महाभारत काल के
स्वर्गरोहिणी पर्वत व पवित्र झील सतोपंथ की पद यात्रा।
दोस्तों, बद्रीनाथ हो गया। चरण पादुका हो गया।
माना गाँव हो गया। अब चलते है स्वर्ग की यात्रा पर। स्वर्ग के नाम से डरना नहीं। इस स्वर्ग में जीते जी जा सकते
है मरने की भी टैंशन नहीं। जैसा की नाम से जाहिर है कि स्वर्ग जाना है तो यह तो
पक्का है तो यात्रा आसान नहीं रहने वाली है। आज की रात रजाई में सोने का आनन्द तो
ले ही लिया। अब लगातार 5 रात रजाई की जगह
स्लिपिंग बैग में कैद रहना पडेगा। स्लिपिंग बैग के चक्कर में ढंग से नींद भी पूरी नहीं
हो पाती। सुबह 7 बजे सभी को चलने के लिये
रात में ही बोल दिया गया था। इसलिये सभी साथी लगभग 7 बजे तक तैयार होकर कमरे से बाहर आ गये। सारा सामान खाने-पीने व रहने-ठहरने का
रात को ही लाकर कमरे में रख लिया गया था। 5 दिन की इस यात्रा के लिये कुल 11 साथी तैयार हुए थे। जिनके हिसाब से खाने-पीने का सामान कल ही खरीद लिया था।
रात को दो साथी सतोपंथ-स्वर्गरोहिणी यात्रा पर जाने की ना कह ही चुके थे। रात को सामान लाने के बाद दिल्ली वाले सचिन व जम्मू वाले
रमेश जी की तबीयत खराब हो गयी थी इसलिये इन दोनों ने तो आगे जाने से ही मना कर
दिया।
रमेश जी 52 वर्ष पार कर चुके है। वो आज दिन में चरण पादुका आने-जाने में ही मन से हिम्मत
हार चुके थे। वैसे उन्हे कोई ज्यादा समस्या
भी नहीं हुई थी। दूसरे साथी सचिन त्यागी को उनके घर से जरुरी काम का फोन आ गया (घर
से फोन न आता तो क्या सचिन जी वापिस जाते?) तो उन्हे भी यह यात्रा शुरु होने से
पहले ही छोडनी पडी। एक तरह से देखा जाये तो अच्छा ही रहा। कोई यात्रा बीच में
अधूरी छोडने से बेहतर है कि उसे शुरु ही न किया जाये। सचिन तो पूरी तैयारी कर के
आया भी था। चलो घुमक्कडी किस्मत से मिलती है यह
मैं हमेशा से कहता रहा हूँ। यहाँ इन दोनों के साथ यह बात एक बार पुन: साबित भी हो
गयी। कई यात्राओं में ऐसे साथी
भी साथ गये जो यात्रा बीच में छोड कर वापिस लौट आये। श्रीखण्ड
महादेव ट्रेकिंग वाली यात्रा में ऐसे ही एक साथी नितिन भी लापरवाही से
चलने से घुटने में चोट लगवा बैठा था। उसे उस यात्रा में दो बार चोट लगी थी। पहली
चोट तो झेल गया लेकिन दूसरी वाली चोट उसे बहुत भारी पड गयी थी। जिस कारण वह अपनी
यात्रा सिर्फ 5-6 किमी से आगे नहीं कर
पाया था।