बुधवार, 14 अगस्त 2013

Raja Bharat Hari Cave-Ujjain राजा भृतहरि गुफ़ा-उज्जैन

UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-07                              SANDEEP PANWAR
उज्जैन में महाकाल, विक्रमादित्य टेकरी, हरसिद्धी शक्तिपीठ व चार धाम मन्दिर देखने के बाद हम एक वैन नुमा वाहन में सवार हो गये। इस वाहन ने हमें रेलवे लाईन पर बने हुए पुल के नीचे से निकालते हुए आगे की यात्रा जारी रखी। रेलवे लाईन का पुल देखकर दिल्ली का लोहे वाला पुराना पुल याद आ गया जो लाल किले के साथ ही बना हुआ है। इस पुल से आगे निकलते ही क्षिप्रा नदी पर बना हुआ सड़क पुल भी आ गया। सड़क पुल भले ही आया हो लेकिन हमें उस पुल के ऊपर नहीं जाना पड़ा। हमारी गाड़ी सड़क जिस कच्ची मार्ग से होकर अल रही थी उसके सामने सिर्फ़ रपटे जैसे बंध से होकर निकलने में ही क्षिप्रा नदी पार हो गयी। जिस प्रकार उत्तर भारत में गंगा को पवित्र नदी माना जाता है उसी प्रकार मध्यप्रदेश में भी क्षिप्रा व नर्मदा को वैसी ही मान्यता प्राप्त है।


पुल के बजाय रपटे से नदी पार करने के बाद हमारी गाड़ी एक धूल भरे मार्ग पर दौड़ने लगी। कई किमी क्षिप्रा नदी के किनारे-किनारे चलने के बाद हमारी गाड़ी राजा भृतहरि की गुफ़ा के सामने जा पहुँची। हमारे साथी अपने-अपने बैग उठाकर चलने लगे। मैंने कहा अरे-अरे बैग कहाँ लेकर जा रहे हो? हमें फ़िर इसी गाड़ी में आगे जाना है बैग यही रहने दो। नहीं, यदि गाड़ी वाला बैग लेकर भाग गया तो! हाँ तुम्हारे बैग के भरोसे ही इसका गुजारा चलेगा! बड़ी मुश्किल से उन्होंने अपने बैग रखे। उनके विश्वास के लिये मैंने वैन चालक का उसकी वैन सहित एक फ़ोटो भी ले लिया था, ताकि हमारे शक्की दोस्तों की आत्मा को शांति मिलती रहे।

यहाँ दो मुख्य गुफ़ा है पहली राजा भृतहरि गुफ़ा व दूसरी गोपीचन्द गुफ़ा। गोपीचन्द राजा भृतहरि के भांजे थे उन्होंने भी यहाँ पर अपने मामा से प्रेरणा पाकर तपस्या की थी। आज से लगभग 2070 साल पहले हो सकता है कि उससे भी बहुत पहले ही यह घटना हुई हो। जो भी यह तो पक्का है कि गुरु गोरखनाथ का जिक्र इस कथा में आया है तो यह तो पक्का हो गया है कि यह घटना गुरु गोरखनाथ के समय की है। राजा भृतहरि को गुरु ने शिक्षा-दीक्षा दी थी।

आगे बढ़ते ही सबसे पहले गुरु गोरखनाथ की गुफ़ा दिखायी देती है। यहाँ पर अगली गुफ़ा राजा भृतहरी की है जिसमें अन्दर जाने पर बाहर के मुकाबले जमीन के काफ़ी नीचे जाना होता है एक तंग मार्ग से होकर हमें नीचे जाना पड़ा। वैसे जमीन से बहुत ज्यादा गहराई में तो नहीं है लेकिन फ़िर भी बाहर के मौसम और गुफ़ा के मौसम में बहुत बदलाव देखा गया। जहाँ बाहर गर्मी लग रही थी उसके विपरीत गुफ़ा में ठन्ड़क का अहसास हो रहा था। इस गुफ़ा में एक लम्बी गली से होकर इसके आखिरी छोर तक पहुँचे तो वहाँ पर एक बड़ा सा शिवलिंग दिखायी दिया। इस गुफ़ को देखकर बाहर आये। इसके साथ ही मिली हुई दूसरी गुफ़ा गोपीचन्द गुफ़ा में घुस गये, लेकिन वह गुफ़ा राजा की गुफ़ा के मुकाबले बहुत छोटी निकली।

बराबर में ही नवनाथ नामक एक सुन्दर मन्दिर दिखायी दिखायी देता है। हमने लगे हाथ इस मन्दिर को भी देख ड़ाला था मन्दिर में जाकर देखा कि वहाँ तो गुरु गोरखनाथ की सुन्दर सी मूर्ति लगी हुई है। मन्दिर का बरामदा बहुत शानदार लगा। मन्दिर के बाहर ही एक साधु की समाधी बनायी हुई है। यहाँ के फ़ोटो लेने के बाद जब बाहर आने लगे तो वहाँ पर एक औरत छाछ बेच रही थी हमें उज्जैन की गर्मी में इससे अच्छा कुछ नहीं लगा। लगे हाथ छाछ पर भी हाथ साफ़ कर दिया गया।

सारे के सारे आगे जाने के लिये गाड़ी में बैठ गये लेकिन एक बन्दा गायब हो गया! अरे तलाश करो कही गुरु गोरखनाथ ने तो नहीम पकड़ के बैठा लिया है। एक साथी उसे तलाशने के लिये वापिस भेजा तो पता लगा कि वह वहाँ पर गौशाला में गाय को खिलाने के लिये हरा चारा खरीदकर खिलाने गया है। यही सामने ही कुछ गाय बंधी थी गुफ़ा के प्रवेश मार्ग के सामने ही एक बन्दा हरा चारा बेच रहा था कि गाय को खिलाओ पुण्य़ कमाओ। मैंने कहा अगर इतना ही पुण्य़ मिलता है तो तू हरा चारा बेच कर पैसे क्यों वसूक कर रहा है? सारा पुण्य़ अकेले ही कमा ले। यहाँ अपना फ़ायदा कर रहा है मुझे तो लगता है कि ये गाय भी जरुर तेरी ही होगी। 

मुझे ऐसी ढ़ोंग बाजी से ही चिढ़ होती है। सड़को पर लावारिस गाय मिल जायेंगी जिनके कारण काफ़ी दुर्घटनाएँ होती रहती है। इन लावारिस गायों को बकरा ईद से पहले गायब कर लिया जाता है। हिन्दुओं के पुण्य फ़ल को शांत धर्म के धर्मनिरपेक्ष लोग मुफ़्त का माल समझ स्वाद से चट कर जाते है। अगले साल के लिये फ़िर से वही ढोंग शुरु हो जाता है अगर ध्यान से देखो तो हर साल ईद के बाद या ईद से कुछ दिन पहले ही आपके गली मोहल्लों में नई-नई गाय लेकिन छोटी-छोटी गाय दिखनी शुरु हो जायेंगी जो अगली ईद के बाद गायब मिलेंगी। आखिर जाती कहाँ है? चलो आप लोग इस ढ़ोग में हिस्सेदारी करो यदि अब तक करते रहे हो तो मैं चला अगली मंजिल की ओर..(उज्जैन यात्रा अभी जारी है)

उज्जैन यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।

05हरसिद्धी शक्ति पीठ मन्दिर, राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी।
06- उज्जैन का चार धाम मन्दिर व बिजली से चलने वाली झाकियाँ।
07- राजा भृतहरि की गुफ़ा/तपस्या स्थली।
08- गढ़कालिका का प्राचीन मन्दिर
09- शराब/दारु पीने वाले काल भैरव का मन्दिर
10- श्रीकृष्ण, सुदामा, बलराम का गुरुकुल/स्कूल संदीपनी आश्रम।
11- उज्जैन की महान विभूति सुरेश चिपलूनकर जी से मुलाकात व उज्जैन से जबलपुर प्रस्थान



कार पार्किंग से भृतहरि गुफ़ा की बाहरी झलक

यही से आये है









टूटी शिला और उस पर हाथ का निशान













4 टिप्‍पणियां:

Sachin tyagi ने कहा…

बढिया याञा रही और फोटो भी अचछी आई हे।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

तब तो अध्यात्म तरंगों से भरा होगा वह क्षेत्र

Ajay Kumar ने कहा…

वहा भाई जी क्या दिमाग लगाया है "अगर
इतना ही पुण्य़ मिलता है तो तू
हरा चारा बेच कर पैसे क्यों वसूल
कर रहा है? सारा पुण्य़ अकेले
ही कमा ले।
यहाँ अपना फ़ायदा कर रहा है
मुझे तो लगता है कि ये गाय
भी जरुर तेरी ही होगी"।

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

बचपन में देखि थी पर याद नहीं ...अगली बार जाउगी तो जरुर देखुगी ...

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