शनिवार, 15 जून 2013

Sri Sailam Mallikaarjun Swami Jyotirlinga Temple श्रीशैल मल्लिकार्जुन स्वामी ज्योतिर्लिंग मन्दिर

EAST COAST TO WEST COAST-12                                                                   SANDEEP PANWAR
श्रीशैलम मल्लिकार्जुन मन्दिर पहुँचने से पहले सभी बसे मुख्य मार्ग से हटकर बने एक नगर से होकर वापिस आती है। जब हमारी बस मन्दिर के नजदीक पहुँची तो मेरे सामने वाली सीट पर बैठा बन्दा बोला कि अब जैसे ही बस मुडेगी तो हमें यही उतरना होगा, क्योंकि यहाँ से मन्दिर की पैदल दूरी सबसे नजदीक रहती है। जैसे ही वह मोड़ आया और बस चालक ने बस रोकी तो मैं भी उसी व्यक्ति के साथ वहीं उतर गया। बस से बाहर आते ही वहाँ का माहौल देखकर समझ आने लगा कि यह वीराना सा दिखायी देने वाला कस्बा ज्यादा भीड़भाड़ लिये हुए नहीं है। मैंने अपने साथ वाले बन्दे से मालूम किया कि बस अड़ड़ा यहाँ से कितनी दूरी पर है तो उसने बताया कि बस अड़्ड़ा यहाँ से लगभग पौने किमी के आसपास है। वह व्यक्ति भी मन्दिर में ही दर्शन करने के इरादे से ही जा रहा था, चूंकि वह स्थानीय व्यक्ति था इसलिये उसके पास सामान आदि के नाम पर मन्दिर में भगवान को अर्पित करने वाली पूजा सामग्री के अलावा और कुछ नहीं था।



जैसे ही मन्दिर की चारदीवारी दिखायी देने लगी तो मैंने उस व्यक्ति को अलविदा कहा, क्योंकि मैं रात भर बस में जाग/सो कर आया था जिस कारण वहाँ के गर्म मौसम को देखते हुए नहाना जरुरी हो गया था। भगवान कभी नहीं कहता है कि नहा धोकर आओ, हाँ शरीर साफ़ स्वच्छ होना चाहिए, यह हमारी जिम्मेदारी बनती है। भगवान तो यह भी नहीं कहता है कि मेरे लिये ढ़ेर सारा सामान लेकर आओ, बदले में मैं तुम्हे उससे ज्यादा सामान दूँगा। भगवान को किसी ना किसी रुप में रिश्वत देने की कोशिश में लालची लोग चढ़ावा चढ़ाने में लगे रहते है। भगवान तो वो बला है जो बिना माँगे सब कुछ देता है। मैंने आजतक भगवान से कभी कुछ नहीं माँगा है, लेकिन मैं जिस मन्दिर में जाता हूँ पत्थर रुपी भगवान से यह अवश्य कहता हूँ कि हे भगवान अगर तुझमें हिम्मत है तो मुझे बार-बार बुला। लेकिन भगवान यदि मनुष्यों की तरह लालची होगा तो मुझे दुबारा क्यों बुलायेगा? मैं कभी किसी मन्दिर में कुछ नहीं चढ़ाता (पुजारी की आर्थिक हालत देखते हुए, साल में एक दो अपवाद जरुर कर बैठता हूँ ) इसलिये शायद भगवान भी मुझे बार-बार बुलाना चाहता होगा कि अबकी बार शायद यह कंजूस कुछ जेब हल्की कर दे। लेकिन वो भगवान भी क्या जो भक्तों से उसकी जेब हल्की कराये?

मन्दिर के प्रवेश द्धार के ठीक सामने जूते व बैग रखने का स्थान बनाया गया है, उससे ठीक पहले सीधे हाथ सड़क पार मन्दिर की दिशा में ही नहाने धोने के लिये शौचालय बनाया हुआ है। मैंने फ़्रेस होने व नहाने के इरादे से शौचालय परिसर में प्रवेश किया। शौचालय के संचालक के रुप में उस समय एक महिला बैठी हुई थी, जब मैंने उससे हिन्दी में नहाने के बारे में बात की तो उसने भी कोशिश करके ठीक-ठाक हिन्दी में मेरी बात का जवाब दिया और कहा कि यहाँ नहाने के लिये अलग से कोई जगह नहीं है आपको खुले में नहाना होगा। खुले में नहाने में मुझे कोई दिक्कत नहीं थी, नहाने के लिये अगर बन्द जगह होती तो मेरा निक्कर जरुर भीगने से बस जाता, क्योंकि वहाँ अंग्रेजी में (प्राकृतिक रुप में) नहाया जा सकता था खुले में बिना निक्कर नहीं नहाया जा सकता था इसलिये मैंने अपना बैग उसी औरत के पास रखा और नहाने के लिये गमछा रुपी पतला तौलिया लेकर सामने ही खुले में लगी टंकी पर नहाने लग गया। स्नान के लिये जाते समय उस औरत ने मुझे कहा था कि आपके बैग में रखे रुपये पैसे की मैं गारन्टी नहीं लेती। मैंने कहा ठीक है मैं सामने ही तो नहा रहा हुँ कोई मेरे बैग को हाथ लगायेगा तो मुझे पता लग जायेगा। फ़िर उसको भी इसी पानी में नहलाकर मानूँगा।

नहा धोकर मैं वापिस अपने बैग के पास आया, कपड़े बदलने के बाद, बैग में से दूसरे कपड़े बदल कर पहन लिये। आज श्रीशैल मल्लिकार्जुन मन्दिर देखकर रात नौ बजे तक हैदराबाद पहुँचना था मेरे पास इस मन्दिर को देखने के 5/6 घन्टे थे जो इस स्थान के हिसाब से बहुत ज्यादा थे यहाँ मन्दिर के अलावा किसी और स्थान में मेरी रुचि बिल्कुल नहीं थी। नहाने के बाद महिला से उसकी फ़ीस के बारे में पूछा तो उसने मात्र 15 रुपये बताये जिन्हें चुकता कर मैं उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ कैमरा, मोबाइल, जूते, बैग आदि जमा किये जा रहे थे। सबसे पहले मैंने जूते जमा कराये जिसकी मन्दिर की ओर से मात्र 2 रुपये की फ़ीस वसूल की जाती है। इसके बाद मोबाइल जमा कराये जिनकी फ़ीस 5 रुपये प्रति मोबाइल/कैमरा है। सबसे आखिर में मैंने अपना बैग जमा कराया जिसकी फ़ीस 10 रुपये प्रति बैग वसूल की गयी थी। यहाँ एक गड़बड़ हुई कि मैंने चप्पल पहनी हुई थी जिन्हे मैं बैग में रखना भूल गया। बैग की परची कटाने के बाद मैंने चप्पल बैग में रखनी चाही तो उन्होंने अलग से पर्ची बना दी थी। खैर चप्पल को जूते के साथ रखता तो 8 रुपये बस सकते थे। क्योंकि मैंने चप्पल पन्नी में रखी थी जिसे उन्होंने एक बैग माना था।

अब मुझे मन्दिर में प्रवेश करने के लिये अन्दर जाना था। मन्दिर में प्रवेश करते समय मुझे कही भी लाईन नहीं दिखायी दे रही थी इसलिये मैंने सोचा शीघ्र दर्शन के लिये सौ रुपये का शुल्क क्यों दिया जाये? यहाँ शीघ्र दर्शन की व्यवस्था के लिये 100 की विशेष परची काटी जाती है, जबकि साधारण/आम पंक्ति में लगने का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ता जा रहा था मुझे लगने लगा कि मुझे किसी भूल भूलैया में घुसा दिया गया है। यहाँ टेड़ी-मेड़ी पाइपों से घूमाते हुए लगभग एक किमी चलाया गया होगा उसके बाद जाकर एक खुली सी जगह आयी जहाँ जाकर मन्दिर में प्रवेश करना होता है। वैसे तो आड़ी तिरछी लाईनों में ही लाइन बहुत धीरे-धीरे चल रही थी लेकिन खुले में आकर तो लाइन काफ़ी देर तक रुकी रही। आखिरकार जब लाइन आगे बढ़ती हुई मन्दिर में घुसने लगी तो खोपड़ी खराब होने लगी, मैं समझ रहा था कि शायद इस द्धार से आगे जाने पर मूर्ति/शिवलिंग के जल्द दर्शन हो जायेंगे, लेकिन वहाँ तो आगे बहुत दूर तक भीड़ ही भीड़ दिखायी दे रही थी। 

एक बार सोचा कि चलो छोड़ो, दर्शन-वर्शन को, चलो यहाँ यहाँ से, लेकिन फ़िर दिमाग का घन्टा बजा कि यहाँ इस शहर में देखने लायक और ज्यादा कुछ नहीं है समय की कमी भी मेरे पास नहीं है इसलिये लाइन में लगे रहो। लाइन चीटी की गति से आगे सरकने की जगह रेंग रही थी। हमारी मुफ़्त की लाइन के बराबर में ही एक अन्य लाइन खाली पड़ी थी जिसमें से कभी-कभी लोग आगे बढ़ते दिखायी देते थे और कुछ पलों में हमें वही लाचार खड़े छोड़कर आगे चले जाते थे। सोचा चलो उस खाली लाइन में घुसा जाये, तभी एक पहरेदार ने कहा कि यह 100 रु वाली लाइन है। ना भाई सौ रुपये नहीं देने, अपनी तो यही फ़्री वाली लाइन ही ठीक है, कम से कम भीड़ में खड़े-खड़े आम लोगों के विचार तो जानने को मिलते है।

यहाँ आगे बढ़ने पर मुख्य भवन से ठीक पहले एक जगह जहाँ नन्दी की मूर्ति लगायी गयी है, नन्दी के ठीक मुँह के सामने एक पुजारी जैसा बन्दा बैठा था जो भक्तों के नारियल फ़ोड़ रहा था लेकिन वह आदत से एकदम भिखारी था वह हर नारियल को फ़ोड़ने के बदले 5 रुपये वसूली करता जा रहा था यहाँ लाइन बहुत ही धीरे चल रही थी इसलिये अधिकतर बन्दों ने उसकी कारिस्तानी देखने में पूरा आनन्द उठाया। दो-चार भक्त मेरे जैसे भी आये जो उसे नारियल फ़ोड़ने के बदले पैसे नहीं देना चाहते थे, लेकिन वह भिखारी (पैसे मांगने वाले पुजारी को मैं भिखारी ही मानता हूँ) पहले पैसे लेता था बाद में नारियल फ़ोड़ता था जब उसने कई लोगों के नारियल नही फ़ोड़े तो वही पर उस भिखारी को करारा जवाब देते हुए, कई लोगों ने उसके सामने फ़र्श पर जोर से दो-तीन बार नारियल पटका और नारियल फ़ूट गया तो देखा देखी ज्यादातर भक्तों ने फ़र्श पर ही नन्दी के सामने ही नारियल फ़ोड़ना शुरु कर दिया। भक्तों की इस कार्यवाही को देखकर भिखारी कुछ कहने लायक स्थिति में नहीं था, लेकिन वहाँ अधिकतर लोग ऐसे थे जो उस भिखारी को नारियल फ़ोड़ने के लिये पैसे दिये जा रहे थे। अपने उत्तराखन्ड़ में सुरकंड़ा देवी मन्दिर में नारियल फ़ोड़ने वाले स्थान पर एक हथौड़ा रखा हुआ है, ऐसा ही मैंने नर्मदा उदगम स्थल पर देखा था वहाँ भी नारियल फ़ोड़ने वाले स्थल पर एक हथौड़ा रखा हुआ देखा था। वहाँ नारियल फ़ोड़ने के बदले कोई शुल्क नहीं लिया जाता है।

आखिरकार लाइन धीरे-धीर बढ़ती हुए उस स्थान तक पहुँच ही गयी जहाँ से हमें श्रीशैल शिवलिंग के दर्शन करने होते है। मूर्ति/शिवलिंग देखने के लिये प्रत्येक भक्त को मुश्किल से 3/4 सैंकिन्ड़ का समय मिलता है। शिवलिंग के दर्शन करने के बाद मैंने बाहर का रुख किया। मुख्य भवन से बाहर आकर मन्दिर परिसर में टहलते हुए मन्दिर की वास्तु निर्माण कला को काफ़ी नजदीक से देखा था। मन्दिर देखने में ही सैकड़ों वर्ष पुराना दिख रहा था। सत्यानाश हो उन ससुरों का, जिनके कारण मन्दिर में कैमरे ले जाना मना है, नहीं तो आपको मन्दिर के अन्दर के फ़ोटो भी जरुर दिखाता। मैंने मन्दिर से बाहर आकर मन्दिर की चारदीवारी का एक चक्कर लगाने के इरादे से चलना आरम्भ कर दिया। मैंने मन्दिर का आयताकार चारदीवारी का चारों ओर से पूरा एक चक्कर लगाया, साथ ही मैं उसके फ़ोटो भी लेता रहा। मन्दिर की चारदीवारी के बाहर भिखारी लाइन लगाकर बैठे थे। मन्दिर में व मन्दिर के आसपास तीन तरह के भिखारी मिलते है, एक जो लोगों से मन्दिर के बाहर माँगते है इन्हें भक्त एक दो रुपये में ही टरका देते है। दूसरे जो मन्दिर के अन्दर भगवान का खौफ़ दिखा जबरन माँगते है। तीसरे वे होते है खुद मन्दिर में माँगने जाते है इनके बिना पहले वाले भिखारी का अस्तित्व ही नहीं है। सब मँगते है किसी को क्या दोष दे?

मन्दिर देखने के बाद एक बन्दे से समय पता किया तो अभी दोपहर के बारह भी नहीं बजे थे, मेरे पास काफ़ी समय था, पहले मैंने एक दुकान पर जाकर हल्का-फ़ुल्का भोजन किया, उसके बाद जूते, बैग, मोबाइल काऊँटर पर जाकर अपना सारा सामान वापिस लिया। वहाँ मेरा लक्ष्य पूरा हो चुका था इसलिये अब वहाँ ठहरने का मन भी नहीं कर रहा था। अखबार की एक दुकान दिखायी दी, वहाँ जाकर मेरी नजर हिन्दी का अखबार तलाश करती रही लेकिन मुझे हिन्दी का अखबार तो क्या उसकी कतरन भी दिखायी नहीं दी। मैंने वहाँ से बस स्टैण्ड़ की ओर चलने में ही अपनी भलाई समझी। थोडी देर में ही मैं बस अडड़े पहुँच गया। बस अडड़े के आसपास बहुत सारे होटल बने हुए है जहाँ यात्री के ठहरने के लिये स्थान की कोई कमी नहीं है। मैंने कमरों के दाम तो नहीं पता किये थे लेकिन वहाँ बहुत ज्यादा भीड़ की मारामारी नहीं थी इसलिये कमरों के दाम भी बहुत ज्यादा नहीं मिलेंगे, आसानी से 300- 500 के बीच का कमरा मिल सकता है। बस अड़्ड़े पहुँचते ही सबसे पहले हैदराबाद जाने वाली के बारे में पता किया। (क्रमश:)
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के आंध्रप्रदेश इलाके की यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
15. महाराष्ट्र के एक गाँव में शादी की तैयारियाँ।
16. महाराष्ट्र की ग्रामीण शादी का आँखों देखा वर्णन।
17. महाराष्ट्र के एक गाँव के खेत-खलिहान की यात्रा।
18. महाराष्ट्र के गाँव में संतरे के बाग की यात्रा।
19. नान्देड़ का श्रीसचखन्ड़ गुरुद्धारा
20. नान्देड़ से बोम्बे/नेरल तक की रेल यात्रा।
21. नेरल से माथेरान तक छोटी रेल (जिसे टॉय ट्रेन भी कहते है) की यात्रा।
22. माथेरान का खन्ड़ाला व एलेक्जेन्ड़र पॉइन्ट।
23. माथेरान की खतरनाक वन ट्री हिल पहाड़ी पर चढ़ने का रोमांच।
24. माथेरान का पिसरनाथ मन्दिर व सेरलेक झील।
25. माथेरान का इको पॉइन्ट व वापसी यात्रा।
26. माथेरान से बोम्बे वाया वसई रोड़ मुम्बई लोकल की भीड़भरी यात्रा।
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के बोम्बे शहर की यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
27. सिद्धी विनायक मन्दिर व हाजी अली की कब्र/दरगाह
28. महालक्ष्मी मन्दिर व धकलेश्वर मन्दिर, पाताली हनुमान।
29. मुम्बई का बाबुलनाथ मन्दिर
30. मुम्बई का सुन्दरतम हैंगिग गार्ड़न जिसे फ़िरोजशाह पार्क भी कहते है।
31. कमला नेहरु पार्क व बोम्बे की बस सेवा बेस्ट की सवारी
32. गिरगाँव चौपाटी, मरीन ड्राइव व नरीमन पॉइन्ट बीच
33. बोम्बे का महल जैसा रेलवे का छत्रपति शिवाजी टर्मिनल
34. बोम्बे का गेटवे ऑफ़ इन्डिया व ताज होटल।
35. मुम्बई लोकल ट्रेन की पूरी जानकारी सहित यात्रा।
36. बोम्बे से दिल्ली तक की यात्रा का वर्णन

































10 टिप्‍पणियां:

प्रवीण गुप्ता - PRAVEEN GUPTA ने कहा…

बहुत खूब, ओम नमः शिवाय...

Unknown ने कहा…

maza aa gaya,laga jaise hum khud bhi waha hai,thanks sandeep

raman kumar chowdhary ने कहा…

sandeep ji, bahut badiya vivarn. parntu rupees se pehle 2 jagah dash-dash chhod diya hai apne. koi khas karan hai kya?

Unknown ने कहा…

Hi

Unknown ने कहा…

Ham bhi ja rahe hai 9 Feb 2017 ko

Unknown ने कहा…

Ham bhi ja rahe hai 9 Feb 2017 ko

Unknown ने कहा…

पंवांर जी श्री शैलम शिव जी के आंध्र प्रदेश के मंदिर में जा रहे हैं हम और हमारी धर्म पत्नी मीनू तिवारी उनको चढाई करने में पैरालिसिस के कारण कठिनाई होती है हम कानपुर से जायेंगे और NANDYAL स्टेशन उतरेंगे कुछमार्गदर्शन करें कृपा होगी वेद नारायण तिवारी mob 9936159051

प्रमोद ने कहा…

नान दयाल कुमकुम मारकापुर किसी भी स्टेशन पर रात में रुकना ठीक नहीं है प्रयास यह होना चाहिए कि शाम तक श्रीशैलम पहुंच जाए सुविधा और सुरक्षा के दृष्टिकोण से

Gopal das ने कहा…

Sadhu santo ke ashram kitne aur kaha par hai mallikarjun mandir ke pas

Mishra hari govind ने कहा…

शनिवार और रविवार को या अन्य अवकाश के पूर्व की शाम को काफी भी डर रहती है और उसी हिसाब से होटल के रेट भी रहते हैं.
बहुत ही बढिया और उपयोगी यात्रा वर्णन किया है

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