बद्रीनाथ मन्दिर के नजदीक कमरा लेने के बाद दर्शन करने के उपराँत हम भारत की सीमा का अंतिम गाँव माणा देखने के लिये निकल पड़े। होटल वाले से माणा के मार्ग की थोड़ी भी ले ली थी। उसने बताया था कि माणा यहाँ से केवल 3 किमी दूरी पर स्थित है। बाइक से जाने में वहाँ कोई समस्या नहीं है लेकिन बीच-बीच में कई झरने आते है जहाँ पर बिना भीगे वे नाले पार नहीं किये जा सकते है। हमने जूते पहने हुए थे पहले सोचा कि चलो बैग से चप्पल निकाल कर पहन ली जाये। लेकिन वहाँ की ठन्ड़ को देखते हुए यही फ़ैसला हुआ कि चलो देखा जायेगा अगर जरुरत पड़ी तो जूते निकाल कर नाला पार कर लिया जायेगा। तीन किमी के मार्ग में कुल चार नाले मिले थे जिनमे से दो नाले तो थोड़े से शरीफ़ निकले, जिन्होंने हमें बिना किसी परेशानी के आगे जाने दिया। आखिरी के दो नाले तो जबरदस्त थे जिन्हे पार करने से पहले बाइक रोककर यह तय किया गया था कि इन्हे पार कैसे करना है? मैंने अपने साथी को इन दोनों नालों पर बाइक से उतार दिया था। बाइक इन पर पार करते समय बेहद सावधानी से पार करनी पड़ती थी। जब मैं पहले नाले को पार कर रहा था तो अगले पहिया के आगे एक पत्थर आ गया, जिसके कारण पहिया हिलने से बाइक का संतुलन बिगड़ने से मुझे अपना एक पैर पानी में रखना पड़ गया था। यह सब इतनी तेजी से हुआ था कि कब बाइक अटकी, कब पार हुई और कब जूते को पानी ने छु लिया, तेजी से बदलते घटनाक्रम ने बाइक यात्रा के रोमांच से हमें सरोबार कर दिया था। नाला पर करके पहले तो अपना पैर देखा कि कितना भीगा है जब लगा कि अरे बस इतना ही गीला हुआ, तो जान में जान आयी। जूता सिर्फ़ पंजे की ओर से भीगा था। इसके बास एक और नाला आया, यहाँ पर दुबारा से जूते गीले ना हो इस बात पर विचार किया गया। इसका सिर्फ़ एक ही समाधान निकला कि.......
यह माणा गाँव से आगे भीम पुल नाम की जगह है। |
जूते भीगने से बचाने बहुत जरुरी थे इसलिये हमने नाला पार करने के लिये जूते निकाल कर बाइक पार करना बेहतर समझा, जूते भीगने के कारण ठन्ड़ से बुरा हाल होना तय था। जूते निकाल कर नाला पार करते ही मैं जूते पहन लेता था। तीन बार ऐसे ही दोहराया गया। जब माणा गाँव दिखायी देने लगा तो खुशी से मन भर आया कि चलो आज हमने भारत का आखिरी गाँव भी देख लिया। हमने अपनी बाइक वहाँ तक पहुँचायी थी जहाँ तक बाइक जा सकती थी। आखिर में जाकर एक दरवाजा बना हुआ था वहाँ लिखा था भारत का आखिर गाँव व भारत की आखिरी दुकान। हमने उस आखिरी दुकान से कुछ नहीं खरीदा था। लेकिन वहाँ पर खड़े कुछ बन्दों से हमने यह पता किया कि भीम पुल कितनी दूर है उन्होंने बताया कि मुश्किल से आधा किमी भी नहीं है। उन्होंने हमें सुझाव दिया कि अगर आप चाहो तो व्यास गुफ़ा भी देखकर आ सकते हो। पहले हमने भीम पुल देखा, भीम पुल पार कर एक जगह बैठने का स्थान बनाया हुआ है। यह वही भीम पुल बताया गया है जो महाभारत के भीम ने द्रोपदी को नदी पार कराने के लिये एक विशाल पत्थर उठाकर नदी पर रख दिया था उसी से यह पुल तैयार हुआ था। महाभारत के पन्ड़वों की यह अंतिम यात्रा थी, इस यात्रा में पांड़व स्वर्ग रोहिणी पर्वत की ओर चले गये थे। जहाँ सबसे पहले द्रोपदी मरी उसके बाद एक-एक कर सारे पांड़व, बचे तो सिर्फ़ युधिष्टर थे। यहाँ पर कुछ पल बैठने के इरादे से बैठे ही थे कि वहाँ पर नदी की धारा का शोर इतना ज्यादा सुनायी दे रहा था कि हम फ़ोटो खिचने के बाद वहाँ से व्यास गुफ़ा की ओर बढ़ चले। कूछ देर बाद हम व्यास गुफ़ा पर पहुँच चुके थे। यह वही गुफ़ा है जहाँ पर कभी वेद व्यास जी ने महाभारत की रचना की थी। व्यास गुफ़ा देखकर हम वापिस बद्रीनाथ के उसी होटल में रात्रि विश्राम करने के लिये लौट चले जहाँ हमारा सामान सुरक्षित रखा हुआ था।
जाट देवता सच में किस्मत का धनी है। है किसी को शक! |
माणा से वापिस आते समय हमने कठिन वाले नाले जूते उतार कर बाइक पार लगायी थी। जब हम बद्रीनाथ के बेहद करीब आ गये थे तो वहाँ पर एक शराबी हमसे उलझ गया। पहले तो सोचा कि चलो इस पर हाथ साफ़ कर लिया जाये। लेकिन उसके साथ वाला आदमी उसकी गलती की माफ़ी माँगने लगा तो उसकी मरम्मत करने का इरादा रदद/कैंसिल करना पड़ा। शराबी ने हमारा मूड़ खराब कर दिया था इसलिये हम अपनी बाइक होटल की गली में लगाकर कैमरा आदि कमरे रख आये। इसके बाद भूख ने काफ़ी दबाब बनाया हुआ था उसका इलाज करने के लिये नजदीक ही बराबर में एक खाने के ढ़ाबे पर पहुँच गये।
वहाँ पर महाराष्ट्र की बाइक वाले भी खाना खा रहे थे। बातों में बातों में उनसे उनके कार्यक्रम के बारे में जाना तो पता लगा कि वे यहाँ से सीधा केदारनाथ जायेंगे। पहले हमने खाया। उसके बाद उनके साथ उनके कमरे में जाने लगा तो वे भी उसी होटल में आ गये जहाँ मैं ठहरा था। इन्होंने बताया कि हम तो यहाँ ठहरे है। जब मैंने कहा कि मैं भी इसी होटल के नीचे नदी किनारे वाले कमरे में ठहरा हूँ तो वे बहुत खुश हुए। इसे कहते है किस्मत...... यदि ये बन्दे इस होटल में ना ठहरते, यदि उसी समय खाना ना खाते, यदि बाइक चलाते समय चेहरा याद ना रखते तो क्या हम फ़िर कभी मिल सकते थे। उनके कमरे को देखने के बाद मैं उन्हे अपने कमरे में ले गया वहाँ मैंने उन्हे उतराखण्ड़ के कई नक्शे की फ़ोटो कॉपी दी। जिसका उन्हे बाद में लाभ हुआ होगा। जाते-जाते मैंने उनका फ़ोन नम्बर भी ले लिया था। उन्होंने मेरा नम्बर नोट कर लिया था। इसी फ़ोन के बहाने हम आपस में बात करते रहे। इस बाइक यात्रा पर मिलने वाले तीन दोस्त जो मेरे लिये महत्वपूर्ण है, पहला नाम नोट कमाऊ संतोष तिड़के का, दूजा नाम मस्त मौला कैलाश देशमुख का, व तीसरा नाम अपने में मस्त बाबूराव हिंगोले का है। आखिरकार एक साल वो दिन भी आया था जब मैं महाराष्ट्र में इनके गाँव मिलने गया था। इस यात्रा में हम एक दूसरे के लिये अन्जान थे। लेकिन आज हम कई-कई बार एक दूसरे के यहाँ आ जा चुके है। इन सभी बाइक वालों की हिम्मत को मेरा सलाम क्योंकि यह हर दो साल में बाइक पर नांदेड़ से बद्रीनाथ की यात्रा पर आना-जाना करते है। मैं इनके यहाँ तीन बार जा चुका हूँ। दो बार ये मेरे यहाँ आ चुके है।
लिये जा भाई मौज लिये जा |
अगले दिन सुबह चार बजे उठकर एक बार फ़िर बद्रीनाथ जी के मन्दिर में जाकर मूर्ति दर्शन किया गया। उसके बाद सुबह के ठीक 5 बजे मैंने अपनी बाइक हेमकुंठ यात्रा के लिये दौड़ा दी। बद्रीनाथ से चलने के कुछ किमी बाद एक जगह पुलिस का बैरियर आता है मैंने बाइक उसके नीचे से निकाल कर आगे की यात्रा जारी रखी। अगर कोई कार वाला होता तो उसे सुबह एक घन्टा वहाँ रुकना पड़ता। आखिरकार हनुमान चटटी के बैरियर को पार कर हम कुछ ही देर बाद गोविन्दघाट पहुँच गये थे। बद्रीनाथ से चलते समय अंधेरा था जबकि यहाँ तक आते-आते उजाला हो चुका था। यहाँ एक पार्किंग में अपनी बाइक पार्क की गयी। जिस पार्किंग मॆं हमने अपनी बाइक खड़ी की थी वहाँ पर लगभग 150-200 बाइक खड़ी हुई थी। बाइक पर यात्रा करने वाले हम जैसे हजारों है। एक अकेले सिरफ़िरे पागल नहीं है हम। अरे हाँ बसों व कार से घूमने वाले काफ़ी लोग मिल जायेंगे क्योंकि बाइक चलाना हर किसी के बसकी बात नहीं होती है। यहाँ बाइक की तीन दिन की पार्क करने की वसूली की जाती है। हमने कहा हम तो दो दिन में आ जायेंगे। तीन दिन के पैसे ही क्यो? पार्किंग वाले ने बताया कि पहले आप जाओ तो सही अगर तीन दिन में आसानी से आ गये तो बताना! अरे भाई तु हमें ड़रा रहा है भगाना चाहता है। वह बोला नहीं जी आप पहले यात्रा करके आओ फ़िर बात करेंगे। वो अलग बात है कि वापसी में वो हमें नहीं मिल सका। हम पैदल चलते ही वहाँ की पुलिस चौकी के आगे से होते हुए अलकनंदा पर बने झूला पुल को पार कर आगे बढ़ते गये। जैसे-जैसे हम आगे चलते जा रहे थे। ऊपर से आने वाली नदी के पानी की रफ़तार बता रही थी अभी बहुत बुरी हालत होने वाली है।
जाट के चक्कर में तु भी घूम आया नहीं तो इस यात्रा के बाद कितनी यात्रा की है बता देना। |
चलिये दोस्तों आप अगले लेख में देखियेगा कि इस यात्रा में दूध जैसी नदी की धारा के साथ चढ़कर जाने पर हमें कैसे-कैसे सुन्दर-सुन्दर कुदरती नजारे मिलते गये। हम उन्हें अपने मन मन्दिर में बसा कर आगे बढ़ते रहे। अगर आप को भी ऐसे कुदरती माहौल में जाना पसन्द हो तो चलते रहिये मेरे साथ।
बद्रीनाथ-माणा-भीम पुल-फ़ूलों की घाटी-हेमकुंठ साहिब-केदारनाथ की बाइक bike यात्रा के सभी लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01 आओ बाइक पर सवार होकर बद्रीनाथ धाम चले। Let's go to Badrinath Temple
भाग-02 माणा गाँव व भीम पुल से घांघरिया तक
भाग-03 फ़ूलों की घाटी की ट्रेकिंग Trekking to Velly of flowers
भाग-04 हेमकुंठ साहिब गुरुद्धारा का कठिन ट्रेक/Trek
भाग-05 गोविन्दघाट से रुद्रप्रयाग होते हुए गौरीकुंड़ तक।
भाग-06 गौरीकुंड़ से केदानाथ तक पद यात्रा, व केदारनाथ से दिल्ली तक बाइक यात्रा।
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5 टिप्पणियां:
मजा आ गया भाई ,आपने तो हमें लम्बी यात्रा का पूरा मजा दे दिया
ये गजब की यात्रा थी मजेदार और रोमांचक
रोचक..
चल रहे हैं भाई साथ-साथ :)
बन्धु मै भी दो बार माणा तक घूम आया हूँ ...पर आपका यात्रा वृत्तांत बहुत ही जीवंत होता है ... इधर कम्प्यूटर से दूर रहने के कारण ब्लोग्स को फोलो नहीं कर पा रहा हूँ ... शुभकामनाएं ...
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