बुधवार, 26 दिसंबर 2012

Bikaner-Raisar's Colour full evening at dunes बीकानेर- रायसर रेत के टीलों पर एक रंगीन सुहानी मदहोश नशीली शाम


बीकानेर में दिन में हम करणी माता चूहों वाला मन्दिर, जूनागढ़ किला, राजमहल, रिजार्ट, सहित कई सारे होटल देखने के बाद शाम को हमारी बारी बीकानेर की रेत के टीलों पर एक कैम्प में रंगीन नशीली शाम बिताने की देखने की इच्छा हो गयी थी। इस प्रकार की जगह पर लगने वाले कैम्प रात को अंधेरा होने के बाद शुरु होते थे, जिस कारण हम भी अंधेरा होने से पहले ही वहाँ पहुँच गये थे। चलिये आपको भी इसी शानदार मस्त स्थल की सैर करवा देता हूँ।

रायसर कैम्प की ओर बढ़ते ऊंट पर सवार विदेशी मेहमान।




यहाँ ऊँट के साथ-साथ ऊँट गाड़ी भी मौजूद है।

सबसे पहले हम लोग कार से बीकानेर-जयपुर राजमार्ग पर चलते रहे, इस पर कुछ दस किमी चलने पर हमें रायसर गाँव दिखाई दिया था यहाँ से हमें सीधे हाथ पर गाँव के बीच से होते हुए यहाँ तक पहुँचना था। पहले तो हमने सोचा कि रेत के टील यहाँ से नजदीक ही होंगे, लेकिन जब हमॆं कार से चलते हुए दो-तीन किमी हो गये तो मैंने कार चालक से कहा “क्यों महाराज, कहाँ रह गये रेत वाले टीले?” कार चालक ने कहा कि बस दो चार मिनट में आने वाले है। और सही में कुछ देर बाद ही रेत के टीले दिखाई देने लगे थे।

इस नक्शे की मदद से आप यह आसानी से समझ सकते हो कि यह रेत के टीले कहाँ है?

यह रायसर कैम्प का मुख्य कार्यालय व भोजनालय है

यह रायसर कैम्प है रात में जैसलमेर के सम की तरह कैम्प करने का बेहतरीन स्थल।

ऊपर के फ़ोटो में आपको यहाँ का कैम्प दिखाया गया है, जब हम कार से यहाँ आ रहे थे तो कच्चे वाले मार्ग पर हमे कुछ विदेशी ऊँट व ऊँट गाडी पर सवार होकर यहाँ इसी दिशा में आते हुए मिले थे। जब विदेशी लोग इस ओर आ रहे थे तो मैंने सोचा था कि यह लोग यहाँ रेत पर टाइम-पास करने के लिये घूम रहे है। लेकिन जब उन्हें मैंने यहाँ इस कैम्प पर आते देखा तो समझ आया कि यह लोग भी हमारी तरह आज की शाम यहाँ के मेहमान बनकर आये है।


रायसर कैम्प के ऊपर पहुँच कर दूर तक दिखाई देत खेत।

रायसर कैम्प की शानदार रेत सम के टील याद आ गये, बिल्कुल वैसी रेत।



एक फ़ोटो मैंने लगभग यहाँ से ही लिया था जिसमें यहाँ की ऊँचाई दे नीचे खडी गाडियाँ दिख रही है। जबकि इसमें सिर्फ़ खेत ही दिख रहे है।

नीच वाले चित्र से आप समझ सकते हो कि रेत के टेल कितने ऊँचे थे क्योंकि जहाँ से खड़े होकर यह नीचे वाला फ़ोटो लिया गया था वहाँ से कार व बस भी नन्ही सी छोटी-छोटी सी ही दिख रही थी। सभी लोग नीचे ही जहाँ पर पार्किंग बनी हुई थी वहाँ से ऊपर तक पैदल ही आये थे। रेत में चलना एक अलग बात है और रेत की चढ़ाई चढ़ना उससे भी अलग अनुभव करने वाली बात होती है यह हमने यहाँ पर रेत पर चढ़कर जाना था।


रायसर कैम्प की पार्किंग देखिये जरा, वाहन छोटे-छोटे नजर आ रहे है।

चलो दोस्तों अब दावत व मौज मस्ती की बात हो जाये। कौन-कौन तैयार है?

ऊपर आकर देखा तो वहाँ पर लोगों के रात में ठहरने के लिये टैन्ट भी बने हुए थे। जिस समय हम वहाँ पहुँचे थे उस समय तक वहाँ सिर्फ़ वहां पर काम करने वाले कर्मचारी मौजूद थे। विदेशी लोग तब तक वहाँ नहीं आये थे। जैसे-जैसे अंधेरा होता रहा वैसे-वैसे वहाँ आने वाले मेहमानों की संख्या भी बढ़ती ही जा रही थी।  यहाँ आने वाले ज्यादातर मेहमान विदेशी ही थे, इनमें से भारतीय तो छ:-सात ही दिख रहे थे।


एकदम गोलाई में लगाई गये कुर्सी मेज है जहाँ देशी-विदेशी मेहमान बैठकर दावत उडाते है।

सब कुछ तैयार है बस, अंधेरा व मेहमान दो का ही इन्तजार है।

ऊपर के चित्रों में आप देख रहे है कि कैसे रात मदहोश-रंगीन करने के लिये तरह-तरह के ब्रान्ड उपलब्ध कराये गये है। नीचे एक फ़ोटो और है जहाँ आप और ज्यादा संख्या में मदिरा का खजाना देख सकते है, आप सोच रहे होंगे कि जाट भाई तो इन मदिराओं को पीते नहीं है फ़िर क्यों दिखा रहे है? क्या हुआ मैं नहीं पीता तो दुनिया में बहुत से ऐसे लोग है जो इन्हें पीते है क्या पता उन्हें मेरा लेख देखकर यहाँ जाने की तमन्न जाग उठे।


अंधेरा होने से पहले ही राजस्थानी कलाकार भी आ पहुँचे है।

यह सबूत है कि यहाँ सब कुछ उपलब्ध है इसलिये कोई किसी प्रकार की चिंता ना करे।

ऊपर वाले फ़ोटो में जरा ध्यान से देख लेना क्या पता आपका पसन्दीदा ब्रान्ड दिखायी दे रहा हो? मेरी पसन्द वाला तरल पदार्थ सबसे दाँये हाथ रखा हुआ है जरा ध्यान से कही समझने में कुछ चूक ना हो जाये नहीं तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है। संतरी कागज वाला डिब्बा जिसमें संतरे का रस पैक होता है वो मेरी पसन्द है। यहाँ कमल भाई की पसन्द नहीं दिख रही है क्योंकि वो मदिरा नहीं पीते है। अगर पीते भी होंगे तो मेरे सामने उन्होंने मन्दिरापान नहीं किया था।


दिन छिपने के बाद महफ़िल सजने के बाद का फ़ोटो है।

इस ऊपर वाले फ़ोटो में देखकर आप अंदाजा लगा सकते हो महफ़िल अपने पूरे शबाब पर आ चुकी थी। जैसे-जैसे अंधेरा होता जा रहा था मेहमान आते जा रहे थे और साथ ही अपनी-अपनी सीट पर विराजमान होते जा रहे थे। एक ऐसी ही मेज पर वहाँ के कैम्प मालिक के साथ हमारी भी सीट रिजर्व हो चुकी थी, पहले घन्टे तो ढ़ेर सारी कामकाजी बाते होती रही उसके बाद खाने-पीन का दौर चला था जिसमें जिसको जो पसन्द आया था उसने वो खाया-पिया था। खाने-पीने का दौर समाप्त होते ही राजस्थान की जान वहां की पहचान कालबेलिया नृत्य का प्रदर्शन करने वाले कलाकार अपनी सीट सम्भालने में लगे हुए थे।


राजस्थानी कालकार भी अपने कार्य पर जुट चुके है। आप कहाँ है? मैं तो गोवा में हूँ।

इन कलाकारों ने पहले पहल तो वहां पर मौजूद दो महिला नर्तकी ने बारी-बारी से अपना राजस्थानी हुनर दिखाकर हम सबको अपना दीवाना बना लिया था। यह कार्यक्रम लगभग दो घन्टे चला होगा लेकिन समय कैसे कटा हमें पता ही नहीं लग पाया था। इन कलाकारों के तीन पुरूष साथी थे जो क्रमश: ढ़ोलक, बांसुरी व ढ़पली बजाने की ताल देने में सहयोग कर रहे थे।


कार्यक्रम के बीच-बीच में कलाकार कुछ पल विश्राम किया करते थे।

कलाकार एक बार फ़िर से आपको खुश करन के लिये जुट गये है।

इस फ़ोटो में इस लडकी ने कीलों के ऊपर खडे होकर यह नृत्य किया था।



जरा ध्यान से देखे कि पैरों ने नीचे कील है या नहीं।

इन महिला कलाकारों की हिम्मत को देखकर दाँतो तले अंगुली दबाने को जी चाहता था (लेकिन अंगुली कट ना जाये इसलिये दबाई नहीं) पहले साधारण नाच-गाने के बाद इनका प्रदर्शन कुछ खतरनाक होता गया था जिसमें उन्होंने सिर पर सात-आठ घड़े ल्गाने के बाद कील के प्लेटफ़ार्म पर खड़े होकर अपना जोखिम वाला नृत्य दिखाया था। इसके साथ ही इनके कारनामें समाप्त नहीं हुए थे इसके बाद इन्होंने कील वाले स्थान पर काँच बिखेर कर उस पर नाचना शुरु कर दिया था।


लो जी इन कलाकारों की हिम्मत का भी जवाब नहीं है, कील हटाई गयी तो काँच ले आई, गजब मेहनत।


यह राज वाला फ़ोटो है देखता हूँ राज को कोई खोलता भी है कि नहीं।

अब आपके लिये दूसरा सवाल यह है कि इस गिलास में बियर भरी हुई है। यह किसने पीया होगा।


यह असली फ़ोटो है जिसमें आपको बताना है कि मैंने कितने गिलास खाली किये होंगे।

अब आखिरी सवाल यह है कि मेरी पसन्दीदा पेय पदार्थ को मैंने कितने गिलास पिया होगा?

दोस्तों, इस शानदार रंगीन शाम को बिताने के बाद हमारी बारी इस बीच में अधूरी छोड़कर वहाँ से चलने की थी क्योंकि बीकानेर से रात दस बजे हमारी ट्रेन दिल्ली के चल देनी थी जिस कारण हमने वहाँ अपने दोस्तों को पहले ही सूचित कर दिया था, जैसे ही रात के नौ बजे हमने अपनी सीट छोड़ दी थी। वैसे यह शानदार कार्यक्रम बीच में अधूरा छोड कर उठने का मन तो नहीं कर रहा था। जब हम वहां से विदा होने लगे तो वहाँ की परम्परा अनुसार वहाँ के कैम्प संचालक ने हमें पानी की एक-एक बोतल देकर हमें विदा किया था।

 कार चालक ने हमें स्टेशन पर उतारा, यहाँ हमनें प्रेम सिंह जी से विदा ली, प्रेम सिंह भाई लगभग पूरा दिन हमारे साथ रहे थे, उनका व्यवहार उन्हें बहुत अच्छा इनसान बनाता है। एक ऐसे मानव जो हमेशा याद रहेंगे, जब भी कभी मैं बीकानेर गया तो इनसे मिलकर जरुर आऊँगा। अब हम स्टेशन तो आ गये थे लेकिन यहाँ हमारे साथ एक मजेदार घटना घटित होने वाली थी जिसका हमें अंदाजा भी नहीं था। हुआ कुछ ऐसे कि जैसा मैंने आपको पहले के लेखों में बता दिया था कि हमने पहले दिन ही यहाँ से वापसी का टिकट बुक किया था जो बुक करते समय वेटिंग में था, हम ट्रेन चलने से लगभग आधे घन्टे पहले स्टेशन पहुँच चुके थे। मैने कमल भाई से कहा कि कमल अपना लैपटॉप निकालो क्योंकि अब अब तक हमारी सीट रिजर्व हुई या नहीं इस बात का पता लगाने के लिये हमें लैपटॉप से बेहतर उपाय दूसरा नहीं लगा, वहाँ पर रिजर्व चार्ट भी लगा हुआ था लेकिन उसमें अपना नाम तलाश करना टेडी खीर साबित होने वाला था। कमल ने लेपटॉप निकाल कर मुझे दे दिया था। मैंने नेट चलाकर उसमें अपना टिकट नम्बर डालकर अपनी सीट के बारे में जान लिया था कि अपनी सीट किस डिब्बे में है।

रात को ठीक दस बजे तक हम बीकानेर स्टेशन पहुँच चुके थे।

असली घटना जिसके बारे में मैं आपसे कह रहा था वह यहाँ से शुरु होती है। हमने ट्रेन के अपने डिब्बे में जाकर अपनी सीट पर डेरा जमा दिया था, हमें अपना डेरा जमाये मुश्किल से दो-तीन मिनट ही हुये थे कि वहाँ पर एक पूरा परिवार  जिसमें पति पत्नी के अलावा, दो लडकी, एक लडका जिनकी उम्र क्रमश: 12-13-14 के आसपास रही होगी। जिस बन्दे का यह परिवार था उसने आते ही हम पर राशन पानी लेकर हमला शुरु कर दिया कि यह सारी सीट हमारी है हटो या से, कहाँ तो हम सीट मिलने की खुशी में अब तक अपना सामान फ़ैलाये जा रहे थे, और अब कहाँ हमारे सिर आफ़त टूट गयी थी। मैं निराश नजरों से कमल भाई की ओर देखता रहा। इस दौरान उस परिवार ने उन सीट पर अपना सारा सामान फ़ैला दिया था। अब शर्म के मारे हमारा बुरा हाल हो गया था, कमल भाई ने जितनी बीयर पी थी वो सारी उतर गयी थी। मैंने उन महाशय से कहा कि हम आपका टिकट देखना चाहते है। वो तो टिकट भी हाथ में लेकर ही हमारी छाती पर चढने को तैयार खडे थे। जैसे ही उन्होंने मुझे टिकट दिया  और मैंने टिकट पर उनका उसी डिब्बे में कनफ़र्म सीट नम्बर देखा तो मानो मेरा खून शर्म के मारे पानी-पानी हो गया था। मुझे बेहद दुखी मन से वह सीट छोड़नी पडी थी, मुझे सीट छोड़ने का दुख नहीं था, दुख तो इस बात पर हो रहा था कि उनके बच्चे हमें देखकर हँस रहे थे, और तो और जब हम सीट से जा रहे थे, वो आपसी वार्तालाप में हमारी मजाक भी उडा रहे थे।

हम दोनों अपना सामान लपेट(यहाँ समेटना शब्द भी काम नहीं आ रहा है) कर डिब्बे से बाहर आ गये थे। बाहर आकर मैंने सोचा चलो एक बार डिब्बे के बाहर लगा चार्ट देख लेते है। हो सकता है कि हमने सीट नम्बर देखने में गलती की हो। जैसे ही हमने चार्ट देखा तो उसमें हमें अपना नाम मिल गया था, गजब यह कि नाम के सामने सीट नम्बर भी वही दर्शा रहा था जो हमने नेट से देखकर लिखा था। अब मामला मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि एक सीट को रेलवे वाले दो बन्दों को कैसे दे सकते है? तभी मुझे वहाँ एक टीटी दिखाई दिये मैंने उन्हें अपनी परॆशानी बतायी तो उन्होंने कहा कि आप उस परिवार का टिकट दुबारा चैक करे उसमें कुछ गडबड है। मैंने खिडकी से ही उस परिवार का टिकट लेकर दुबारा देखा तो पाया कि इस परिवार की गाडी तो यह है ही नहीं जिसमें हम जा रहे है। उनकी गाडी तो दो घन्टे पहले जा चुकी है। जैसे ही मुझे इस बात का पता लगा तो अब उनके ऊपर हावी होने की मेरी बारी थी। मैंने उनका टिकट उन्हे देकर कहा कि जल्दी करो सीट खाली करो आपकी ट्रेन यहाँ से दो घन्टे पहले जा चुकी है। उस परिवार की बेहूदा खूशी अब मुझे कही नहीं दिख रही थी, मैंने कही सुना तो था जैसे को तैसा, उस दिन मैं खुद वहाँ यह देख भी लिया था। जिस प्रकार उन्होंने हमें वहाँ से रुखसत किया था उसी प्रकार उन्हे वहाँ से रुखसत होना पडा था।   हम अपनी सीट पर आराम से सोते हुए दिल्ली पहुँचे थे।  हमारी राजस्थान यात्रा यहाँ समाप्त हो जाती है।


राजस्थान की हमारी सम्पूर्ण यात्रा देखने के लिये, इसे तीन भागों में बाँटा गया है। जिसमें जोधपुर-जैसलमेर-बीकानेर है। आपको जो भाग देखना हो उसपर क्लिक कर देखसकते है।



राजस्थान यात्रा-

बीकानेर- 2 जूनागढ़ किला
बीकानेर- 8 कुछ अन्य शानदार होटल
बीकानेर- 9 रायसर रेत के टीलों पर एक रंगीन सुहानी मदहोश नशीली शाम दिल्ली वापसी


20 टिप्‍पणियां:

प्रवीण गुप्ता - PRAVEEN GUPTA ने कहा…

संदीप जी रेगिस्तान में हो और रेगिस्तान के ज़हाज की सैर ना हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता हैं. हमें मालूम हैं हमारे जाट देवता दारु को हाथ भी नहीं लगाते हैं. रेगिस्तानी कल्चर दिखाने के लिए धन्यवाद..वन्देमातरम...

Vishal Rathod ने कहा…

धन्यवाद संदीप जाट जी

आपकी यह यात्रा मुझे पढ़ने में बहुत अच्छी लगी. मैंने यह यात्रा औरो के मुकाबले पढ़ने में देरी की है लेकिन जब पढ़ना शुरू किया तो एक साथ ४ - ५ पोस्ट पढ़ ही लेता था. इस यात्रा ने मुझे राजस्थान के लिए बहुत प्रभावित किया है . इस सर्कल को मैं जरूर करूँगा . आखिर में ट्रेन का किस्सा नमकीन था लेकिन घुम्मकड़ी एकदम सुखमय हो तो असली मजा कहा आता बोलो बोलो ? थोड़ी कठिनाइया आये तो यात्रा यादगार रहती है . वरना केवल प्लेन मे ट्रेन मे गाडी में घुम्मकड़ी की तो क्या फायदा . असली मजा तो शारीर और मन को कष्ट देने के बाद जो स्थलों को देखने में मेहनत का फल प्राप्त होता है वह सीधी साधी पर्यटको जैसी घुमक्कडी करने में कहा ? है के नहीं ?

मेरी ओर से ढेर सारी बधाई स्वीकार करे . अब आगे कहा लेके जा रहे हो ? गर्मी बहुत हो गयी है , ठंडी का मौसम है ज़रा ठंडी जगह ले जाओ .

Vishal Rathod ने कहा…

संदीप भाई बहुत बढ़िया रही आपकी यह यात्रा . मैंने यह यात्रा थोड़ी देर से पढनी शुरू की लेकिन जब पढ़ी तो एक साथ ४ से ५ पोस्ट पढ़ ही लेता था . माखन जैसा विवरण है आपका इसमे . आपकी यात्रा को अगर एक शब्द में कहा जाए तो मैं इसे "शोभायमान" कहूँगा . एक एक चित्र और उसके साथ विवरण राजस्थान की सुंदरता का वर्णन कर रहे थे. इस यात्रा ने मुझे बहुत प्रभावित किया है . मैं इस सर्कल को जरूर करूँगा. आखिर मैं ट्रेन का किस्सा मजेदार था . घुमक्कडी में अगर ऐसे किस्से न हो तो मजा ही क्या. केवल आनंदमाय यात्रा हो तो क्या मजा . तनिक शरीर को थकन और मानसिक त्रास न हो तो उसके बाद जो गंतावय देखने में मजा क्या है . ऊपर ऊपर से फलो के छिलके खा लिए ऐसा ही लगता है जबकी असली मिठास तो अंदर है.

आपकी यहाँ यात्रा बढ़िया रही , मजा आ गया . अब कहा ले जा रहे हो ? गर्मी बहुत हो गयी . अब ठंडी जगह ले जाओ .

Vishal Rathod ने कहा…

और हाँ कृपा करके फोटो पर केप्शन डालना न भूले अगली यात्रा से . ज्यादा मजा आता है .

धन्यवाद

डॉ टी एस दराल ने कहा…

यहाँ रेत तो बहुत नज़र आ रहा है लेकिन सेंड ड्युन्स नज़र नहीं आए ।
कैम्प साईट तो दुबई से बेहतर लग रहा है . विशेषकर खाने की टेबल्स, पीने का सामान और डांस भी।

कमल कुमार सिंह (नारद ) ने कहा…

आप तो बदनाम कर रहें हैं भाई :(

संजय तिवारी ने कहा…

कमल भाई आप तो पीते ही नहीं हो, लेकिन पाठको को अंदाजा तो लगाने दो।

संजय तिवारी ने कहा…

अरे कमल भाई ऐसा कभी हो सकता है, आपके सामने तो खाली बोतले है जबकि मेरे हाथ में भरा हुआ गिलास।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बिना मरुथल बीकानेर का आनन्द पूर्ण काँ होगा भला।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

*कहाँ

travel ufo ने कहा…

मजा आ गया जाट भाई ये वाले नजारे देखकर क्योंकि महल , समुद्र नदियां पहाड बर्फ खूब देखे हैं पर इस जगह से मै अभी महरूम ही रहा हूं आपकी ये यात्रा काफी काम आने वाली है वैसे जल्दी आओ मै ग्वालदम तक आ गया हूं

travel ufo ने कहा…

जाट भाई राज मै खोल देता हूं आपने तो बीयर पी नही , कमल भाई केवल बीयर पीते हैं और आपने एक नही दो दो जगह उनके गिलास को हाथ में लेकर फोटो खिंचवाये हैं

कमल कुमार सिंह (नारद ) ने कहा…

:D :D

virendra sharma ने कहा…

,मन पे काबू रखो ,निर्भया बनो ! वर्ष 2012 ने जो चिंगारी छेड़ी है अन्ना जी से निर्भया तक ,जब अकेली जान आधी दुनिया की पूरी तथा इंसानियत की लड़ाई लड़ सकती है मौत को

धता बता सकती है तब एक फर्ज़ हमारा

भी है सेकुलर वोट की बात करने वालों को हम भी मुंह की चखाएं .

,शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .

संदीप जी सच मुच सब कुछ है मेरे देश में रेत के कुदरती टीलों से लेके देश को रेगिस्तान के सहरा में बनाने वाले आदम खोर भी .

आपके हाथ में बीअर का ग्लास लेकिन मजा ओरेंज जूस का आ रहा है .अच्छी बात है बीअर को आप सिर्फ दिखाऊ बनाए हुए हैं .बधाई नव वर्ष की .

ram ram bhai
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शुक्रवार, 28 दिसम्बर 2012
एक ही निर्भया भारी है , इस सेकुलर सरकार पर , गर सभी निर्भया बाहर आ गईं , तब न जाने क्या होगा ?

http://veerubhai1947.blogspot.in

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत सुन्दर। नव वर्ष-2013 की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ। मेरे नए पोस्ट पर आपके प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

इसका मतलब कि आपको अभी तक टिकट पढना नहीं आया। अगर पढना आता तो उन्हें सामान फैलाने ही नहीं देते और ना खुद लपेटा-लपेटी करके डिब्बे से भागते।

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

एक राजपूत दोस्त की शादी में गये थे और खाने-खिलाने, पीने-पिलाने का जो तरीका वहाँ देखा था उसके आगे फ़ाईव सेवन स्टार सब फ़ेल थे, इस पोस्ट से वो दावत याद आ गई।
राजस्थान की ये यात्रा याद्गार रही, जब जायेंगे तो इस सीरिज़ से बहुत लाभ मिलेगा।

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह संदीप भाई ......मजा आ गया आज ब्लॉग पर आकर .......व्यस्त होने के कारण आजकल ब्लॉग्गिंग से दूर हूँ

कविता रावत ने कहा…

बोतल के उस पार भी बहुत कुछ छुपा होता है सुन्दर ... खूब घूम आये राजस्थान.....बहुत बढ़िया लगी सैर .. ..

Vidhan Chandra ने कहा…

mast mast yatra vritant !!

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