गोवा यात्रा-14
दूधसागर कैम्प में पहुँचने के बाद हम लोगों ने सबसे पहले एक टैन्ट में अपना सामान रखा, उसके बाद वहाँ पर नहाने धोने के लिये नदी किनारे जाने के लिये मार्ग पता किया। नदी और कैम्प की दूरी मुश्किल से सौ मीटर ही रही होगी। हमने नहाने के काम आने वाले कपडे लिये और नदी में उछल कूद करने के लिये जा पहुँचे। अरे हाँ एक बात तो रह ही गयी थी कि जहाँ हमारा कैम्प था वहाँ से दूध सागर वाली रेलवे लाईन साफ़ दिखाई दे रही थी। रेलवे लाइन हमारे कैम्प से कई सौ फ़ुट की ऊँचाई पर थी। यह रेलवे लाईन दूध सागर झरने के बीच से होकर जाती है। रेलवे लाईन के फ़ोटो अगले लेख में दिखाये जायेंगे। अभी तो कैम्प से दिखने वाले नजारे देख लो। दूध सागर का आधा भाग आज के लेख में और बचा हुआ शेष ऊपर वाला भाग अगले लेख में दिखा दिया जायेगा।
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अगर ध्यान से देखोगे तो पेड़ों के पीछे रेलगाड़ी जाती दिखायी दे जायेगी। |
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ताड का वृक्ष। |
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कैम्प से नदी तक जाने वाला मार्ग सुन्दर बगीचे से होकर जाता है। |
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लो जी देख लो वही नदी है जिसको हम कई बार आर-पार कर चुके है। |
इस कैम्प में बिजली की व्यवस्था जरा सी भी नहीं थी, जिस कारण रात का खाना सौर ऊर्जा से जलने वाली लाईट की रोशनी में खाकर जल्दी ही सो गये थे। अगली सुबह हमें दूध सागर के आधार से शिखर तक ट्रेकिंग करते हुए जाना था। इसलिये सुबह जल्दी उठ गये। सुबह उठते ही हमने वहाँ का मौसम देखा कि वह तो दिल्ली से मुकाबला करने की कोशिश करने को तैयार हो चुका था। शुक्र रहा कि मौसम को दिल्ली का मार्ग नहीं मिला, नहीं तो गोवा में दिल्ली की सर्दी करने की ठान कर बैठा था। आज की रात हमने कम्बल का भरपूर लाभ लिया था। सुबह टैन्ट से बाहर आते ही ठन्ड का अहसास हुआ तो मुझे अपनी विन्ड सिटर याद आ गयी। मैं विन्ड सीटर को हमेशा अपने साथ रखता हूँ चाहे कितनी गर्मी हो या कितनी सर्दी यह हमेशा मेरे पास मिल जायेगी।
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बस आने वाला है। |
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देख लो झरने की झलक |
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पढ लो |
सुबह सभी जरुरी काम करने के बाद ठीक आठ बजे सभी को खाना खाने के लिये कैम्प लीड़र ने सीटी बजाकर बुलाया और कहा कि आप लोग खाने के बाद अपना दोपहर का लंच भी साथ लेना ना भूले। आज के दिन मैं आपके साथ जाऊँगा और वापसी में आपको करनजोल वाले मार्ग पर छोड कर चला आऊँगा। कैम्प से चलने से पहले एक बार फ़िर सभी की गिनती की गयी थी। बीते दिन हमारे ग्रुप से एक लड़की वापिस चली गयी थी। बंगलौर की रहने वाली शिल्पा (शायद यही नाम है) ने समुन्द्री ट्रेकिंग में सबका साथ बखूबी निभाया था। इस लड़की तो चलने में काफ़ी समस्या आ रही थी, भगवान ने इस लडकी को पैरों में काफ़ी विसंगती दी हुई थी। जिस कारण इसे पहाड़ की ट्रेकिंग में बहुत दिक्कत आने वाली थी, उस बहादुर लडकी के कैम्प छोडने के निर्णय की मैं सराहना/प्रशंसा करता हूँ। हम कैम्प से चलते समय कुछ देर तो घने जंगलों से होकर चलते रहे। लेकिन इसके बाद एक किमी का मार्ग जीप वाली सडक पर ही चलते चले गये थे। हमारे कैम्प लीडर प्रभु जी एक रिटायर्ड इन्सान थे। स्वभाव से तो हमें फ़ौजी लग रहे थे। वैसे थे किसमें? हमने नहीं पूछा था। सड़क जहाँ समाप्त हो रही थी उस जगह एक बोर्ड लगा हुआ था वहाँ से मुश्किल से तीन सौ मीटर की दूरी पर दूध सागर झरने का आधार था।
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कुछ कहना इसके बारे में |
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अगर ऊपर वाले पुल पर इस समय रेल भी होती तो कैसा दिखता? नीचे वाले फ़ोटो में देखिये। |
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पुल पर रेल ऐसी दिखायी देती है। (यह फ़ोटो मेरा नहीं है।) |
पथरीले मार्ग को पार करते हुए जैसे ही हम यह झरना दिखाई दिया तो हमारी साँसे कुछ पल के लिये (हमेशा के लिये नहीं, हमेशा के लिये जब रुकेगी तो हमें तो पता भी नहीं रहेगा) थम सी गयी थी। ऊपर वाले सिर्फ़ दो फ़ोटो इस झरने की पूरी रामकथा,/महाभारत/गीता/कुरान/कहानी जो जी में आये वो मान लेना, कहने को काफ़ी है। पानी सिर्फ़ वही दिख रहाथा जहाँ पर उसकी गति रुक रही थी, अन्यथा पानी की जगह दूध गिरने का भ्रम लग रहा था। यह जो ऊपर वाला फ़ोटो है जहाँ आपको पुल दिख रहा है। इसी के ऊपर से रेलवे लाईन गुजरती है। मेरी एक इच्छा थी कि मैं यहाँ रेल गुजरते समय एक फ़ोटो खीच सकूँ। पर कमबख्त रेल वालों को शायद पता लग गया था कि हम वहाँ इसी ताक में बैठे है कि कब लेल (रेल) आये और हम सटाक से दो-चार फ़ोटू-सोटू फ़ाड सके। जब घन्टाभर इन्तजार के बाद भी रेल नहीं आयी तो मजबूरन हमें वहाँ से वापिस आना पड़ा। अब हमें इसी पुल पर जाना था। जहाँ से हमें इस झरने का नीचे का फ़ोटो लेना था।
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अरे ताऊ तु कहाँ? |
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अब चढ़ाई शुरु होने वाली है। |
गोवा यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे क्रमवार दिये गये है। आप अपनी पसन्द वाले लिंक पर जाकर देख सकते है।
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11 टिप्पणियां:
यह क्या !
झरने में नहाये नहीं !
बहुत सुन्दर चित्र..
मनभावन, मोहक चित्रानाकं एवं चित्रण वृत्तांत यात्रा का .बनाए रहे आप हमराही हमें भी .
Virendra Sharma @Veerubhai1947
असली उल्लू कौन ? http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2013/02/blog-post_5036.html …
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Virendra Sharma @Veerubhai1947
ram ram bhai मुखपृष्ठ शनिवार, 2 फरवरी 2013 Mystery of owls spinning their heads all the way around revealed http://veerubhai1947.blogspot.in/
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मनभावन, मोहक चित्रानाकं एवं चित्रण वृत्तांत यात्रा का .बनाए रहे आप हमराही हमें भी
मनभावन, मोहक चित्रानाकं एवं चित्रण वृत्तांत यात्रा का .बनाए रहे आप हमराही हमें भी
बरसात के मौसम में रेल से देखा दृश्य मदमस्त कर देता है..
बढिया फ़ोटु फ़ाड़ी है :)
दूध से नहाये या नहीं ...दूध सागर होते हुए भी दूध इतना मंहगा है
सुन्दर चित्रों से सजी हुए बेहतरीन प्रस्तुती।
Very nice...............
बहुत ही सूंदर विवरण | आपके इस लेख को पढ़ कर मन हो रहा है की YHAI के साथ गोवा भ्रमण कर ही आऊं
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