पत्थरी माता मन्दिर से वापसी में बस में सवार होकर कांगड़ा का किला देखने के लिये चल दिये। धर्मशाला से कांगड़ा तक लगातार ढ़लान है जिस कारण वाहनों को लगातार ब्रेक मारने पड़ते है। यहाँ कांगड़ा जाते समय सड़क किनारे उल्टे हाथ (दिल्ली से जाओगे तो सीधे हाथ) आयेगा। जिस बस में बैठे थे उस बस के ब्रेक कुछ ज्यादा चू-चू, चिरड़-चिरड़ कर रहे थे कि बस वाले को हार्न बजाने की जरुरत ही नहीं थी। हमारी बस कांगड़ा में उस तिराहे पर पहुँची जहाँ पठानकोट से मन्डी वाला मार्ग धर्मशाला वाले मार्ग में मिलता है। हमारी बस यहाँ काफ़ी देर खडी रही कि तभी मनु भाई की नजर सामने वाली दुकान पर गयी, उस दुकान में गर्मागर्म समौसे तले जा रहे थे। मनु बस से नीचे उतर कर सबके लिये एक-एक समौसा ले आया। हमने बस में ही गर्म-गर्मा समौसे को चट कर ड़ाला।



शनिवार, 27 अप्रैल 2013

Pathankot-Kangra-Jogindernagar narrow gauge Toy/hill Train पठानकोट-कांगड़ा-जोगिन्द्रनगर की नैरो गेज वाली रेलवे लाइन की यात्रा।

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की बस यात्रा 03                                                SANDEEP PANWAR

नगरोटा सूरियाँ नामक गाँव में बस व छोटी रेल दोनों ही आती है। नगरोटा नाम से हिमाचल में दो जगह है एक का नाम नगरोटा है दूसरे का नाम नगरोटा सूरियाँ है। हमने बस वाले से कहा "देख भाई हमें नगरोटा से छोटी  रेल में बैठकर पालमपुर व बैजनाथ की ओर जाना है। इसलिये हमें ऐसी जगह उतार देना जहाँ से रेलवे स्टेशन नजदीक पड़ता हो। पीर बिन्दली से नगरोटा तक का सफ़र छोटी-मोटी सूखी सी पहाडियाँ के बीच होकर किया गया था। फ़ोटॊ खेचने के लिये एक भी सीन ऐसा नहीं आया जिसका फ़ोटॊ लेना का मन किया हो। जैसे ही नगरोटा में बस दाखिल हुई तो हमने एक बार फ़िर बस कंड़क्टर को याद दिलाया कि भूल मत जाना। कंड़क्टर भी हमारी तरह मस्त था बोला कि आपको तसल्ली बक्स उतार कर स्टॆशन वाला मार्ग बताकर आगे जायेंगे। थोड़ा सा आगे चलते ही कंड़क्टर ने हमें खिड़की पर पहुँचने को कहा। जैसे ही बस रुकी तो देखा कि हमारी बस एक पुल के ऊपर खड़ी है, मैंने सोचा कि यहाँ कोई नदी-नाला होगा, जिसका पुल यहाँ बना हुआ है। जब कंड़क्टर ने कहा कि यह पुल रेलवे लाईन के ऊपर बना हुआ है। आप इस पुल के नीचे उतर कर उल्टे हाथ आधे किमी तक पटरी के साथ-साथ चले जाना आपको स्टेशन मिल जायेगा।

जाट देवता कांगड़ा नैरो गेज की यात्रा पर है।

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

Masroor- Rock cut Temples मशरुर- शैल मूर्तिकला के 15 मन्दिरों का समूह

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की बस यात्रा 02                                                SANDEEP PANWAR

मशरुर जाने वाली बस ने पीर बिन्दली से 5-6 मिनट में ही हमें मशरुर पहुँचा दिया। मन्दिर से आधा किमी पहले बने बस सटैंड़ पर बस ने हमें उतार दिया था। इसके बाद बस वहाँ से मुड़कर वापिस चली गयी। हमने मन्दिर की ओर चलना शुरु कर दिया। कुछ दूर चलते ही सड़क ऊपर जाती हुई मुड़ जाती है। हमने समझा कि सड़क एक चक्कर लगाकर इस पहाड़ पर आयेगी। इसलिये हम सड़क छोड़कर सीधे पहाड़ पर चढ़ गये। पहाड़ पर चढ़्ते ही हमें एक गाँव जैसा माहौल दिखायी दिया। वहाँ कुछ लोग खेतों में कार्य कर रहे थे। हम दोनों उनके खेतों से होते हुए उनके गाँव में पहुँच गये। गाँव में जाकर एक आदमी से पता किया कि मन्दिर कहाँ है? उन्होंने कहा कि इन घरो के पीछे जो स्कूल है उसके पार करते ही मन्दिर है। मन्दिर के पास रहने वाले किसान जाट बिरादरी से सम्बन्ध रखते है। यहाँ आसपास बहुत ज्यादा आबादी तो नजर नहीं आ रही थी फ़िर इतनी कम आबादी के लिये स्कूल बनाना समझ नहीं आ रहा था। जैसे ही स्कूल पार किया तो शैल मन्दिर के अवशेष दिखायी देन लगे।

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

Bus journey Chamba to (Kangra) Masroor चम्बा से कांगड़ा के मशरुर तक की बस यात्रा

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की बस यात्रा 02                                                SANDEEP PANWAR

चम्बा में गाड़ी वालों ने सही समय पर बता दिया था कि वे दिल्ली वापिस जा रहे है। जिससे हमें अपना यात्रा कार्यक्रम बदलने का समय मिल गया। मैंने और विपिन ने कांगड़ा की छोटी रेल व करसोग घाटी सहित कुछ अन्य स्थल देखने की योजना बना ड़ाली। मनु भी हमारे साथ चलने को कह रहा था लेकिन मनु के पास भारी बैग था जिस कारण हमने मनु को भी दिल्ली भेज दिया। विधान व उसके दोस्त सिर्फ़ मणिमहेश तक के लिये ही आये थे। हमारे यात्रा कार्यक्रम बदलने का सबसे ज्यादा प्रभाव बाइक वालों पर हुआ। लेकिन कहते है जो हुआ अच्छा ही हुआ। मराठे दो बाइक से यहाँ तक चले आये थे। जबकि उनके पास एक बाइक बजाज की मात्र 100 cc की प्लेटिना थी। मैंने पहली बार बाइक देखते ही बोल दिया था कि यह बाइक दो सवारी पर पूरी यात्रा नहीं करवा सकती है। हमारी यात्रा बदलने पर संतोष तिड़के ने कहा अब हम कहाँ जाये? मैंने अपनी तरफ़ से कोई सलाह देने से पहले उनके मन की लेने की सोची थी। मराठे बोले कि उन्हे बद्रीनाथ जाना है। अरे वाह, बद्रीनाथ जाने का जोश मणिमहेश यात्रा के बाद भी बना हुआ था। मैंने संतोष को अम्बाला तक इसी मार्ग से वापिस जाने की सलाह दी। अम्बाला के बाद मराठे सहारनपुर देहरादून होकर बद्रीनाथ के लिये हमारे चलने के कुछ देर बाद ही प्रस्थान कर गये थे।


रविवार, 14 अप्रैल 2013

kangra vally to Dalhousie कांगड़ा घाटी से ड़लहौजी मार्ग पर सड़क पर बिखरे मिले खूब सारे पके-पके आम।

हिमाचल की स्कार्पियो-बस वाली यात्रा-05                                                                 SANDEEP PANWAR
ज्वाला जी मन्दिर में जलती हुई ज्वाला रुपी ज्योत के दर्शन कर, वापिस उसी स्थान पर आ गये, जहाँ मराठों की बाइक पार्किंग में खड़ी थी। अब आगे की यात्रा लगभग साथ ही करनी थी इसलिये हम भी उनके साथ ही गाड़ी में चलते रहे। कुछ आगे जाने पर मनु-विधान-विपिन- व संदीप को बाइक पर यात्रा करने की सनक सवार हो गयी। आगे जाकर बाइक वालों को रुकवाकर गाड़ी में बैठाया गया। अब हम चारों ने बाइक पर कब्जा जमा लिया। दो दिन से गाड़ी में अन्दर घुसकर बैठे थे इसलिये घुटन सी महसूस होने लगी थी। बाइक चलाने के दो महारथी बाइक चलाने लगे, मेरे पीछे विपिन बाइक का लगभग अनाड़ी सवार था जबकि मनु के पीछे बाइक चालक विधान सवार हो चुका था। हमने लगभग 100 किमी की बाइक यात्रा उस दिन की होगी। बाइक चलाने के लिये यह पठानकोट-मंड़ी वाला हाईवे पहाड़ पर सर्वोत्तम मार्ग है। इस मार्ग के किनारे पर गहरी खाई कभी कभार ही आती है। इस सडक पर अंधे मोड़ भी मुश्किल से ही दिखाये देते है। ज्यादा ऊँचा नीचा भी नहीं होता कि अब चढ़ाई आयी अब उतराई। इतना कुछ होने के बाद भी हरियाली के मामले में यह किसी भी अन्य पहाड़ी मार्ग से कम सुन्दर दिखायी नहीं देता है। चूंकि मैंने इस मार्ग पर पहले भी अपनी बाइक से यात्रा की हुई है इसलिये मुझे इस मार्ग के बारे में काफ़ी मालूम था।

बाथू खड़ नामक स्थल पर पहली बार इतने नजदीक सड़क व रेल आती है।

लगता है रेल अभी नहीं आयेगी

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...