भानगढ-सरिस्का-पान्डुपोल-यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से अजबगढ होते हुए भानगढ तक की यात्रा।
02- भानगढ में भूतों के किले की रहस्मयी दुनिया का सचित्र विवरण
03- राजस्थान का लघु खजुराहो-सरिस्का का नीलकंठ महादेव मन्दिर
04- सरिस्का वन्य जीव अभ्यारण में जंगली जानवरों के मध्य की गयी यात्रा।
05- सरिस्का नेशनल पार्क में हनुमान व भीम की मिलन स्थली पाण्डु पोल
06- राजा भृतहरि समाधी मन्दिर व गुफ़ा राजा की पूरी कहानी विवरण सहित
07- नटनी का बारा, उलाहेडी गाँव के खण्डहर व पहाडी की चढाई
08- नीमराणा की 12 मंजिल गहरी ऐतिहासिक बावली दर्शन के साथ यात्रा समाप्त
BHANGARH-SARISKA-PANDUPOL-NEEMRANA-01 SANDEEP PANWAR
01- दिल्ली से अजबगढ होते हुए भानगढ तक की यात्रा।
02- भानगढ में भूतों के किले की रहस्मयी दुनिया का सचित्र विवरण
03- राजस्थान का लघु खजुराहो-सरिस्का का नीलकंठ महादेव मन्दिर
04- सरिस्का वन्य जीव अभ्यारण में जंगली जानवरों के मध्य की गयी यात्रा।
05- सरिस्का नेशनल पार्क में हनुमान व भीम की मिलन स्थली पाण्डु पोल
06- राजा भृतहरि समाधी मन्दिर व गुफ़ा राजा की पूरी कहानी विवरण सहित
07- नटनी का बारा, उलाहेडी गाँव के खण्डहर व पहाडी की चढाई
08- नीमराणा की 12 मंजिल गहरी ऐतिहासिक बावली दर्शन के साथ यात्रा समाप्त
BHANGARH-SARISKA-PANDUPOL-NEEMRANA-01 SANDEEP PANWAR
आज एक नई यात्रा की शुरुआत करते है। 28-02-2014 को इस यात्रा की विधिवत शुरुआत हुई थी लेकिन
इसकी तैयारी महीने भर पहले से ही शुरु हो चुकी थी। कोई महीना भर 26 जनवरी के आसपास पहले मेरे मोबाइल पर अनसेव
नम्बर से एक कॉल आयी। फ़ोन करने वाले ने कहा कि संदीप पवाँर जी मैं नीमराणा, अलवर
जिला, राजस्थान से अशोक शर्मा बोल रहा हूँ। अशोक शर्मा नीमराणा कुछ जाना-पहचाना सा
नाम लगा। अशोक जी ने बात आगे बढाते हुए कहा। संदीप जी आपको शायद याद होगा कि मैंने
पहले भी आपसे बात की है। हाँ, अशोक जी याद तो आ रहा है। लेकिन आपका नम्बर सेव नहीं
है इसलिये थोड़ा असंमजस हो गया था।
अशोक जी बोले, आपसे एक बात कहनी है। मैंने कहा,
कहिए। संदीप जी बात ऐसी है कि फ़रवरी के आखिरी सप्ताह में मैं अपने कुछ दोस्तों के
साथ भानगढ व सरिस्का जाना चाह रहा हूँ। मैंने आपके ब्लॉग के सब लेख पढे हुए है।
जिससे मुझे पता है कि अभी तक आप भानगढ नहीं गये है। हाँ जी, आप सही कह रहे है मैं
अभी तक भानगढ नहीं गया हूँ। आप हमारे साथ भानगढ जाना चाहोगे? जरुर जाना चाहूँगा।
मैं घूमने का न्यौता कैसे नकार सकता था।
मैंने मन ही मन सोचा कि अशोक जी के साथ यह यात्रा करने के
बाद ब्लॉग पाठक की जगह दोस्त बन जायेंगे। मेरी हाँ सुनते ही, अशोक जी ने कहा। ठीक
है संदीप जी, मैं अपना कार्यक्रम निश्चित होते ही आपको सूचित करता हूँ। इस
वार्तालाप के बाद फ़ोन काट दिया गया। मैंने यह सोच कर, अशोक जी का फ़ोन नम्बर
सुरक्षित कर लिया कि हो सकता है कि अशोक जी का दुबारा फ़ोन आये तो अन्जान नम्बर
देखकर उन्हे अपना पूरा परिचय पुन: ना बताना पड़े। फ़रवरी का अन्तिम सप्ताह शुरु हो गया
था। एक दिन अशोक जी फ़ोन आ ही गया जबकि मैं सोच रहा था कि शायद अशोक जी यात्रा कर
आये है या यात्रा पीछे खिसका चुके है।
अशोक जी नमस्कार, अशोक जी ने भी नमस्कार स्वीकार करने के
उपराँत इधर-उधर की बात ना कहकर, सीधे अपनी मुद्दे पर आये। अशोक जी बोले संदीप जी
हमारी यात्रा 01 मार्च 2014 को सुबह हमारे
घर से उजाला होने से पहले शुरु हो जायेगी। मैंने कहा, इतनी सुबह मैं कैसे आऊँगा?
अशोक जी बोले, मैंने आपको पहले ही कहा था कि आप मेरे परिवार के मेहमान रहोगे। अन्य
साथी 28 की शाम को बस से आ रहे है। आप भी 28 की शाम को हमारे यहाँ पहुँच जाना। आपका गाँव हाइवे
से कितनी दूर है? यही कोई 22 किमी।
हाइवे से इतनी दूर ग्रामीण इलाके में पहुँचना आसान कार्य
नहीं है। अशोक जी ठीक है। मैं पहुँच जाऊँगा। आप अपने गाँव तक पहुँचने के आसान
मार्ग के बारे में समझाईये। संदीप जी आपको गाँव तक नहीं आना है। आपको सिर्फ़ दिल्ली
से जयपुर जाने वाले हाइवे पर गुडगाँव से कोई 100 किमी दूर शाहजहाँपुर
तक आना है। बस से उतरते ही मैं आपको लेने के लिये खड़ा मिल जाऊँगा। आप यह बताईये कि
आप शाम को किस समय तक पहुँच जाओगे?
मैंने कहा, पहले यह बताईये कि मुझे बस कहाँ से लेनी ठीक
रहेगी? गुडगाँव से सराय काले खाँ से, या धौला कुआँ। अशोक जी ने कहा, संदीप जी आपको
गुड़गाँव से बस लेने में ज्यादा ठीक रहेगा। गुड़गाँव तक मैट्रो में आ जाओ। ठीक है
अशोक जी। मैं 3 बजे मैट्रो मॆं बैठ जाऊँगा। जिसमें 4 बजे तक गुड़गाँव पहुँच जाऊँगा। गुड़गाँव में कहाँ उतरना है?
इफ़को चौक या हुड़ा सिटी सेन्टर? आपको एमजी रोड़ पर उतरना है। यह एमजी रोड़ क्या बला
है?
यह नाम मैंने पहली बार सुना था। अशोक जी यह एम जी रोड़ कहाँ
है? इफ़को चौक से पहले वाला मैट्रो स्टेशन है। हाइवे वाले फ़्लाइओवर से 1 किमी दूर है। आप पैदल भी आ सकते हो। क्या इफ़को चौक ज्यादा
दूर है? नहीं ऐसी बात नहीं है। हाइवे से दोनों मैट्रो स्टेशनों की दूरी एक-समान है
लेकिन यहाँ तक आने-जाने के लिये ऑटो भी मिलते रहते है यदि आपका मन हुआ कि पैदल नहीं
चलना है तो 5-10 रुपये में ऑटो वाला आपको हाइवे तक छोड़ देगा।
जहाँ से बस मिल जायेगी।
दिल्ली-जयपुर हाइवे पर स्थित इफ़को चौक से आपको जयपुर जाने
वाली किसी भी बस में बैठना होगा। वह बस डेढ से दो घन्टे का समय लेगी। इस तरह मैं
आपके पास 6-7 तक पहुँच जाऊँगा। 6 बजे तक मैं आपको लेने के लिये शाहजहाँपुर पहुँच जाऊँगा।
बात समाप्त होने के बाद देखा कि आज तो 23 फ़रवरी है। आज से
5 दिन बाद भानगढ यात्रा शुरु हो जायेगी। इस
यात्रा के लिए ज्यादा कुछ तैयारी तो करनी नहीं थी। इसलिये 28 की सुबह अपना कार्यालय ले जाने वाले बैग में
ही एक जोड़ी कपडे व कैमरा ड़ाल कर कार्यालय पहुँचना तय कर लिया।
अशोक जी से बस में आने की बात तय हुई थी लेकिन मैंने सोचा
कि अशोक जी का घर मेरे घर से सिर्फ़ 150 किमी दूर ही तो
है क्यों ना, अपनी नीली परी पर यह यात्रा की जाये। मैं अपनी बाइक लेकर कार्यालय
पहुँच गया। दोपहर 12 बजे अशोक जी फ़ोन
आया कि संदीप जी पक्का आ रहे हो ना। हाँ जी पक्का आ रहा हूँ। अब तो यदि आपका
कार्यक्रम रद्द होगा तो भी मैं भानगढ देखकर वापिस घर जाऊँगा।
दिल्ली में रात भर जोरदार बारिश हुई थी। आज सुबह 11 बजे से फ़िर बारिश हो रही थी। अशोक जी बोले
संदीप जी 3 बजे की जगह 2 बजे चल सकते हो।
चल तो मैं अभी दू, लेकिन यहाँ तो जोरदार बारिश हो रही है। मैं घर से बाइक लेकर आया
हूँ। अब तो बारिश रुकने के बाद ही यहाँ से रवाना हुआ जा सकता है। अशोक जी बोले ठीक
है। जैसे ही आप वहाँ से चले, मुझे बता देना। बारिश देखकर लगता था कि पूरी सर्दियों
की कसर आज ही निकाल कर मानेगी। २ बजे तक बारिश अपनी जवानी पर थी। झमाझम बारिश
देखकर लग रहा था कि ऐसे मौसम में बाइक यात्रा करना फ़जीहत बुलाने से ज्यादा कुछ
नहीं होने वाला।
मैंने 02:30 पर अशोक जी को
फ़ोन लगाया कि यहाँ तो अब भी बारिश हो रही है। क्या आपके यहाँ भी बारिश हो रही है।
अशोक जी बोले, संदीप जी हमारे यहाँ तो बारिश सुबह ही रुक गयी थी। मैंने बाइक
कार्यालय के अन्दर खड़ी कर दी। बाइक यात्रा की उम्मीद तो पहले ही समाप्त हो गयी थी।
जब 3 बजे तक बारिश नहीं रुकी तो लगने लगा कि मैट्रो
तक पहुँचना भी टेडी खीर साबित होने वाला है।
लेकिन कहते है ना जहाँ चाह, वही राह। तीन बजे हमारी ड्यूटी
समाप्त होती है जिसके बाद सभी अपने-अपने घरों के लिये चले जाते है। कार्यालय में
कुछ लोग अपनी कार भी लेकर आते है। हमारे यहाँ से दक्ष नाम का एक बन्दा दिल्ली
विश्वविधालय मैट्रो स्टेशन के सामने से अपनी कार लेकर जाता है। मैंने दक्ष से कहा,
क्या मुझे मैट्रो तक छोड सकते हो? दक्ष से अपनी अच्छी बनती है। नहीं की गुन्जाइश
कहाँ थी? बारिश लगातार चालू थी। भागकर कार में बैठना पड़ा। कुछ देर में मैट्रो के
सामने पहुँच गये। बारिश से बचने के लिये कार से भी तेजी से उतरना पड़ा। मैट्रो
स्टेशन में प्रवेश किया।
मैट्रो स्टेशन में घुसते ही देखा कि वहाँ तो महिलाओं की
लम्बी लाइन लगी है। सुरक्षाकर्मी से कहा कि पुरुष वाली लाइन कहाँ है? उसने कहा,
खाली है आप आगे तो जाओ। आगे जाकर देखा कि पुरुष वाली लाइन में कोई भी नहीं था।
सारी मारा-मारी लेडिज लाइन पर ही मची थी। सुरक्षा जाँच से गुजर कर अन्दर गया तो
पता लगा कि टिकट के लिये बाहर जाना पडॆगा। टिकट वाली लाइन पर निगाह गयी तो
सिटी-पिटी गुम हो गयी। टिकट की लाइन में कम से 20-25 बन्दे पहले से
खडे थे। टिकट लाइन में लगने का सीधा अर्थ था कि 10-12 मिनट स्वाहा
होना।
तभी खोपड़ी में विचार आया कि मैट्रो कार्ड बनवाया लिया जाये।
मैट्रो कार्ड़ की लाइन कभी नहीं मिलती है। जाहिर है आज भी नहीं मिली। मैंने 200 रु देकर एक नया कार्ड़ देने को कहा। काऊंटर
लिपिक ने मुझे कार्ड़ देते हुए कहा कि इसमें 150 रु का बैलेंस
है। मुश्किल से 1 मिनट का समय भी
नहीं लगा। कार्ड़ मशीन को दिखाकर अन्दर जाने लगा तो स्क्रीन पर दिखायी दिया कि मेरे
कार्ड़ में 150 का ही बैलेंस मिला है। फ़टाफ़ट अन्ड़रग्राउंड़ में
बने मैट्रों प्लेटफ़ार्म में पहुँच गया।
एक मिनट बाद ही मैट्रो भी आ गयी। यह मैट्रो कुतुब मीनार तक जा
रही थी। चलो कोई बात नहीं। पहले कुतुब मीनार तक तो पहुँचे। इस मैट्रो रुट पर मैंने
अभी तक मालवीय नगर तक ही यात्रा की हुई थी। कुछ महीने पहले राकेश भाई के किसी काम
से यहाँ आना हुआ था। कुतुब मीनार से पहले वाले मैट्रो स्टेशन पहुँचकर गुड़गाँव जाने
वाले सभी यात्रियों को इस मैट्रों से उतरने को कहा गया।
इस प्लेटफ़ार्म पर 2-3 मिनट की
प्रतीक्षा के बाद दूसरी मैट्रों आ गयी। यह मैट्रो गुड़गाँव हुड़ा सिटी सेन्टर तक जा
रही थी। इसमें पहले से ही काफ़ी भीड़ थी जिसमें सीट मिलने की कोई गुन्जाइश नहीं थी।
दिल्ली विश्वविधालय से आते समय मुझे सीट मिल गयी थी। आजकल दिल्ली परिवहन निगम या
मैट्रो की सवारी करनी हो तो महिला सीट के साथ बुजुर्ग वाली सीट भी खाली होने के
बावजूद छोड़नी पड़ती है। बुजुर्ग तो एक बार खड़ा भी रह सकता है लेकिन कोई-कोई महिला
तो भरी भीड़ में इज्जत उतार देती है। कोई अपनी उतारे उससे अच्छा तो यही है ऐसी किसी
विवादास्पद सीट पर बैठा ही ना जाये।
जैसा कि अशोक जी ने बताया था कि एमजी रोड़ पर उतरना है मैं
मैट्रो डिब्बे में लगी स्टेशन नाम वाली पटटी को लगातार देखता जा रहा था कि कितने
स्टेशन बाकि रह गये है। आखिरी के दो-तीन किमी घिटोरनी वाले कीकर के घनघोर जंगलों
के बीच से होकर बनाये गये है। इन दो किमी में मैट्रो साँप की तरह बलखाती हुई आगे
बढती रहती है। आखिरकार मैट्रो सीधी लाइन पर चलने लगी तो MG रोड़ स्टेशन भी आ गया। स्टेशन से बाहर निकल कर
देखा कि बारिश लगभग रुक गयी है। कुतुब मीनार मैट्रो स्टेशन तक बारिश हल्की-हल्की
फ़ुआर गिराने में लगी थी।
अशोक जी ने बताया था कि एमजी रोड़ से हाइवे मुश्किल से एक
किमी है। मैंने किसी ऑटो वाले को नहीं टोका। किसी ने मुझे नहीं टोका। लगभग 10 मिनट पैदल चलने के बाद हाइवे दिखायी दिया।
यहाँ फ़्लाइओवर बना हुआ है। बस वाले सवारियाँ लेने के लिये अपनी बसे फ़्लाइओवर के
नीचे से होकर ले जाते है। एक बस सामने खड़ी दिखायी दी। बस में घुसते ही कन्ड़क्टर
बोला, कहाँ जाओगे? शाहजहाँपुर। आओ अन्दर। दूसरे स्थान वाली सीट खाली थी। जिस पर
मैंने अपना डॆरा जमा दिया।
इफ़को चौक पार कर आगे बढने पर टोल टैक्स बूथ पर हमारी बस ने
टोल चुकाया। टोल चुकाने के बाद बस मानेसर होती हुई जयपुर की ओर तेजी से भागती रही।
बिलासपुर जाकर सड़क पर भयंकर जाम मिला। मेरे साथ बैठे सज्जन ने बताया कि बिलासपुर
का जाम इस रुट का फ़ैमस जाम बन चुका है। बारिश के कारण सड़क किनारे एकत्र हुए पानी
के कारण छोटॆ वाहन जैसे कार आदि पानी में घुसने से ड़र रहे थे। उनका ड़रना भी सही था
यदि कोई कार या जीप उस पानी में अटक गयी तो क्या कोई उनको राहत पहुँचाने जायेगा?
बिलासपुर के जाम से निकलने में घन्टा भर खराब हो गया। हमारी
बस दो किमी लम्बे जाम को पार करने में घन्टा भर खा गयी। अशोक जी का फ़ोन आया कि
कहाँ हो? बिलासपुर के जाम में फ़ंसे होने की जानकारी दी। बिलास पुर के जाम के बारे
में कहा जाता है कि यहाँ दूसरे मार्ग से आने वाले भारी ट्रक जबरन बीच में घुस जाते
है जिस कारण हाइवे का ट्रेफ़िक अवरुद हो जाता है जिससे जाम लग जाता है। जाम से
निकलने के बाद चालक ने जमकर बस भगायी।
एक जगह डीजल लेने के लिये चालक ने बस पैट्रोल पम्प पर रोक
दी। मैंने अशोक जी को बताया कि हमारी बस डीजल ले रही है। अशोक जी ने कहा कि यहाँ
से आपको 20 मिनट और लगेंगे। शाम के 7 बज चुके थे। अंधेरा हो गया था। 20 मिनट बाद हमारी बस शाहजहाँपुर पहुँच गयी। बस
ने मुझे फ़्लाइओवर के आरम्भ में उतार दिया था। अशोक जी को फ़ोन कर अपनी स्थिति बतायी
कि मैं फ़्लाइओवर की शुरुआत में खड़ा हूँ।
दो मिनट बाद अशोक जी मुझे लेने के लिये आ गये। मैंने अब तक
अशोक जी को नहीं देखा था। इसलिये जब तीन बन्दे मेरे सामने आये तो पता नहीं लग पाया
कि इनमें से अशोक जी कौन है। लेकिन जब अशोक जी ने हाथ बढाकर हाथ मिलाया तो पता लग
गया कि यह अशोक जी है। हम तुरन्त वापिस लौटने लगे।
फ़्लाइओवर से कुछ ही दूर पर अशोक जी गाँव से लायी गयी
स्कारपियो के पास पहुँचकर बोले। संदीप जी आप सबसे आगे वाली सीट पर बैठो। मैंने
गाड़ी में बैठने के बाद देखा कि उसमें तो पहले से 7-8 लोग सवार है।
मैंने कहा, आप लोग यहाँ कब आ गये थे? उनका जवाब था साढे 5 बजे। यानि मेरे कारण उन्हे 2 घन्टे प्रतीक्षा
करनी पड़ी। गाड़ी हमें लेकर अशोक जी के गाँव चल दी। मैंने कहा सच-सच बताना 2 घन्टे तक मेरे कारण यहाँ आपको यहाँ रुकना पड़ा। किस-किसने
मुझे कोसा है। किसी ने हाँ नहीं भरी। मैंने फ़िर कहा, अरे भाई, ऐसा तो हो ही नहीं
सकता। मन में तो जरुर कुलबुलाते रहे होंगे कि अच्छा संदीप जी को बुलाया। जो हमारा
दो घन्टा चक्का जाम कराया।
अपनी आदत है कि छुट-पुट हंसी मजाक
हमेशा बना रहना चाहिए। इसलिये गाड़ी चलते ही दो चार बाते कर दी थी जिससे माहौल
खुशनुमा दिखायी दिया। हमारी गाड़ी सामने जा रहे एक ग्रामीण ऑटो को पार कर रही थी कि
सड़क में बने एक गड़्ड़े के कारण ऑटो व स्कारपियो एक साथ उस गड़्डे में घुस गयी जिससे
दोनों गाडियों का झुकाव एक दूसरे की ओर होने से ऑटो का आगे का हिस्सा स्कारपियो के
पिछले वाले हिस्से से टकरा गया। घर जाकर पता लगा कि लाइट के पास एक लाइन खिंच गयी
है।
रात में करीब सवा 8 बजे अशोक जी के
घर पहुँच गये। घर पहुँचकर अशोक जी ने अपने परिवार से परिचय कराया। जिसमें उनके
छोटे भाई, माताजी, पत्नी, व बेटा शामिल रहे। परिचय कराने के बाद भोजन की बारी आयी।
अशोक जी का घर लगभग 50 वर्ष पुराना है
जिसे देखकर पुराने घरों का वैभव याद आता है। भोजन करने के लिये आँगन में आयताकार
रुप में दरी बिछा दी गयी। अशोक जी व उनके परिवार की मेहमाननवाजी देखकर लगा कि
दोस्तों के लिये इतना प्यार समेट कर रखने वाले बन्दे के साथ होने जा रही यात्रा भी
शानदार रहेगी।
रात का भोजन करने के उपरांत, सोने की बारी आयी तो अशोक ने
बताया कि आप सबके सोने के लिये बराबर में एक कमरा खाली किया हुआ है। अपना-अपना
सामान लेकर उस कमरे में पहुँच गये। 15 बाई 15 का कमरा रहा होगा। जिसमें पूरे में रजाई गद्दे
बिछे हुए थे। सबने अपनी अपनी रजाई लेकर सोने की तैयारी कर दी। अशोक जी सबसे बोले
मैं आज की रात आपको सोने नहीं दूँगा। संदीप जी आपको नीन्द आ रही है। ना अशोक जी
अभी तो 10 बजे है। रात को 11 के बाद आयेगी। सब लोगों ने अपनी –अपनी मजेदार
घटनाएँ बतायी। बंगाली बाबू ने रेलवे की एक मजेदार घटना के बारे में बताया था। सोने
से पहले गर्मागर्म दूध भी पिया गया। ओरों का तो पता नहीं। मैंने दूध के बडॆ दो
ग्लास पिये थे।
हमारे साथ जितने बन्दे थे उसमें से 2 उतराखन्ड़ के, 1 बंगाली, 2 बिहारी, 2 पुत्तर (उत्तर)
प्रदेश, यह सभी लोग अशोक जी के साथ गुड़गाँव में कार्य करते थे। शनिवार व रविवार को
इनका अवकाश रहता है जिसमें यह कही आसपास घूमने का कार्यक्रम बनाने की कोशिश कर
लेते है। रात को कब नीन्द आयी नहीं पता। सुबह 5 बजे आँखे खुली।
आज नहा-धोकर भानगढ भूतों के किले को देखने की तैयारी थी। हमारे समूह में शायद ही
कोई बन्दा रहा होगा जो उस दिन नहाया ना हो। अशोक ने गर्मागर्म पानी का प्रबन्ध
किया हुआ था जिससे नहाने से इन्कार किया ही नहीं जा सकता था।
सुबह से ही जमकर कोहरा पड़ रहा था। पहले हम सोच रहे थे सुबह 6 बजे घर से चल देंगे। लेकिन कोहरे के चक्कर में घर से चलने
में आधा घन्टा ज्यादा हो गया। सुबह नाश्ते के रुप में पोहा हम सबके सामने था। वैसे
मुझे सुबह कुछ खाने की आदत नहीं है लेकिन पोहे को देखकर मैं इन्कार ना कर सका।
पोहे के साथ दूध भी था जिससे पोहे का स्वाद कई गुणा बढ गया था। पोहा खाने के बाद
गाड़ी में सवार होकर चल दिये। रात के अंधेरे में जिस मार्ग से आये थे उसके बारे में
कुछ पता नहीं लग पाया था। आज सुबह घने कोहरे में किस मार्ग से जा रहे है इसका भी
पता नहीं लग पाया।
हमारी गाड़ी घाटा होकर थाना
गाजी की ओर जा रही थी। जो बाद में अजबगढ शहर के बीच से होकर चलती रही। आज के लेख में अंतिम फ़ोटो
अजबगढ के है। अजबगढ के पास पहुँचकर गाडी चालक बोला गाडी में डीजल कम है। डीजल कहाँ मिलेगा? इसका जवाब मिला आगे एक दुकान है वो डीजल रखता है। उसके दाम और पैट्रोल पम्प के दामों में ज्यादा अन्तर नहीं था। यह बात मुझे खटक रही थी। सिर्फ़ एक रु के लाभ पर यह डीजल क्यों बेच रहा है? अगले लेख में आपको भानगढ
के भूतों वाले किले में सब जगह घूमाया जायेगा। व किले के बारे में विस्तार से
बताया जा रहा है। (यात्रा अभी जारी है।)
मस्तानों की टोली |
अजबगढ शहर का प्रवेश दरवाजा |
अजबगढ का किला |
मिलावटी तेल लेते हुए |
जरा मुखड़ा दिखा दे |
9 टिप्पणियां:
घुमक्कड़ी वाकई किस्मत से मिलती है...अशोक जी जैसे मित्र भी...
Shaandar Shuruwaat...............
सच में मस्तानों की टोली है, आनन्द आयेगा।
वाह, मजा आ गया
बढिया आतिथ्य
Waah...chaliye phir se bhangarh dekhne ka mauka milega...
जाट भाई राम राम, बहुत बढिया पढ कर मजा आ गया.अशोक जी को नमन:
मजा आ गया जाट भाई
जाट राम कहानी अधूरी मत छोडो (चंद्रकांता सीरियल की तरह ) अगले भाग का इंतजार रहेगा।
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