गंगौत्री से केदारनाथ पदयात्रा-8
केदारनाथ जाकर दर्शन करने के बाद, वापिस भी आज ही आना था। हम दोनों ठीक 
सुबह 4 बजे उठ गये थे, केदार जाने से पहले गौरीकुन्ड में गर्मागर्म पानी का
 स्नान किया जाता है। हमने भी खूब स्नान किया था उस समय अंधेरा था, हमारे 
अलावा दो बन्दे और थे। महिलाओं व पुरुषों के लिए यहां पर अलग-अलग 
स्नानकुन्ड बनाए गए है। यहां गौरीकुंड के अलावा नजदीक में ही दो कुंड और 
बने हुए हैं, ब्रह्मकुंड और सूर्यकुंड। लेकिन मुझे तलाशने पर भी नहीं मिले।
 बताते है कि गौरी कुंड का जल रामेश्वरम् में चढ़ाया जाता है तथा 
रामेश्वरम् से जल लाकर बद्रीनाथ पर चढ़ाते हैं। गौरी कुंड में सेतुबंध(लंका
 पुल) की मिट्टी समर्पित की जाती है। आराम से नहा धो कर वापिस कमरे पर आये 
थे। अपना सारा सामान हमने एक थैले में कर दिया था अपने साथ सिर्फ़ गौमुख  
से पैदल यात्रा करके लाया गया गंगा जल व वर्षा से बचने के लिये छतरी ले ली 
थी। हमारे साथ वाले बन्दे आराम से सो रहे थे उनसे पूछा तो जवाब मिला हम आज 
की रात केदारनाथ में ही रुकेंगे, अत: हम 9-10 बजे यहाँ से जायेंगे। 
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| केदारनाथ के द्धार पर आ पहुँचे है। | 
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| जरा इसे ध्यान से पढ लो, आपके काम आयेगा। | 
 
गौरीकुन्ड वही स्थल है जहाँ पर भोलेनाथ की अर्धांगिनी स्नान किया करती थी। 
मैं तीन बार इस स्थल पर जा चुका हूँ, अगर कोई पहली बार केदारनाथ जाना चाहता
 है तो गाइड लेने के चक्कर में ना पडे। असली समस्या जो यात्रियों को थकाती 
है वो होता है उनका सामान, यदि आपको दिन के दिन वापिस आना हो तो किसी भी 
सूरत में सामान को नहीं ढोना चाहिए। यदि आप एक रात ऊपर केदारनाथ में रुकते 
है तो भी ज्यादा सामान नहीं ले जाना चाहिए। यहाँ गौरीकुन्ड में जून माह को 
छोड दे तो किराया उम्मीद से भी कम होता है, आपको आराम से 100 रु से शुरुआती
 किराये पर कमरा मिल जायेगा। दिन के दिन वापसी करने के लिये कोशिश होनी 
चाहिए कि सुबह जल्दी जाकर रात होने तक आराम से वापिस आया जा सकता है। 
गौरीकुंड समुंद्र तल से 1981 मीटर की ऊँचाई पर बसा हुआ है। गौरीकुन्ड 
रुद्रप्रयाग जिले में आता है। हरिद्धार व ऋषिकेश से यहाँ तक बस व जीप 
द्धारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। केदारनाथ के लिये यहां से आगे 14 
किलोमीटर का मार्ग पैदल ही नापना पड़ता है। खच्चर और डोली जैसी सुविधा यहाँ
 भी उपलब्ध है। आप हैलीकॉप्टर से जाना चाहते है तो गौरीकुंड से पहले ही 
रामपुर के पास फाटा से यह सेवा भी उपलब्ध है।

 

 

 

 

 
ठीक 5:30 पर हम दोनों गौरीकुन्ड से केदारनाथ की पैदल यात्रा पर चल दिये 
थे। हां एक जरुरी बात वापिस लौटते समय गौरीकुंड के गरम पानी में स्नान करना
 न भूलें, यह आपकी सारी थकान मिटा देगा। गौरीकुन्ड की आबादी से बाहर आते ही
 घोडेवालों का बसेरा था उन्होंने हमें रोकने की कोशिश की लेकिन जब हमने 
उन्हे बताया कि हम गौमुख से ही पैदल आये है तो अब सिर्फ़ 13-14 किमी के 
लिये क्यों बैठे तो वे चुपचाप एक तरफ़ हट गये। एक किमी तक तो मार्ग आसान सा
 ही है लगभग एक किमी बाद जाने पर असली यात्रा शुरु हो जाती है। चढाई आ ही 
जाती है जिसका हमें इन्तजार था, जैसे ही चढाई आती थी, दो-तीन मोड जरुर आते 
थे। ये चढाई आम लोगों के लिये तो जरुर थोडी सी परेशानी वाली बात हो जाती 
है, लेकिन हम जैसे सिरफ़िरों के लिये नहीं। हम तो एक सप्ताह से ऐसी-ऐसी 
भयंकर चढाई चढ कर आये थे जिसके मुकाबले हमें यह चढाई बच्चों का खेल लग रही 
थी। हम अपनी मस्त चाल से चले जा रहे थे।
 हम काफ़ी जल्दी गौरीकुन्ड से चले 
थे जिसके कारण इक्का-दुक्का यात्री ही हमें मिलता था। जो भी मिलता था कुछ 
देर बाद पीछॆ छूट जाता था। अब तक उजाला हो गया था। इस मार्ग पर एक जगह पहाड
 का मलबा गिरा हुआ था। मलबा इतना था कि मार्ग पूरा उसमें दब गया था हम उस 
मलबे के ऊपर से होते हुए निकल गये थे। थोडी देर बाद हमें एक छोटा सा मन्दिर
 मिला जिसके बारे में बताया गया कि यह शिव के द्धारपाल है। रुद्र फ़ाल व 
महादेव फ़ाल नाम के दो झरने भी मार्ग में मिलते है। कुछ देर खडॆ-खडॆ रुक कर
 इनका भी अवलोकन किया गया था। हम बिना रुके कहीं भी बैठे बिना रामबाडा जा 
पहुँचे थे। रामबाडा केदारनाथ यात्रा का मध्यविश्राम स्थल है यहाँ तक आना 
यानि 14 किमी में से 7 किमी की यात्रा समाप्त हो गयी है। हमें भूख लगी थी 
सुबह बिना कुछ खाये जो चले थे। एक दुकान पर पराँठे बन रहे थे, हम भी जम गये
 उस दुकान पर, उसने कहा कि साथ में चाय लेनी या दूध। अगर कोई पर्यटक होता 
तो चाय पेल/पी जाता। लेकिन हम भी ठहरे पूरे असली ठेठ देशी घुमक्कड, हमने 
कहा भाई एक बोतल आम के रस वाली दे देना। हमने तो पराठों का स्वाद आम के रस 
के साथ लिया था। आम वाली बोतल के साथ एक समस्या और भी आ जाती है कि यदि 
आपने ज्यादा पी ली तो आपका पेट भी खराब होने का डर होता है जिस कारण हमने 
पूरी बोतल नहीं पी, आधी बोतल पी व आधी वही उसी दुकान पर छोड दी थी वापसी 
में भी वहाँ एक-एक पराँठा खाया था व बोतल भी पूरी पी ली थी। 
अब बात आती है आगे के मार्ग की इस पुल से आगे जाने पर एक बार फ़िर साँस 
फ़ुलाने वाली चढाई आ जाती है। इस तीन सौ मीटर की चढाई के बाद वो जगह आती है
 जिसका हम पिछले एक सप्ताह से पैदल चलकर इन्तजार कर रहे थे। केदार का 
मन्दिर हमारी आँखों के सामने था। हमने अपने-अपने जूते एक दुकान पर रख दिये 
वहाँ से पूजा के लिये देशी घी लिया। वैसे तो भोलेनाथ को सिर्फ़ गंगाजल से 
खुश किया जा सकता है, लेकिन यहाँ पर देशी घी का लेप किया जाता है। हम ठीक 9
 बजे मन्दिर के गर्भगृह में उपस्थित थे। हमने गौरीकुंड से केदारनाथ तक आने 
में केवल साधे तीन घन्टे का समय लिया था। उस समय कोई खास भीड-भाड भी नहीं 
थी। अपने जूते एक दुकान पर उतार हम गंगाजल चढाने मन्दिर पर जा पहुँचे थे। 
हम अपनी-अपनी गंगाजल की कैन से गंगाजल शिव पर अर्पण करने को तैयार थे कि 
तभी वहाँ के एक पुजारी ने कहा कि आप लोग गंगौत्री से गंगाजल लाये हो, मैंने
 कहा नहीं गौमुख से तो उसने कहा कि आप बैठो मैं पूरे विधि विधान से जल 
अर्पण करवाता हूँ। मैंने कहा पण्डित जी हमारे पास रुपये नहीं है। तो उसने 
कहा कि आपकी इच्छा हो तो देना, नहीं देना चाहते हो तो मत देना कोई जबरदस्ती
 नहीं। उसकी ये बात पसंद आयी। हमने तसल्ली से पूजा की हमसे कई लोगों ने 
हमसे गंगाजल लेकर वहाँ अर्पण किया। इस तरह हमारा यह सफ़र मंजिल पर पहुँचा।
यहाँ चट्टान रुपी शिवलिंग स्वयंभू यानि अपने आप बना हुआ है, किसी ने 
बनाया नहीं है। कुरुक्षेत्र में महाभारत की लडाई में कौरवों पर विजय पाने 
के उपरान्त, श्रीकृष्ण के कहने पर पांडव अपने ऊपर लगे गौत्रहत्या के पाप से
 मुक्ति के लिये यहाँ भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये आये ताकि
 उन्हे मोक्ष की प्राप्ति हो। शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। 
जिस कारण शिव ने भैसे/बैल का रुप धारण कर अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों 
ने इन पशुओं में से शिव को तलाशने कि लिये एक योजना बनायी जिसमें भीम ने 
विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर रख दिया। सभी जानवरों को उधर से 
निकालने लगे। जब सभी जानवर तो निकल गए, पर शंकर जो कि बैल/भैसे के रुप में 
थे भीम के पैर के नीचे से निकलने को तैयार ना हुए। भीम ने भगवान शिव को 
पहचान लिया व उनके पीछे दौडा। भीम को नजदीक देख शिव धरती में समाने लगे, 
यहाँ भीम ने शिव को पकडने की बहुत कोशिश की। किन्तु सभी कोशिश द्धारा 
सिर्फ़ भैसे की पीठ पकडे पाये। भगवान शिव ने पांडवों को दर्शन देकर पाप 
मुक्त किया। उसी समय से भगवान शिव बैल/भैसे की पीठ को पिंड के रूप में 
केदारनाथ में पूजा जाता हैं। शिव के भैसे रुप के चार अन्य अंग, चार अन्य 
स्थानों पर जमीन से बाहर आये, जहाँ उन्हें उसी नाम से पूजा जाता है भुजाएं 
तुंगनाथ में निकली, चेहरा रुद्रनाथ में निकला, पेट मध्यमहेश्वर में निकला 
तथा जटाएँ (बाल) कल्पेश्वर में निकले। धड से ऊपर वाला भाग काठमाण्डू में 
निकला था जिस जगह पशुपतिनाथ का मंदिर है। केदारनाथ एवं इन चार अन्य मंदिरों
 को एक साथ पंच केदार’ के नाम से जाना जाता है। केदारनाथ की समुद्रतल से 
ऊँचाई लगभग 3584 मीटर है। यहाँ से मन्दाकिनी नदी का उदगम स्थल, गाँधी सरोवर
 व वासुकीताल निकट ही हैं। केदारनाथ एक काफ़ी बडी ठीक-ठाक घाटी है। 
बर्फ़ीली हवाये हमेशा चलती रहती है। मन्दिर के पीछे की ओर बर्फ़ से ढके 
पहाड है। यहाँ नदी का पानी बिल्कुल दूघ जैसा दिखाई देता है। 
अब कुछ जानकारी इस मन्दिर के बारे में- कत्यूरी शैली से पत्थरों का बना 
मन्दिर है इसका निर्माण पाण्डव वंश के राजा जन्मेजय ने कराया था। यहाँ का 
स्वयंभू शिवलिंग अति प्राचीन है। आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का 
जीर्णोद्धार करवाया। केदारनाथ के संबंध में शास्त्रों में लिखा है कि जो 
व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना पहले बद्रीनाथ की यात्रा करता है, 
उसकी यात्रा बेकार हो जाती है। मंदिर की सीढ़ियों पर किसी लिपि में कुछ 
लिखा है, जिसे समझ पाना मुश्किल है। मंदिर के आसपास यात्रियों के ठहरने के 
लिए मकान व राज्यों के नामानुसार धर्मशाला बनी हुई है। केदारनाथ के पुजारी 
दक्षिण भारत से ही होते हैं।  प्रात: काल में शिव को स्नान कराकर उस पर घी 
का लेप करने के बाद दीप जलाकर आरती की जाती है। सुबह के समय यात्री मंदिर 
के गर्भगृह में प्रवेश कर पूजा करते हैं, लेकिन दोपहर तीन बजे के बाद 
संध्या के समय भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता है, भक्तगण दूर से दर्शन ही
 कर सकते हैं। यानि अन्दर गर्भगृह तक जाने की आज्ञा नहीं होती है। केदारनाथ
 मंदिर के कपाट मेष संक्रांति से 15 दिन पहले अक्षय तीज पर ही खुलते हैं और
 दीवाली की रात्रि पूजा और भैया दूज के दिन, प्रातः चार बजे की पूजा के साथ
 ही कपाट बंद कर दिये जाते हैं। केदारनाथ जी की पूजा बर्फ़ पडने पर यानि 
सर्दियों में ऊखीमठ में होती है, किसी ने ठीक कहा है कि केदारनाथ के दर्शन 
करनेवाला प्राणी शिव को प्राप्त कर लेता है। 
पहाड़ों में उतरना व चढना दोनों कठिन होता है। जिसके लिये बिना शारीरिक 
तैयारी के नहीं आना चाहिए, हो सके तो कम से कम एक सप्ताह पहले से ही 7-8 
किमी प्रतिदिन पैदल चलने का अभ्यास करना चाहिए। यहाँ ठन्ड भी काफ़ी होती है
 अत: गर्म कपडे एक-दो जरुर होने चाहिए। बारिश का भी यहाँ कोई भरोसा नहीं है
 अत: छतरी भी होनी ही चाहिए। खाने के सामान की यहाँ कोई समस्या नहीं है, 
अत: खाने का वजन ना ढोये तो ठीक रहेगा। जून में यहाँ बेहद भीड होती है। हो 
सके जून में इधर का रुख ना करे। वापसी में हम मात्र तीन घन्टे में नीचे 
गौरीकुंड आ गये थे। ये यात्रा बाइक से नहीं थी अत: हमने बस ली और हरिद्धार आ
 पहुँचे। गौरीकुंड से हरिद्धार की एकमात्र बस सुबह 6 बजे चलती है। गौरीकुंड
 से कोई यात्री बद्रीनाथ जाना चाहे तो ठीक सुबह 5 बजे एकमात्र बस बद्रीनाथ 
भी जाती है। वैसे पूरे दिन जीप चलती रहती है जिनमे बैठकर रुद्रप्रयाग आया 
जाये, इसके बाद रुद्रप्रयाग से हरिद्धार या बद्रीनाथ की जीप ले ली जाये। 
अगर आप अपने वाहन से जा रहे है तो ध्यान रहे कि उतराखण्ड में रात्रि के आठ 
बजे से सुबह 5 बजे तक सडक पर यातायात बन्द रहता है। यानि हरिद्धार से रात 
के 8 बजे के बाद व सुबह 5 बजे से पहले नहीं जा सकते है। वैसे ही बद्रीनाथ 
से आते समय रात के 8 बजे के बाद नहीं आ सकते है। हरिद्धार से हमने अपने घर 
की सीधी ट्रेन में बैठ गये जिसने हमें सुबह हमारे घर के पास लोनी स्टेशन पर
 पहुँचा दिया।
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| 100 years ago. | 
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| After june 2013 | 
घर आते ही हमने एक दिन आराम किया फ़िर वही घुमक्कड वाली धुन सवार हो गयी, अगली यात्रा की तैयारी के बारे में चर्चा करने की। अगली यात्रा गुजरात की दिखायी जायेगी, जो बहुत जल्द आपके सामने होगी।
गोमुख से केदारनाथ पद यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
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6 टिप्पणियां:
गज़ब यात्रा संदीप भाई ! शायद इस बार मौका मिल जाए केदार दर्शन का !!
Shriman Sandeep ji namaskar
mujhe ye batayen ki kya july me 27 ya 28 date ko kedarnath jana thik hai ?
Lagbhag inhee dino mai aur mera ek dost car (M800) lekar leh bhi jana chahte hain.
Kya Maruti 800 suitable hai?
Ya leh ki pahadiyon me fail ho jayegee?
परिहार भाई, मारूति 800 में कोई दिक्कत नहीं आयेगी। बारिश कई दिन से लगातार हो रही हो तब मत जाना, दो चार दिन बाद चलना।
Gangotri se kedarnath kawad yatra me kitne din lagenge.
यात्रा का बहुत ही सुंदर व मनोहारी वर्णन। हो सका तो इस बार मैं भी सोच रहा हूँ गौमुख से केदारनाथ की पैदल यात्रा के विषय मे।
बस भोले का आशीर्वाद मिल जाये।
वृतांत साझा करने के लिये धन्यवाद।
आनन्द आ गया।
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