UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-2 SANDEEP PANWAR
अमरकंटक के उस चौराहे पर जाकर
रुका जहाँ से सीधे हाथ बस अड़ड़ा पहुँच जाते है पीठ पीछे अमरकंटक से तो मैं आया ही
था। उल्टे हाथ वाला मार्ग छत्तीसगढ़ व यही मार्ग आगे सीधे चलकर कपिल मुनी धारा
जलप्रपात के लिये चला जाता है। चलिये स्नान करने की बहुत जल्दी हो रही है पहले
कपिल धारा चलते है जो लगभग 40 मीटर की ऊँचाई से गिरता हुआ जल प्रपात है।
कपिल धारा इस चौराहे से मुश्किल से 7-8 किमी दूरी पर ही है।
यहाँ तक पहुँचाने के लिये ऑटो जैसी गाडियाँ आसानी से मिलती रहती है आप इन्हे अपनी
इच्छा अनुसार प्रति सवारी या फ़िर पूरी गाड़ी किराये पर तय करके ले जा सकते हो।
मैंने जल प्रपात तक का किराया पूछा तो बताया कि 10 रुपये
लगेंगे। मैंने कहा कि कितनी सवारी भरने के बाद चलोगे? उसने कहा कि कम से कम दस
सवारियाँ लेकर जाऊँगा, लेकिन जब काफ़ी देर 7 सवारी से ज्यादा
ना हुई तो वह इतनी सवारी लेकर ही आगे चल दिया।
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गुरुवार, 5 सितंबर 2013
बुधवार, 4 सितंबर 2013
Amarkantak fair अमरकंटक नर्मदा के स्नान घाट और मेला
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अमरकंटक का नर्मदा उदगम स्थल देखने के बाद
स्नान करने की इच्छा बलवत हो उठी, लेकिन पहले सोचा कि बढ़ी हुई दाढ़ी बनवा ली जाये।
इसलिये पहले दाढ़ी बनवाई गयी। दाढ़ी बनवाने के बाद कुछ देर तक वहाँ के मेले में
घूमता रहा। सुबह का समय था इसलिये आम जनता अपने निजी कार्यों में व्यस्त दिखायी दे
रही थी। मेले को बीच में छोड़ कर पहले स्नान घाट जा पहुँचा। स्नान घाट नर्मदा उदगम
स्थल के ठीक सामने बना हुआ है। यहाँ पर नर्मदा मन्दिर से निकलने वाला जल वहाँ से
निकलकर इस स्नान घाट में प्रवेश करता है। यहाँ जल जिस मार्ग से होकर आता है उसका
आकार एक गाय के मुँह जैसा बनाया हुआ है। लेकिन जिस समय मैं यहाँ पर था उस गाय की मूर्ति
के मुँह से पानी की एक बून्द भी नहीं निकल रही थी।
मंगलवार, 3 सितंबर 2013
Starting point of Narmada River नर्मदा उदगम स्थल 39 शक्तिपीठ चण्डिका पीठ
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नर्मदा उदगम स्थल मन्दिर में प्रवेश करने से पहले
जूते-चप्पल बाहर ही उतारने होते है। मन्दिर की चारदीवारी के बाहर ही एक बन्दा दाल-चावल
माँगने के लिये बैठा हुआ था। मैंने अपनी चप्पले उसके पास ही छोड़ कर आगे बढ़ चला। वैसे
तो अपने पास चप्पल रखने के लिये बैग भी था लेकिन वहाँ भीड़ भाड़ ज्यादा ना होने के कारण
मैंने चप्पल खुले में ही छोड़नी ठीक समझी। मन्दिर के अन्दर प्रवेश करते ही सबसे
पहले मेरी नजर नर्मदा कुन्ड़ पर गयी। मैंने मन ही मन नर्मदा को स्मरण किया। यह वही
नर्मदा थी जिसे मैंने अब तक ओमकारेश्वर में व भेड़ाघाट में विकराल रुप में देख चुका
हूँ लेकिन यहाँ तो नर्मदा एकदम शांत एक कुन्ड़ में सिमटी हुई मिली।
शुक्रवार, 30 अगस्त 2013
अमरकंटक की एक निराली सुबह की झलक A rare morning in Amarkantak
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हमारी बस पेन्ड़्रा रोड़ से चलते समय कुछ दूरी तक तो शहरी आबादी से होकर चलती रही, जिस कारण बिजली वाले बल्बों के उजाले के कारण अंधेरे का पता ही नहीं लग पाया था कि बस कहाँ-कहाँ से होकर आगे बढ़ती रही। मार्ग में अंधेरा भले ही था लेकिन जब बस बलखाती नागिन की तरह झूमती हुई आगे बढ़ने लगी तो समझ में आने लगा कि बस किसी पहाड़ पर चढ़ने लगी है। जब बस मुड़ती थी तो उसकी आगे वाली हैड़ लाईट की रोशनी में इतना नजर आ रहा था कि जिससे यह पता चलने लगा था कि अब सीधी सड़क नहीं है पहाड़ आरम्भ हो गये है। अगर सीधी सड़क पर इस तरह गाडी बलखाती हुई चलने लगे तो सड़क पर चलने वाले आम लोग सड़क छोड़ कर भाग खड़े होंगे।
गुरुवार, 22 अगस्त 2013
Dhuandhaar water fall to 64 Yogini Temple धुआँधार प्रपात से चौसट योगिनी मन्दिर तक
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धुआँधार जलप्रपात देखकर व नहाने के
उपराँत मैंने नर्मदा के साथ-साथ नदी के जल की धारा के विपरीत दिशा में चलने का
फ़ैसला कर लिया। सुबह से यहाँ बैठे हुए कई घन्टे बीत चुके थे। जैसे-जैसे मैं आगे
बढ़ता जा रहा था नर्मदा भी उछल कूद मचाती हुई मेरी ओर चली आ रही थी। मैं नर्मदा के
पानी से दूरी बनाकर चल रहा था अन्यथा नर्मदा मुझे पकड़ लेती। यहाँ नदी की धारा का
बहाव काफ़ी तेज है जिस कारण पानी काफ़ी तेजी से नीचे की ओर भागता चला जाता है। पानी
तेजी से लुढ़कने के कारण नदी में पानी काफ़ी धमालचौकड़ी मचाता हुआ उछल-उछल कर आगे
चलता रहता है। पानी उछलने का मुख्य कारण तेज ढ़लान व नदी के बीच में बड़े पत्थर का
होना है। थोड़ा आगे जाने पर एक मैदान आता है जहाँ पर कुछ लोग नहा धोकर अपने कपड़े
सुखाने में लगे पड़े थे। यही नदी की धारा के साथ किनारे पर पड़े हुए पत्थरों में
बने डिजाइन को देखकर मुझे कुछ मिनट वही ठहरना पड़ा,
क्योंकि नदी
किनारे पड़े पत्थरों पर वैसे ही आकृति बनी हुई थी जैसी आकृति समुन्द्र किनारे के
खारे पानी की मार के कारण वहाँ की चट्टानों की हो जाती है।
शनिवार, 10 अगस्त 2013
Omkareshwar Jyotirlinga Temple ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर
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आज के लेख में ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा करायी जा रही है वैसे मैं इस जगह कई साल पहले जा चुका हूँ लेकिन अपने दोस्त यहाँ पहली बार गये थे। जैसा कि आपको पहले लेख में पता लग ही चुका है कि प्रेम सिंह अपने साथियों के साथ महाशिवरात्रि से दो दिन पहले ही दिल्ली से इन्दौर के बीच चलने वाली इन्टर सिटी ट्रेन से यहाँ पहुँच गये थे। इन्दौर तक उनकी रेल यात्रा मस्त रही। दोपहर के एक बजे उनकी ट्रेन इन्दौर पहुँच गयी थी। यहाँ स्टेशन से बाहर निकलते ही उन्होंने सबसे पहले पेट पूजा करने के लिये केले व समौसा का भोग लगाया, उसके बाद स्टेशन के बाहर से ही ओमकारेश्वर जाने वाली मिनी बस में बैठकर ओमकारेश्वर पहुँच गये। मैंने उन्हे कहा था कि अगर तुम्हे इन्दौर से बड़वाह पातालपानी होकर ओमकारेश्वर रोड़ की ओर अकोला तक जाने वाली मीटर गेज वाली छोटी ट्रेन मिल जाती है तो यह सुनहरा मौका मत छोड़ना, लेकिन अफ़सोस उन्हे वह रेल नहीं मिल पायी।
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