सोमवार, 22 जुलाई 2013

Agra- Red fort आगरे का लाल किला

AGRA-MATHURA-VRINDAVAN-02                             SANDEEP PANWAR 
हम ऊँटगाड़ी में सवार होकर ताजमहल से लगभग 2 किमी दूर स्थित आगरे के लाल किले जा पहुँचे। लाल किले पहुँचने के बाद हमारे कई साथी कम हो गये थे। यहाँ रितेश के भाई अपने घर लौट गये थे जबकि रितेश ने निरन्तर हमारा साथ निभाया था। मुकेश भालसे सपरिवार आगरा की रोमांटिक यात्रा का लाभ उठाता रहा। ताज की तरह लाल किले के टिकट लेने में भी मैं आगे रहा। टिकट लेने के बाद बकाया राशि का भुगतान तीनों परिवार ने वही कर लिया था। ना किसी का लेना एक, ना किसी को देने दो, वाली बात सबसे अच्छी रहती है। टिकट लेने के बाद हमारा काफ़िला लाल किले पर चढ़ाई करने चल दिया।



यहाँ लाल किले पर चढ़ाई शब्द ही सबसे उपयुक्त है क्योंकि लाल किले में जहाँ टिकट चैक होते है उससे आगे चलते ही जोरदार चढ़ाई से सामना होता है। यह चढ़ाई मुश्किल से 150 मीटर ही होगी, लेकिन साँस फ़ूलाने के लिये यह काफ़ी रहती है। इस चढ़ाई को चढ़ने के बाद पहले कुछ मिनट खड़े-खड़े साँस सामान्य स्तर पर लायी गयी। मुकेश के सास-ससुर की उम्र देखते हुए हम थोड़ा धीमे चल रहे थे। यदि ऐसी जगह मैं अकेला होता तो मुश्किल से घन्टा भर में ही सारा लाल किला देख ड़ालता।

लाल किले में घुसते ही सीधे हाथ पर एक शानदार पार्क दिखायी देता है। इस पार्क को देखने के लिये चलते, उससे पहले ही एक ठेठ देशी गाइड़ ने हमारे काफ़िले को अपनी बातों की चासनी में ऐसा घोला कि मुकेश भाई के सास ससुर ने उसको साथ ले लिया। चलने से पहले उससे उसकी मजदूरी पता कर ली कि कही बाद में दुगने दाम न बोलने लगे। उस ठेट देशी गाइड़ ने हमे लाल किला घूमाने के लिये मात्र 100 रुपये लेने की बात कही थी। मैं सबसे आगे था इसलिये गाइड़ लेने वाली बात तो मुझे काफ़ी देर बाद पता लगी थी, जब उनको एक बुजुर्ग लाल किले के बारे में बता रहा था। इस पार्क को देखते हुए हम एक महल के अन्दर का हाल-चाल देखने जा रहे थे तो वहाँ पर एक बड़ा सा पत्थर का कटोरा दिखायी दिया। इस कटोरे को जहाँगीर का कटोरा बताया गया था।

पार्क के सामने वाले महल के भीतर/अन्दर प्रवेश किया। मैं इस यात्रा में भी अपना कैमरा साथ नहीं लेकर गया था इस यात्रा के अधिकतर फ़ोटो रितेश भाई ने मेल से मुझे भेजे है। लाल किले को देखते समय मेरे मन में दिल्ली का लाल किला बार-बार आ रहा था। इस लाल किले को भले ही मैंने एक/दो बार ही देखा हो लेकिन दिल्ली का लाल किला तो मैंने कम से कम 50-55 बार तो जरुर ही देखा हुआ है। अगर दिल्ली के लाल किला  को बाहर से चारदीवारी से ही देखने की बात की जाये तो मैं कम से कम 10 वर्ष तक लगभग प्रतिदिन ही दो बार देखा है। आजकल भले ही मेरी ड़यूटी लाल किले से दूर हो लेकिन कभी वह समय भी था जब मैं रोज लाल किले के सामने होता था।

लाल किले के कई महल देखने लायक है हर एक महल की अपनी अलग राम कहानी है यहाँ की सबसे रोमांचक दो ही कहानी है पहली कहानी शाहजँहा वाली है जिसमें शाहजँहा को ताजमहल बनने के बाद बुढ़ापे में उसके लड़के ने कैद कर एक महल में बन्द कर दिया था। वैसे मुगलों/मुस्लिमों शासकों का अधिकतर इतिहास यही रहा है कि बेटा बाप को सत्ता के मार ड़ालता है भाई-भाई का कातिल बन जाता है। मार-काट वाले ये दुर्लभ गुण मांसाहार भक्षण के कारण ही आसानी से पनपते है। शाहजँहा का बड़ा लड़का दाराशिकोह इसका वारिस था लेकिन औरंगजेब इसका सबसे खूँखार लड़का था जिसने राजा बनने के लिये शाहजँहा की मौत का भी इन्तजार नहीं किया था। आगरा के शासक बनने के लिये हुई दोनों भाईयों की लड़ाई में औरंगजेब विजयी रहा था उसने अपने भाई दाराशिकोह को मार ड़ाला था। दाराशिकोह की बेफ़ा से निकाह कर उसे फ़िर से रानी भी  बना लिया था। भाई प्यारा ना हुआ उसकी घरवाली प्यारी लगी।

औरंगजेब ने अपने वालिद/बाप को पकड़कर इसी किले में कैद में ड़ाल दिया था शाहजँहा मरने तक लाल किले में ही कैद रहा। जहाँ वो कैद था वहाँ से ताजमहल एकदम साफ़ दिखाई देता था। मरने तक आखिरी साँस तक शाँहजहाँ घुट-घुट कर जिया होगा। बेटे के कारण इसकी मौत भी दर्दनाक रही होगी। हमने अपनी इस यात्रा के दौरान शाँहजँहा की वह खिड़की भी देखी थी जहाँ से वह ताज का दीदार किया करता होगा। लाल किले से जुड़ी एक घटना और भी हमे उसी देशी गाइड़ ने बतायी थी कि एक बार जहाँगीर या कोई अन्य बादशाह यहाँ बैठा अपनी सभा कर रहा था कि तभी यमुना की ओर से तोप का एक गोला उसे मारने के लिये चलाया गया था जो उससे कुछ फ़ीट ऊपर जाकर महल की दीवार से टकराया था। उस गोले से बना हुआ निशान हमने देखा था। उस गोले की मार से राजा का सिंहासन वाला मोटा पत्थर भी टूट गया था।

जब लाल किला देख लिया गया तो अन्तिम चरण में हमें हमारे ठेट देशी गाइड़ ने यहाँ किले का भीतरी मीना बाजार दिखाया। उस समय राजाओं व उनकी दासियों के लिये महल में ही साप्ताहिक बाजार लगा करता था। आजकल उस बाजार की जगह पार्क बना हुआ है लेकिन कभी ना कभी तो वहाँ पर बोलियाँ लगायी जाती रही होंगी। दिल्ली वाले लाल किले से इसकी सिर्फ़ बाहरी दीवारे ही मेल खाती है अन्यथा अधिकतर लाल किला उससे एकदम अलग-थलग दिखायी देता है।

जब लाल किला देख लिया गया तो हमारा गाइड़ बोला “आई बात समझ में” यह आई बात समझ में उस देशी ग्रामीण बुजुर्ग का ट्रेड़ मार्क था। उस गाइड़ ने हमें कम से कम 60-70 बार यह बोला होगा कि "आई बात समझ में।" मुझे उस गाइड़ की लाइन पूरी होने के बाद इस खास लाइन "आई बात समझ में" का इन्तजार रहता था। उसकी इस लाइन पर बहुत हँसी भी आती थी। जब उसे उसके पूरे पैसे दे दिये तो वह जाने लगा। तो मैंने ऐसे ही उससे कहा ताऊ तेरी आधी बात आयी समझ में, क्योंकि तुम्हारी ठेठ देशी भाषा पूरी पल्ले नहीं पड़ी। वह बोला मैं तो पहले ही कहता था "आई बात समझ में" लेकिन आप लोगों ने नहीं कहा कि नहीं आयी।

दिन भर की घुमक्कड़ी के बाद अब कुछ पल विश्राम करने की बारी थी। लाल किले के अन्दर ही एक जगह हरी-भरी घास का मैदान था जहाँ पर हम लोग काफ़ी देर तक बैठकर आपस में बाते करते रहे। यहाँ मुकेश भाई और अपने छोरे शिवम भालसे व पवित्र आर्य के बीच खेलते-खेलते पहलवानी तक बात जा पहुँची तो उन्हें ड़ाँट कर अलग किया गया। शाम होने में अभी बहुत समय था इसलिये हमें जाने की जल्दी नहीं थी। मुझे आज केवल मथुरा जाकर रुकना था जो वहाँ से केवल 50 किमी दूरी पर था जिसके लिये बस में मात्र घन्टा भर ही लगना था। रितेश को केवल अपने घर ही जाना था जो वहाँ से मात्र 10 किमी दूरी पर था। आज की सबसे लम्बी यात्रा मुकेश भाई की होने वाली थी जो कि आगरा से चलकर सुबह वाराणसी पहुँचने वाली थी लेकिन उनकी ट्रेन रात के 9 बजे के करीब थी। ट्रेन में वैसे भी सोकर जाया जाता है।

हमें ही रात में जाकर रुकना था इसलिए सबसे पहले हमने सबसे इजाजत ली तो वे भी बोले कि हम भी चलते है यहाँ बैठकर हम भी क्या करेंगे? सभी एक साथ ही लाल किले से बाहर निकल आये। बाहर आते ही लाल किले के साथ सीधे हाथ कुछ दूर चलते रहे। यहाँ से हमने सड़क पार बस स्टैन्ड़ की से मथुरा जाने वाली बस में बैठना था। इसलिये सबको बाय बाय कहकर हम बस अड़ड़े जा पहुँचे। मथुरा जाने वाली बस में हमें पीछे की ओर खाली सीट मिल गयी थी। बस में जल्द ही भीड़ होने लगी। जब बस का चलने का समय हुआ तो हमारी बस मथुरा के लिये प्रस्थान कर गयी। (क्रमश:)









10 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

'आई बात समझ में' ने टूटे तख्त के बारे में नहीं बताया?

Sachin tyagi ने कहा…

agra red fort great place.

Rajiv Gupta ने कहा…

Wah kaya lalkile ki b.......

Rajiv Gupta ने कहा…

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Rajiv Gupta ने कहा…

Wah kaya lalkile ki b.......

Rajiv Gupta ने कहा…

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Rajiv Gupta ने कहा…

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Mukesh Bhalse ने कहा…

संदीप भाई,
लाल किले के टिकिट के पैसे जहां तक मुझे याद है मैंने आपको नहीं लौटाए थे, दरअसल मुझे याद ही नहीं रहा, वो तो रितेश ने घर पहुँच कर मुझे बताया की आपने जाट देवता को टिकिट के पैसे नहीं लौटाए। ज्यादा खुश मत होइये भैया मैं ये पैसे अब आपको देने वाला भी नहीं हूँ, दरअसल चाहे थोड़े से पैसे हों लेकिन इसी बहाने मैं आपका कर्ज़दार बने रहना चाहता हूँ ताकि आपकी स्मृति में सदैव बना रहूँ।

परसों (२० जुलाई को) दिल्ली में था, सिर्फ कुछ घंटों के लिए गुडगाँव में काम था अतः समय की कमी के कारण आपसे मिलने की इच्छा को काबू में करना पड़ा। चलिए फिर कभी मिलेंगे।

SANDEEP PANWAR ने कहा…

दिल्ली से बिना मिले बिना चले गये, बहुत नाइसाफ़ी है।

राजेश सहरावत ने कहा…

जाट भाई आगरा तक तो हम भी चल सकते थे

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