जहाँ पठानकोट तक आते-आते हम भीगे हुए थे, उसके विपरीत जम्मू आते-आते हमारे कपड़े पूरी तरह सूख चुके थे। जम्मू में सतावरी चौक के पास ही विशेष मलिक के चाचा सपरिवार रहते थे। अगले तीन दिन तक हम इन्ही के यहाँ ठहरने वाले थे। जिस दिन हम जम्मू पहुँचे उस दिन हमने घर से बाहर कदम नहीं रखा था। अरे हाँ घर की छत पर ताजे-ताजे कच्चे-पक्के आम लगे हुए थे। हम छत पर जाकर आम खाने में मशगूल हो चुके थे। शाम को खाना खा पीकर हमने टीवी पर समाचार देखकर कई दिनों बाद दीन दुनिया का सूरते हाल जाना था। हमने अगले दिन अमरनाथ जाने की योजना बनानी चाही थी लेकिन जहाँ से अमरनाथ यात्रा आरम्भ होती है वहाँ पर लगे काऊँटर से हमने अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिये पता किया, उन्होंने बताया कि बिना यात्रा पर्ची के आप बालटाल व पहलगाँव से आगे नहीं जा सकते है। हमने कहा कि पर्ची बना दो, उन्होंने कहा अपने पहचान पत्र दिखाओ, हमने वो भी दिखा दिये। लेकिन इसके बाद उन्होंने कहा कि हमारे पास 20 दिन बाद की पर्ची बची हुई है। बीस दिन हम वहाँ क्या करते? इसलिये हमने अमरनाथ AMARNATH YATRA जाने की योजना बन्द कर वैष्णों देवी दर्शन करने की योजना बना ड़ाली थी। इसके बाद हम वापिस जम्मू विशेष के चाचा के घर लौट आये। वैष्णों देवी जाने के लिये हमने अगले दिन सुबह 4:30 मिनट पर अपनी बाइक पर सवार होकर हवा से बाते करना शुरु किया।
हिमाचल की इस पहली लम्बी बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01 दिल्ली से कुल्लू मणिकर्ण गुरुद्धारा।
भाग-02 रोहतांग दर्रा व वापसी कुल्लू तक
भाग-03 रिवाल्सर झील, चिंतपूणी मन्दिर, ज्वाला जी मन्दिर, कांगड़ा मन्दिर।
भाग-04 चामुंण्ड़ा से धर्मशाला पठानकोठ होकर जम्मू तक।
भाग-05 जम्मू से वैष्णों देवी व दिल्ली तक की बाइक यात्रा का वर्णन।
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ये मौसम भीगा-भीगा है। |
हिमाचल की इस पहली लम्बी बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01 दिल्ली से कुल्लू मणिकर्ण गुरुद्धारा।
भाग-02 रोहतांग दर्रा व वापसी कुल्लू तक
भाग-03 रिवाल्सर झील, चिंतपूणी मन्दिर, ज्वाला जी मन्दिर, कांगड़ा मन्दिर।
भाग-04 चामुंण्ड़ा से धर्मशाला पठानकोठ होकर जम्मू तक।
भाग-05 जम्मू से वैष्णों देवी व दिल्ली तक की बाइक यात्रा का वर्णन।
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भैरों मन्दिर में |
जम्मू शहर में कई किमी चलने के बाद पहाड़ियाँ शुरु हो जाती है, पहाड़ियाँ आने के बाद बाइक व अन्य गाड़ियों की गति पर ब्रेक लगना स्वाभाविक सी बात है। एक जगह जम्मू से श्रीनगर उधमपुर जाने वाला मार्ग कटरा जाने वाले मार्ग से अलग होता है। इस मोड़ से आगे जाने पर एक जगह पुलिस का बैरियर आता है यहाँ मैंने पहले देखा था कि पुलिस किसी भी वाहन को बिना चैक किये जाने नहीं देती है। लेकिन उस दिन पता ही नहीं था कि पुलिस आखिर कहाँ घास चरने गयी थी। हम इस चैक पोस्ट से बिना चैंकिग आगे चले गये। हो सकता है कि उस समय सुबह का समय होने के कारण पुलिस लापरवाह हो गयी हो, लेकिन यह गलत बात है। इसका फ़ायदा आतंकवादी या अराजकता फ़ैलाने वाले लोग उठा सकते है। शायद कुछ घटनाएँ सुबह के समय ऐसी हुई भी है जहाँ पर आतंकवादी हमले हुए है। हम कटरा पहुँचकर पर्ची वाले काऊँटर के पास बाइक समेत खड़े थे, वहाँ कुछ सिपाही बोरियाँ लगाकर खड़े थे। उन्होंने हमें कहा कि यहाँ से हट जाओ यहाँ खड़ा होना मना है। ले भाई हट गये, हम वहाँ से 100 मीटर आगे जाकर खड़े हो गये। मैंने मलिक को बाइक के पास ही खड़ा कर दिया था ताकि कोई लावरिस बाइक देखकर/आतंकवादी की बाइक समझ उठाकर ना ले जाये। मैं पहले भी यहाँ आ चुका हूँ जब मैं बस में बैठकर अमरनाथ गया था। तब वापसी में वैष्णों देवी की यात्रा भी की गयी थी। मैं पर्ची काऊँटर से दोनों की पर्ची बनवा लाया था। यहाँ एक बन्दे को कई लोगों की पर्ची एक पर्ची में ही बना कर दे दी जाती है, पर्ची में कितने आदमी है उनमें से कितने पुरुष, कितनी औरत है? किस जिले से आये हो, बस यह बताने पर ही पर्ची मिल जाती है। हमने पर्ची लेकर पैदल यात्रा के मुख्य प्रवेश द्धार की ओर प्रस्था किया। पर्ची केन्द्र से प्रवेश द्धार पौने किमी की दूरी पर स्थित है। हमने अपनी बाइक इस द्धार के ठीक सामने एक पार्किंग मॆं लगा दी। दू पार्किंग का क्या लाभ होता?
हमने इस द्धार पर अन्य भक्तों सहित पैदल चलना आरम्भ किया। आगे जाने पर हमारी पर्ची व कपड़े का थैला चैक किया गया। चैंकिग के बाद हम आगे बढ़ते रहे। यह वो साल था जब मैंने एक साल से साईकिल को हाथ भी नहीं लगाया था। साइकिल ना चलाने का लाभ मुझे नहीं हुआ, बल्कि ट्रेकिंग करते समय शारीरिक समस्या सामने आयी थी। ऊपर चढ़ाई पर चढ़ते समय अपुन को कभी कैसी भी समस्या नहीं आती है। साँस फ़ूलने की थोड़ी बहुत दिक्कत तो हर किसी को आती ही है। हम ऊपर चढ़ते समय जितने भी सीढियाँ आती थी उन पर चढ़ जाते थे। सीढ़ियों पर चढ़ने का फ़ायदा यह होता है कि हमें ज्यादा घूम कर नहीं आना पड़ता है। पूरी यात्रा को ऊपर तक चढ़ने में हमें मुश्किल से तीन-साढ़े तीन घन्टे का समय ही लगा होगा। ऊपर जाकर अपना नम्बर देखा तो पता लगा कि अभी एक घन्टे से ज्यादा का समय लग जायेगा। इसलिये हमने नहाना धोना करने के बाद लाईन में लग गये तब तक हमारा नम्बर भी आ गया था। लाईन बहुत ज्यादा लम्बी नहीं थी इसलिये आधे घन्टे में ही हम गुफ़ा में पिन्ड़ी दर्शन कर बाहर आ गये थे। अब यहाँ से भैरों नाथ भी जाना था उसके बिना यहाँ आना बेकार माना जाता है। यहाँ भी एक किमी की चढ़ाई चढ़्कर हम भैरों पहुँच ही गये। यहाँ कुछ देर आराम कर हमने जितने शार्ट कट दिखायी देते थे उतने प्रयोग किये। सारे शार्टकट प्रयोग करने का नतीजा यह हुआ कि आखिर के दो किमी शेष रहते समय घुटने में दर्द होना शुरु हो गया था। घुटने में दर्द होता देख मैंने सड़क मार्ग से बाकि की यात्रा पूरी की।
आराम-आराम से आनी बाइक के पास आ पहुँचे। यहाँ बाइक एकदम गेट के किनारे ही पार्क की हुई थी इसलिये दर्द करते हुए पैर को इस बात से बड़ी राहत मिली थी। हमने अपनी बाइक स्टार्ट कर वापसी की यात्रा जम्मू के लिये शुरु कर दी। लगभग दो घन्टे से भी कम समय में हम जम्मू पहुँच चुके थे। जब हम जम्मू वाले घर पहुँचे तो वहाँ के लोगों को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि अरे इतनी जल्दी कैसे आये? क्या यात्रा पूरी नहीं की, आदि-आदि बाते........ खैर उन्हें पूरी बात बतायी। रात को सोने में बड़ा माज आया था। अगले दिन हमने जम्मू शहर के रघुनाथ मन्दिर आदि घूमने की योजना बना ड़ाली। अगले दिन सारे मन्दिर देखकर दोपहर तक फ़िर से घर पहुँच गये। आधा दिन खाली बैठे-बैठे बिस्तर पर पड़े रहे। शाम को फ़ैसला हुआ कि कल दिल्ली प्रस्थान कर दिया जायेगा। इसलिये अगली सुबह हमने सुबह के ठीक 5 बजे अपनी बाइक घर से बाहर निकाल कर जम्मू से दिल्ली जाने हाईवे दौड़ानी शुरु कर दी थी। हमारे साथ दूसरी कोई बाइक तो थी नहीं कि जिससे हमें किसी और का ध्यान या ख्याल रखना होता, हम अपनी सुरक्षित गति 55-60 के आसपास चल रहे थे। बीच में पठानकोट से पहले एक जगह अमरनाथ यात्रियों के लिये भन्ड़ारा लगा रहता है। हमने यहाँ पर रुककर सुबह का नाश्ता किया। पेट पूजा करन के बाद हम फ़िर से राजधानी दिल्ली की ओर चल दिये। पठानकोट में आने पर थोड़ा सा असंमजस वाली हालत हो जाती है क्योंकि यहाँ पर जम्मू से आने वाली सड़क सीधे अमृतसर की ओर चली जाती है दिल्ली जाने के लिये नहर पार कर उल्टे हाथ की ओर चलना होता है।
यह फ़ोटो पंजाब में लिया था कहाँ का याद नहीं है। |
पठानकोट से हम लोग यहाँ आये थे इसलिये हमें उस गड़बड़ का पता था लेकिन मेरी पहली लेह वाली यात्रा से लौटते समय मेरे दोनों सथियों को इस बात का पता नहीं था इसलिये वे अमृतसर की ओर चले गये थे। हमने मैं और विशेष मलिक ने इसी नीली परी पर दो बार जम्मू (कटरा) से दिल्ली तक का सफ़र/यात्रा की है। पठानकोठ से हम दोनों अपनी नीली परी पर सवार होकर जालंधर से होकर लुधियाना की ओर आये थे। पठानकोठ से जालंधर तक की सड़क उस समय बन रही थी। इसलिए कभी हम सड़क के इस तरफ़ आते, कभी उस तरफ़ आते। जालंधर के बाद लुधियाना तक सड़क एकदम मस्त हालत में मिली थी। लेकिन यहाँ पर जगह-जगह फ़्लाईओवर बनाने के कारण हर 10 किमी के आसपास/ या किसी गाँव आने के साथ ही डिवाईड़र बने होने के कारण अपनी गति धीमी करनी पड़ती थी। हमने अम्बाला पहुँचकर कुछ खाया था। अम्बाला में हम ज्यादा नहीं रुके थे सिर्फ़ भोजन किया और चलते बने।
यहाँ यह स्पष्ट करना जरुरी है कि जालंधर से दिल्ली तक हम हर पचास किमी बाद कुछ मिनट के लिये बाइक समेत रुक जाते थे। ज्यादा लम्बे सफ़र में बाइक पर बैठे-बैठे पिछवाड़ा दुखने लगता था। इसलिये हम हर 50 किमी बाद बाइक को कुछ देर रोककर घास में बैठ जाते थे। जब हम बाइक से उतरते थे तो पहले एक मिनट हमारी हालत रोबोट जैसी होती थी उसके अगले मिनट एक फ़ुन्सी वाले मरीज जैसी होती थी। हाँ कुछ देर विश्राम करने के बाद जब हम पुन: खड़े होते थे तो एकदम जवान चुस्त हो जाते थे। लेकिन अगले एक घन्टे में वही रोबोट वाली कहानी दोहरायी जाती थी। इसी रोबोट वाली कहानी को हमने 7-8 बार दोहराया होगा। लेकिन हमने कही हिम्मत नहीं हारी। दिल्ली पहुँचने तक अंधेरा नहीं होने दिया। जब हम घर पहुँचे तो दिन छिपने में अभी आधा घन्टा बाकि था।
दोस्तों बाइक की यह हिमाचल जम्मू की यात्रा तो यही समाप्त होती है, अगली यात्रा में आपको फ़िर से एक सप्ताह की पहाड़ की यात्रा पर लेकर जा रहा हूँ। लेकिन अबकी बार बाइक की जगह बस की पहली लम्बी यात्रा पर लेकर जाऊँगा, सोचिए कहाँ कहाँ की यात्रा हो सकती है? हाँ इसमें मैंने पंजाब व जम्मू के साथ कश्मीर की यात्रा की थी।
हिमाचल की इस पहली लम्बी बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01 दिल्ली से कुल्लू मणिकर्ण गुरुद्धारा।
भाग-02 रोहतांग दर्रा व वापसी कुल्लू तक
भाग-03 रिवाल्सर झील, चिंतपूणी मन्दिर, ज्वाला जी मन्दिर, कांगड़ा मन्दिर।
भाग-04 चामुंण्ड़ा से धर्मशाला पठानकोठ होकर जम्मू तक।
भाग-05 जम्मू से वैष्णों देवी व दिल्ली तक की बाइक यात्रा का वर्णन।
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4 टिप्पणियां:
ठंड में पानी बरस जाये तो बड़ा कष्ट हो जाता है।
जियाले रोबोट - जा टू :)
अगली यात्रा अमरनाथ की?
जाट बलवान, जय भगवान
सँदीप भाई जी लम्बे सफर मे बाईक पर थक तो जाते ही है फेर तो ऐसा लगे कोई और ही उतार दे बाईक पे से ।
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