श्रीनगर सपरिवार यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से श्रीनगर तक की हवाई यात्रा का वर्णन।02- श्रीनगर की ड़ल झील में हाऊस बोट में विश्राम किया गया।
03- श्रीनगर के पर्वत पर शंकराचार्य मन्दिर (तख्त ए सुलेमान)
04- श्रीनगर का चश्माशाही जल धारा बगीचा
05- श्रीनगर का मुगल गार्ड़न-निशात बाग
06- श्रीनगर का मुगल गार्ड़न-शालीमार बाग
07- श्रीनगर हजरतबल दरगाह (पैगम्बर मोहम्मद का एक बाल सुरक्षित है।)
08- श्रीनगर की ड़ल झील में शिकारा राइड़ /सैर
09- अवन्तीपोरा स्थित अवन्ती स्वामी मन्दिर के अवशेष
10- मट्टन- मार्तण्ड़ सूर्य मन्दिर व ग्रीन टनल
11- पहलगाम की सुन्दर घाटी
12- कश्मीर घाटी में बर्फ़ीली वादियों में चलने वाली ट्रेन की यात्रा, (11 किमी लम्बी सुरंग)
13- श्रीनगर से दिल्ली हवाई यात्रा के साथ यह यात्रा समाप्त
SRINGAR FAMILY TOUR- 05
श्रीनगर के तीन
मुख्य बगीचे देखने के क्रम में सबसे पहला बाग चश्माशाही बाग देखने के बाद कार चालक
हमें लेकर अगले शाही बगीचे निशांत की ओर चल दिया। चश्माशाही ड़ल झील से लगभग एक
किमी पहाड़ की तलहटी में अन्दर जाने पर आया था। हमारी कार एक बार फ़िर डल लेक की ओर
वापिस आने लगी। जिस सड़क से होकर हम चश्माशाही गये थे वापसी में चश्मेशाही के ठीक
सामने एक नहर के किनारे बनाई गयी सड़क से होते हुए डल झील पहुँच गये। अबकी बार
हमारी गाड़ी डल झील किनारे बनी सड़क पर सीधे हाथ मुड़ गयी। इसी सड़क पर निशांत बाग बना
है। लेकिन यह सड़क से 10-12 फ़ुट यानि एक मंजिल ऊपर है ड़ल झील के एकदम
सामने ही बना है। इस बाग व डल झील के बीच केवल सड़क है। लेह से डल झील किनारे आओगे तो
इसके सामने से होकर ही निकलना होता है।
बाग में अन्दर जाने
के लिये टिकट लेना पड़ता है। यहाँ भी दो बन्दों के लिये एक ही टिकट का प्रावधान
किया गया है। टिकट लेकर सीढियों से ऊपर जाते ही एक आँगन दिखायी दिया। यहाँ से
सामने कुछ दूर चलते ही एक मंजिल और ऊपर जाना होता है सीढियों से ऊपर जाने लगे तो
एक बोर्ड़ दिखायी दिया, जिस पर इस बाग के बारे में काफ़ी कुछ लिखा है। बोर्ड़ पर लिखा
हुआ सार यह है कि निशांत बाग को मुगलों की बेगम नूरजहाँ के भाई आसिफ़ खान ने बनवाया
था। इस बाग में सडक से ऊपर जाने पर 12 सोपान/ चढाई आते है।
जिन्हे पार करते हुए सम्पूर्ण बाग के दर्शन सम्भव हो पाते है।
सीढियों से ऊपर
जाते ही कश्मीरी कपडे वाली दुकान लगाये बन्दे फ़ोटो के नाम पर तंग करते है इसलिये
उनके रंग बिरंगे कपडों पर ज्यादा ध्यान दिये बिना, मैं डल झील व आसपास का नजारा
देखने में लगा हुआ था। दोनों बच्चे भी धमाल चौकड़ी के अपने काम में लगे रहे। मैड़म
हम सबमें शांत थी। पता नहीं क्यों? मैं पूछा भी नहीं? यह बाग ड़ल झील के सामने होने
से यहाँ की रौनक कुछ ज्यादा बढ गयी है। यहाँ से डल झील का नजारा बड़ा शानदार दिखता
है मुझे श्रीनगर के सभी बाग-बगीचों में सबसे अच्छा व लुभावना यही बाग लगता है।
इसके सामने अन्य बगीचे फ़ीके रह जाते है।
डल झील के नजारों
को आँखों व कैमरे में समेट कर आगे चल दिये। मैं इससे पहले यहाँ दो बार आ चुका हूँ
बीती यात्राओं में मुझे यहाँ हरियाली व फ़ूलों की बहार मिली थी जबकि आज इस बाग की
सभी हरियाली रंगीन मिजाजी सफ़ेद बर्फ़ के नीचे दबी पड़ी थी। इस बाग की हरियाली और
चिनार के पेड़ मेरे सिर की तरह गंजे हो गये थे। घरवाली बोली एक गंजा हमारे साथ है।
जिस कारण जहाँ भी जाते है सब कुछ गंजा मिल रहा है। बच्चों को बर्फ़ में घुसने से
रोकना पड़ रहा था। कल की बात है पवित्र महाराज कार से निकलते ही बर्फ़ में जा घुसा, बर्फ़ के नीचे पानी था जिससे उसके जूते
गीले हो गये थे। ठन्ड़े माहौल में जूते गीला होना आफ़त बन सकता है। इसलिये आज पूरी
तरह सावधान थे कि बच्चों या हमारा बर्फ़ में घुसने पर कल वाला हाल ना हो जाये?
इस बाग के एकदम आखिर
में एक ढके हुए जीने से चढकर ऊपर पहुँचे। ऊपर जाकर वहाँ से जो मस्त नजारा दिखता
है। उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। वह सिर्फ़ अनुभव किया गया। यहाँ आकर ऐसा लगता
था कि हम जीते जी स्वर्ग में आ गये हो। यह भी अच्छा रहा, मरने के बाद पता नहीं लोग
कहाँ जाते है? हमने कम से कम जीते जी ठन्ड़ का स्वर्ग तो घूम लिया। बर्फ़ में पूरा
परिवार काफ़ी देर मस्ती करता रहा। मैंने अपने सिर से टोपी उतार कर गंजे सिर को
कश्मीर की ठन्ड़ी बहारों का थोड़ी देर लुत्फ़ दिलाना चाहा तो मैड़म ने फ़िर टोक दिया।
बोली कि टोपी पहने रहो, अगर जाड़ा लग गया तो छींकते फ़िरोगे। मैड़म का प्रवचन ज्यादा
लम्बा होता, उससे पहले ही मैंने अपने गंजे सिर पर टोपी पहन ली। ले अब अगर टोपी
पहनने के बाद भी छींक आयी तो?
जिस पक्के जीने से
सावधानी बररते हुए ऊपर आये थे उस जीने से नीचे उतरना बड़ा भयंकर साबित हुआ। इस जीने
की सिर्फ़ कुछ सीढियाँ ही बिना बर्फ़ की बची थी। अन्यथा सभी सीढियाँ बर्फ़ से लदालद
थी। इस जीने पर सावधानी से उतरने के बाद भी कई बार मुँह से ऊई भी निकली। पवित्र
सबसे छोटा व साथ ही खोटा भी है उसे सबसे ज्यादा जल्दी रहती थी जिस कारण वह इन
सीढियों में फ़िसल कर कई सीढियों को बिना चले ही उतर गया। अब बच्चों को हाथ पकड़कर
उतारा गया। इन सीढियों पर बच्चों का हाथ पकडने पर एक खतरा भी था कि यदि बच्चे का
हाथ पकड़ने के बावजूद मेरा भी पैर फ़िसला तो मैं तो लुढकूँगा ही बच्चा भी मेरे साथ
धूम धड़ाका कल्ब में शामिल हो जायेगा। किसी तरह जूते गड़ाते हुए मजे सीढियों से नीचे
उतर पाये।
जीने से उतरने के
बाद मैदान आया तो नटखट पवित्र बर्फ़ में घुस कर भागने लगा। तभी मैंने कहा चल बर्फ़
में लेट कर फ़ोटो खिचवा। इतना कहते ही पवित्र बर्फ़ में लोटपोट हो गया। बर्फ़ में
लेटने के फ़ोटो लिये और पवित्र के कपडों पर चिपकी बर्फ़ को झाड़कर आगे बढे। थोड़ा आगे
जाते ही दोनों बच्चे बर्फ़ में घुसकर फ़िर से मस्ती करने लगे। वहाँ से चलने लगे तो
मणिका बर्फ़ में फ़िसल गयी। दोनों बच्चे पूरे मूड़ में थे इसलिये उनको गिरने गुराने
पर कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था। मणिका के गिरते ही मैंने तुरन्त अपने कैमरे से मणिका
का फ़ोटो ले लिया। इस प्रकार के यादगार पल बहुत मुश्किल से कैमरे की कैद में आ पाते
है।
निशांत बाग के
नजारे देखते हुए बाहर आने के लिये चल दिये। बाग में ऊँचाई से ड़ल झील के अन्दर एक
पुल जैसा कुछ दिख रहा था। इसके बारे में मुझे हमारे कार वाले ने बताया था कि कुछ
वर्ष पहले तक ड़ल झील के बीचो-बीच से एक सड़क आर-पार जाने के लिये बनायी गयी थी। यह
सडक मुगलों या अंग्रेजों के समय बनी होगी। यह पुल जैसा दिखने वाला स्थल उसी गायब
सड़क का अवशेष बचा हुआ है। आजादी के बाद उस सडक को ड़लझील की सुन्दरता बढाने के लिये
हटा दिया गया। इस पुल के नीचे से नाव निकलने के लिये जगह छोड़ी गयी थी।
निशांत बाग से बाहर
आने के बाद अपने कार चालक को तलाश करने लगे। कार चालक ने बताया था कि वह यहाँ से
थोड़ा सा आगे खाली जगह में मिलेगा। हमें अपनी कार दिखायी दे गयी। कार में बैठकर हम
अगली मंजिल की ओर प्रस्थान कर गये। अगले लेख में आपको श्रीनगर का ऐतिहासिक तीसरा व
अंतिम मुख्य शालीमार गार्डन दिखाया जायेगा।। (यात्रा अभी जारी है।)
6 टिप्पणियां:
Aaj ki yatra varnan padhne me khoob maja aya, bhabhiji ka kyun mood kharab tha??
Dono bacche bhi bade deedaar hain aapki tarah.. Badhaaii..
वाह, हमें तो छुटकू जी का एक्शन बहुत अच्छा लगा।
ab bhi photo darr darr ke dekh rahu hau....
पूरी बर्फमय यात्रा वृतांत पढ़ के आनंद आ गया...
कश्मीरी कपड़ो में फोटू तो हमने शिमला में ही खिचवा लिए थे ---उसका भी अपना ही मज़ा है --तुम रोज़ घूमते हो और हम जैसे कभी- कभी । अपने बचपन में मैंने अपने पायलेट मामा के ब्लेक एंड व्हाईट फोटू देखे थे जो इसी तरह के थे और जिन पर शालीमार बांग और निशांत बाग़ के नाम लिखे थे --मणिका बेटी जैसा ही फोटू मैंने भी लिया था अपनी छोटी बेटी का जब हम रोहतांग कि बर्फ पर मज़े कर रहे थे और उस समय वो बेटे पवित्र जैसी थी-- गिरने से उसका पाजामा आगे से फट गया था जिसके लिए उसने बहुत शोर मचाया था हा हा हा हा सच ये यादगार पल हमेशा दिल और दिमांग को सुकून देते है --
आज के फोटू बहुत ही अच्छे है --विशेषकर बर्फ से नहाये पेड़ ---एक गंजे सर का भी फोटू हो जाना चाहिए था हा हा हा हा सुंदर बर्फीले अंदाज बच्चो के बहुत पसंद आये --- तुमने कश्मीर जाने का रास्ता खोल दिया --
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