सम
रेत के टीले देखकर आते समय जब हमारे कार चालक ने बताया कि यहाँ हजारों साल पुराना
भगवान आदिनाथ का एक जैन मन्दिर है तो मैंने कहा कि चलो दिखा लाओ। पहले तो मुश्किल
से मान रहा था लेकिन आखिर में उसे यहाँ जाना ही पड़ गया था। अच्छा रहा वो
मान गया नहीं तो हम इतने शानदार मन्दिर को देखने से रह जाते। इसी मन्दिर के पीछे
एक तालाब देखा था। यह मन्दिर मुख्य सडक से अलग हट कर एक और सड़क पर स्थित है। जिस
कारण यहाँ कम लोग ही आते है।
मन्दिर का बाहरी फ़ोटो।
मन्दिर की अन्दरुनी दीवार का फ़ोटॊ।
मुख्य
सड़क से दो-तीन किमी चलने के बाद सीधे हाथ यह जैन मन्दिर दिखायी दिया था। जब हम कार
से उतर कर मन्दिर के दरवाजे तक पहुँचे तो वहाँ हमने दो बोर्ड देखे थे, दोनों बोर्ड पर लिखा हुआ पढ़कर जाना कि
कैसे-कैसे लोग है। दोनों
का फ़ोटो लिया गया था। ताकि आप लोग भी उन्हें पढ़ सको। नीचे वाले दोनों फ़ोटो वही
है जिसके बारे में मैं आपसे कह रहा हूँ।
मन्दिर के एक गुम्बद का फ़ोटो।
मन्दिर में प्रवेश करते ही दरवाजे पर ही एक गैलरी आती है जहाँ मन्दिर में काम करने वाले पुजारी व अन्य लोग बैठे हुए थे। जैसे ही हम आगे बढ़े, वैसे ही उन्होंने हमें दोनों को चेतावनी दी कि मन्दिर में अन्दर तस्वीर/मूर्ती के फ़ोटो खींचना मना है। मैंने कहा ठीक है नहीं खीचेंगे, अगर आप लोग कहो तो मैं मन्दिर के अन्दर भी नहीं जाता क्योंकि मैं यहाँ पूजा-पाठ करने नहीं आया हूँ मैं यहाँ सिर्फ़ मन्दिर देखने आया हूँ। आगे बढ़ते ही वहाँ का एकलौता छोटा सा सूखा सा पार्क आता है जहाँ से आगे बढ़ते हुए हम मुख्य मन्दिर तक पहुँच जाते है।
जरा ध्यान से देख लेना।
विकिपीड़िया से साभार-यह वाला पैराग्राफ़
(विकीपीड़िया अनुसार- ऋषभदेव को ही आदिनाथ भगवान कहा जाता है। प्राचीन भारत के एक सम्राट
एवं परमहँस योगी थे जो कि महाराज मनु के वंशज थे। वे जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं। विष्णु पुराण के अनुसार इनके पुत्र भरत के नाम पर ही भारत का नाम भारतवर्ष
पड़ा।) ऋषभदेव जी को भगवान आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है। भगवान ऋषभदेव जी की विश्व की सबसे बडी प्रतिमा बडवानी (मध्यप्रदेश) (भारत) के पास बावनगजा में है। यह 84 फीट की है। जैन पुराणों के अनुसार अन्तिम
कुलकर राजा नाभिराय के पुत्र ऋषभदेव हुये जो कि
महान प्रतापी सम्राट और जैन धर्म के प्रथम तीथर्कंर हुए। ऋषभदेव के अन्य नाम
ऋषभनाथ, आदिनाथ, वृषभनाथ भी है। भगवान ऋषभदेव का विवाह यशस्वती
(नन्दा) और सुनन्दा से हुआ। इससे इनके सौ पुत्र उत्पन्न हुये। उनमेंभरत सबसे बड़े
एवं प्रथम चक्रवर्ती सम्राट हुए जिनके नाम पर इस देश का नाम भारत पडा।
दूसरे पुत्र बाहुबली भी एक महान राजा एवं कामदेव पद
से विभूषित थे। इनके अलावा
ऋषभदेव के वृषभसेन, अनन्तविजय, अनन्तवीर्य, अच्युत, वीर, वरवीर आदि 99 पुत्र तथा ब्राम्ही और सुन्दरी नामक 2 पुत्रियाँ भी हुई, जिनको ऋषभदेव ने सर्वप्रथम युग
के आरम्भ में क्रमश: लिपिविद्या (अक्षरविद्या) और अंकविद्या का ज्ञान दिया।)
इसमें महिलाओं का क्या कसूर?
मन्दिर
के ठीक पीछे दीवार के साथ एक मैदान सा दिख रहा था। पहले तो मैं जान नहीं पाया
लेकिन बाद में वहाँ मन्दिर में मौजूद लोगों ने इसके बारे में बताया था। चूंकि मन्दिर
के साथ लगा हुआ सुरसागर तालाब था इसलिये यहाँ तालाब का होना जरुर कुछ ना कुछ
ऐतिहासिक मह्त्व का जरुर रहा होगा। लेकिन इस सुर सागर में हमें पानी की एक बूंद
कसम खाने के लिये भी दिखायी नहीं थी। बरसात के बाद भले ही उसमें लबालब पानी भर
जाता होगा। लेकिन हमें नहीं मिल सका।
सूर-सागर लेकिन पानी की एक बूंद भी नहीं।
अगर पानी होता तो इसके मध्य से गाडी जाना मुमकिन नहीं है।
मैंने
मन्दिर के कई फ़ोटो ले लिये थे, मुझे लग रहा था कि हो सकता है कि वहाँ के सेवक मेरा
कैमरा चेक कर सकते है, उन्हें मेरे द्धारा ली गयी फ़ोटो पर आपत्ति हो भी सकती थी
लेकिन वापसी में उन्होंने मेरा कैमरा चेक नहीं किया था। मन्दिर देखने के बाद हम
वहाँ से वापिस लौट चले।
श्मसान भूमि।
कार
चालक ने बताया था कि मार्ग में थोडा सा घूम कर जाने से हमें एक और जगह के दर्शन हो
जायेंगे। हमने कहा वह कौन सी जगह है? उसने नाम तो बताया था लेकिन ठीक से याद नहीं आ रहा है। फ़िर भी
जहाँ तक याद है उसका नाम बड़ा बाग बताया था। कार चालक ने साथ ही यह भी बताया था कि
यहाँ पर यहाँ का मुख्य श्मसान घाट है।
पहले कभी यहाँ जब सती प्रथा हुआ करती थी तो इसी स्थल पर कई वीरांगनाएँ सती हो चुकी
है।
एक और फ़ोटो यह वाला नेट से लिया गया है।
यह रहे अपने कार चालक। गाडी कौन सी थी मुझे नहीं पता फ़ोटो देखकर बता सकते हो बता देना।
सब
कुछ देख कर हम वापिस उसी प्रिंस होटल पहुँच गये जहाँ से हमने कार किराये पर ली थी।
कार का किराया पहले ही 1200 रुपये हमने
दे दिये थे। कार से उतर कर समय देखा तो दिन के बारह बजने वाले थे। कार चालक ने
बताया कि सामने वाले चौराहे से ही आपको पोखरण जाने के लिये बस मिल जायेंगी। हमने
आगे जाने से पहले नहाना धोना उचित समझा। इसलिये होटल मालिक से कहा कि एक कमरा
हमारे नहाने के लिये खुलवा दे। होटल मालिक ने हमसे नहाने धोने का कोई शुल्क नहीं
लिया था। यह नेट पर लिखने का कसूर था या कमल भाई के होटल एजेंसी में काम करने का
फ़ल था, यह कहना तो मुश्किल है।
प्रिंस होटल के मालिक होटल के सामने।
होटल के कार्यालय में होटल मालिक का लड़का।
हमने
बारी-बारी स्नान किया था उसी दौरान होटल के कमरे के फ़ोटो भी ले लिये थे। हम काफ़ी
देर तक होटल मालिक व उनके नवयुवक लड़के के साथ बैठे रहे। इसे दौरान उनके होटल व
जैसलमेर में आने वाले पर्यटकों के बारें में तथा वहाँ की यातायात व्यवस्था के बारे
में जानकारी ले ली थी। राजस्थान में गुजरात व मध्यप्रदेश की तरह सरकारी परिवहन
प्रणाली ज्यादा कारगर नहीं है अत: यहाँ भी आम जनता निजी बस वालों के भरोसे ही रहती
है।
यह कमरा जिसमें हमने स्नान किया था।
टीवी देखने की फ़ुर्सत नहीं थी।
नहाते समय टब का प्रयोग किया गया था।
हम
भी ऐसी एक लाल बस में सवार होकर वहाँ से पोखरण-रामदेवरा-फ़लौदी होते हुए बीकानेर की
ओर रवाना होने चल दिये थे। पहले तो हम सोच रहे थे कि हमें यहाँ से सीधी बीकानेर की
बस मिल जायेगी लेकिन बस स्थानक पर जाकर पता लगा कि बीकानेर के लिये बहुत कम सेवा
है। अत: हमें बसे बदलते हुए आगे की यात्रा करनी पड़ी। जैसलमेर से जोधपुर जाने वाली
एक बस में हम सवार हो गये। अब आप सोच रहे होंगे कि अभी तो लिखा था बीकानेर जाना है
और अभी लिख दिया कि जोधपुर वाली बस में सवारी शुरु कर दी।
अब चलते है पोखरण की ओर।
बात
कुछ ऐसी ही है कि जैसलमेर से बीकानेर जाओ या जोधपुर आपको पोखरण तक तो जाना ही
पडेगा। वहाँ से हर आधे घन्टे में जोधपुर के लिये बस उपलब्ध थी हम जोधपुर जाने वाली
बस में इसलिये सवार हुए थे कि जोधपुर जाने वाली बस से पोखरण उतर जायेंगे, उसके बाद
वहाँ से रामदेवरा बाबा से मुलाकात करते हुए रात को बीकानेर पहुँच जायेंगे।
वोल्वो बस में लेटने वाली सीट पर बैठे हुए है।
बस
की यात्रा की कहानी भी बड़ी मजेदार है जब हम बस में बैठे थे तब तक बस आधी खाली थी
तब तो परिचालक ने हमें कह दिया कि आप ऊपर वाली सीट पर बैठ जाओ तो हम ऊपर वाली सीट
पर बैठ गये। ऊपर वाली सीट दो इन्सान के सोने वाली सीट होती है। लेकिन जब बस में
सीट फ़ुल हो गयी तो हमारे साथ दो और बन्दों को बैठा दिया, खैर किसी तरह हम उस छोटे
से खोमचे जैसे हिस्से में बैठे थे। बैठने की समस्या ज्यादा नहीं थी असली समस्या
हवा लगने थी क्योंकि वहाँ गर्मी थी अत: हम चारों ही खिड़की के पास बैठना चाह रहे
थे। लेकिन खिड़की के पास सिर्फ़ एक बन्दा बैठ सकता था। जैसलमेर से पोखरण कोई सौ किमी
के आसपास था वहाँ की सडक एकदम चकाचक थी जिस कारण हम मुश्किल से एक घन्टे में पोखरण
पहुँच गये थे। (क्रमश J )
लाल वाली सब से ही हम यहाँ पोखरण तक आये थे।
अब अगले लेख में आपको राजस्थान के सबसे ज्यादा मान्यता प्राप्त बाबा रामदेवरा के दर्शन कराये जायेंगे। तब तलक बोलो रामदेवरा बाबा की जय।
भाग 3- जैसलमेर सम/सैम रेत के टीले
भाग 4- जैसलमेर सूर्यगढ़ पैलेस महल जैसा होटल
भाग 5- जैसलमेर आदिनाथ मन्दिर व सुर सागर तालाब
भाग 6- जैसलमेर रामदेव/रामदेवरा बाबा की समाधी
भाग 5- जैसलमेर आदिनाथ मन्दिर व सुर सागर तालाब
भाग 6- जैसलमेर रामदेव/रामदेवरा बाबा की समाधी
- जोधपुर-यात्रा का पहला भाग यहाँ से देखे जोधपुर शहर आगमन
- जैसलमेर यात्रा का पहला भाग यहाँ से देखे जैसलमेर का किला (दुर्ग)
- बीकानेर यात्रा का पहला भाग यहाँ से देखे दशनोक वाला करणी माता का चूहों वाला मन्दिर
4 टिप्पणियां:
जाट भाई राम राम, आपकी पोस्ट की कितनी तारीफ़ करूँ अब शब्द ही नहीं मिल रहे हैं. मरू भूमि का बहुत ही अच्छा और विहंगम दर्शन आपने कराये हैं. मंदिर के फोटो बहुत ही सुन्दर लगे हैं. बेसिकली जैन पंथ भी हिंदू धर्म की एक शाखा हैं, सभी जैन बनिए, वैश्य होते हैं, पर ये लोग अपने पंथ पर बहुत ही शुद्ध और कट्टर होते हैं, हमें इनसे सीख लेनी चाहिए.
बस पानी ही थोड़ा और रहता तो..
रश्क होता है यारा तुमसे:)
इन तस्वीरों में जीवन के रंग आप ही भर सकतें हैं मेरे देवता सामान जाट .
और यार टिपण्णी भी गजब की कर ते हो मैं भी शिखा कौशिक के ब्लॉग से यहाँ आया हूँ आपकी टिपण्णी पे आरूढ़ होके .
सपनों पर कब पहरा है फिर बिल्ली को खाब में भी छिछ्ड़े नजर आयें तो आयें .1984 के दंगे लोग भूल जाते हैं जिनके चित्र आज भी विदेशी गुरुद्वारों में लटकें हुए हैं .मोदी से पहले भी गुजरात में दंगे हुए हैं,(पहरा मोदी पर है ) उनका कहीं कोई ज़िक्र नहीं .कश्मीर के विस्थापित पंडित दिल्ली में धूल चाट रहें हैं ,खून मोदी का ज्यादा लाल है .है तो दिखेगा .चुनाव लड़ना सबका संविधानिक अधिकार है स्वेता भट्ट चुनाव में विजयी हों शुभ कामनाएं दोनों को कोंग्रेस को भी उनके बौद्धिक हिमायतियों को भी .
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