गुरुवार, 19 सितंबर 2013

Lotus Temple बहाई धर्म- कमल का मन्दिर

TOURIST PLACE IN NEW DELHI-02                                                   SANDEEP PANWAR 
दिल्ली की यात्रा में आज बहाई धर्म के पूजा स्थल कमल मन्दिर की ओर चलते है। लाल किला देखने के बाद कालकाजी मन्दिर की ओर जाने वाली वातानूकुलित बस की इन्तजार करते हुए कई मिनट बीत गये लेकिन लाल वाली AC bus नहीं आयी। बदरपुर वाले रुट पर जाने वाली कई लाल बस निकल चुकी थी। आखिरकार हम भी बदरपुर जाने वाला एक लाल रंग की बस में सवार हो गये। पूरे दिन टिकट लेने की आवश्यकता तो थी ही नहीं क्योंकि हमने सुबह ही 50 वाला बस पास बनवाया लिया था। DTC की बसों में कन्ड़क्टर अधिकतर तो टिकट लेने के लिये टोकते ही नहीं है यदि टोकते भी है तो पास कहने के बाद दुबारा कुछ नहीं कहते है। हमारी बस दिल्ली गेट, आई टी ओ(बाल भवन भी यही नजदीक ही है।) प्रगति मैदान, उच्च न्यायालय(सुप्रीम कोर्ट), पुराना किला, चिडियाघर, हुमायूँ का मकबरा, निजामुददीन होते हुए मथुरा रोड़ पर चलती रही। 



जब रिंग से आगे निकलने के बाद नेहरु प्लेस व कालका जी वाला फ़्लाईओवर दिखायी दिया तो हम सीट छोड़कर अगली खिड़की पर जा पहुँचे। बस में सवारियाँ बहुत ही कम थी यदि हम आगे नहीं जाते तो चालक बस को आगे ले जाता। फ़िर बिना स्टैन्ड़ बस रोकने में नखरे दिखाता। कालका व नेहरु प्लेस वाले फ़्लाईओवर के ठीक नीचे बस स्टैन्ड़ है। यहाँ से पैदल ही फ़्लाईओवर के नीचे (या ऊपर घूम कर जाना पड़ता है।) से होते हुए रेलवे लाइन पार कर मुश्किल से आधा किमी की दूरी में ही कमल मन्दिर दिखायी देने लगता है। यहाँ फ़्लाईओवर समाप्त होने वाली जगह एक तिराहा है जहाँ से सड़क पार कर कमल मन्दिर जाने वाली सड़क पर आधा किमी चलना होता है। यहाँ बच्चे भी पैदल ही चलने में खुश थे। यदि ऑटो के चक्कर में रहते तो काफ़ी घूम कर आना पड़ता जिसमें ज्यादा समय लगने की सम्भावना रहती है।

जल्द ही हम लोग कमल मन्दिर के मुख्य दरवाजे के सामने पहुँच चुके थे। बच्चों को भूख लगी थी दिल्ली में भूख लगने पर सबसे आसान सुलभ साधन छोले-कुलचे ही होते है जो हर जगह आसानी से उपलब्ध हो ही जाते है। 20 रुपये की प्लेट के हिसाब से सभी ने कुलचों का स्वाद लिया। कुलचे खा पीकर आगे बढ़े। कमल के मन्दिर के सामने कई दुकाने और भी है जहाँ तली हुई चीजे भी मिलती है। लेकिन मेरी कोशिश अधिकतर तली हुई चीजों से बचने की होती है। इसलिये मैं घर पर भी रोटी पर घी नहीं लगवाता हूँ। यह तो आप जानते ही है कि कैसा भी नशा व मांसाहार (अभी तक अन्ड़ा भी मांसाहार में ही शामिल है। अगर भविष्य में मशीन से उत्पादन होने लगेगा तो तब की बात तब करेंगे।) मैं तो क्या मेरा परिवार भी नहीं करता है।

बहाई मन्दिर में प्रवेश करने से पहले सुरक्षा जाँच से होकर गुजरना पड़ा। हमारे देश में अगर कहूँ पूरी दुनिया में ही कथित शांतिप्रिय समुदाय के आतंकी हमलों के ड़र से यह सुरक्षा जाँच होती है तो ठीक है लेकिन यदि बिना हथियार के खड़े इन लोगों पर कोई हथियार बन्द बन्दा हमला कर भाग जाये तब क्या होगा? मैं पहले भी यहाँ दो/तीन बार आ चुका हूँ लेकिन परिवार के लोग खासकर बच्चे पहली बार आये थे इसलिये बड़े उतावले थे। बच्चे जहाँ जितनी देर खड़े होकर पृकति नजारे व कमल मन्दिर को देखते, उन्हे देखने देता था। बच्चों के मामले में रोक-टोक सिर्फ़ तभी करता हूँ जब किसी को कोई शारीरिक या आर्थिक नुक्सान होने का अंदेशा होता है। अन्यथा मस्ती करते बच्चे, और मस्ती करने में व असलियत में अपुन उनके बाप है ही।

बहाई मन्दिर परिसर में अगस्त माह में जोरदार हरियाली आयी हुई थी। इससे पहले मैं बारिश के मौसम में नहीं आया था। बारिश के मौसम में हरियाली वाली जगह पर जाना बहुत अच्छा लगता है। पत्थर की बनी पगडन्ड़ी पर आगे बढ़ते हुए हम कमल मन्दिर के नजदीक पहुँचते जा रहे थे। यहाँ इसे देखने के लिये अब तक किसी प्रकार के टिकट लेने की रस्म आरम्भ नहीं हुई है आगे चल कर हो सकता है कि अक्षरधाम की तरह यहाँ भी कारोबार आरम्भ हो जाये। आगे जाने पर सुरक्षा कर्मियों ने वहाँ पड़े थैले की ओर इशारा करते हुए कहा कि अपने-अपने समूह के जूते एक बैग में रखकर पगड़न्ड़ी के नीचे जूते के कक्ष में जमा करा दीजिए। लेकिन जो बन्दे अकेले आये थे उनके लिये बैग की सुविधा नहीं थी उन्हे ऐसे ही अपने जूते जमा कराने थे। जूते जमा कराने के बाद आगे बढे।

वैसे गर्मी ज्यादा तो नहीं थी क्योंकि बादलों ने आकाश में अपना साम्राज्य कायम किया हुआ था। फ़िर भी पगड़न्ड़ी पर कालीन बिछाया हुआ था ताकि गर्म फ़र्श से लोगों को दिक्कत ना हो। इसके बाद हमने कमल मन्दिर का एक चक्कर लगा ड़ाला। हमने क्या-क्या देखा बाकि की कहानी आपको नीचे दिये गये चित्र बताने में लगे है उसके बाद भी किसी बात की कमी रह गयी तो बता देना। रही बात कमल मन्दिर के बारे में इसके बारे में ज्यादा जानना है तो विकिपीडिया से बेहतर कौन बता सकता है। हम जैसे भी तो वही से देखकर जानकारी प्राप्त करते है। चलिये आप नीचे के फ़ोटो देखिये तब तक हम सोचते है कि आपको कहाँ लेकर जाना है? अपनी आदत बड़ी खराब है बिना घूमे तो चैन आता ही नहीं है ऐसे ही घरवाली व बच्चे है। उन्हे कौन समझाये? जब अपुन किसी की नहीं समझते? (दिल्ली यात्रा अभी जारी है)

नीचे दिल्ली में की गयी सभी यात्राओं के लिंक लगाये गये है।
01-
05- महरौली के पास छतरपुर मन्दिर
06- भारत की सबसे ऊँची मीनार कुतुब मीनार /विष्णु स्तम्भ
07- अक्षरधाम मन्दिर
08- पुराना किला
09- दिल्ली का चिडियाघर
10-
  



















आकाश से ऐसा दिखता है








7 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (19-09-2013) आश्वासनों का झुनझुना ( चर्चा - 1373 में "मयंक का कोना" पर भी है!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Sachin tyagi ने कहा…

nice photography

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर कमलदल

virendra sharma ने कहा…

वाह पूरे परिसर का विस्तृत चित्र आलेख प्रस्तुत कर दिया आपने। चप्पा चप्पा रु -बा -रु।

Ajay Kumar ने कहा…

दिल्ली भ्रमण का न्यौता तो मुझे भी मिला था पर क्या करु मेरा लाल किला बनकर तैयार ही नही हो रहा है.. . . . . समझ गये ना भाई जी

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुंदर चित्र और बहुत ही विस्तार से आलेख प्रस्तुत किया है आपने

विकास गुप्ता ने कहा…

अच्छी जानकारी और चित्र

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