सन 2006 में अगस्त माह की शुरुआत ही
हुई थी कि मन में विचार आया कि चलो काफ़ी दिन हो गये है बाइक उठाकर कही घूम आया
जाये। इसलिये मैंने अपनी नई बाइक Ambition
135 cc से पहाड़ की एक यात्रा करने का प्लान बनाया।
मेरे कार्यालय के सभी सहकर्मी जानते थे कि यह बन्दा हर दूसरे-तीसरे माह कही ना कही
घूमने निकल जाता है। मेरी बद्रीनाथ, फ़ूलों की घाटी, हेमकुन्ठ साहिब, केदारनाथ
यात्रा के बारे में जैसे ही कार्यालय वालों को पता लगा तो साथ में काम करने वाला
एक बन्दा बाइक यात्रा के बारे में सुनकर मेरे साथ जाने की कहने लगा। पहले तो मैंने
उसे समझाया कि देख भाई हम बाइक पर जा रहे है। बाइक यात्रा के बारे सुनते ही आधे लोगों
की फ़ूँक तो वैसे ही सरक जाती है, और जिसकी थोड़ी बहुत हवा निकले बिना रह जाती है
उसकी कसर उसके घरवाले/घरवाली उसकी वालबोड़ी खोल कर रही सही कसर पूरी कर देते है।
अत: भाई अगर तुम्हे बाइक पर जाना है तो पहले अपनी हवा के बारे में पक्का प्रबन्ध
कर ले, कही तुम उसी दिन, जिस दिन हम जाने वाले होंगे, मुझे
कहोगे कि मम्मी नी मान रही है,
बहिन को लेकर जाना है, भाई
को छुट्टी नहीं मिली घर पर रहने वाला कोई नहीं है। आदि-आदि बहाने लोग बनाते है
मुझे इन बहानों की आदत पड़ गयी है। इसलिये पहले अपने घर से हाँ करवा लो तब मुझे
हाँ करना।
Jatdevta Sandeep Arya (Panwar) बद्रीनाथ मन्दिर में |
मेरे साथ जाने वाले बन्दे ने पता नहीं अपने घर
बताया था या नहीं, लेकिन अगले दिन उसने कार्यालय आकर मुझे कहा कि उसकी माताजी
ने बद्रीनाथ जाने की आज्ञा प्रदान कर दी है। ठीक है भाई अगर घर से इजाजत मिल गयी
है तो बहुत अच्छे। मैंने उसे कहा कि ठीक है कल कार्यालय आते समय अपना सामान कपड़े
आदि लेते आना क्योंकि हम यहाँ डयूटी से ही सीधे, मेरे घर चलेंगे। मेरे घर से सीधे
ऋषिकेश के लिये निकल जायेंगे। अगले दिन मैं अपनी बाइक लेकर ड़य़ूटी पर गया था वहाँ
से उसे साथ लेकर हमने दोपहर दो बजे कार्यालय छोड़ दिया था। पहले तो हम सीधे मेरे घर
पहुँचे, मेरा घर दिल्ली से ऋषिकेश जाने वाले मार्ग पर ही आता है।
इसलिये मैं अपना बैग नही लाया था। शुक्रवार का दिन था उस समय मेरे कार्यालय का समय
सुबह नौ बजे से लेकर शाम के साढ़े पाँच तक हुआ करता था। शनिवार व रविवार का अवकाश
हुआ करता था। आजकल मैं जहाँ कार्य कर रहा हूँ वहाँ पर सुबह नौ से दोपहर तीन बजे तक
ही कार्य करना होता है। घर पहुँचकर मैंने अपना सामान उठाया, मैंने
अपना सामान रात में ही पैक कर दिया था। इसलिये घर पर ज्यादा समय ना लगाते हुए हम
ऋषिकेश के लिये रवाना हो गये। लोनी बार्ड़र से मुरादनगर तक गंगा जल लाने के लिये
पाइप लाईन बनायी गयी है इसके बराबर में ही एक सड़क भी बनायी हुई है। इस पाइप लाईन
वाली सड़क से होकर हम मुरादनगर गंग नहर के पुल पर पहुँच गये। यहाँ से मेरठ बाई पास
व मुज्जफ़र नगर बाई पास होते हुए हम रुड़की पार कर गये। हरिद्धार पहुँचने तक हमें
हल्का-हल्का अंधेरा होने लगा था। हम बिना रुके ऋषिकेश के लिये चलते रहे। रात के
साढ़े आठ बजे हम ऋषिकेश पहुँच गये थे।
ऋषिकेश पहुँचकर हमने एक दो जगह कमरे की बात की, लेकिन
सही कीमत पर बात नहीं बनी। बाइक तो हमारे पास थी ही इसलिये पहले हमने राम झूले से
गंगा नदी पार की, उसके बाद गंगा पार करने के बाद एक गली में जाकर 150 में
एक बहुत ही शानदार कमरा मिल गया। कमरा देखकर लग रहा था कि यह ज्यादा राशि का होगा, लेकिन
रात के नौ बजे का समय होने व हमारे यह बताने पर कि हम सुबह 5-6 के
बीच में निकल जायेंगे। हो सकता है कि इस कारण से भी कमरा की कीमत ठीक-ठाक एकदम
उचित बतायी हो। खाना खाने के लिये बाहर जाने की जरुरत ही नहीं पड़ी थी, क्योंकि
घर से रात का खाना बंधवा कर लाये थे। घर का खाना खाकर शानदार कमरे में सो
गये। सुबह चार बजे का अलार्म बजने पर आँख खुली तो उठकर जरुरी कार्य से निपट कर
नहाया धोया गया। जब तक दोनों तैयार हुए सुबह के साढ़े 5 बज
चुके थे। होटल वाले को कमरे की चाबी सौंप कर, मैंने बाइक बद्रीनाथ की और दौड़ा दी।
सबसे पहले गंगाजी को राम पुल के ऊपर से पार किया। इसके बाद बद्रीनाथ मार्ग पर (गंगौत्री वाले पर नहीं) सीधे चलते रहे। कुछ आगे जाने पर एक जगह पुलिस का बैरियर
लगा हुआ था। वहाँ काफ़ी गाड़ियाँ लाइन में लगी हुई थी हम उन्हे पीछे छोड़ते हुए
बिना लाइन के आगे बढ़ते गये। जहाँ बैरियर बन्द था, वहाँ एक पुलिस वाले से
यातायत रोकने का कारण पूछा तो उसने बताया कि सुबह छ: बजे के बाद ही इस मार्ग पर
यातायात आगे ऊपर के लिये छोड़ा जाता है। रात को आठ बजे के बाद भी इस बैरियर से आगे
जाना बन्द कर दिया जाता है।
बैरियर खुलने के साथ ही हम अपनी बाइक समेत सबसे
आगे उड़ चले। बैरियर के दोनों और वाहन खड़े थे, लेकिन बाइक के लिये ऐसे छोटे-मोटे जाम से कुछ फ़र्क नहीं
पड़ता है इसलिये हम वाहनों की भीड़ से आगे चलते रहे। इसी मार्ग पर गंगा पर पड़ने
मशहुर प्रयाग आते है। वैसे तो पंच प्रयाग के नाम से लोग उन्हे जानते है लेकिन सबसे
बड़ा प्रयाग तो प्रयाग यानि इलाहाबाद में ही है। यहाँ पर आने वाले प्रयाग में सबसे
प्रयाग में रुद्रप्रयाग या अन्य किसी में मैंने आजतक स्नान नहीं किया है। कहते है
इन संगमों में स्नान करने से जन्म-जन्म के पाप के धुल जाते है। लेकिन मुझे
लगता है कि मेरे पाप तो माइनस Minus में चल रहे होंगे, इसलिये अगर इन प्रचलित स्थानों पर स्नान नहीं कर पाया तो कि फ़र्क पैंदा है यारो। सबसे पहले जो प्रयाग आता है उसे देव प्रयाग कहते है। यहाँ पर अलकनंदा व
भागीरथी नदी का संगम होता है, इसके बाद ही गंगा नदी की असली शुरुआत होती है गौमुख
से यहाँ इस संगम तक आने वाली नदी भागीरथी कहलाती है। यहाँ पर दोनों नदी के जल की गुण दिखायी देते है। मंदाकिनी व अलकनंदा के संगम को रुद्रप्रयाग कहते है।
अलकनंदा व पिण्ड़र नदी के संगम को कर्ण प्रयाग कहते है। नंदाकिनी व अलकनंदा के संगम
को नंद प्रयाग कहते है। धौली गंगा व अलकनंदा के संगम को विष्णु प्रयाग कहते है। आगे वाले सभी
प्रयागों को देखते हुए हमारी बाइक आगे बढ़ती रही। वैसे मैंने रुद्रप्रयाग, विष्णु प्रयाग, कर्ण प्रयाग, (सोन प्रयाग भी मैंने देखा है। वह केदार नाथ वाले मार्ग पर आता है।) नन्द प्रयाग, देव प्रयाग, यानि कि सभी प्रयागों को कई बार देखा हुआ है।
जोशी मठ तक पहुँचने में कोई खास समस्या नहीं आयी थी। जोशीमठ में जाते समय हमने नरसिंह भगवान के मन्दिर में उस दुर्लभ मूर्ति के दर्शन भी किये थे, जिसके बारे में कहा जाता है कि एक दिन ऐसा भी आयेगा जब इस मूति का एक हाथ घिसने की वजह से टूटने के कारण अलग हो जायेगा। जिस दिन यह हाथ इस मूति से अलग होगा, वह दिन बद्रीनाथ धाम ( मन्दिर ) का अंतिम दिन होगा। अब भविष्य में क्या घटित हो इसका अपुन को नहीं मालूम है, लेकिन बताते है कि उस प्रलय वाले दिन बद्रीनाथ मन्दिर के दोनों और के नर और नारायण पर्वत जलजले के कारण आपस में टकरायेंगे। और इनके मलबे में बद्रीनाथ धाम दफ़न हो जायेगा। चलो एक बार मान लिया जाये कि एक दिन यह सब होगा। इसका भी पुराण आदि लिखने वालों ने पहले से सोचा हुआ है कि उस घटना के बाद बद्रीनाथ जी की पूजा-पाठ भविष्य बद्री नाम की जगह पर हुआ करेगी।
हम जोशीमठ के बहुत आगे जा चुके थे, यहाँ पर हमें बेहद ही खराब हालत में सड़क मिली थी जिस पर बेहद ही मजबूती से बाइक का हैंड़िल पकड़ कर बाइक चलानी पड़ रही थी। यहाँ पर सड़क पहाड़ के बिल्कुल नीचे से खोदकर बनायी गयी है, जिसके नीचे से जाने में रोमांच तो होता ही है, साथ ही दिमाग की आँख भी खुली रहती है जो कहती है बेटा.. यहाँ से जल्दी से निकल ले, नहीं तो कोई सा पहाड़ का तिनका खिसक गया तो तेरा तो तेरा, तेरी बाइक का भी कचूमर निकल जायेगा। एक तो सड़क कबाड़ा ऊपर से पहाड़ हवा खराब करने वाला, अब बाइक हो या गाड़ी। चलाने वाला करे भी तो क्या करे? आखिरकार वाहन चालक सोचने लगते है जो होगा देखा जायेगा। हम भी इसी सोच जो होगा देखा जायेगा (अब कोई वही पत्थर नीचे दब कर टॆ बोल जाये फ़िर क्या कददू देखेगा?) की तर्ज पर चलते रहे। गोविन्द घाट नाम की जगह पर एक गुरुद्धारा आता है। हमारे पास समय तो बहुत था लेकिन वापसी भी यही से फ़ूलों की घाटी व हेमकुन्ठ साहिब यात्रा भी यही से करनी थी इसलिये हम यहाँ नहीं रुके। यहाँ से आगे जाने पर मार्ग की हालत थोड़ा सा कठिन चढ़ाई वाली आ जाती है। यहाँ पर हमें महाराष्ट्र की नम्बर प्लेट वाली तीन बाइक मिली थी, तीनों बाइक पर दो-दो बन्दे थे, हम भी दो थे। जब मार्ग कुछ समतल सा आता था तो महाराष्ट्र वाले आगे निकल जाते थे लेकिन जब चढ़ाई आती थी तो मैं उनसे आगे निकल जाता था। हमारी यह आँख मिचौली बद्रीनाथ मन्दिर की आबादी आने तक चलती रही। इसी बीच जब बद्रीनाथ की आबादी शुरु हो गयी तो मैंने पहले कुछ देर रुक कर धर्मशाला देखते हुए आगे बढ़ते रहे।
मन्दिर का एक जगह से बहुत अच्छा फ़ोटो आ रहा था। मैंने वहाँ पर उस समय लिया गया वो फ़ोटो आज के लेख में लगाया है। अभी दिन छिपने में दो घन्टे बाकि थे इसलिये हमने पहले तो एक कमरा तलाश किया, कमरा तलाश करते-करते हम मन्दिर के बेहद नजदीक पहुँच गये थे। यहाँ हमने मन्दिर के नजदीक एक होटल में 200 रुपये में एक कमरा तय कर, उसमें अपना सामान पटक कर, सबसे पहले बद्रीनाथ मन्दिर में दर्शन जाने से पहले साथ लगे हुए गर्मागर्म पानी के कुन्ड़ में स्नान किया था। यहाँ पर पानी बेहद ही गर्म था कि शीतल जल मिलाकर स्नान करने लायक बनाया गया था। मन्दिर में अन्दर जाकर देखा कि वहाँ पर हम जैसे फ़्री वाले भक्तों को दूर से ही दर्शन कराये जा रहे थे और पैसे देने वालों को अन्दर बैठाया जा रहा था। इन पुजारियों का भिखारी वाला रुप देखकर मन खुश हो गया था। एक हिन्दी फ़िल्म आयी थी OMG जिसमें धर्म को व्यापार में बदलने वाले लोगों पर करारा वार किया गया है। अपुन तो वैसे भी मन्दिर में सिर्फ़ मूर्ति देखने जाते है। पूजा-पाठ करने तो माँगने वाले लोग जाते है। आधे घन्टे में सारा काम निपटा कर वापिस कमरे पर आये, इसके बाद भारत के अंतिम गाँव माणा को देखने के लिये प्रस्थान कर दिया।
अगले लेख में माणा गाँव का भीम पुल व व्यास गुफ़ा का चित्र दिखाया जायेगा। उसके बाद फ़ूलों की घाटी के लिये बाइक दौड़ा दी जायेगी।
बद्रीनाथ-माणा-भीम पुल-फ़ूलों की घाटी-हेमकुंठ साहिब-केदारनाथ की बाइक bike यात्रा के सभी लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01 आओ बाइक पर सवार होकर बद्रीनाथ धाम चले। Let's go to Badrinath Temple
भाग-02 माणा गाँव व भीम पुल से घांघरिया तक
भाग-03 फ़ूलों की घाटी की ट्रेकिंग Trekking to Velly of flowers
भाग-04 हेमकुंठ साहिब गुरुद्धारा का कठिन ट्रेक/Trek
भाग-05 गोविन्दघाट से रुद्रप्रयाग होते हुए गौरीकुंड़ तक।
भाग-06 गौरीकुंड़ से केदानाथ तक पद यात्रा, व केदारनाथ से दिल्ली तक बाइक यात्रा।
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5 टिप्पणियां:
बहुत ही बढ़िया यात्रा है २ ० ० ८ में मेने भी की थी और यही का फोटी है मेरा भी
मोटरसाइकिल की इतनी लम्बी यात्रा सच में साहस का कार्य है।
स्वागत ! दो बार मैं भी हो आया उधर !!
जाट भैया राम राम, में भी इस पाइप लाइन पर ही रहता हूं भारत सिटी सोसाइटी में आगे से कभी भी इस पाइप लाइन से निकलना हो तो कृपया एक बार जरूर सेवा का मौका जरूर देना
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