शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

FIRST GAUMUKH TREKKING पहली गौमुख ट्रेकिंग/यात्रा, भाग 1 (भूत का डर)


गौमुख का मतलब गाय का मुख/मुँह। लोग तो ऐसा ही कहते थे, लेकिन जब मैंने गंगौत्री वाला गौमुख देखा तो मुझे कहीं से भी ऐसा नहीं लगा था कि यह गाय का मुँह कैसे है? खैर छोडो लगने ना लगने वाली बात को, आपको और मुझे तो यात्रा वृतांत लिखने व पढने से मतलब है। तो चलिये आज आपको अपनी पहली गौमुख यात्रा का विवरण बता देता हूँ। यह सन 1999 के नवम्बर माह के पहले सप्ताह/या अक्टूबर माह के आखिरी सप्ताह की बात रही होगी। इतना मुझे याद है कि जब मैंने यह यात्रा करने की सोची, तब दिवाली आने में लगभग 15-20 दिन बाकि रह गये थे। कहते है ना, जिसकी किस्मत में परमात्मा ने जी भर कर यात्रा लिखी हो, फ़िर वह एक स्थल पर टिक कर कैसे बैठ सकता है? बात उस समय की है जब मेरा छोटा भाई अपनी पुलिस की ट्रेंनिग देहरादून से पूरी करने के उपरांत उतरप्रदेश प्रांत (उस समय यही था, उतराखण्ड तो बाद में हुआ है।) के पर्वतीय अंचल के उतरकाशी जनपद में अपनी पहली नियुक्ति पर रवाना हुआ था। उस समय तक मैंने भी ऋषिकेश से आगे के पहाड नहीं देखे थे। ईधर मसूरी से आगे धनौल्टी तक अपनी आखिरी रेखा खिंची हुई थी। जैसे ही छोटा भाई उतरकाशी जनपद में थाना मनेरी (एशिया का सबसे बडा थाना क्षेत्र इसके अधीन आता है) के अंतर्गत आने वाले गंगौत्री मन्दिर वाले पुलिस चैक-पोस्ट पर तैनात हुआ तो उसी समय छोटे भाई ने मुझे फ़ोन पर बता दिया था कि यदि गंगौत्री देखनी है तो आ जाओ क्योंकि मैं अभी यहाँ पन्द्रह दिन दिवाली तक रहूँगा। मैंने तुरन्त जाने की तैयारी शुरु कर दी। मैंने दो जोडी कपडे व पाँच किलो देशी घी अपने बैग में रखा व अपने घर से गंगौत्री जाने के लिये स्टॆशन पर आ पहुँचा। हमारे यहाँ लोनी से सुबह ठीक साढे दस बजे एक सवारी रेलगाडी सीधी हरिद्धार तक जाती है। इस ट्रेन से लोनी से हरिद्धार तक मेरी पहली यात्रा थी।

सोमवार, 27 अगस्त 2012

FIRST TREKKING IN MY LIFE-NEELKANTH MAHADEV TEMPLE, RISIKESH मेरे जीवन की पहली ट्रेकिंग-नीलकंठ महादेव मन्दिर, ऋषिकेश


उतर भारत में सावन का महीना भोले नाथ के नाम कर दिया जाता है, वैसे तो सम्पूर्ण भारत में ही सावन माह में भोले के भक्त चारों ओर छाये हुए रहते है, लेकिन इन सबका जोरदार तूफ़ान सावन के आखिर में चलता है। संसार में भोले के नाम से चलने वाली कांवर यात्रा विश्व की सबसे लम्बी मानव यात्रा मानी जाती है। किसी जगह मैंने पढा था कि दुनिया में कावंर यात्रा ही ऐसी एकमात्र यात्रा है जो एक बार में ही हजार किमी से भी ज्यादा लम्बाई ले लेती है। गंगौत्री या देवभूमि उतराखण्ड (हिमाचल भी देवभूमि कहलाती है) का प्रवेश दरवाजा हरिद्धार से दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश, पंजाब व अन्य राज्यों में शिव भक्त कावंर रुप में गंगाजल धारण कर, सावन माह में भोलेनाथ पर अर्पण करते है। एक बार मैंने भी यह सुअवसर पाया था। जब मैंने गौमुख से केदारनाथ ज्योतिर्लिंग तक (250 किमी दूरी) गंगा जल धारण कर पैदल यात्रा (ट्रेंकिग) की थी। वह यात्रा मेरी अब तक की सबसे लम्बी पद यात्रा रही है लेकिन मुझे लगता है कि मेरा यह अभिलेख (रिकार्ड) जल्द ही धवस्त होने जा रहा है क्योंकि मैं बहुत जल्द वृंदावन क्षेत्र की चौरासी कौस (256 किमी) की पद यात्रा पर जा सकता हूँ, इसके अलावा एक पैदल यात्रा का फ़ितूर भी मेरी जाट खोपडी मे घुसा हुआ है, मेरा एक D.E.O. साथी जो दो साल पहले तक मेरे साथ कार्य करता था। आजकल उसका स्थानांतरण दूसरे क्षेत्र में हो गया है। कुछ दिन पहले उसका फ़ोन आया था कि संदीप चलो बालाजी की पद-यात्रा करके आते है। अभी तक मेरे मन में दोनों यात्रा करने की है लेकिन समय अभाव के कारण कोई एक यात्रा निकट भविष्य में सम्भव हो पायेगी। देखते है जाट देवता को मिलने के लिये अबकी बार कौन से भगवान दर्शन के लिये खाली है?

शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

MUSSOORIE- GUN HILL and KAMPTY FALL मसूरी- गनहिल व कैम्पटी फ़ॉल

               यह सीरीज शुरू से यहाँ से देखे                                          इस पोस्ट से पहला भाग यहाँ है  
जिस दिन मसूरी जाना था, वह दिन मेरे लिये बहुत बडी खुशी का दिन था। अरे बन्धु, मसूरी जाने के नाम पर तो आज भी लोग जान छिडकते है मैं तो फ़िर भी बीस साल पहले की बात बता रहा हूँ कई लोग सोच रहे होंगे कि क्या जाट भाई भी फ़ालतू की बिना फ़ोटॊ वाली यात्राएँ लिखे जा रहा है? लेकिन मैं जानता हूँ कि मेरे लिये यह बिना फ़ोटो वाली कई यात्राएँ कितनी कीमती है? बिना फ़ोटो यात्रा लिखने पर यह तो पता लगा कि कुछ लोग सच में लिखा हुआ पढना पसन्द करते है। केवल फ़ोटो देखने ही नहीं आते है। हाँ तो दोस्तों शुरु करते है अपनी पहली मसूरी यात्रा विवरण, सुबह कुछ ज्यादा ही जल्दी आँख खुल गयी थी, या यूँ कह सकते हो कि रात को ठीक से नींद ही नहीं आ पायी थी। कारण आप सब जानते ही हो कि यही आज वाला यात्रा का पंगा। पंगे व पहाड से याद आया कि दोनों में मुझे बहुत मजा आता है। सुबह सबसे पहले उठकर नहा धोकर तैयार हो गया, मामीजी ने सुबह सात बजे ही खाना बना कर दे दिया था। उस दिन शायद मामाजी की दोनों लडकियों का परीक्षा फ़ल आने वाला था। उनके परीक्षा फ़ल से ज्ञात हुआ कि वे भी C.B.S.E  से सम्बंधित स्कूल में ही पढते है जैसे हम दिल्ली में पढते है। देहरादून का गुरु राम राय पब्लिक स्कूल केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त है। मैं और बबलू (नवीन) तैयार होकर रेलवे स्टेशन के बीच से होते हुए मसूरी अडडे पर जा पहुँचे, वैसे भी भण्डारी बाग से मसूरी अडडा आने-जाने के लिये मुख्य सडक से होकर जाना पडता है, लेकिन जिन लोगों को मालूम है, वे सीधे स्टेशन से होते हुए उस अडडे तक चले जाया करते थे। आजकल शायद स्टेशन पर खासकर प्लेटफ़ार्म पर भी टिकट (plate form) लेकर जाना पडता है। उस समय हर आधे घन्टे पर मसूरी के लिये बस मिला करती थी आज क्या स्थिति है मुझे नहीं मालूम? मैं चाहता तो मामाजी को फ़ोन करके पता कर सकता था लेकिन मुझे यह बात ठीक नहीं लगी इसलिये पता नहीं किया।




मंगलवार, 21 अगस्त 2012

DEHRADUN TO HARIDWAR-RISHIKESH TRIP देहरादून से हरिद्धार व ऋषिकेश यात्रा

इस यात्रा को शुरु से यहाँ से पढे।                                       इस लेख से पहला लेख यहाँ से पढे।
देहरादून से हरिद्धार घूमने का कार्यक्रम तो बन गया था, साथ ही यह भी तय हो गया था कि वहाँ से ऋषिकेश चले जाना है जहाँ से शाम को वापस आ आना है? लेकिन सबसे बडी समस्या मन को समझाने की आ रही थी। मन तो पहले देहरादून से मसूरी व उससे आगे कैम्पटी फ़ॉल देखने को कर रहा था। जबकि मामाजी ने कहा कि पहले हरिद्धार गंगा स्नान कर आओ। मसूरी एक दो दिन बाद चले जाना। मुझे देहरादून आये कई दिन हो चुके थे। घर से मुझे वापसी बुलाने के लिये फ़ोन आने वाला था। मैं ऊपर वाले से कह रहा था कि अभी तीन-चार दिन फ़ोन मत आने देना। ऊपर वाला भी अपना दोस्त है, पूरे एक सप्ताह तक मेरे लिये फ़ोन नहीं आया था। हाँ तो, मैं आपको बता रहा था कि जिस दिन हमें देहरादून से हरिद्धार घूम कर आना था उस दिन हम सुबह-सुबह बिना नहाये-धोये एक-एक जोडी कपडे एक थैले में डाल कर सुबह ठीक छ: बजे चलने वाली पैसेंजर ट्रेन में जा बैठे। उस समय देहरादून स्टेशन पर टिकट किसी दूसरी जगह मिलते थे। आजकल टिकट के लिये एक अलग स्थान बना दिया गया है। जहाँ आजकल टिकट मिलता है शायद पहले वहाँ आरक्षण के लिये लाईन में लगना पडना था। आजकल आरक्षण के लिये स्टेशन के ठीक सामने एक अलग स्थान बना दिया गया है। हमने दो टिकट भी ले लिये थे। वैसे जब मैंने यह यात्रा की थी तो उस समय तक मैंने अपने रेलवे रुट पर कई बार बिना टिकट यात्रा की थी। बचपन में टिकट चैकर भी हमें ज्यादा तंग नहीं करता था। पहले तो हमने यही सोचा था कि चलो यहाँ से हरिद्धार तक भी निशुल्क घूम कर आते है। उस समय देहरादून से हरिद्धार तक शायद तीन रुपये या हो सकता है कि पाँच रुपये किराया लगता हो। (ठीक से याद नहीं आ रहा है)

शनिवार, 18 अगस्त 2012

DEHRADUN RAILWAY STATION, BICYCLE TRIP साईकिल यात्रा व देहरादून स्टेशन भ्रमण

यह यात्रा शुरु से यहाँ से देखे                                           इस यात्रा का इस लेख से पहला भाग यहाँ से देखे।
चौथे या पाँचवे दिन की बात है, शाम को  यह तय हुआ था कि संदीप व बबलू को हरिद्धार या ऋषिकेश में से किसी एक जगह घूम-घाम कर शाम तक देहरादून वापिस घर आ जाना है। इसी कारण अगली सुबह मैं फ़टाफ़ट नहा-धोकर तैयार हो गया था। लेकिन अचानक मामाजी का फ़ोन आया कि ट्रक का एक पहिया पेन्चर हो गया है, स्टपनी वाला टायर जो रिजर्व में रहता है वह भी एक दिन पहले ट्रक में कुछ काम कराने के लिये मिस्त्री के यहाँ रखवाया हुआ था। अत: बबलू को स्कूटर लेकर मामाजी के पास जाना पडा उस समय तक मुझे काम चलाऊ स्कूटर चलाना आता था। स्कूटर घर से कोई दस किमी या उसके आसपास स्थित प्रेमनगर की दिशा में लेकर जाना था। बबलू ने कहा अब तो आज कही बाहर जाना नहीं हो पायेगा, तुम घर पर ही आराम करो। इस बीच मामीजी ने आवाज लगायी कि संदीप खाना तैयार है खा लो। सुबह के आठ बज चुके थे। बबलू बिना खाना खाये (शायद उसने खाया था, ठीक से याद नहीं) स्कूटर लेकर चला गया। बबलू के जाने से पहले मैंने उससे कहा कि क्या मैं तुम्हारी साईकिल लेकर कहीं घूम आऊँ? उसने कहा “ठीक है, तुम आज भी मेरी साईकिल लेकर जा सकते हो, क्योंकि आज मुझे साईकिल से कुछ भी काम नहीं है।

बुधवार, 15 अगस्त 2012

F.R.I. FOREST RESEARCH INSTITUTE & LAXMAN SIDDH TEMPLE वन अनुसंधान संस्थान व लक्ष्मण सिद्ध मन्दिर

इस यात्रा का शुरु का लेख यहाँ से देखे                          इस यात्रा का इससे पहला लेख यहाँ से देखे
आज के दिन हमारा कार्यक्रम देहरादून शहर में स्थित व पूरे भारत भर में मशहूर वन अनुसंधान संस्थान देखने जाने का बनाया हुआ था। इसे छोटे रुप में F.R.I. कहते है। जहाँ पर जाने के बाद मुझे कई बातों के बारे में पहली बार पता चला था। चलो.. आपको भी इसके बारे में बता ही देता हूँ। बबलू और संदीप (उस समय तक संदीप को संदीप के नाम से ही बोला जाता था आज की तरह जाट देवता कहकर नहीं पुकारा जाता था।) बीस साल में कुछ तो फ़र्क आना ही था। हाँ तो मैं आपको बता रहा था कि हम दोनों अगले दिन सुबह आठ बजे घर से F.R.I. देखने के लिये निकल पडे थे। वैसे F.R.I. के नाम से यह स्थान पूरे देहरादून में जाना जाता है पर शहर में बहुत कम ही लोग ऐसे होंगे जो इसके हिन्दी वाले बडे नाम से भी जानते होंगे। घर से निकल कर हम सबसे पहले सहारनपुर चौक पहुँचे, जहाँ से हमने एक ऑटो वही तीन पहिया वाला सवारी ढोने का कानूनी जुगाड, हमें सहारनपुर चौक से F.R.I. के पास तक के लिये मिल गया था। यहाँ चौक से टेडी-मेडी सडकों से होता हुआ, यह कानूनी जुगाड हमें F.R.I. के मुख्य गेट तक ले गया था। यहाँ हमने ऑटो छोड दिया व पैदल चल पडे।


रविवार, 12 अगस्त 2012

SAHASTRADHARA & TAPKESHWAR MAHADEV TEMPLE, DEHRADUN सहस्रधारा व टपकेश्वर महादेव मंदिर, देहरादून

इस यात्रा को शुरू से यहाँ से देखे 
इस यात्रा का इस लेख से पहला वाला लेख यहाँ से देखे 
धमालचौकडी करने के इरादे लिये हमारे पास लगभग पूरा दिन ही पडा था। यहाँ मैंने क्या-क्या गजब ढहाया वो बताता हूं। सहस्रधारा में कितनी धारा है? यहाँ आने से पहले मेरे मन में यही प्रश्न बार-बार कोंध रहा था। जैसे ही बस से बाहर निकला तो एक ठन्डी हवा का झोंका ऐसा आया कि उसने मार्च की गर्मी में भी ठण्डक का अहसास करा गया कि यहाँ गर्मी में लोग ऐसे ही नहीं आते है कुछ तो खास बात है। बस से उतर कर हम दोनों आगे की ओर बढ चले। मामाजी का लडका नवीन उर्फ़ बबलू यहाँ पहले भी कई बार आया था, जिस कारण उसे यहाँ के बारे में अधिकतर जानकारी पहले से ही थी। जिसका फ़ायदा मुझे बहुत हुआ। सबसे पहले हम दोनों गुरु द्रोणाचार्य की गुफ़ा में गये। यह गुफ़ा अब शायद मन्दिर के रुप में बना दी गयी है। बीस साल पहले ऐसा नहीं था। तब शायद यह एक साधारण सी गुफ़ा ही थी जिसके बारे में बताया गया था कि यह महाभारत के कौरवों व पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य की गुफ़ा है, वे यहाँ कुछ दिन रहे थे। बताने वाले तो यही बताते है कि देहरादून का नाम गुरु द्रोण के कारण ही पडा है। अब इस बात में कितनी सच्चाई है, मैं नहीं जानता। उस गुफ़ा को देखकर, हम दोनों आगे की ओर बढे। 

शनिवार, 11 अगस्त 2012

DEHRADUN RAILWAY STATION & SAHASTRADHARA देहरादून शहर व सहस्रधारा भ्रमण

इस यात्रा को शुरू से पढ़े       
देहरादून का माजरा बीस साल पहले जरुर गाँव था लेकिन आज ऐसा नहीं है। आज यह गाँव भी पूरी तरह शहरीकरण के रंग में रंग चुका है। मैंने आपको बताया था कि माजरा गाँव से पहले एक लोहे का पुल आया था। आज से बीस साल पहले की बात बता रहा हूँ कही आप आज 2012 में वहाँ जाकर तलाशने लगो कि लोहे का पुल तो हमने पार ही नहीं किया। वैसे आज भले ही वह तत्कालीन लोहे का पुल पार नहीं करना होता है लेकिन वह पुल आज भी अपनी जगह पर ही मौजूद है। उस लोहे के पुल की बायी तरफ़ देहरादून जाते समय, सीमेंट वाला बडा व नया पुल कई साल पहले बना दिया गया था। लोहे वाला पुल भले ही एक गाडी के आवागमन के लिये रहा होगा, क्योंकि वह पुल अंग्रेजों का बनवाया हुआ था। उस पुल की एक खासियत यह थी कि उसमें एक भी नट-वोल्ट व वेल्डिंग का प्रयोग नहीं हुआ था। जिन लोगों ने दिल्ली का यमुना नदी पर बना लोहे का पुराना पुल देखा होगा उन्हे याद आ गया होगा कि कैसा पुल रहा होगा। पुल पार करने के लिये यहाँ भी वाहन चालकों को सामने से आने वाली गाडी का ध्यान रखना होता है। यहाँ वैसी परेशानी नहीं आयी जैसी डाट वाली गुफ़ा पार करने वाले पुल पर आती है। डाट वाली गुफ़ा के पास वाला जो मन्दिर है उसके बारे में एक बात एक ब्लॉगर महिला मित्र ने मेरे ब्लॉग पर बतायी है कि देहरादून व आसपास जब भी कोई नया वाहन खरीदता है तो वह इस मन्दिर में जरुर प्रसाद चढाता है। मेरे मामाजी के पास कई ट्रक है और एक बार नया ट्रक लेने के अवसर पर मैं भी वही देहरादून में मौजूद था। मामाजी भी अपने नये ट्रक को लेकर यहाँ इसी मन्दिर पर आये थे। उसके बाद ही उन्होंने ट्रक को अपने कार्य में लगाया गया था।

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

SAHARANPUR TO DEHRADUN सहारनपुर से देहरादून मार्ग विवरण

इस यात्रा को शुरू से पढ़े यहाँ से 
ट्रेन अपनी गति से चली जा रही थी और मैं अपनी मस्ती में खोया हुआ था। अपने वाले दिल्ली-लोनी-बागपत वाले रेल मार्ग पर जब बागपत रोड नाम की जगह आती है तो पहले-पहले मैं इसी स्टेशन को बागपत शहर समझा करता था। लेकिन यह मुझे कई साल बाद जाकर पता लगा कि बागपत शहर यहाँ से लगभग 5-6 किमी की दूरी पर, सडक वाले मार्ग पर स्थित है। यहाँ ट्रेन से उतरकर सडक मार्ग से मेरठ व सोनीपत जाया जा सकता है। जहाँ बागपत रोड वाला स्टेशन है, उस गाँव का नाम टटीरी है। जो आज एक ठीक-ठाक कस्बे का रुप धारण कर चुका है। कुछ ऐसा ही सूरते-हाल लोनी स्टेशन का है रेलवे रिकार्ड में लोनी LONI को नोली NOLI लिखा गया है। अगर आपमें से कोई वहाँ से गया हो तो सोच में जरुर पडा होगा कि लोग तो कहते है लोनी आयेगा लेकिन यह नोली कहाँ से आ गया? कई बार नई-नई सवारियाँ इस नाम के चक्कर में रेल के अन्दर बैठी रह जाती है। 

सोमवार, 6 अगस्त 2012

DELHI TO DEHRADUN चले देहरादून की ओर


दोस्तों नई यात्राएँ तो होती ही रहेंगी, लेकिन कई पुरानी यात्राएं भी है जिनका जिक्र करना जरूरी है अगर नई-नई यात्रा का विवरण ही बताता रहा तो पुरानी का नम्बर कभी भी नहीं आयेगा क्योंकि जिस गति से अपनी नई-नई यात्राओं की संख्या बढती जा रही है उससे तो ऐसा नहीं लगता कि यह सिलसिला जीते जी कभी रुकने वाला भी है। पुरानी यात्राओं में वैसे तो मैंने सबसे पहले देहरादून के पास सह्रसधारा की यात्रा की थी। उसके बाद देहरादून के पास के लगभग सारे स्थान मैंने साईकिल पर ही छानमारे थे। मंसूरी, धनौल्टी, चम्बा, सुरकन्डा देवी, बाइक पर उतराखण्ड के चार धाम गंगौत्री-यमुनौत्री-केदारनाथ-बद्रीनाथ, फ़ूलों की घाटी, हेमकुंठ साहिब, चोपता, रोहतांग, मणिकर्ण, ज्वालामुखी आदि-आदि न जाने कितनी यात्राएँ अभी बाकि है? अबकी बार मैं आपको उन्ही सब पुरानी यात्राओं में से कुछ के बारे में बताने जा रहा हूँ, मेरी कोशिश क्रमवार यात्रा विवरण बताने की रहेगी। समय काफ़ी बीत चुका है जिस कारण सब यात्राओं का समय तो ठीक-ठीक याद नहीं है लेकिन फ़िर भी जितना हो सका, उतना इन्साफ़ जरुर करने की कोशिश जरुर करूँगा। इन यात्राओं में मैंने लगभग सभी साधन प्रयोग किये है जैसे कि साईकिल, बस, रेल, ट्रक, कार आदि तो आज आपको दिल्ली से सहारनपुर तक की रेल यात्रा के बारे में बताने जा रहा हूँ।


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