सोमवार, 29 जुलाई 2013

Chandra Bhaga/Chenab river Bridge चन्द्रभागा/चेनाब नदी पर बना शुकराली पुल

SACH PASS, PANGI VALLEY-06                                                                      SANDEEP PANWAR
रात दस बजे के करीब पांगी घाटी की मुख्य तहसील किलाड़ कस्बे में हमारा आगमन हुआ। छोटा हाथी वाला हमारी बाइके समेत एक होटल के सामने आकर रुक गया। वहाँ उसने कमरे के लिये पता किया लेकिन जवाब मिला कि कोई कमरा खाली नहीं है। उस होटल के आसपास कई होटल और भी थे लेकिन किसी में कमरा खाली नहीं मिला। कमरा देखना छोड़कर पहले हमने गाड़ी से अपनी बाइके उतारी, उसके बाद किलाड़ में वापसी की ओर चल दिये। मैंने अपनी बाइक स्टार्ट की ओर कुछ सौ मीटर वापिस आकर कमरा देखने चल दिया। यहाँ आते समय मुख्य बस अडड़े वाले मोड़ पर एक ढ़ाबे में खाना-पीना चल रहा था। हम सीधे उसी ढ़ाबे वाले के पास आये



ढ़ाबे का मालिक एक 70-75 साल का बुजुर्ग था जो उस समय अपने गल्ले पर बैठा हुआ था हमने उससे कमरे व भोजन के लिये बात की तो उसने बताया कि भोजन तो यही ऊपर ही मिल जायेगा लेकिन कमरा आपको नहीं मिल पायेगा! मेरे पास बैड़ सिस्टम है, मेरे पास एक बड़ा हॉल है उसमें 10 से ज्यादा पलंग लगाये हुए है यदि आपको ठीक लगे तो पहले देख लो। मैं उसके साथ ढ़ाबे के पीछे नीचे की ओर जाकर उसका 10 पलंग वाला बड़ा कमरा देख आया। उसने उसका किराया 50 रुपये प्रति पलंग किराया बताया। इतना ही खाने का लगेगा। लेकिन हमारे पास कैमरा मोबाइल आदि कई महंगी चीजे है उनके लिये एक कमरा जरुर चाहिए था। ताकि सुबह हम आराम से सोकर उठे। कही पता लगे कि सुबह जब हम सोकर उठे तब तक हमारा सारा सामान यहाँ से गायब हो जाये।

मकान मालिक ने कहा कि एक कमरा है तो सही लेकिन उसकी हालत थोड़ी ठीक नहीं है, चलो एक बार उसे भी दिखा तो उसने ढ़ाबे के ठीक नीचे वाला कमरा दिखाया। यहाँ उस कमरे के सामने वाले बरामदे में बहुत सारे आलू रखे हुए थे उन आलू की वजह से वहाँ कुछ अलग ही तरह की स्मैल छायी हुई थी। इस कमरे में पंखा लगा हुआ था यही सबसे अच्छी बात थी लेकिन नीचे बड़े कमरे में शायद पंखा नहीं था। मैंने दो बन्दे नीचे बड़े कमरे में सोने के लिये कह दिया, बाकि दो बन्दे आलू वाले बरामदे के सामने वाले कमरे में सोने के लिये बोलकर अपना सामान नीचे लाकर रख दिया। अपनीअपनी बाइके हमने उसके ढ़ाबे के सामने ही मन्दिर की सीढियों के साथ लगा दी।

रात का खाना खाकर आराम से सोने के लिये नीचे चले गये। खाने-पीने का रात में कोई हिसाब-किताब नहीं किया गया। कैमरे मोबाइल आदि जो चार्ज करना था उसे चार्ज पर लगाकर पूरी रात आराम से सोये। सुबह 6 बजे के बाद नीन्द से आँखे खुल गयी। कुछ देर तक तो वही पड़े रहे उसके बाद कमरे वाले से टायलेट की चाबी लेकर जरुरी कार्य से निपटे। यहाँ सुबह के समय बाइक की दुकान के बारे कई जगह पूछताछ की लेकिन हर जगह एक ही जवाब मिलता था कि यहाँ पूरे किलाड़ में केवल 3-4 बाइके ही है उन्हे अपनी बाइक में कुछ काम कराना होता है तो उदयपुर या कैलांग जाना पड़ता है। एक बन्दे ने थोड़ी सी अच्छी खबर सुनायी कि एक दुकान वाला है जो बाइक का थोड़ा बहुत काम जानता है।

हमने उस दुकान का पता मालूम किया। उस बन्दे के पास उस दुकान वाले का मोबाइल नम्बर भी था। उसने अपने मोबाइल से उससे बात की, उसने कहा कि वह साढ़े 9 बजे तक दुकान खोल देगा। इधर देवेन्द्र रावत जी कुछ ज्यादा ही उतावले हुए जा रहे थे। उन्होंने मना करते हुए भी उस दुकान वाले को दो बार फ़ोन करवा दिया था कि जरा जल्दी आकर दुकान खोल लेना। लेकिन जिसका जो समय है वह क्यों किसी के चक्कर में दुकान जल्दी खोलने लगा। दुकान वाला 9:30 के बाद ही अपनी दुकान पर पहुँचा।

हम उसकी दुकान खुलने से पहले ही अपनी-अपनी बाइक लेकर वहाँ पहुँच चुके थे। पहले पल्सर बाइक को ठीक करने के लिये बोला गया। उसने अपनी तरफ़ से जितनी कोशिश हो सकती थी उतनी कोशिश की लेकिन उसकी कार्यप्रणाली देखकर हमने अंदाजा लगाया था कि वह बाइक के बारे में सिर्फ़ इतना ही जानता है कि पलग कैसे साफ़ किया जाता है? जब उसने पलग आदि खोलकर दुबारा लगाकर देख लिया लेकिन बाइक स्टार्ट नहीं हुई तो उसने हाथ खड़े कर दिये कि यह उसके बस की बात नहीं है। 

इसके बाद उसने मेरी बाइक की ओर इशारा किया कि इसमें क्या कमी हैअरे-अरे इसपर बुरी नजर मत ड़ाल, इसमें कोई कमी नहीं है इसकी पिछले पहिये की हवा निकल गयी है जरा इसका पहिया खोलकर देख लो कि टयूब में गड़बड़ क्या है? क्योंकि कल सुबह हमने चम्बा से आगे बनीखेत से हवा भरवाई थी वहाँ भी पूरी हवा सुबह के समय गायब मिली थी। उसने मेरी नीली परी का पिछला पहिया खोलकर चैक किया। जब उसने हवा भरकर देखा तो टयूब में से हवा निकलती हुई सुनायी दी जबकि अभी टयूब को पानी में भी नहीं ड़ाला था। अब तक गाड़ियों में नीचे की तरफ़ यानि सड़क वाली दिशा में टयूब में पंचर होता देखा है लेकिन आज पहली बार टयूब के अन्दर की तरफ़ रिम की तरफ़ पंचर देख रहा था। अन्दर पंचर कैसे हुआ? मेरे लिये यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है।

पंचर लगवा कर हम वापिस कमरे पर आ गये। इस काम को पूरा करने में दोपहर के 12 बजने जा रहे थे। यदि अब तक पल्सर वाली बाइक ठीक होती तो हम किलाड़ से 80 किमी दूर उदयपुर पहुँच गये होते लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। हमने खराब बाइक लेकर उदयपुर जाने का फ़ैसला किया। वहाँ किलाड़ से ज्यादातर गाड़ी वाले चम्बा की दिशा में जाने को तैयार दिखायी दे रहे थे लेकिन उदयपुर कैलांग जाने के लिये कुछ दो-चार गाड़ी वालों ने ही हाँ भरी। एक यहाँ एक समस्या और आ गयी कि जो गाड़ी वाले बाइक लेकर उदयपुर जाने को तैयार होते थे वे सीधे 6000 रुपये की माँग करते थे। चम्बा के नाम पर 5000 में मान रहे थे। चम्बा वाली दिशा से हम जाना नहीं चाहते थे उधर से जाने पर पाँगी घाटी की यात्रा अधूरी रह जाने वाली थी।

हमने सोचा कि अब शाम के समय किसी गाड़ी वाले से बात करेंगे क्योंकि यहाँ से सुबह-सुबह निकलेंगे तो सही रहेगा। इस बीच हमने समय बिताने के लिये अपने कमरे में सोने का फ़ैसला किया। दो-तीन घन्टे जमकर सोये। शाम को चार बजे, मैंने और महेश ने चन्द्रभागा नदी पर बने उस पुलको देखकर आने की सोची, जिसे पारकर साच पास जाया जाता है। हम दोनों नीली परी पर सवार होकर उस पुल की ओर चल दिये। रात को यहाँ आते समय मार्ग तो देखा ही था इसलिये किसी से कुछ पता करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। हम सीधे उस पुल पर जा पहुँचे। किलाड़ से पुल तक लगातार तेज ढ़लान मिलती चली गयी।

पुल के पास पहुँचकर पहले तो पुल के दोनों ओर घूम-घूम कर ढ़ेर सारे फ़ोटो ले ड़ाले। उसके बाद वहाँ पर काफ़ी देर तक बैठे रहे। फ़ोटो लेने के दौरान पुल बनाने के दौरान घटित दुर्घटना में मारे गये लोगों के बारे में पढ़ कर मन दुखी हो गया। इस पुल को बनाने के दौरान यहाँ काम करने वाले ज्यादातर मजदूर नेपाल या चम्बा से आकर मजदूरी करने आये थे। कहते है मौत अपनी जगह अपने आप बुला लेती है। जिसकी जहाँ लिखी है उसे वही जाकर मरना है ऐसा ही कुछ उन मजदूरों के साथ भी हुआ होगा जो यहाँ इस पुल को बनाने के क्रम में शहीद हुए होंगे। इसी नदी पर अर्धवृत आकृति/मेहराबदार पुल जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में बक्कल और कोरी के बीच नदी के तल से 359 मीटर ऊपर भी एक रेलवे पुल बनाया जा रहा है। बताते है कि यह पुल दिल्ली की कुतुबमीनार से पाँच गुणा ऊँचाई पर होगा जो इतनी ऊँचाई पर दुनिया में पहला पुल होगा।
(The Chenab Bridge is an arch bridge under construction in India. It spans the Chenab River between Bakkal and Kauri, in Riyasi Distt.)

पुल के पास काफ़ी देर मस्ती काटने के बाद समय देखा अभी शाम के 6 बजने जा रहे थे। महेश बोला संदीप भाई मेरा मोबाइल गायब है! अई कहाँ गया? कमरे पर तो छोड़कर नहीं आये थे। नहीं मैं यहाँ आते समय भी साथ लेकर आया था बीच में उसमे समय भी देखा था। महेश का मोबाइल नेटवर्क यहाँ किलाड़ में काम नहीं कर रहा था जबकि मेरा मोबाइल किलाड़ में काम कर रहा था क्यों ना हो BSNL की जहाँ उम्मीद नहीं होती वहाँ काम करता हुआ मिल जाता है। मोबाइल तलाशने के चक्कर में पुल के आसपास कई चक्कर लगा ड़ाले लेकिन मोबाइल ना मिलना था ना ही मिल पाया। हमने वहाँ से किलाड़ वापसी आते समय भी बाइक बेहद धीमी चलायी थी कि कही मोबाइल मार्ग में गिरा होगा तो मिल जायेगा। लेकिन हमें मोबाइल कही नहीं मिल सका।

किलाड़ वापसी आते समय सीमेन्ट से भरा एक ट्रक किलाड़ जाता हुआ दिखायी दिया यह ट्रक मनाली उदयपुर होते हुए किलाड़ आ रहा था। साच पास व मनाली वाला मार्ग किलाड़ से एक किमी पहले ही मिल जाता है जबकि किश्तवाड़/अन्नतनाग कश्मीर जाने वाला मार्ग तो उससे भी पहले ही साच पास वाले मार्ग से अलग होकर ऊपर नदी के साथ-साथ चलता रहता है जो आगे गुलाबगढ़ होता हुआ निकल जाता है। हमने उस सीमेन्ट के ट्रक चालक से पता कर लिया कि वह ट्रक मन्ड़ी से मनाली होकर किलाड़ तक आया था। कल सुबह क्या वह हमारी बाइक उदयपुर तक ले जायेगा। ट्रक वाले न हाँ कह दी।

ट्रक वाले ने बताया था कि उसके ट्रक से सुबह 9 बजे तक सीमेन्ट उतार लिया जायेगा। उसके बाद ही वह मनाली के लिये निकलेगा। शाम का खाना खाने के लिये ट्रक वाला भी उसी ढ़ाबे पर आ गया जहाँ हम खाना खा रहे थे। इस ट्रक वाले से बातों का सिलसिला आरम्भ हुआ। हमें वापसी में मन्ड़ी जिले में रोहान्ड़ा के पास टरु गाँव में किसी परिवार से मिलने जाना था। ट्रक वाला चालक मन्ड़ी जिले का ही था हमने (देवेन्द्र ने) उससे पूछा कि टरु गाँव कहाँ पड़ता है? देवेन्द्र रावत जी के मुँह से टरु का नाम सुनते ही ट्रक चालक के चेहरे पर चमक दौड़ गयी।

हमें टरु में एक परिवार को उनकी एक महिला सदस्य के जीवित होने की खबर देने जाना था। जिस परिवार की वह महिला थी उस परिवार को वह चालक अच्छी तरह जानता था। जैसे ही हमने उस महिला का हुलिया व नाम बताया तो उसने हमें उसकी सारी कहानी बता ड़ाली जिससे हमें विश्वास हो गया कि यह उसके परिवार को अच्छी तरह जानता है। उसने उस महिला से भी बात की जो देवेन्द्र रावत जी यहाँ पडौस में पिछले कई सालों (5-6) से पागलों की हालत में रह रही थी। अभी कुछ महीनों से उसकी हालत व स्मरण शक्ति में अपने आप बिना किसी इलाज के ही सुधार हो रहा था। जिसमें उसने अपने गाँव व परिवार के बारे में बताया था।


रात में ट्रक चालक से अच्छी दोस्ती हो गयी थी। जिस कारण हमें लगा था कि यह हमें उदयपुर तक बाइक समेत ले जायेगा। लेकिन अगले दिन वह हमें किलाड़ में ही छोड़कर भाग गया। मैंने अपनी बाइक से उसका पीछा किया। पूरे दो किमी आगे जाने पर वह हमारे हाथ आया था। इस घटना का पूरा विवरण अगले लेख में बताया जा रहा है। अगर वह हमें कल ही मना कर देता तो हम रात में ही दूसरी गाड़ी कर सुबह-सुबह किलाड़ से निकल जाते। इसलिये मैं कहता हूँ कि हम अभी पाँगी के पंगे में उलझे हुए है अत: यह ना माने कि हमारा पंगा अभी समाप्त हो गया है। देखते रहे, पांगी का पंगा, जिसे हम कई दिन तक उलझते रहे। (यह यात्रा अभी जारी है)

इस साच पास की बाइक यात्रा के सभी ले्खों के लिंक क्रमवार नीचे दिये जा रहे है।
























4 टिप्‍पणियां:

Sachin tyagi ने कहा…

bhai bahut bura hua aap ke sath pangi me aage aage kya hota hai uska hume intjaar rehaga

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बड़ा कसूता काम हुआ, चलो जान बची लाखों पाएं, लौट के जाट देवता घर कू आए।

Ajay Kumar ने कहा…

photo No.14 se pata lagta hai ki insaan kabi Bandar hua karta tha...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पहाड़ों की अनुपम कहानी..

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