DAULATABAD लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
DAULATABAD लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

Daulatatabad Fort-Aurangabad city-Nashik-Delhi Journey दौलताबाद किले से औरंगाबाद नाशिक होते हुए दिल्ली तक यात्रा वर्णन।

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-16                                                                    SANDEEP PANWAR

वापसी की कहानी भी कम मजेदार नहीं थी हम दोनों ने किला देखने के बाद वहाँ से नीचे उतरना शुरु किया। उतरने से पहले हमने वहाँ चारों कोनों में घूम-घूम कर अपनी तसल्ली कर ली थी कि इससे बढ़िया नजारा और कुछ है या नहीं। यहाँ टॉप से नीचे देखने पर किले की चारदीवारी बहुत पतली लाइन जैसी दिखायी दे रही थी। ऊपर से देखने पर किले की चारदीवारी की संख्या साफ़ दिखायी दे रही थी। नीचे खड़े होकर जो बाते हमारी समझ से बाहर थी वह सब कुछ ऊपर से समझ आ रहा था। हमने धीरे-धीरे वहाँ से नीचे उतरना आरम्भ किया। यहाँ शीर्ष से नीचे उतरने के लिये हमें एक लम्बे घुमावदार मार्ग से होकर ऊपर आना पड़ा था वापसी में भी उसी मार्ग का उपयोग करना पड़ा। इस मार्ग को देखकर मुझे राजस्थान के जोधपुर शहर में गढ़ की याद हो आयी वहाँ भी इसी प्रकार की जोरदार चढ़ाई बनायी गयी है। जोधपुर का मेहरानगढ़ दुर्ग इसके सामने बच्चा लगता है।

शीर्ष पर स्थित झरोखे से शहर

कुछ देर बाद हम अंधेरी सुरंग के मुहाने पर पहुँच चुके थे। यहाँ आकर हमने एक मन्दिर देखा। जिसके बारे में बताया गया कि यह यहाँ के मराठा राजाओं का बनाया हुआ है। गणॆश भगवान की मूर्ति यहाँ होने के कारण इसे गणेश मन्दिर कहा जाता है। गणेश जी को राम-राम कर हम वहाँ से आगे अंधेरी गुफ़ा में घुसने के लिये चल दिये। गुफ़ा में ऊपर आते समय काफ़ी सावधानी बरतते हुए आये थे लेकिन नीचे जाते समय उससे भी ज्यादा सावधान रहना पड़ा। ऊपर चढ़ते समय गिरने से सिर्फ़ घुटने फ़ुटने का अंदेशा रहता है, लेकिन नीचे उतरते समय सब कुछ, मतलब सब कुछ, फ़ुटने का ड़र बना रहता है। धीरे-धीरे हम अंधेरी पार कर नीचे उस पुल तक आ गये, जिसे यहाँ आने का एकमात्र मार्ग माना जाता है। अबकी बार हमने पुल के पास खड़े होकर वहाँ के हालात का जायजा अच्छी तरह से लिया था। लोहे वाले पुल के नीचे एक अन्य पत्थर की सीढियाँ वाला पुल दिखायी दे रहा था जिससे यह समझ आने लगा कि लोहे वाला पुल आजादी के बाद पर्य़टकों की सहायता के लिय बनाया गया होगा। पहले सीढियों वाले पुल पर नीचे उतरकर ऊपर चढ़ते समय हमलावर पर हमला करने में आसानी रहती थी।

परकोटे/महाकोट का नजारा

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

Hill area in (Devagiri/ Daulatatabad Fort near Aurangabad city औरंगाबाद के निकट दौलताबाद/ देवागिरी किले/दुर्ग का पहाड़ी भाग।

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-15                                                                    SANDEEP PANWAR

किले के मैदानी भाग में जहाँ चलने फ़िरने में समस्या नहीं आ रही थी उसके उल्ट यहाँ किले के पहाड़ी भाग की ओर चलते ही साँस फ़ूलने लगी। विशाल कहने लगा संदीप भाई सामने देखने पर लग रहा है कि किले का शीर्ष अभी एक किमी दूरी पर है। मैंने कहा हाँ भाई लगता तो ऐसे ही है बाकि चल के पता लगेगा। हम ऊपर पहाड़ी की ओर चढ़ने लगे। अभी आधा किमी दूरी ही पार नहीं की होगी कि एक बार फ़िर एक दरवाजे से टेढ़े-मेड़े होकर आगे बढ़्ना पड़ा। पहले दरवाजे के पास टेढ़े-मेड़े रास्ते इसलिये बनाये जाते थे ताकि बाहर से आने वाला हमलावर यहाँ आकर कमजोर पड़ जाये। क्योंकि हमलावर कितनी भी बड़ी संख्या में हो, ऐसे दरवाजे से तो उसको पंक्ति बद्ध होकर ही आगे बढ़ना होगा। यही पंक्ति ही कमजोर कड़ी होती थी। जिस पर थोड़े से सैनिक भी बहुत बड़ी सेना पर भारी पड जाते थे। यहाँ कुछ बन्दर/लंगूर बैठे हुए थे। लेकिन हम जैसे वनमानुष को देखकर उन्होंने जाते समय तो कुछ नहीं कहा, आते की बात आते समय बतायी जायेगी।

किले के चारों और ऐसी ही खाई है।

Plain area in (Devagiri/ Daulatatabad Fort near Aurangabad city औरंगाबाद के निकट दौलताबाद/ देवागिरी किले/दुर्ग का मैदानी भाग।

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-14                                                                    SANDEEP PANWAR

दौलताबाद किले के भीतर जाने वाले मुख्य गलियारे के सामने जीप से उतर गये। यहाँ सड़क पार किले में जाने का मार्ग दिखायी दे रहा था। किले में जाने वाले मार्ग के दोनों ओर सूचना पट पर किले के बारे में कुछ जानकारी लिखी हुई थी। हमने वो जानकारी पढ़ने के बाद आगे चलना शुरु किया। मैंने इस लम्बे व ऊँचे किले को दो लेख में विभाजित किया है। पहल लेख में किले के मैदान वाले भाग के बारे में विवरण दिया गया है। दूसरे भाग में किले के पहाड़ी वाले भाग के बारे में बताया गया है। जैसा आपको फ़ोटो में दिखायी दे रहा है कि किले के बाहर ही पार्किंग बनायी गयी है। अपने वाहन से आने वालों के लिये किले से ज्यादा पैदल नहीं चलना पड़ता है। चलिये अब किले के अन्दर प्रवेश करते है। किले के बाहर से जो शानदार नजारा दिखाई दे रहा था, अन्दर जाकर असली व भव्य नजारा देखते है। अभी तक तो फ़ोटो में यह किला देखा था आज जाकर असलियत में यह किला देखना है। इस किले को ही पहले देवागिरी किला कहा जाता था।


चले अन्दर

शानदार पार्क

रविवार, 7 अप्रैल 2013

Ajanta-Ellora caves to Daultabad Fort अजन्ता ऐलौरा गुफ़ा से दौलताबाद किले तक।

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-13                                                                    SANDEEP PANWAR


घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर देखकर आगे चल दिये, यहाँ से बाहर आते ही हमें एक मकबरा जैसा भवन दिखाई दिया। चूंकि यह हमारे पैदल मार्ग के एकदम किनारे पर ही था इसलिये हमने इसे देखे बिना नहीं छोड़ा। इसके पास जाकर पता लगा कि यह मकबरा/समाधी महान मराठा योद्धा वीर छत्रपति शिवाजी के पिताजी शाह जी की है। जिस दिन हम वहाँ थे उससे कुछ दिन पहले से ही यह समाधी मरम्मत कार्य के लिये बन्द की हुई थी। यह देख कर थोड़ा सा आश्चर्य हुआ कि जहाँ यह समाधी बनी हुई है वहाँ पर पहली नजर में देखने पर ऐसा लगता है कि जैसे इस समाधी पर सालों से किसी संस्था का ध्यान नहीं दिया गया है। इस समाधी को बाहर से ही देख-दाख कर, हम दोनों पैदल ही आगे मुख्य सड़क की ओर बढ़ते रहे। सड़क पर पहुँचते ही हम उल्टे हाथ की ओर चलने लगे। सीधे हाथ की ओर से हम सुबह यहाँ आये थे।

  शिवाजी महाराज के बापू की समाधी।

शनिवार, 6 अप्रैल 2013

Grishneshwar Temple (Verul-Daultabad-Aurangabad) घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन (दौलताबाद-औरंगाबाद)

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-12                                                                    SANDEEP PANWAR

रात में कैमरे व मोबाइल चार्ज कर लिये गये थे इसलिये अगले दिन इस बात की कोई समस्या नहीं थी कि किसी की बैट्री की टैं बोल जायेंगी। सुबह 5 बजे मोबाइल के अलार्म बजते ही हम दोनों उठकर औरंगाबाद जाने की तैयारी करने लगे। नहा-धोकर पौने 6 बजे हमने कमरा छोड़ दिया था। कमरा लेते समय कमरे वाली ने हमसे 100 रुपये फ़ालतू जमा कराये थे इसलिये सुबह उनको चाबी देते समय अपने 100 रुपये लेना हम नहीं भूले। हम अभी मुख्य सड़क पर आकर बस अड़ड़े की ओर चल दिये। मुश्किल से आधे किमी ही गये होंगे कि एक बस हमारी ओर आती हुई दिखायी दी। हमने हाथ का इशारा कर बस को रुकवा लिया। इस बस से हम नाशिक पहुँच गये। नाशिक पहुँचकर हम औरंगाबाद जाने वाली बस में बैठ गये। नाशिक से औरंगाबाद लगभग 150 किमी दूर है इसलिये हम आराम से अपनी सीट पर पसरे हुए थे। बस बीच-बीचे में वहाँ के कई शहरों से होकर चलती रही। हम अपनी सीट पर पड़े-पड़े उन्हे देखते रहे।



Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...