बुधवार, 15 जनवरी 2014

Houseboat & shikara ride in dal lake ड़ल झील के हाऊस बोट व शिकारा यात्रा

श्रीनगर सपरिवार यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से श्रीनगर तक की हवाई यात्रा का वर्णन।
02- श्रीनगर की ड़ल झील में हाऊस बोट में विश्राम किया गया।
03- श्रीनगर के पर्वत पर शंकराचार्य मन्दिर (तख्त ए सुलेमान) 
04- श्रीनगर का चश्माशाही जल धारा बगीचा
05- श्रीनगर का मुगल गार्ड़न-निशात बाग
06- श्रीनगर का मुगल गार्ड़न-शालीमार बाग
07- श्रीनगर हजरतबल दरगाह (पैगम्बर मोहम्मद का एक बाल सुरक्षित है।)
08- श्रीनगर की ड़ल झील में शिकारा राइड़ /सैर
09- अवन्तीपोरा स्थित अवन्ती स्वामी मन्दिर के अवशेष
10- मट्टन- मार्तण्ड़ सूर्य मन्दिर  व ग्रीन टनल
11- पहलगाम की सुन्दर घाटी
12- कश्मीर घाटी में बर्फ़ीली वादियों में चलने वाली ट्रेन की यात्रा, (11 किमी लम्बी सुरंग)
13- श्रीनगर से दिल्ली हवाई यात्रा के साथ यह यात्रा समाप्त

SRINGAR FAMILY TOUR- 02

श्रीनगर शहर में ठहरने के लिये वैसे तो सैकडों होटल है जिनमें 500 रु से किराया शुरु हो जाता है। जितने ज्यादा चोचले माँगते जाओगे, उतना महँगा किराया होता जाता है। होटलों व धर्मशाला के कमरों में तो ना जाने कितनी बार रुकना हो चुका है। पानी में तैरते होटलों यानि हाऊस बोट में अभी तक सिर्फ़ एक बार ही ठहरने का मौका लगा है सन 2007 के जुलाई माह में जब पहली बार अमरनाथ यात्रा पर आया था वापसी में दिल्ली वाले तीन अन्य पिय्यकड़ लोगों के साथ ड़ल झील के हाऊस बोट में एक रात्रि रुकने का मौका मिला था। बाइक यात्रा में एक रात्रि रुकने की सोची थी लेकिन कश्मीरी उत्पादियों/अलगाववादियों ने पत्थर बरसाने वाली प्रक्रिया चालू की हुई थी, जिससे यहाँ रुके बिना सीधे जम्मू निकल आये थे। आज शुरु हुई इस यात्रा में तो केवल हाऊसबोट में ही चार रात्रि रुकना तय किया हुआ है। श्रीनगर में कल दिनभर जमकर बर्फ़बारी हुई थी जिससे यहाँ का तापमान माइनस में चला गया है।



हम हवाई अड़ड़े से जिस कार में ड़ल झील तक आये थे। उसने हमें शिकारा स्टैन्ड नम्बर 7 पर उतार दिया था। कार से उतर कर हम हाऊस बोट जाने के लिये अपने शिकारे की प्रतीक्षा में खड़े ही हुये थे कि मई फ़ैयर नामक शिकारा हमें लेने के लिये किनारे लग चुका था। जब तक शिकारा किनारे लगा, तब तक मैंने अपने कैमरे से आसपास के फ़ोटो ले लिये।

ड़ल झील पहुँच कर बर्फ़ीली हवाओं ने कुछ ज्यादा असर दिखा दिया था। हमारा इरादा आज ही ड़ल झील में शिकारा की सैर करने का था लेकिन हाऊस बोट मालिक की लड़की की फ़्लाईट में देरी होने से अंधेरा होने लगा है, इसलिये हमने ड़ल झील में शिकारे की सैर कल के लिये टाल दी। आज हाऊस बोट पहुँचकर आराम करते है। अब कई दिन यही रहना है। सड़क से आने-जाने में शिकारे की कई बार सैर करने का मौका मिलने वाला है।

मैंने केवल फ़ोन पर बुलबुल हाऊस बोट मालिक से बात की थी जिन्होंने मुझे केवल किराये के 1200 रु बताये थे जबकि ऑन लाईन 1100 रु थे। मैंने खाने के दाम भी साथ जोड़ने को कहा तो भोजन मिलाकर 1800 रु बताये गये। भोजन में केवल नाश्ता व रात्रि भोजन शामिल था। दोपहर का भोजन इसमें शामिल नहीं था। मैंने कई बार श्रीनगर की यात्रा की हुई है इसलिये मुझे पता है कि अगर एक थाली का भोजन 150-200 रु में जाकर मिलता है। वैसे सब्जी से भरी कटोरी ही 80 रु की मिलती है।

हमें जब उसी कीमत में बना बनाया खाना अपने कमरे में मिल सकता हो तो बे फ़ालतू में सड़कों पर चक्कर क्यों लगाया जाये। यह पहले ही साफ़ कर दिया था कि यदि हमें आपके यहां का भोजन अच्छा नहीं लगा तो हमें बाहर जाकर भोजन करना पडेगा। इस यात्रा में जिस हाऊस बोट में चार रात्रि रुके थे। यहाँ हाऊसबोट में काम करने वाला बन्दा काफ़ी अच्छे व्यवहार वाला मिला। वहाँ हमें रहने व खाने के बारे में शिकायत का मौका नहीं मिला।

हाऊसबोट पहुँचते ही हम अपने कमरे में पहुँच गये। मैंने केवल ड़बल बैड़ वाला कमरा फ़ोन पर बुक किया था। लेकिन हाऊसबोट मालिक ने मेरे साथ छोटे बच्चे देखकर कहा कि अब मैं आपको तीन बैड़ वाला कमरा दे रहा हूँ। तीन बैड़ वाले कमरे का किराया कितना ज्यादा होगा? जब मैंने यह जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि आप हमारे यहाँ 4 दिन रुक रहे है इसलिये आपसे 2 बैड़ वाले कमरे का पहले से तय किराया ही लिया जायेगा। यह तो मैं पहले ही बता चुका हूँ कि मैंने सिर्फ़ फ़ोन पर ही बात की थी कोई अग्रिम राशि जमा नहीं की थी।

एक बात और, मैंने इस यात्रा में अपने घूमने व रहने-खाने का दाम यात्रा समाप्त होने वाले दिन हाऊसबोट छोड़ने से मात्र 10 मिनट पहले ही सारा हिसाब चुकता किया था। 7200 रु कमरे का चार रात रहना-खाना मिलाकर हुआ था। दो दिन गाड़ी घूमने के लिये थी जिसका किराया 1800 रु तय था। हवाई अड़ड़े से लाने-ले-जाने के लिये 600-600 रु पहले से तय कर दिये थे। आगे की यात्रा में हम कहाँ-कहाँ जायेंगे यह तो आपको आगामी लेखों से पता चलता रहेगा।

कमरे में पहुँचने से पहले हमें बताया गया कि आप अपने जूते बाहर बरामदे में ही निकाल दे क्योंकि अन्दर कालीन पर जरा सी भी धूल मिट्टी नहीं है। दूसरा हम यहाँ बैठक में नमाज भी पढते है अत: हम यहाँ जूते लेकर नहीं चलते है। कमरे में पहुँचते ही ठन्ड़ का अहसास होने लगा था। गाड़ी में हीटर चल रहा था जिससे ठन्ड़ पता नहीं लगी। यहाँ ड़ल लेक का तापमान माइनस में चल रहा था हाऊस बोट के चारों और छतो पर या अन्य जगहों पर बर्फ़ ही बर्फ़ दिख रही थी।

ज्यादा ठन्ड़ होने के कारण हमें बताया गया कि हाऊसबोट में आपका कमरा गर्म करने के लिये गैस से चलने वाला हीटर शाम 6 से रात्रि 10 बजे तक चलाया जायेगा। आपके बैड़ में नीचे जो कम्बल बिछे हुए है उनमें बिजली से गर्म करने वाले एलीमैन्ट लगे हुए है जिससे कम्बल गर्म रहता है। इतनी ठन्ड़ में अगर इस प्रकार के प्रबन्ध ना हो तो यहाँ ठहरना नामुमकिन हो जायेगा। यहाँ के लोग ठन्ड़ से बचने के लिये लम्बे-लम्बे गाऊन पहनते है जिनमें गर्म करने के लिये कांगड़ी रखते है। इस लेख में आपको मणिका बेटी के हाथ में एक कांगड़ी लिये दिखाया गया है।

आज के लेख में आपको हाऊसबोट के प्रत्येक भाग से रुबरु कराया है। जिस हाऊसबोट में हम रुके थे उसमॆं चार कमरे थे। तीन कमरे, 3 बैड़ वाले थे जबकि एक कमरा ड़बल बैड़ वाला है। सब कमरों में अपना-अपना अटैच बाथरुम बनाया गया है। सभी कमरों में गर्म पानी 24 घन्टे उपलब्ध रहता है। जब मैंने हाथ-मुँह धोने के लिये पानी चलाया तो ठन्ड़ा निकला। मैंने बैल बजाकर कर्मचारी मुददसर को बुलाया तो उसने कहा कि आप थोड़ी देर पानी चलने दो पाईप में ठन्ड़ा पानी निकलने के बाद ही गर्म पानी पहुँच पायेगा। वहाँ की ठन्ड़ देखते हुए चार रात्रि रुकने के दौरान हम केवल दो बार स्नान करने की हिम्मत जुटा पाये थे।

यहाँ ड़ल झील में चलने वाले शिकारे देखते ही मुझे शम्मी कपूर के उस गाने की याद आती है जिसमें वह क्या याद करु उसको जिसने तुझे बनाया गाते है। इस गाने के आखिरी में शम्मी कपूर झील में कूद जाते है। ड़ल झील में ठहरने में एक समस्या आती है कि इनमें सामान बेचने वाले आते-रहते है इसलिये मैंने दो-तीन सामान बेचने वालों के आते ही कह दिया कि हम यहाँ घूमने आये है इसलिये सामान बेचने वाला कोई भी हमारे लिये ना बुलाया जाये। हो सकता है कि सामान बेचने वाले हाऊसबोट वालों को या वहाँ कार्यरत कर्मी को कुछ कमीशन देते हो।

हमारे कमरे में टीवी लगा हुआ था। लेकिन दो दिन से लाइट नहीं आने से बन्द पड़ा था। थोड़ी देर के लिये बिजली भी आयी थी। मुददसर बोला सर जी आपके आते ही बिजली भी आ गयी है, नहीं तो दो दो दिन से बिजली भी नहीं थी। इनवर्टर से केवल रोशनी करने का प्रबन्ध किया गया था। रात को भोजन के समय तक इनवर्टर भी बोल गया। थोड़ी देर में भोजन हमारे कमरे में ही आ गया। अब कमरे में अंधेरा भी हो गया था। मुददसर भोजन रखने के बाद रोशनी के लिये मोमबत्ती ले आया। बच्चों को बताया कि आज हम कैंड़ल लाइट डिनर करेंगे। कुछ लोग कैंड़ल लाइट डिनर के लिये मौका तलाशते है जबकि हमारे सामने यह मौका अपने आप आ गया था। मोमबत्ती जलाकर कैंड़ल लाइट डिनर की तैयारी होने लगी।

डिनर के बाद बिजली भी आ गयी। लाइट आते ही बच्चों ने कार्टून देखने की जिद की तो मुददसर ने टीवी चालू कर दिया। हाऊसबोट में ठहरने के दौरान ऐसा नहीं लगा कि हम तैरते हुए स्थल में आराम कर रहे है। ड़ल झील में सैकडों हाऊस बोट है मैंने एक स्थानीय बन्दे से हाऊस बोट की लागत पता की थी उसने बताया था कि एक ठीक-ठाक हाऊसबोट बनाने में दो करोड़ का खर्चा आ रहा है। हाऊसबोट पानी में लगातार 50-60 साल खडे रहते है इनमें सबसे नीचे चीड़ की लकड़ी लगायी जाती है। चीड की लकड़ी जैसे ही अखरोट के पेड़ की लकड़ी भी होती है जिसे सैकडों साल पानी में ड़ाले रहो तो कुछ नहीं बिगड़ता है?

सब्जी बेचने वाले भी नाव में ही घूमते है। ड़लझील में वहाँ के निवासियों की जिन्दगी तैरते हुए चलती है। बाजार के बाजार तैरते हुए मिलते है। इनमें हर तरह का सामान मिलता है। मैंने सब्जी बेचने वाले का फ़ोटो भी लगाया है। ड़ल झील में तैरता जीवन देखकर केरल के हाऊस बोट याद आते है। कश्मीर जैसा ही जीवन केरल के हाऊ बोट का भी है लेकिन मौसम की तुलना की जाये तो वहाँ मौसम गर्म है जबकि यहाँ मौसम अत्यधिक ठन्ड़ा है। यहाँ के हाऊसबोट एक जगह स्थिर रहते है जबकि केरल वाले एक जगह से दूसरी जगह लाये जाते है। कश्मीर में हाऊस बोट की शुरुआत की मजेदार कहानी है। डोगरा राजाओं ने यहाँ बाहरी लोगों को स्थायी रुप से बसने से रोकने के लिये बाहरी व्यक्ति के जमीने खरीदने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इस नियम के तोड़ के रुप में अंग्रेजों व अन्य लोगों ने बड़ी नाव बनाकर उनपर रहना शुरु कर दिया। यही बड़ी नाव आज के हाऊस बोट में बदल गये है।


सामने वाले पहाड़ पर एक टीवी टावर दिखायी दे रहा था। टीवी टावर जिस पहाड़ पर था उस पर सबसे ऊँची चोटी पर शंकराचार्य मन्दिर स्थित है। हमारा कार्यक्रम यहाँ जाने का है। अगले लेख में आपको शंकराचार्य मन्दिर की यात्रा करायी जायेगी। जिसकी बर्फ़ से लदी सीढियों पर चढना व उतरना बहुत भारी पड़ा। (यात्रा जारी है।)

























7 टिप्‍पणियां:

Sachin tyagi ने कहा…

बहुत बढिया लेख व चित्र,पढकर व देखकर अच्छा लगा
मै स्टैन्ड न-11 डल गेट पर ठहरा था, बहुत सुन्दर जगह हे पर दहशतगर्दो ने माहौल खराब कर रखा है

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

भई देख के ही जाडा लाग ग्या। राम राम

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वाह, देखकर आनन्द ही आ गया..

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

कश्मीर को तो स्वर्ग का दर्जा मिला है ---देखते है हम कब स्वर्गवासी होते है हा हा हा हा हा
बहुत ही सुंदर चित्र है और बच्चे भी बड़े प्यारे है --पर परिवार साथ रहने से जाट देवता का वो तीखापन नदारत रहा --- मस्तमौलापन ----

o.p.laddha ने कहा…

जाट देवता आपकी यात्रा से हमें बहुत ही मज़ा आ रहा है कश्मीर की खूबसूरती का आपने बहुत ही खुबसूरत अंदाज़ में परिचय कराया है पर भाई ठण्ड बहुत है अपना और परिवार का ध्यान रखना।

travel ufo ने कहा…

ये हाउस बोट वाकई बढिया होते हैं , लकडी पर नक्काशी भी बढिया होती है

A Homemaker's Utopia ने कहा…

Wonderful post and awesome photographs :)

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