बुधवार, 28 अगस्त 2013

Dhuandhaar boating point with Jain Muni भेड़ाघाट के नौका विहार स्नान घाट के दर्शन

UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-16                              SANDEEP PANWAR
भेड़ाघाट के तहस-नहस किये गये चौसट योगिनी मूर्तियाँ वाले मन्दिर को देखने के बाद वहाँ के घाट देखने के लिये चल दिया। मुख्य सड़क पर ढ़लान की दिशा में आगे बढ़ते समय सड़क पर ठीक सामने एक मन्दिर जैसा भवन दिखायी दे रहा था। मैंने सोचा कोई मन्दिर-वन्दिर होगा। लेकिन उसके पास जाकर मालूम हुआ कि यह कोई मन्दिर नहीं, बल्कि किसी की याद में बनायी जाने वाली कोई छतरी है। इसके पास ही यहाँ का एकमात्र सरकारी गेस्ट हाऊस भी है। यदि वहाँ गेस्ट हाऊस का बोर्ड़ ना लगा हो तो कोई यह अंदाजा भी नहीं लगा सकता है कि यहाँ कोई गेस्ट हाऊस भी हो सकता है। धुआँधार विश्राम गृह में मुझे कोई काम नहीं था इसलिये मैं सीधा नौका विहार वाले मार्ग पर चलता रहा।

नौका विहार वाले मार्ग पर चलते हुए अभी कुछ आगे ही बढ़ा था कि मोड़ पर नौका विहार का बोर्ड़ दिखायी दिया। मैं नौका विहार देखने के लिये नीचे उतरना आरम्भ करता उससे पहले ही वहाँ अचानक काफ़ी सारे लोग जोर-जोर से आवाजे लगाने लगे कि मुनीवर की जय हो, मुनीवर की जय हो। मैं चक्कर में पड़ गया कि यार यहाँ के लोग मुझे देखकर मुनी क्यों समझ रहे है। मैंने तो कोई धोती-धाती भी ना पहनी हुई थी कि वे उसके लपेटे में आ जाते। लेकिन उनका इशारा मेरी तरफ़ ही था मैं सकपका कर आगे बढ़ने से वही रुक गया। मुझे वहाँ कुछ ना कुछ गड़बड़ दिखायी देने लगी। मुझे दाल में काला नहीं, बल्कि दाल ही काली नजर आने लगी।

मैंने पीछे मुड़कर देखा तो वहाँ मुझे बिना कपडों के रहने वाले जैन मुनी वही नंगे (नग्न) महाराज आते दिखायी दिये। इन बिना कपडों के रहने वाले सन्यासियों की हिम्मत को मेरा सलाम। उन्हे देखकर सारा माजरा मेरी समझ में आ गया था कि मैं खाम्हा-खाँ ड़रा जा रहा था कि यहाँ के लोग मुझे मुनीवर बनाने पर तुले है जबकि मैंने तो आजतक ऐसा कोई काम किया ही नहीं था जिससे कि मेरे अन्दर सन्यासी जैसे गुण दिखायी दे। जैसे ही जैन मुनीवर मुझे दिखायी दिये मैंने झट से अपना मोबाइल निकाला और उससे उनका फ़ोटो ले लिया। मैं अपने स्थान पर खड़ा होकर सब कुछ देख रहा था। जैन मुनी जैसे ही सामने खड़े सफ़ेद कपड़े पहने महिला-पुरुष-बच्चों के पास पहुँचे तो उन्होंने जैन मुनीवर की एक परिक्रमा रुपी चक्कर लगाया। जैन मुनी की परिक्रमा करने के बाद मुनी को वहाँ से आगे ले जाया गया। यह मुनी अपना एक हाथ मोड़कर ऊपर उठाये हुए थे क्यों? मुझे नहीं पता।

मैंने उन मुनीवर के वहाँ से हटते ही फ़िर से आगे बढ़ना आरम्भ ही किया था कि वहाँ पर सफ़ेद कपड़े पहनकर खड़े वे सभी लोग मेरी तरफ़ देखकर एक बार फ़िर वही नारा लगाने लगे। मुनीवर की जय हो। अबकी बार मुझे लगने लगा था कि आज ये सारे लोग मिलकर मुझे जैन मुनी बनाकर छोड़ेंगे। मुनी तो मैं बन भी जाऊँगा, लेकिन यार बिना कपडों के कैसे रह पाऊँगा। नहीं, शर्म आयेगी। ना मुझे नहीं बनना मुनी-वुनी। मैंने आगे बढ़ना बन्द कर दिया मैंने पहले वाले महाराज की तरह सोचा कि हो ना हो जरुर दूसरे महाराज भी पीछे-पीछे आ रहे है। जैसे ही मैंने पीछे मुड़कर देखा तो मैं दूर से आते हुए एक नग्न वेशभूषा धारी महापुरुष को अपनी ओर आते देखा। मैंने पहले वाले महाराज की तरह इनकी भी तस्वीर ले ली। मैं इन मुनीवर की तस्वीर लेते समय सोच रहा था कि इनकी तस्वीर लेते समय यदि कोई टोकेगा तो उसे क्या जवाब दूँगा लेकिन किसी ने मुझे टोका ही नहीं। जब किसी ने टोका नहीं तो मैं भी रुका नहीं।

दोनों जैन मुनीवर के वहाँ से जाने के बाद भी मैं कुछ देर तक वही खड़ा रहा कि कही यह लोग मुझे देखकर फ़िर से नारे ना लगाने लग जाये। जब थोड़ी देर बाद वे लोग वहाँ से हट गये तो मुझे बड़ी राहत मिली नहीं तो लग रहा था कि मुझे आज ही सन्यासी बनवा देंगे। जो मैं बनना नहीं चाहता। दुनिया का सब त्याग कर प्रभु भक्ति करना मेरी समझ से बाहर है। दुनिया का हर कष्ट झेल कर बेड़ा पार करना अपना मिशन रहा है। मुसीबत का सामना करना मुझे अच्छा लगता है। जितनी बड़ी मुसीबत सामने होती है उतना ज्यादा रोमांच आता है। अब यह बात जीवन में व ट्रेकिंग करते समय दोनों पर लागू होती है। बाकि सबका अपना-अपना फ़न्ड़ा है कौन किसे मानता है?
मुनियों के वहाँ से जाते ही नौका विहार जाने के लिये लगा हुआ बोर्ड़ देखकर मैं नीचे नदी किनारे उतरता चला गया। नदी किनारे पहुँचने के लिये बहुत नीचे सीढियों से होकर उतरना पड़ता है। लगातार सीढियाँ उतरते हुए मैं नर्मदा धुआँधार घाट पर नौका विहार स्थल पर जा पहुँचा। यहाँ पहुँचने वाले पैदल मार्ग के दोनों ओर बनी हुई दुकानों में रखी हुई सैकड़ों मूर्तियाँ व शिवलिंग मन मोह रहे थे। मुझे खरीदारी तो करनी नहीं थी इसलिये उनके दाम भी नहीं पूछे। यहाँ पर बेहद बड़े-बड़े कद के शिवलिंग व मूर्तियाँ बिक्री के लिये रखे हुए थे। शिवलिंग आदि देखने के बाद नदी किनारे जा पहुँचा।

नौका विहार स्थल पर स्नान, पूजा आदि करने के लिये बेहतरीन स्थल है। यहाँ बहुत सारी नौका हर समय उपलब्ध रहती है। जिनसे एक साथ सैकडों लोग नौका विहार का लुत्फ़ उठा सकते है। जिस समय मैं यहाँ पहुँचा तो दो नौका नर्मदा के पानी में नौकायन करती हुई दिखायी दी। यहाँ नौका विहार स्थल पर काफ़ी दूर तक नर्मदा का पानी एकदम शांत होकर आगे बढ़ता रहता है। इसलिये इस स्थल पर नौकायन करने का अलग ही आनन्द है। मैंने भी नौकायन करने की सोची और एक नौकावाले से बात की तो उसने कहा कि आप अभी अकेले हो 4-5 बन्दे होने दो तब नौका लेकर जाऊँगा। लेकिन जब 10 मिनट तक भी दूसरा बन्दा/बन्दी वहाँ नहीं आये तो मैं वहाँ से आगे बढ़ गया।

भेड़ाघाट से प्रस्थान करने से पहले वहाँ बने हुए घाट देखता हुआ वापिस चलने लगा। वहाँ बने हुए घाटों पर काफ़ी संख्या में लोग स्नान कर पूजा-पाठ आदि कर रहे थे। नर्मदा का पानी गहरा है जिस कारण स्थानीय अथवा बाहरी लोग किनारे पर बैठकर ही स्नान कर रहे थे। जब मैं फ़ोटो लेने लगा तो वहाँ हर तरफ़ महिलाएँ ही अधिक संख्या में नहाती दिखायी दी। स्नान घाट का फ़ोटो लेते समय यह ध्यान रखना होता है कि किसी महिला की आपत्ति जनक हालत में फ़ोटो ना आ जाये कि कही मेरा कैमरा/मोबाइल कोई देखने लगे तो बाद में वाद-विवाद वाली बात ना आने पाये। अपनी इज्जत अपने हाथ में होती है। जिसकी कोई इज्जत ही नहीं उसकी क्या बेइज्जती?

भेड़ाघाट के धुआँधार में देखने लायक स्थल देखने के उपराँत मैंने वहाँ से चलना शुरु किया। अबकी बार मै उस मार्ग से वापिस नहीं गया जिससे होकर यहाँ तक आया था। एक दुकान वाले ने बता दिया था कि नीचे ढ़लान की ओर बढ़ते हुए आपको आगे जाकर एक चौराहा मिलेगा जहाँ पर सीधे हाथ ऊपर मुख्य सड़क पर निकल जाओगे। मैं उसी मार्ग पर चलता चला गया। आधा किमी चलने के बाद मुख्य सड़क दिखायी दे गयी। मुख्य सड़क पर पहुँचते ही वहाँ खडे ऑटो वाले चिल्लाते हुए मिल गये कि जबलपुर-तिराहा आदि-आदि।

मुझे जोर की भूख लगी थी सबसे पहले सामने दिख रही कई दुकानों में से एक पर बन रहे गर्मागर्म समौसे खाने के लिये पहुँच गया। दो समौसे लेकर खाये गये। समौसे का स्वाद कुल मिलाकर ठीक था लेकिन रात से कुछ खास नहीं खाया था इसलिये वह भी बड़े स्वादिष्ट लगे थे। समौसे गटकने के बाद सामने खड़े एक तिपहिया में बैठ गया। इस तिपहिया वाले ने वहाँ से 5 किमी दूर भेड़ाघाट तिराहे पर छोड़ दिया। इस तिराहे से सीधे हाथ जबलपुर की दूरी मात्र 17 किमी रह जाती है। यहाँ का भेड़ाघाट रेलवे स्टेशन इस तिराहे से मात्र 2 किमी दूरी पर ही है। मेरी अमरकंटक वाली ट्रेन रात को 9 बजे जबलपुर से है इसलिये मेरे पास अभी कई घन्टे है चलिये अब चलते है भेड़ाघाट रेलवे स्टेशन की ओर। (यात्रा अभी जारी है।) 

जबलपुर यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।



पहले वाले मुनीवर

मुनीवर की जय हो

















8 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बहुत अच्छी चल रही है यात्रा...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुरम्य, रमणीक स्थल। सुन्दर वर्णन और सुन्दर चित्र।

Sachin tyagi ने कहा…

मुनीवर कैसे हे आप।मध्यपरदेश भी बहुत सुन्दर जगह हे ये आप से जाना हमने।।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

Nice post

Mukesh Bhalse ने कहा…

Nice description and beautiful pics.

Thanks.

Ajay Kumar ने कहा…

Muniwar ki jai ho... Muniwar ko jai ho...Bhai Ji aap to darr hi gaye mein kaise Muniwar ban gaya???

Amit ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Amit ने कहा…

THANK YOU SO MUCH SANDEEP JEE FOR SHARING THESE AUSPICIOUS MOMENTS...... CONTINUE FOR VISIT OTHER PLACES....

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