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रविवार, 25 नवंबर 2012

जैसलमेर किले में राजा की व शहर में पटुवों की हवेली का कोई सानी नहीं


जैसलमेर के किले में एक घुमक्कडी भरा चक्कर लगाते समय हमने देखा कि यह किला कोई खास ज्यादा बडा नहीं है। (दिल्ली के लाल किले जैसा) लोगों से पता लगा कि पहले इस किले से अन्दर ही सारा शहर समाया हुआ था। किले के अन्दर चारों ओर घर ही घर बने हुए है। यहाँ अन्य किलों की तरह बडा सा मैदान तलाशने पर भी नहीं मिल पाया। इसी किले में आम जनता के साथ यहाँ के राजा रहते थे। किले को आवासीय बस्ती कह दूँ तो ज्यादा सही शब्द रहेगा।
राजा का महल हवेली जैसा

गुरुवार, 22 नवंबर 2012

Jaisalmer Fort जैसलमेर दुर्ग (किला)


रात को बारह बजे के करीब हमारी ट्रेन प्लेटफ़ार्म पर उपस्थित हो चुकी थी। हम अपने डिब्बे में सवार होकर जैसलमेर की ओर प्रस्थान कर गये। चूंकि शाम के समय ही हमने टिकट बुक किया था जिस कारण हमारी सीट पक्की नहीं हो पायी थी, हाँ इतना जरुर था कि हमारी दोनों सीटे RAC में उसी समय हो गयी थी, जब हमने बुक करायी थी। दिल्ली से यहाँ आते समय तो हम साधारण डिब्बे में बैठकर आये थे। अत: RAC टिकट मिलना भी हमारे लिये कम खुशी की बात नहीं थी। हम अपनी सीट पर जाकर बैठ गये थे। आज की रात हम आराम से सीट पर बैठकर जाने की सोच ही रहे थे, कुछ ऐसी ही बाते कर रहे थे। कि तभी टीटी महाराज भी दिखाई दे गये।


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