जब एक फ़ौजी ने हमारी बस को रोका तो हमें लगा कि रात में कोई आतंकवादी वारदात हुई है जिस कारण सेना के जवान वाहन चैंकिग कर रहे है। हमारी बस सड़क के एक तरफ़ लगा दी गयी थी। एक फ़ौजी ने हमारी बस के चालक से कहा कि आपने आगे वाले शीशे पर जो पेपर चस्पा किया हुआ है। वह केवल अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले वाहनों पर ही लगाया जाता है। बस चालक ने बताया कि हमारी बस पिछले सप्ताह अमरनाथ यात्रा पर होकर आयी थी। इसलिये हमारी बस पर यह स्टीकर लगा हुआ है। सेना के जवान ने हमारी बस से वह स्टीकर उतरवा दिया। जम्मू से अमरनाथ यात्रा के दिनों में सेना की छत्रछाया में प्रतिदिन सुबह वाहनों का काफ़िला पहलगाँव व बालटाल के लिये चलता है। सेना प्रतिदिन वाहनों के शीशे पर पहचान का एक पेपर लगाती है ताकि कोई अवांछित वाहन अमरनाथ यात्रा के समूह में मिल कोई आतंकवादी गतिविधि ना दोहरा जाये। इसके बाद हमारी बस अपनी मंजिल पहलगाँव की ओर बढ़ चली। हमारे मार्ग में पत्नीटॉप नामक सुन्दर व शानदार जगह भी आयी। चूंकि हमारे ग्रुप की यह पहली अमरनाथ यात्रा थी इस कारण सभी बन्धु मार्ग में आने वाले प्रत्येक नजारे का लुत्फ़ उठाते जा रहे थे। मार्ग में बहुत सारे शानदार लुभावने नजारे थे, मैं उनका ज्यादा जिक्र नहीं कर रहा हूँ नहीं तो यात्रा ज्यादा लम्बी हो जायेगी। मैं आपको सीधे अमरनाथ यात्रा पर लिये चलता हूँ।
यही तालाब/झील शेषनाग कहलाती है। |
हमारी बस ने रामबन पार करने से कुछ किमी पहले एक हल्की सी चढ़ाई पर चढ़ने से मना कर दिया तो पहले तो हम सोचते रहे कि बस चालक कुछ गड़बड़ कर रहा है। लेकिन जब असलियत का पता लगा तो सबके कान खड़े हो गये। बस में कुछ तकनीकी खराबी होने के कारण बस केवल पहला गियर पकड़ पा रही थी। बाकि के गियर लगाने के लिये चालक ने बहुत कोशिश की लेकिन सारी की सारी असफ़ल हो गयी। बस चालक एक जीप में सवार होकर मिस्त्री को लेने चला गया। दो घन्टे बाद जाकर चालक मिस्त्री को लेकर आया। इसके बाद बस को ठीक होने में पूरे 6 घन्टे लग गये। हम आज की रात पहलगाँव जाने की सोच रहे थे। लेकिन आज बस खराब होने के कारण रामबन में एक जगह पर रात रुकन के लिये बाध्य होना पड़ा। अगले दिन सुबह-सुबह आगे जाने की तैयारी में लग गये। जवाहर सुरंग से कुछ दूरी पहले ही एक भण्ड़ारा लगा हुआ था। यहाँ इस भण्ड़ारे पर अलग-अलग व्यंजन का स्वाद लेते हुए हम जवाहर सुरंग पार कर कश्मीर घाटी में प्रवेश कर गये।
शेषनाग जहाँ पर कोई नाग शेष नहीं है\ |
कश्मीर घाटी में प्रवेश करते ही मौसम माहौल एकदम बदला-बदला दिखाई देता है। हमारी बस धीरे-धीरे पहलगाँव की ओर बढ़ती जा रही थी। पहलगाँव से पहले अनन्तनाग नाम का एक कस्बा आता है। जैसे ही इस कस्बे में पहुँचते है तो एक तिराहे पर आकर सामने दो मार्ग दिखाई देते है। यहाँ से सीधे हाथ वाला मार्ग पहलगाँव जाता है। उल्टे हाथ वाला मार्ग श्रीनगर होते हुए लेह की ओर चला जाता है। हमारी बस सीधे हाथ पर पहलगाँव की ओर चलती रहती है। बताते है कि यहाँ पर एक हजारों साल पुराने मन्दिर के अवशेष बचे हुए है। कभी मौका लगा तो (शायद अगले साल बाइक यात्रा में ही) अबकी बार इसे देखकर जरुर आउँगा। जब हमारी बस पहलगाँव के निकट पहुँची तो देखा कि वहाँ पर सेना के जवान सभी को बस से नीचे उतार कर एक दरवाजे से चैंकिग करते हुए आगे करते जा रहे थे। किसी को भी सामान अपने साथ लाने के लिये नहीं कहा था। जब सभी बस से उतर गये तो सेना के जवानों ने पूरी बस की तलाशी लेने के बाद ही बस को वहाँ से आगे जाने दिया गया था। सभी सवारियाँ बस से कुछ आगे खड़ी हुई थी। बस नजदीक आने के बाद एक बार सब बस में सवार हो गये। कुछ देर बाद हमारी बस ने हमें पहलगाँव पहुँचा दिया था। अभी दिन छिपने में कई घन्टे थे। इसलिये तय हुआ कि आज की रात चन्दनवाड़ी में किसी भण्ड़ारे में ही बितायी जायेगी। बस खराब होने के कारण एक दिन बर्बाद हुआ था इसलिये बस के बारे में तय हुआ कि बस कल श्रीनगर होते हुए बालटाल पहुँच जायेगी। ताकि तीन दिन की पैदल यात्रा को बालटाल उतरकर दो दिन में समाप्त किया जा सके। हमने अपना जरुरी सामान अपने साथ लेकर आगे की यात्रा शुरु कर दी।
पहलगाँव से हम सब एक मिनी बस में सवार होकर चन्दनवाड़ी की ओर रवाना हो गये। मैं बस में सीधे हाथ वाली दिशा में बैठा हुआ था। सीधे हाथ बैठने का लाभ यह हुआ कि मुझे सड़क के दूसरी ओर बेताब वैली नाम की सुन्दर घाटी दिखायी देती रही। मिनी बस लगातार चढ़ाई चढ़ती जा रही थी। मैं चढ़ाई के बजाय बेताब वैली की सुन्दर-सुन्दर घाटी को देखने में व्यस्त था। यह 11-12 किमी का सफ़र कब समाप्त हुआ पता ही नहीं लगा। जब हम चन्दनवाड़ी पहुँचे तो समय शाम के चार बज रहे थे। हमारे समूह की पूरी कोशिश यही थी कि आज के दिन जितना हो सके उतना सफ़र पैदल कर लिया जाये, लेकिन सेना के जवानों ने हमें उस समय वहाँ से आगे नहीं जाने दिया। झक मारकर हमें चन्दनवाड़ी में ही रात काटनी पड़ी। अगले दिन सुबह नहा धोकर ठीक 6 बजे हम उस जगह पहुँच गये थे जहाँ एक बैरियर बनाकर सेना के जवान बिना तलाशी लिये किसी को भी आगे जाने नहीं देते थे। बैरियर से सुबह ठीक 6:30 बजे हमारी अमरनाथ पदयात्रा की शुरुआत हो ही गयी। चूंकि अपुन तो पहाड़ पर चढ़ने के मामले में हमेशा से शातिर रहे है। अत: मौका लगते ही अपुन सबसे आगे दिखाई देने लगे। दो किमी तक सड़क पर चलने के बाद हल्की-हल्की चढ़ाई शुरु हो ही गयी। चढ़ाई देखकर मुझे हमेशा से खुशी होती रही है। चढ़ाई का मतलब सुन्दर-सुन्दर नजारे आने की सूचना होती है। सबसे पहले पिस्सू टॉप की मजेदार चढ़ाई आती है यहाँ पर मेरे जैसे कुछ सिरफ़िरे तो दे दना-दन पहाड़ पर चढ़ते चले गये। लेकिन कुछ आलसी टाइप लोग भी होते है। इस मजेदार चढ़ाई पर उनकी हालत देखने लायक होती है। हमारे साथ का एक बन्दा तो आड़ी-टेड़ी पैदल पगड़न्ड़ी छोड़कर सीधा खड़े पहाड़ पर चढ़ गया था। जब वो हमें दुबारा मिला तो मैंने उससे कहा क्यों भाई क्या खाते हो? उसने कहा था, सप्ताह में चार दिन व्रत रखता हूँ। ओ तेरी चार भूखा रह कर भी जबरदस्त ताकत स्टैमिना तुम्हारे अन्दर मौजूद है। पिस्सू टॉप के बाद आगे के कुछ किमी साधारण मार्ग जैसे ही प्रतीत होते रहे। जब सीधे हाथ एक तालाब जैसी झील दिखाई देने लगी तो मन में उत्सुकता भरने लगी कि कही यह शेषनाग झील तो नहीं है? आखिर कार जब यह पक्का हो गया कि दिखायी देन वाली झील शेषनाग झील ही है तो अपनी तूफ़ानी रफ़्तार पर कुछ देर तक विश्राम मुद्रा में बदल देना पड़ा था।
शेषनाग झील के किनारे घन्टा भर बिताने के बाद हम त्रीव गति से आगे चल रहे तीन बन्दे अगली मंजिल पंच तरणी की ओर बढ़ने लगे। शेषनाग तक तो सूखा पहाड़ था। लेकिन यहाँ से आगे बढ़ते ही बर्फ़ में घुसना पड़ गया। जैसे-जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे बर्फ़ गहरी होती जा रही थी। वो तो शुक्र रहा कि यह बर्फ़ मुश्किल से तीन किमी तक ही मिली थी। तीन किमी बाद महागणेश टॉप की चढ़ाई दिखायी देने लगी। यह चढ़ाई अमरनाथ यात्रा में सबसे ज्यादा ऊँची जगह है। इस चढ़ाई को चढ़ने में किसी को किसी किस्म की समस्या नहीं आती है। यहाँ सबसे ऊँची जगह पर सेना के जवान गर्मागर्म पानी पिलाकर यात्रियों की मदद करते है। मैंने भी एक गिलास गर्म पानी पिया था। इस गणेश स्थान से आगे कई किमी तक लगातार ढ़लान मिलती रहती है। जब हमें चढ़ने में कोनो परेशानी ना आवत तो उतरन में भलो कहाँ से परेशानी आनी थी। उतराई समाप्त होते-होते पंचतरणी दिखायी देने लगती है। जब हम पंचतरणी पहुँचे तो समय देखा दिन के 3 बजे थे। समय कह रहा था चलो जवानों अभी सिर्फ़ 6 किमी ही तो बचे है। जिसमें आपको सिर्फ़ 2 घन्टे का समय भी नहीं लगने वाला है। इसलिये हम दोनों (जी हाँ तीसरा साथी थकावट के कारण पीछे रह गया था।) आगे अमरनाथ गुफ़ा पहुँचने के लिये चल दिये। जैसे ही हमने पंचतरणी पार कर आगे चलना शुरु किया तो सेना के जवानों ने हमारा रास्ता रोक कर कहा कि अब आप यहाँ से आगे नहीं जा सकते हो। यदि आपको आगे जाना है तो कल सुबह यात्रा शुरु करनी होगी। मरते क्या ना करते, पंचतरणी में सबसे आगे का (अमरनाथ की दिशा में) भण्ड़ारा पंजाब में किसी बुटलाड़े वालों का लगाया हुआ था। हमने रात को वहाँ ठहरने के बारे में बात की तो उन्होंने हमसे हमारा पहचान पत्र लेकर रात्रि विश्राम के लिये कम्बल और जगह उपलब्ध करा दी।
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1 टिप्पणी:
मेरी जिंदगी की सबसे बेहतरीन यात्रा है अमरनाथ यात्रा . सुन्दर वर्णन सनदी भाई . यादे तारो ताजा हो गयी
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