भानगढ-सरिस्का-पान्डुपोल-यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से अजबगढ होते हुए भानगढ तक की यात्रा।
02- भानगढ में भूतों के किले की रहस्मयी दुनिया का सचित्र विवरण
03- राजस्थान का लघु खजुराहो-सरिस्का का नीलकंठ महादेव मन्दिर
04- सरिस्का वन्य जीव अभ्यारण में जंगली जानवरों के मध्य की गयी यात्रा।
05- सरिस्का नेशनल पार्क में हनुमान व भीम की मिलन स्थली पाण्डु पोल
06- राजा भृतहरि समाधी मन्दिर व गुफ़ा राजा की पूरी कहानी विवरण सहित
07- नटनी का बारा, उलाहेडी गाँव के खण्डहर व पहाडी की चढाई
08- नीमराणा की 12 मंजिल गहरी ऐतिहासिक बावली दर्शन के साथ यात्रा समाप्त
BHANGARH-SARISKA-PANDUPOL-NEEMRANA-07 SANDEEP PANWAR
01- दिल्ली से अजबगढ होते हुए भानगढ तक की यात्रा।
02- भानगढ में भूतों के किले की रहस्मयी दुनिया का सचित्र विवरण
03- राजस्थान का लघु खजुराहो-सरिस्का का नीलकंठ महादेव मन्दिर
04- सरिस्का वन्य जीव अभ्यारण में जंगली जानवरों के मध्य की गयी यात्रा।
05- सरिस्का नेशनल पार्क में हनुमान व भीम की मिलन स्थली पाण्डु पोल
06- राजा भृतहरि समाधी मन्दिर व गुफ़ा राजा की पूरी कहानी विवरण सहित
07- नटनी का बारा, उलाहेडी गाँव के खण्डहर व पहाडी की चढाई
08- नीमराणा की 12 मंजिल गहरी ऐतिहासिक बावली दर्शन के साथ यात्रा समाप्त
BHANGARH-SARISKA-PANDUPOL-NEEMRANA-07 SANDEEP PANWAR
केक खाने के
बाद एक बार फ़िर गाडी में सवार हो गये। अब हमें नटनी का बारा नाम से मशहूर हुई जगह
देखनी थी। यह जगह सरिस्का से अलवर जाने वाली सडक के किनारे ही है। बताते है कि
काफ़ी पहले सडक के साथ बहने वाली नदी को पार करने के लिये एक नटनी नदी किनारे के
दोनों पहाडों पर रस्सी बाँध कर आर-पार जाया करती थी। नटनी दोनों पर्वतों के बीच की
खाई को प्रतिदिन दो बार पार कर इस ओर से उस ओर आया-जाया करती थी। एक दिन उस नटनी
की मौत उसी रस्सी से गिरने से हो गयी। कहते है नटनी को नीचे अपना बच्चा दिखायी दे
गया। जिस कारण वह ममता के मोह में फ़ंसने होने से अपना संतुलन सम्भाल नहीं सकी।
लगभग अस्सी फ़ुट की ऊँचाई से गिरते के कारण नटनी तत्काल मौत की नीन्द सो गयी।
घुडसवार की गिरता है मैदाने जंग में।
हम नटनी का
बारा वाले इलाके में सूर्यास्त के समय पहुँचे थे। उस समय सूर्य अरावली पर्वतमाला
के पीछे डूबता दिखायी दे रहा था। यहाँ पर नदी के रुके हुए पानी में बडे-बडे कछुवे
होने की बात अशोक जी ने बतायी थी। हमें काफ़ी तलाश करने के बाद भी कछुवे दिखायी ना
दिये। तभी वहां मौजूद एक बन्दे ने बताया कि कछुवे बरसात के दिनों में ही दिखायी दे
पाते है। अन्य दिनों में कछुवे काफ़ी छुपे हुए रहते है। वहाँ दीवार पर खाटू वाले
श्याम की पद यात्रा के बारे में एक इश्तिहार लगा हुआ देखा। कभी मौका लगा तो यह
खाटू वाले स्याम की पद यात्रा अवश्य की जायेगी। सडक पार वनपाल नाका, बारा का बोर्ड
दिखायी दिया। हम अपनी गाडी में सवार होकर अलवर की ओर चल दिये।
अलवर से कोई
20 किमी पहले सडक किनारे एक पक्की दीवार
दिखायी दी। अशोक भाई ने बताया कि यह दीवार जैसे दिखने वाली, असल में एक नाली है।
अलवर के राजा ने अपने व प्रजा की आवश्यकता के लिये सरिस्का के इन पहाडों से इस
नाली के जरिये अजमेर तक पानी पहुँचाने का प्रबन्ध किया इस दीवार नुमा नाली से ही
किया था। क्या बात है? हमारे देश में सैकडों वर्ष पहले भी पाइप लाइन जैसी दिखने
वाली नाली लाइन से पानी की सुविधा थी। यह देखकर खुशी होती है।
अलवर
पहुँचने से पहले एक जगह रुके। यहाँ अशोक भाई ने बताया था कि एक बन्दा बहुत
स्वादिष्ट पकौडी बनाता है। गाडी रुकते ही अशोक जी पकौडी लेने चले गये। एक साथी को
पैर में आई मोच के कारण काफ़ी दर्द हो रहा था। सोचा उसके लिये दर्द निवारक दवा या
ट्यूब मिल जाये, लेकिन अफ़सोस उस जगह कोई मेडिकल स्टोर नहीं मिला। अशोक जी थोडी देर
बाद एक बडे से डौने में पकौडियाँ लेकर लौटे। अशोक जी बोले, जिस पकौडी वाले की
मैंने आपसे बात की थी, ये पकौडी उसकी नहीं है लेकिन यह भी काफ़ी स्वादिष्ट है।
पकौडी खाने के बाद देखा कि सच में पकौडियाँ काफ़ी स्वादिष्ट है।
अलवर
पहुंचने ही मैंने कहा, “अशोक भाई यहाँ अलवर के पास एक ऐसी जगह है जहाँ पर स्थानीय
ग्रामीण लोगों में से किसी एक खास जाति के लोग अपनी बहु-बेटियों से पैसे कमाने के
लिये अपने ही घर में अवैध सम्बन्ध (sex) करने देते है। अशोक जी उस गाँव का नाम कलगाँव है ना, और यह अलवर से राजगढ जाने वाले मार्ग पर आता है। अलवर से उस गाँव की दूरी 10-12 किमी तो होगी ही। अशोक जी बोले संदीप जी, सामने जो हरा बोर्ड़ देख रहो, वहाँ से सीधे हाथ
पहला मार्ग राजगढ जा रहा है। वह जगह उसी मार्ग पर बतायी जाती है। सेक्स वाली बात सुनते ही हमारी टोली के साथियों के
कान चौकन्ने हो गये। गैर कानूनी सेक्स सम्बन्ध के कारण बहुत से घर बर्बाद हो चुके है।
कोई उस
रोमांचक व खतरनाक जगह देखने जाने के मूड में नहीं लगा। मुझे वह जगह एक बार अवश्य देखनी है। आज तो समय नहीं बचा था फ़िर कभी मौका लगा तो घूम कर आया जायेगा। उस समय असली समस्या समय की कमी की थी।
रात पहले ही हो गयी थी। हम अलवर भी अन्धेरे में ही पहुंचे थे। अशोक जी का घर अभी
काफ़ी दूर था। अलवर से आगे बहरोड वाली सडक पर चलते रहे। अलवर में सरकारी अस्पताले
के पास से मोच वाले साथी को दर्द की दवा दिलवाकर आगे चल दिये।
अलवर से आगे
जाने के बाद अशोक जी ने बताया कि अब हम एक सुरंग से होकर निकलेंगे। सुरंग और यहाँ
पर। कुछ देर बाद सुरंग भी आ गयी। यह काफ़ी ऊँची व बडी सुरंग थी। शिमला वाली सुरंग
इसके सामने काफ़ी छोटी लगती है। इस सुरंग के बनने से पहले पहाड की चढाई व उतराई पार
करने में वाहनों को काफ़ी समय खपाना पडता था। आज घन्टे भर की यात्रा सुरंग बनने पर
एक मिनट में पार हो जाती है। इस सुरंग के बनने से पहले, यहाँ भी जम्मू व कश्मीर को
जोडने वाली जवाहर सुरंग की तरह के हालात होंगे। अन्तर यही होगा कि वहाँ अधिक ऊँचाई
का पहाड है जबकि यहाँ कम ऊचाई का पहाड है।
सुरंग पार
करने के बाद कुछ किमी आगे गये थे कि एक साथी को प्रेशर लग गया। चारों ओर घनघोर
अंधेरा था। ततारपुर नामक गांव के पास ठीक सी जगह देख रुक गये। सडक किनारे पानी मिल
गया था। सब अपनी बोतल लेकर अन्धेरे में ओछिल हो गये। जिसको हल्का होना था हो लिया।
रात के अन्धेरे में फ़ोटो लेने पर सिर्फ़ उतना ही फ़ोटो आ पाता है जहाँ तक कैमरे की
फ़्लैश काम कर पाती है। मैंने रात के गहरे अंधेरे में सडक के व आसपास के कई फ़ोटो
लेकर देखे। अंधेरे में जंगल के पेड-पौधे के फ़ोटो कुछ रहस्यमयी हालात वाले दिखाई
देते है।
हाईवे छोडकर
ग्रामीण मार्गों से होकर रात को करीब 08:30 बजे अशोक जी के गाँव उलाहेडी पहुँचे। पूरे दिन में करीब 300 किमी गाडी चली थी। लगभग 15 घन्टे बाद गाँव वापिस
आये। आज का पूरा दिन बहुत ही यादगार रहा। हाथ मुँह धोकर कडी चावल खाये गये। कडी चावल
की सिफ़ारिश दिन में ही कर दी गयी थी। भोजन में कडी चावल खाने के बाद सोने के लिये
बराबर वाले कमरे में पहुँच गये। जिस कमरे में सोने गये थे, वहाँ बिजली गायब थी।
पता लगा कि दिन में बिजली के तार अदला-बदला हुए है। जिस कारण बिजली गायब है। अशोक
जी के मझले भाई की कोशिश के बाद कमरे में उजाला हो गया।
सोने से
पहले सबके लिये दूध भी लाया गया। मैंने कल भी दो गिलास दूध पिया था आज भी दो गिलास
दूध से कम पर बात कहाँ बनने वाली थी। आज
दिन में 270-280 फ़ोटो लिये थे जिससे कैमरे की बैट्री
खाली हो गयी थी। गाडी में मोबाइल चार्ज करने के लिये बैट्री चार्जर लगा हुआ है
जिसमें बहुत सारे पॉइन्ट थे। एक को कैमरे में लगा कर देखा तो कैमरे की बैट्री
चार्ज होने लगी। इस तरह गाडी के मोबाइल चार्जर से चार्ज करने का जुगाड मिल गया। अब
मुझे किसी भी बाइक यात्रा में कैमरे व मोबाइल बैट्री समाप्त होने का डर नहीं
सतायेगा? सुबह जल्दी नहीं उठना था।
सुबह करीब 6 बजे आँखे खुली। आज फ़्रेश होने के लिये
खेतों का रुख किया गया। खेतों को बाँटने के लिये बनाई गयी मेंढ/डोल पर कई साल बाद
चलना हुआ। रात को गिरी ओस से डोल किनारे खडे पौधों में काफ़ी पानी था जिससे हमारे
पैन्ट/पाजामे गीले हो गये। हमारी हालत ऐसी हो गयी थी जैसे हमने सू-सू पाजामे में
ही कर दिया हो। गाँव से बाहर एक ट्यूबवेल से पानी की बोतले मिल गयी। सबने
अपनी-अपनी बोतल उठा ली। चारों ओर गेहूँ व सरसों के खेत दिखायी दे रहे थे। सरसों के
खेत में पीले-पीले फ़ूल से भरे हुए खेत देखने की इच्छा अधूरी ही रह गयी। गेहू के
खेत में लगभग तैयार फ़सल पकने को तैयार थी। जैसे ही गर्म दिन आयेंगे। गेहू की फ़सल
पकने लगेगी।
राजस्थान
में खेतों व घरों में उपयोग के लिये जमीन से पानी निकालने के लिये सौर ऊर्जा का
प्रयोग किया जा रहा है। अशोक जी ने 3 किलोवाट तक के सौर प्लाट हमें दिखाये। सौर ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग
किया जाये तो हमारे देश में बिजली का संकट समाप्त हो जायेगा। गुजरात राज्य इस दिशा
में पहले से अग्रणी बन चुका है। फ़्रेश स्नान आदि से निपटने के बाद गाँव भ्रमण की
बारी थी। गाँव में आये दो दिन हो चुके थे। अब तक गाडी में बैठकर ही गाँव देखा था।
अशोक जी का
पुश्तैनी घर भी देखना था। जिसे उनके परिवार ने करीब 50 साल पहले रहना बन्द कर दिया था। गाँव का
आधा भाग उजाड मिला। पता लगा कि गाँव के खाली पडे घरो के लोग जयपुर या अन्य स्थानों
पर चले गये है। गाँव को ऐतिहासिक नजरों से देखा जाये तो भानगढ जैसे खण्डहर यहाँ भी
दिखाई दिये। लेकिन शुक्र है। इन खण्डहरों में भूतों का बसेरा नहीं है।
पुराने घरों
की छते बिना लकडी व लोहे की सहायता लिये सिर्फ़ पत्थर से बनायी गयी है। पुराने समय
का ताला भी देखा। जो आजकल दिखायी नही देंगे। गाँव में जितने भी पुराने घर देखे
किसी में भी ईट की बनी दीवार नहीं मिली। सभी घर पत्थरों की बनी दीवार वाले थे।
गाँव में घूमते हुए लाला की दुकान पर पहुंचे वहाँ लाला जी हुक्के को देखकर याद आया
कि यह हुक्का तो थोडा छोटा लग रहा है। इसको तो हमारे यहाँ लेडिज वाला हुक्का/कली
कहते है।
गांव में एक
छतरी भी दिखायी दी। जो किसी की याद में बनायी गयी है। छतरी की छत के अन्दर बहुत
शानदार चित्रकारी की गयी थी। छतरी की अन्दरुनी छत में जिन रंगों का प्रयोग किया
गया है। वे आज भी ताज लग रहे थे। इस छतरी के सटा हुआ एक मन्दिर भी था। जिसका
जीर्णोद्धार किया गया है। इस मन्दिर के पास हमारी गाडी का कल वाला चालक दिखायी
दिया। सामने एक जीप खडी थी जिसका पहिया नाली में गिरने को तैयार था। पहिया नाली के
किनारे पर मुश्किल से एक इन्च टिका हुआ था। गाँव में घूमते हुए पानी से भरी एक ऐसी
गली में पहुँचे जहाँ से निकलने के लिये दीवार का सहारा लेकर आगे जाना पडा।
गाँव भ्रमण
के बाद वापिस लौटते समय पंचायत भवन के सामने पहुँचे। अंग्रेजी राज्य में यहाँ
पंचायत लगा करती थी। पंच लोग जिस तख्त पर बैठा करते थे वह तख्त ए ताऊस आज बुरी
जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पडा अपने हालत बयां कर रहा था। गाँव की खाली पडी कई हवेलियाँ
आज भी रहने लायक है लेकिन अफ़सोस इनके मालिकों के पास इतना पैसा है यह उनके लिये बेकार
है। अगर यही हवेलियाँ किसी शहर या कस्बे में होती तो इनसे अच्छा खासा किराया आ सकता
था। चलो भोजन तैयार है। पहले भोजन करते है। पूरी सब्जी व खीर की महक घर से बाहर भी
आ रही है। भोजन के बाद गाँव के पास वाली पहाडी पर आरोहण करने के साथ यहाँ से प्रस्थान
कर दिया जायेगा।
अगले लेख
में आपको नीमराणा की 12 मंजिल गहरी
बावडी के पाताल से आकाश तक दर्शन कराये जायेंगे। (यात्रा अभी जारी है)
3 टिप्पणियां:
बेफिक्र घुमक्कड़ी, आनन्दमय घुमक्कड़ी।
गांव के ठाट की बात ही कुछ ओर है.
बढिया चित्र व लेख
भाई जी खाने और पीने पर पूरा ध्यान केन्द्रित था। 2 गिलास दूध का काम तमाम कर दिया..
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