पालमपुर स्टेशन पर ट्रेन से उतरकर कुछ दूर जाने पर पालमपुर जाने वाली सड़क मिल गयी। इस स्टेशन से पालमपुर शहर कई किमी दूरी पर था। हमें सबसे पहले रात्रि विश्राम हेतू पालमपुर शहर पहुँचना था। सड़क से पालमपुर जाने के लिये बस आटो/जुगाड़ आदि के इन्तजार में खड़े हो गये। 10-15 मिनट बाद जाकर एक बस आयी हम उस बस में सवार होकर पालमपुर पहुँच गये। बस ने हमें पालमपुर के बस अड़ड़े पर उतार दिया। पालमपुर का विशाल बस अड़ड़ा देखकर मैं दंग रह गया। इतना बड़ा बस अड़ड़ा वो भी पहाड़ों में मिलना एक करिश्में जैसा लग रहा था। कमरा देखने के पहले बस अड़ड़े पर एक चाऊमीन की दुकान पर पहुँचे, दुकान वाला दुकान बन्द करने की तैयारी करने लगा था। हमने उसे चाउमीन बनाने के लिये कहा तो वो तैयार हो गया। थोड़ी देर में ही दुकान वाले ने गर्मागर्म चाउमीन बनाकर हमारे सामने पेश कर दी। हमने बड़े सुकून से चटखारे ले ले कर चाउमीन का रात्रि भोजन किया। जब चाउमीन खाकर दुकान वाले को पैसे देने लगे तो लगे हाथ दुकान वाले से रात में रुकने का बढ़िया उचित दर की कीमत वाला ठिकाना मालूम कर लिया। दुकान वाले ने बताया था कि बस अड़ड़े से बाहर निकलते ही आपको एक गेस्ट हाऊस दिखायी देगा उसमें कमरे व डोरमेट्री में आपको आसानी सही कीमत में स्थान मिल जायेगा।
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शनिवार, 27 अप्रैल 2013
Palampur Tea garden पालमपुर के चाय के बागान में घुमक्कड़ी
हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की यात्रा 04 SANDEEP PANWAR
गुरुवार, 28 मार्च 2013
Shidi Ghat Danger Trekking सीढ़ी घाट की खतरनाक चढ़ाई
भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-03
जब हम सीढ़ियों के बेहद करीब आये तो वहाँ की हालत देखकर एक बार तो आँखे फ़टी की फ़टी रह गयी। मन में सोचा कि यार जान ज्यादा कीमती है या यह खतरनाक मार्ग पार करना ज्यादा अहमितय रखता है। विशाल ने एक बार फ़िर कहा संदीप भाई चप्पल की जगह जूते पहन लो अब मार्ग ज्यादा डेंजर लग रहा है। मैं अब तक दो बार विशाल को जूते में परॆशान होते हुए देखा था इसलिये मैंने जूते पहनने का विचार त्याग दिया था। एक कहावत तो सबने सुनी ही होगी कि जब सिर ओखली में रख दिया तो फ़िर मुसल की मार से कैसा ड़रना? अगर ऐसी खतरनाक चढ़ाई से ड़र गये तो फ़िर आम और खास में फ़र्क कैसे पता लगेगा। शायद विशाल ने एक बार बोला भी था कि संदीप भाई यहाँ से वापिस चलते है। गणेस घाट से चले जायेंगे। मैंने कहा ठीक है वापसी जरुर चलेंगे पहले थोड़ा सा आगे जाकर देखते है यदि आगे इससे भी ज्यादा खतरनाक मार्ग मिला तो वापिस लौट आयेंगे। इतना कहकर मैं सीढ़ियों पर चढ़ने लगा। जैसे-जैसे मैं कदम रखता जाता वैसे ही सीढ़ी हिलती जा रही थी। ध्यान से देखा तो पाया कि सीढ़ी रस्सी के सहारे पहाड़ पर बाँधी हुई है।
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यहाँ से सीढ़ी घाट की पहली नजदीकी झलक मिलती है। |
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अब तो चढ़ना ही पडेगा। |
बुधवार, 27 मार्च 2013
Shidi Ghat Trek to Bhimashankar Jyotirlinga सीढ़ी घाट से भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की खतरनाक ट्रेकिंग
भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-02
जैसे ही हमने सड़क छोड़कर सीढ़ी घाट की ओर जाने के लिये चावल के खेतों में बनी हुई पगड़न्ड़ी पर चलना शुरु किया तो वहाँ पर खेत की मेंढ (ड़ोल) में बड़े-बड़े सुराख दिखायी दे रहे थे। हमने अंदाजा लगाया कि यह सुराख चूहों के बिल ही होंगे, लेकिन उनमें से एक आध-सुराख साँप के बिल का भी तो हो सकता था। मैं पहले ही चप्पल में चल रहा था, इसलिये साँप का विचार मन में आते ही सोचा कि क्यों ना जूते पहन लिये जाये। क्या पता कहाँ साँप टकरा जाये, लेकिन इस ट्रेक में बार-बार मिलने वाले झरने व नदियों के पानी में भीगने की आशंका के कारण मैंने सोच लिया था कि जहाँ तक हो सकेगा मैं यह यात्रा चप्पल में ही करुँगा। थोड़ा सा आगे चलते ही खेतों के बीच एक कुँआ मिला। यह पहला ऐसा कुँआ मिला जो ऊपर तक लबालब भरा हुआ था। ऊपर तक भरने का एक ही कारण था कि यह नदी किनारे बना हुआ था। यहाँ पर दो स्थानीय महिला अपने वस्त्रों से उनका मैल अलग करने की मेहनत में लगी हुई थी।
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यह कुआ और पीछे वो गाँव व उसकी पगड़न्ड़ी जहाँ से होकर हम यहाँ तक आये है। |
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मस्त पगड़न्ड़ी। |
हमने कपड़े धोने वाली महिलाओं से भी एक बार मालूम कर ही लिया था कि सीढ़ी घाट वाला मार्ग यही है या कोई दूसरा? उनकी हाँ होते ही हम आगे चल पड़े। हमें खंड़स में एक युवक मिला था उसने कहा कि यदि आपको गाईड़ चाहिए तो मैं आपके लिये गाईड़ का काम करुँगा। विशाल ने खंड़स में रुककर एक कप चाय पी थी तभी वह युवक हमारे पास आया था। विशाल ने बताया था कि जब मैं पहली बार यहाँ आया था तो मैंने खंड़स से एक आदमी को गाईड़ के रुप में साथ ले लिया था। लेकिन वो आदमी गणेश घाट से कुछ आगे जाकर दूर से यह बताकर कि बस अब भीमाशंकर आने वाला है, अपने पैसे लेकर भाग आया था जबकि भीमाशंकर वहाँ से कई किमी दूर है। कपड़े धोने वाली महिलाओं से कुछ आगे जाने पर हमें Y आकार में दो पगड़न्ड़ी दिखाई दी। यहाँ एक बार परेशानी में पड़ गये कि किधर जाये। फ़िर सोचा कि चलो पहले सीधे हाथ वाले मार्ग पर चलकर देखते है। हम उस मार्ग पर लगभग 200-300 मीटर तक चले गये, लेकिन आगे जाकर यह मार्ग समाप्त हो गया तो हमें मजबूरन वापिस उसी जगह आना पड़ा जहाँ से यह मार्ग Y आकार में हुआ था।
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तु छुपा है कहाँ, जरा बाहर तो आ। |
गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013
Bara Bhumi temple बारा भूमि देवस्थान/मन्दिर के दर्शन करते ही ट्रेकिंग अन्त की ओर
गोवा यात्रा-19
आज हमारी गोवा के जंगलों में ट्रेकिंग का अंतिम दिन शुरु हो रहा था।अब तक हमारे ग्रुप से कई लोग छोड कर जा चुके थे। अंतिम दिन जब ग्रुप की गिनती पूरी हुई तो कुल मिलाकर 23 लोग ही बचे थे। वैसे यह ट्रेक बहुत ज्यादा तो कठिन नहीं था, लेकिन कुछ ना कुछ कारणों से कई साथी साथ छॊड़ते रहे। आखिरी दिन सफ़र में जो चल रहे थे वे सारे के सारे विजेता बनने जा रहे थे। सड़क पार करते ही हम एक बार फ़िर घने जंगलों में घुस गये थे। दो किमी चलने के बाद हमें जीप वाला रोड दिखायी दिया, इस रोड़ पर हम तीन किमी चले होंगे कि फ़िर से घनघोर जंगल में प्रवेश करना पड़ा। अब हम ऐसे जंगल से जा रहे थे, जहाँ पर बहुत ही कम लोग इस मार्ग का प्रयोग करते होंगे। गोवा के जंगलों में हमें जंगली जानवर कुछ खास दिखायी नहीं दिये थे। फ़िर भी...
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जाटदेवता संदीप पवाँर का स्टाईल कैसा लगा? |
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दीमक के कारण पेड जहाँ तहाँ गिरे हुए थे |
बुधवार, 6 फ़रवरी 2013
Trekking camp near anciant Well प्राचीन कुए के किनारे वाला ट्रेकिंग कैम्प
गोवा यात्रा-18
पिछले लेख में आपको बताया गया था कि हमने सबको किट-किट का भय क्या दिखाया, सभी डेटॉल नारियल तेल लेकर लगाने बैठ गये। उनको तेल मालिश करते देख हमारी हँसी रुक नहीं पा रही थी इस कारण हम वहाँ से कैम्प के लिये फ़ुर्र हो गये। तीन चार मिनट की दूरी पर ही कैम्प था। सबसे पहले हमने एक टैन्ट में अपना सामान रखा, चूंकि सुबह से नहाये नहीं थे, इसलिये सबसे पहले हमने वहाँ पर नहाने के साधन के बारे में पता किया, उसके बाद ही कही आसपास घूमघाम कर आने की सोची। आज हमारा कैम्प एक पुराने गाँव के बचे हुए अवशेष पर स्थापित किया हुआ था। सालों पहले यहाँ कोई गाँव हुआ करता था, उसके बचे हुए अवशेष यहाँ बिखरे हुए थे। यहाँ पर दो कुएँ भी बने हुए थे, एक कुआँ जिसमें साफ़ पानी था पीने के लिये उपयोग में लाया जाता था। दूसरा कुआँ जिसका पानी पहले कुएँ की अपेक्षा में थोड़ा गन्दा दिखाई देता था। इसलिये इस कुएँ के पानी को नहाने धोने के लिये प्रयोग करते थे। दिल्ली के मुकाबले वहाँ मौसम बहुत गर्म था। सबसे पहले हम नहाने के लिये पहुँच गये। जिन लोगों ने तेल लगाया हुआ था, उनके लिये नहाना तो और भी जरुरी था।
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साफ़ पानी वाला कुआँ |
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पनघट पर पनिहारी मोबाइल वाली |
मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013
Trekking Caranzol to National Highway camp करनजोल से राष्ट्रीय राजमार्ग कैम्प तक ट्रेकिंग
गोवा यात्रा-17
करनजोल कैम्प में रात को कैम्प फ़ायर किया गया था, यहाँ कैम्प फ़ायर स्थल पर चारों और गोल घेरे में बैठने के लिये पत्थर रखे हुए थे। जिस पर बैठकर कई बन्दों/बन्दी ने अपने-अपने गायकी के हुनर का परिचय दिया था। अपने बसकी यह हुनर नहीं है। अपना हुनर, कैसा भी खतरनाक ट्रेक हो, कैसा भी लम्बी दूरी बाइक/कार से तय करना हो, यह कठिन से दिखने वाले कार्य मुझे बेहद आसान लगते है। पहाड़ की चढ़ाई पर जहाँ अधिकतर लोगों की हालात खराब होने लगती है, वही अपने मजे आने लगते है (किसी ने इसे कुछ ऐसे कहा है जहाँ तुम्हारा सफ़र समाप्त होता है वहाँ से अपना सफ़र शुरु होता है।) रात में एक विदेशी महिला की तबीयत खराब हुई थी। सुबह तक उसकी सेहत में सुधार तो हुआ था लेकिन अब चारों विदेशियों ने ट्रेकिंग बीच में छोड़कर पणजी जाने की तैयारी शुरु कर दी थी। इस कैम्प से पणजी वाला बेस कैम्प लगभग 70 किमी दूर था। इसके लिये उन्हें वहाँ तक पहुँचाने के लिये एक जीप मंगवाई गयी थी। जब तक जीप वहाँ आती तब तक हम भी नाश्ता करने के बाद लंच पैक कर आज की यात्रा पर चल दिये थे। लाल कमीज वाला विदेशी हमारे ग्रुप के कई लोगों के चिपकने की आदत से परेशान हो चुका था, जिस कारण वह किसी से बात नहीं करता था, लेकिन जब हम वहाँ से चलने लगे तो उसने गले मिलकर बाय-बाय की थी। मुझे लगा कि शायद खुशी से गले मिला होगा कि इन चिपकुओ से पीछा छूटा, इसकी खुशी मना रहा होगा
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यहाँ से विदेशी बाय-बाय कर देते है। |
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नदी पार करने के लिये बेहतरीन प्रबन्ध |
सोमवार, 4 फ़रवरी 2013
Deep Forest Trekking- Dudhsagar fall to Caranzol Camp दूधसागर झरने से करणजोल तक भयंकर जंगलों से ट्रेकिंग मार्ग
गोवा यात्रा-16
रेलवे ट्रेक से एक तरफ़ हटते ही वन्य जीवन की शानदार घाटी नुमा ट्रेकिंग करते समय हमारा मन यहाँ से कही जाने को नहीं कर रहा था। नीचे तीसरे फ़ोटो मे आप एक मकान देख रहेहै। रेलवे लाईन इसके साथ ही है और इस मकान का अब प्रयोग भी नहीं किया जाता है क्योंकि इसकी उम्र सौ साल से भी ज्यादा हो गयी है। पहले कभी रेलवे वाले इसका उपयोग करते होगे अब उन्हे भी इसकी आवश्यकता नहीं है। अब यहाँ से ढ़लान में ट्रेकिंग करते हुए जाना था। यह ढ़लान हिमालय के ढ़लानों जैसी ही खतरनाक थी। मैं अपने साथियों को बता रहा था कि बरसात के मौसम में तो यहाँ पर आना मुसीबत को न्यौता देने से कम नहीं होता होगा। इसी ढ़लान पर हम उतरने लगे। आज की ट्रेकिंग में हमें पहाड़, रेल, सुनसान व घना जंगल और नदी पार की थी।
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कैसा लगा यह फ़ोटो? |
रविवार, 3 फ़रवरी 2013
Dudhsagar through railway line and tunnel दूधसागर झरने वाली रेलवे लाइन पर, सुरंग से होते हुए ट्रेकिंग
गोवा यात्रा-15
दूधसागर झरने को देखने के बाद हम लोग इसके और नजदीक जाने के लिये पहाड़ पर ऊपर चढ़ने लगे। इस पहाड़ी पर चढ़ने के लिये जो मार्ग बना हुआ था वह ठीक वहाँ से शुरु होता था, जहाँ से जीप मार्ग समाप्त होकर पैदल इस झरने की ओर बढ़ते है, वही थोड़ा सा ध्यान दिया जाये तो सामने के जंगल में ऊपर की ओर जाती हुई पगड़न्डी दिखायी दे जाती है। इस मार्ग पर चढ़ाई लगातार जरुर है लेकिन घने जंगलों में से होकर जाते समय पता ही नहीं लगता कि कब दस मिनट समाप्त हो गये? हम ऊपर आकर रेलवे लाईन के किनारे बैठ गये। जब तक सब आते, तब तक हमने वहाँ पर अपने मोबाइल से फ़ोटो लेने जारी रखे। जब सभी ऊपर आ गये तो आगे बढ़ चले। यहाँ से हमें उल्टे हाथ की ओर रेलवे लाईन के समांनातर चलते जाना था। रेलवे लाईन के साथ चलते हुए हमें तीन सुरंगे भी पार करनी थी। नीचे वाले फ़ोटो में जो सुरंग है इसका संख्या 13 है। इसके बाद दो सुरंग और आयेंगी लेकिन उससे पहले दूधसागर झरना आ जायेगा।
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गोवा आते समय इसी रेलवे ट्रेक से आये थे, अब रेल की जगह ट्रेकिंग करते हुए जा रहे है। |
शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013
Forest Trekking to Dudhsagar water fall दूधसागर झरने की ओर जंगलों में से ट्रेकिंग
गोवा यात्रा-13
ट्रेन से उतरने के बाद हम जिस कस्बे नुमा गाँव में खड़े थे वहाँ से एक जीप लायक कच्ची सड़क दूधसागर झरने की ओर गयी थी। हमें बताया गया था कि हमें शुरु के तीन किमी ही इसी जीपेबल रोड़/सड़क पर चलना होगा उसके बाद हमें सड़क छोड़ कर वन में बनी पगड़डी पर चलते हुए वन में घुस जाना है। ट्रेकिंग शुरु करने से पहले ग्रुप लीड़र ने सबको कहा कि जिन लोगों को नारियल तेल व डिटॉल आदि खरीदना है, यही से खरीद ले। दूधसागर तक कोई गाँव, घर, दुकान आदि कुछ नहीं मिलेगा। हमें कुछ लोगों ने बताया था कि गोवा के जंगलों में अंदरुनी भागे में जाकर एक विशेष प्रकार का मच्छर जैसा जीव पाया जाता है, जिसे स्थानीय लोग कीट-कीट कहकर बुलाते है। इस जीव की खासियत यह है कि जब यह मच्छर की तरह काटता है तो शरीर में खुजली होने लगती है जो कई घन्टे तक बनी रहती है। जब अधिकतर लोग, नारियल तेल व डिटॉल खरीद चुके तो उन्होंने कहा कि संदीप जी क्या आप नहीं लगाओगे। मैंने कहा कि पहले तो इन जीवों को झेल कर देखना है कि इनके काटने से कैसा मजा आता है? अगर ज्यादा तंग हुए तो विचार किया जायेगा।
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दूधसागर के लिये ट्रेकिंग यहाँ से शुरु होती है। |
सोमवार, 14 फ़रवरी 2011
दिल्ली का जंगल, Forest in Delhi
मैं ड्यूटी पर दोपहर में लंच करके बैठा ही था। कि सोचा चलो आज सामने वाले वन में घूम कर आते हैं। जबकि मैं यहां पर पांच साल से काम कर रहा हूं, लेकिन कभी यहां जाने का ख्याल ही मन में नहीं आया | मेरा कैमरा हाथ में देख कर मेरे साथी बोले "अरे भाई किधर चले" मैं बोला चलो आज कुछ दिखा कर लाता हूं। वे बोले पहले ये बताओ कि कितना समय व पैसा लगेगा मैंने कहा "कंजूस के साथ हो तो पैसा की चिन्ता काहे करते हो" तथा बात रही समय की तो सिर्फ़ एक घंटा लगेगा इतना सुनकर मेरे साथ तीन साथी भी चल दिये। मैं उन्हे लेकर २०० मीटर दूर जंगल कम पार्क में ले गया। यह जंगल हिंदुराव अस्पताल के एकदम बराबर में हैं।
पहला फोटो हमारे कार्यालय का है।
यह फोटो हिंदुराव अस्पताल जाने वाली सडक का हैं।
ये आ गया जंगल का प्रवेश द्वार।
लो जी पडोस के जंगल के नजारे।
अरे यहां तो एक झील भी हैं।
ये लो जंगल है तो जंगली जानवर भी हैं।
पानी का स्रोत भी है।
चल भाई पेड पर चढ़ जा।
मैं बन्दर का फोटो खीचना चाहता था पर बन्दर खिचवाना ही ना चाह रहा था। मैं पीछे-पीछे बन्दर आगे-आगे। मैं भी फोटो खीच कर ही माना ।
ये देखो 25 फुट का केक्टस हमने पहली बार देखा है |
(फोटो सारे डिलीट हो गए थे ये मोबाइल से खीचे है, जब भी मौका मिला फिर खींच लाऊंगा )
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