दौलताबाद किले के भीतर जाने वाले मुख्य गलियारे
के सामने जीप से उतर गये। यहाँ सड़क पार किले में जाने का मार्ग दिखायी दे रहा था। किले
में जाने वाले मार्ग के दोनों ओर सूचना पट पर किले के बारे में कुछ जानकारी लिखी हुई
थी। हमने वो जानकारी पढ़ने के बाद आगे चलना शुरु किया। मैंने इस लम्बे व ऊँचे किले को
दो लेख में विभाजित किया है। पहल लेख में किले के मैदान वाले भाग के बारे में विवरण दिया
गया है। दूसरे भाग में किले के पहाड़ी वाले भाग के बारे में बताया गया है। जैसा आपको फ़ोटो
में दिखायी दे रहा है कि किले के बाहर ही पार्किंग बनायी गयी है। अपने वाहन से आने
वालों के लिये किले से ज्यादा पैदल नहीं चलना पड़ता है। चलिये अब किले के अन्दर प्रवेश
करते है। किले के बाहर से जो शानदार नजारा दिखाई दे रहा था, अन्दर जाकर असली व भव्य
नजारा देखते है। अभी तक तो फ़ोटो में यह किला देखा था आज जाकर असलियत में यह किला देखना है। इस किले को ही पहले देवागिरी किला कहा जाता था।
चले अन्दर |
शानदार पार्क |
चारदीवारी आरम्भ |
किले की चारदीवारी के नजदीक पहुँचते ही एक छोटा
सा हरा भरा पार्क नुमा मैदान दिखायी दिया। इसे देखते हुए आगे बढ़ते रहे। किले के अन्दर
घुसने से पहले टिकट लेना पड़ता है हमने भी टिकट लेकर किले का अपना सफ़र शुरु किया। किले के बड़े
दरवाजे के बाहर दो काले-काले बड़े पत्थरों पर यहाँ के बारे में कुछ जानकारी दी गयी है
जिन्हें मैंने लेख में लगाया हुआ है। इन्हें पढ़कर किले में प्रवेश करने वाले मुख्य
दरवाजे तक जा पहुँचे। यहाँ पर हमने अपने टिकट दिखाकर किले में प्रवेश कर लिया। किले
के प्रवेश द्धार से आगे बढ़ते ही मुझे कुछ अजीब से पेड़ दिखायी दिये थे। मैंने अपनी जिज्ञासा
समाप्त करने के उन वृक्षों को देखना उचित समझा था। जब मैं उन पेड़ों के पास पहुँचा तो
देखा कि उन पर कुछ फ़ल लटके हुए है। उनका नाम तो मुझे ठीक से याद आ रहा था लेकिन मैंने फ़िर
भी वहाँ कार्य करने वाले एक कर्मी से पता करना ही बेहतर समझा कि यह शरीफ़ा का ही पेड़
है या किसी अन्य प्रजाति का। जब उसने भी शरीफ़े के पेड़ होने की हाँ की, तो मुझे खुशी
हुई कि चलों जीवन में पहली बार शरीफ़े का पेड़ फ़ल सहित देखने को मिला।
किले में आगे की ओर बढ़ते रहने पर हम एक अन्य दरवाजे
तक पहुँच गये। यहां दरवाजे के बाहर से लग रहा था कि अब जाकर असली किला शुरु हुआ है।
इस दरवाजे से आगे जाते ही हमें किले के अन्दर होने का अहसास कराने के लिये वहाँ रखी
हुई कई सारी तोपे बहुत ज्यादा प्रतीत होने लगी। पहले तो सारी तोपे तसल्ली से देखी
गयी उसके बाद अन्तिम फ़ैसला हुआ कि नहीं इनमें से हमारी काम की कोई सी भी नहीं है। सारी की
सारी बेकार पड़ी थी, जंग के कारण उनका रंग-रुप काफ़ी हद तक उबड़ खाबड़ भी हो चुका था। लेकिन
जब कभी पुराने समय में इनका प्रयोग किया जाता होगा तो इन्होंने बहुत प्राणियों के प्राण
पखेरु व अन्य अंग उनके जिस्म से अलग करने में अहम भूमिका अदा करने में कोई कोर कसर
नहीं छोड़ी होगी। चलिये मैं तो बंदूक-तमंचे रख कर ही खुश होने वाला जीव हूँ कम से कम
बंदूक तमंचे रखने से उनको कही लाने ले जाने में आसानी तो रहती है। जबकि इन्हे ले जाना आसान कार्य नहीं है।
टिकट दिखाकर अन्दर जान की तैयारी |
एक और परकोटा |
चलिये अब किले के अगले चरण की ओर चलते है किले के
अगले चरण का नाम महाकोट है। महाकोट के बारे में बताने के लिये काले रंग का फ़ोटो लगाया गया है ज्यादा
जानकारी के लिये उस फ़ोटो को देख ले। मैं सिर्फ़ इतना ही बता रहा हूँ कि महाकोट किले की
सुरक्षा के बनायी गयी 5 किमी लम्बी वह दीवार
है/थी जिसके कारण हमलावर यहाँ आसानी से कब्जा नहीं कर पाते थे। महाकोट की दीवार के
बारे में बताया गया है कि यहाँ एक के बाद एक लगातार चार दीवार बनाये जाने के कारण यहाँ की
सुरक्षा व्यवस्था बहुत मजबूत थी। महाकोट की बाहरी दीवार 2 से 3 मीटर चौड़ाई की है।
महाकोट क्षेत्र में हाथी हौद, बावड़ी, चाँद मीनार, भारत माता मन्दिर, हमाम, कचेरी जैसे
स्थल आते है। अब हम आगे बढ़ते हुए उन्ही स्थलों को देखते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। यहाँ
से हमें काफ़ी दूर तक पद यात्रा करनी थी उसके बाद देखने लायक स्थान आने वाले थे।
अब किसी काम की नहीं |
चलो आगे |
अन्दर घुसने से पहले हमने नहीं सोचा था कि ऐसे दिन
भी आयेंगे कि भरी दोपहर में हमें बैग लाधकर चार किमी की दूरी किले में तय करनी पड़ेगी।
आगे जाने पर हमें यहाँ एक मीनार दिखायी दी, यहाँ आने से पहले मैंने इस मीनार के बारे
में कोई बात नहीं सुनी थी। इससे पहले मैंने सिर्फ़ और सिर्फ़ कुतुब मीनार देखी थी। लेकिन
यहाँ आकर पता लगा कि यहाँ जो मीनार दिख रही है उसे चाँद मीनार कहते है यह मीनार भारत
में दूसरे नम्बर पर मानी जाती है। पहले नम्बर पर तो कुतुब मीनार ही है। कुतुब मीनार
में अन्दर घुसने के लिये पाबन्दी लगी है तो यहाँ भी उसका अनुसरण किया गया है। लेकिन
यहाँ इस मीनार पर चढ़ने का कोई अफ़सोस नहीं हुआ था क्योंकि यहाँ का किला इस मीनार से भी बहुत ज्यादा ऊँचाई पर बना हुआ है, इसलिये ऊपर किले पर जाकर मीनार बौनी दिखायी देने
लगती है।
चलते रहो, बहुत लम्बा है। |
मीनार के बराबर में ही यहाँ का संग्रहालय है। उसके
लिये अलग से टिकट लेना होता है साथ ही संग्रहालय में फ़ोटो लेने पर पाबन्दी भी रहती
है इसलिये हमने वहाँ संग्रहालय में जाने के बारे में कोई विचार भी नहीं किया था। अब
हमें उल्टे हाथ की ओर एक मार्ग दिखायी दिया। हमने उसी मार्ग का अनुसरण किया जिसने हमें एक बड़े से सूखे चौकोर तालाब जैसी जगह के ऊपर पहुँचा दिया। इस जगह को हाथी हौद कहा जाता
है, यहाँ पर वैसे पानी तो नहीं था लेकिन कभी तो पानी जरुर रहता होगा जिससे किले में
जरुरत के लिये उपयोग किया जाता होगा। हमने बहुत ध्यान से देखा लेकिन हमें यहाँ हाथियों
के अन्दर उतरने लायक कोई सुराग नहीं मिल सका। जिससे हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि इसकी
ज्यादा गहराई होने के कारण ही इसको हाथी हौद कहा जाता है। हाथी हौद के बाद हम आगे चल
दिये।
वो देखो चाँद मीनार |
हाथी हौद, हाथी उतरने का रास्ता नहीं |
किले की चोटी व मीनार की चोटी |
राजा-रानी का निवास स्थान |
भारत माता मन्दिर प्रांगण |
पूरा नजारा |
यहाँ से आगे बढ़ने पर हम एक विशाल बरामदे वाले चौक
में जा पहुँचे जहाँ चारों ओर खुला आँगन था। पहले तो हमने यह समझा कि यहाँ पर राजा का
दरबार लगा करता होगा, जिससे कि इतनी खुली जगह में बहुत सारी आम जनता आसानी से आ सके।
लेकिन अन्दर जाकर देखा कि वहाँ पर भारत माता मन्दिर का बोर्ड़ लगा हुआ है। भारत माता
मन्दिर का मामला यहाँ समझ नहीं आया। बताया गया कि मराठों के समय यहाँ पर मन्दिर हुआ
करता था बाद में मुगलों व मुस्ल्लों ने यहाँ की मन्दिर की मूर्तियाँ तोड़-फ़ोड़ दी थी।
लेकिन उसकी निशानियाँ आज भी यहाँ दिखायी देती है। हो सकता है कि बाद में मुल्ले यहाँ
अपनी धार्मिक गतिविधियाँ भी करते रहे होंगे लेकिन अब तो यहाँ पुराने हिन्दू प्राचीन
मन्दिर में भारत माता मन्दिर के नाम से भारत भूमि की पूजा होती है। इस किले का मैदानी
भाग देखने के बाद हम इसके पहाड़ी भाग को देखने के लिये चल दिये। यहाँ पर मैंने इसे अपना देखा हुआ अब
तक का सबसे जबरदस्त सुरक्षा वाला किला माना है। जिसपर विजय पाना शायद ही जल्दी से सम्भव हो पाता होगा।
भारत माता मन्दिर |
चाँद मीनार |
इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दी गयी सूची में दिये गये है।
बोम्बे से भीमाशंकर यात्रा विवरण
01. दिल्ली से दादर-नेरल तक ट्रेन यात्रा, उसके बाद खंड़स से सीढ़ी घाट होकर भीमाशंकर के लिये ट्रेकिंग।
02. खंड़स के आगे सीढ़ी घाट से भीमाशंकर के लिये घने जंगलों व नदियों के बीच से कठिन चढ़ाई शुरु।
03. भीमाशंकर ट्रेकिंग में सीढ़ीघाट का सबसे कठिन टुकड़े का चित्र सहित वर्णन।
बोम्बे से भीमाशंकर यात्रा विवरण
01. दिल्ली से दादर-नेरल तक ट्रेन यात्रा, उसके बाद खंड़स से सीढ़ी घाट होकर भीमाशंकर के लिये ट्रेकिंग।
02. खंड़स के आगे सीढ़ी घाट से भीमाशंकर के लिये घने जंगलों व नदियों के बीच से कठिन चढ़ाई शुरु।
03. भीमाशंकर ट्रेकिंग में सीढ़ीघाट का सबसे कठिन टुकड़े का चित्र सहित वर्णन।
05. भीमाशंकर मन्दिर के सम्पूर्ण दर्शन।
नाशिक के त्रयम्बक में गोदावरी-अन्जनेरी पर्वत-त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग आदि क विवरण
06. नाशिक त्रयम्बक के पास अन्जनेरी पर्वत पर हनुमान जन्म स्थान की ट्रेकिंग।
07. हनुमान गुफ़ा देखकर ट्रेकिंग करते हुए वापसी व त्रयम्बक शहर में आगमन।
08. त्रयम्बक शहर में गजानन संस्थान व पहाड़ पर राम तीर्थ दर्शन।
09. गुरु गोरखनाथ गुफ़ा व गंगा गोदावरी उदगम स्थल की ट्रेकिंग।
10. सन्त ज्ञानेश्वर भाई/गुरु का समाधी मन्दिर स्थल व गोदावरी मन्दिर।
11. नाशिक शहर के पास त्रयम्बक में मुख्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन
औरंगाबाद शहर के आसपास के स्थल।
12. घृष्शनेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन
13. अजंता-ऐलौरा गुफ़ा देखने की हसरत।
14. दौलताबाद किले में मैदानी भाग का भ्रमण।
15. दौलताबाद किले की पहाड़ी की जबरदस्त चढ़ाई।
16. दौलताबाद किले के शीर्ष से नाशिक होकर दिल्ली तक की यात्रा का समापन।
नाशिक के त्रयम्बक में गोदावरी-अन्जनेरी पर्वत-त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग आदि क विवरण
06. नाशिक त्रयम्बक के पास अन्जनेरी पर्वत पर हनुमान जन्म स्थान की ट्रेकिंग।
07. हनुमान गुफ़ा देखकर ट्रेकिंग करते हुए वापसी व त्रयम्बक शहर में आगमन।
08. त्रयम्बक शहर में गजानन संस्थान व पहाड़ पर राम तीर्थ दर्शन।
09. गुरु गोरखनाथ गुफ़ा व गंगा गोदावरी उदगम स्थल की ट्रेकिंग।
10. सन्त ज्ञानेश्वर भाई/गुरु का समाधी मन्दिर स्थल व गोदावरी मन्दिर।
11. नाशिक शहर के पास त्रयम्बक में मुख्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन
औरंगाबाद शहर के आसपास के स्थल।
12. घृष्शनेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन
13. अजंता-ऐलौरा गुफ़ा देखने की हसरत।
14. दौलताबाद किले में मैदानी भाग का भ्रमण।
15. दौलताबाद किले की पहाड़ी की जबरदस्त चढ़ाई।
16. दौलताबाद किले के शीर्ष से नाशिक होकर दिल्ली तक की यात्रा का समापन।
.
.
.
.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें