शनिवार, 11 मई 2013

Vedni Bugyal to Kalu Vinayak वेदनी बुग्याल से कालू विनायक तक

ROOPKUND-TUNGNATH 04                                                                             SANDEEP PANWAR
वेदनी पहुँचते-पहुँचते घनघोर अंधेरा हो गया था। रात का समय था ज्यादा कुछ दिखायी भी नहीं दे रहा था। आसमान में अपनी चमक बिखेरने वाला चाँद भी ना जाने कहाँ गायब हो गया था। थोड़ा आगे जाने पर वेदनी कैम्प की लाईट दिखायी देने लगी। जैसे-जैसे कैम्प के पास पहुँचते जा रहे थे। ठन्ड़ बढ़ती ही जा रही थी। ठन्ड़ का प्रकोप तो मार्ग में भी था लेकिन पैदल चलते रहने के कारण शरीर लगातार गर्म बना रहता है इसलिये ठन्ड़ अपना असर नहीं दिखा रही थी। कैम्प के पास पहुँचते ही घोड़े वालों ने अपना सामान उतारना शुरु कर दिया। दो नौजवान कुछ पीछे चल रहे थे, उन्होंने मोबाइल की टॉर्च जलाई हुई थी जिससे वे आते हुए दिख भी रहे थे। अंधेरे में कैम्प के पास मेरा पैर गीली मिटटी में चले जाने से जूते पर मिटटी लग गयी थी। 


जो लोग यहाँ पहले से थे वे लगभग सभी अपने-अपने ठिकाने में घुसे हुए थे। मैंने पहले कभी टैंट नहीं लगाया था आज मेरे साथ आने वाले बन्दे अपना टैंट लेकर आये थे मैं उन्हे टैंट लगाते हुए देखना चाहता था। जैसे-जैसे वे टैंट लगा रहे थे। मैं खड़ा हुआ उन्हे देखता जा रहा था। जब उन्होंने कई बार टैन्ट लगाने की विफ़ल कोशिश की तो मैंने उनकी मदद की। मुझे भले ही टैंट लगाने का अनुभव नहीं था, लेकिन वीडियों में टैंट लगाते समय मैंने ध्यान से देखा हुआ है। जब टैंट लग गया तो टैंट वाले बन्दों में से एक बन्दा बोला भाई साहब आप कहाँ सोओगे? मैंने कहा मेरा दोस्त यहाँ दिन में ही आ गया था उसने मेरे लिये पहले से ही प्रबन्ध किया हुआ होगा। मैं उसको तलाश करता हूँ किसी ना किसी टैंट में घुसा बैठा होगा।

मैंने मनु ने बारे में कई लोगों से पता किया लेकिन मनु के बारे में कोई नहीं बता पाया। मैंने एक बार फ़िर सबसे पूछा कि दोपहर में दिल्ली से एक लम्बा पतला सा जवान यहाँ पहुँचा था। दिल्ली का नाम सुनते ही कई लोग एक साथ बोल पड़े। हाँ दिल्ली वाला बोलो ना, आप तो मनु त्यागी को पूछ रहे हो। अच्छा ताऊ दिल्ली वाले के बारे में ही बता दो। वही जो अकेला आया था। हाँ वही। वह तो दोपहर बाद ही पत्थर नाचनी की ओर  चला गया था। अबे यार मनु ये क्या किया? मैं तो अपने साथ स्लीपिंग बैग भी नहीं लाया था। यहाँ तो ठन्ड़ के मारे वैसे ही दाँतों ने बज-बज कर आटा पिसने वाली मशीन बनायी हुई है।

मैंने पूछा यह पत्थर नाचनी/नौचनी जो भी जगह है कितने किमी आगे है? जवाब मिला लगभग 7 किमी आगे। मैंने रात में ही आगे बढ़ने का इरादा कर लिया था। टार्च मेरे पास थी ही, जिससे अंधेरे का ड़र नहीं था कि कही किसी खाई में गिर पडू। मेरे रात को 9 बजे आगे जाने की बात सुनकर वहाँ मौजूद लोग बोले कि अरे इतनी ठन्ड़ में वहाँ कैसे जाओगे? एक ने पूछा क्या आप पहले भी रुपकुन्ड़ गये हो। नहीं पहली बार हूँ। फ़िर तो आगे बिल्कुल मत जाना रास्ता भटक जाओगे। मैंने कहा मेरे पास स्लीपिंग बैग भी नहीं है। आपको स्लीपिंग बैग मिल जायेगा। एक बन्दा मुझे एक टैन्ट में ले गया और टैन्ट खोलकर कहा ये लो टैट स्लीपंग बैग के साथ। अब बोलो क्या अब भी आगे जाओगे। ना, अब तो नहीं लेकिन सुबह दिन निकलते ही चला जाऊँगा, इसलिये टैन्ट/स्लीपिंग बैग का किराया अभी ले लो। वो बन्दा भी अपुन जैसा था। उसने कहा आप सुबह जाओगे तब दे देना। कितना 200 रुपये। मैने मन ही मन कहा। वाह नन्दा देवी माँ आखिर तुमने मेरे ठहरने का जुगाड़ कर ही दिया।

मैंने अपना बैग टैन्ट के अन्दर रख दिया और चददर निकाल कर ओढ़ ली। तभी एक बन्दा मेरे पास आया और बोला, खाना नहीं खाओगे। ना खाने की कोई दिक्कत नहीं है। अगर 2-3 दिन भी ना मिले तो बन्दा पानी से काम चला सकता है। वह बन्दा मुझे अपने साथ ले जाकर ही माना और बोला कि हमारे पास सिर्फ़ मैंगी है मैंगी तो मेरा पसन्दीदा व्यंजन है। मैंने एक मैंगी अपने बैग से निकाल कर दे दी, एक मैगी उन्होंने अपनी ओर से मिलाकर बना दी। मैंने वन विभाग की टीन की छत वाली हट में बैठकर मैगी खाई। वहाँ उन्होंने अन्दर ही मिटटी के तेल का स्टोव जलाया हुआ था जिससे हट गर्म तो थी लेकिन उसके धुएँ से वहाँ ठहरना मुश्किल हो रहा था। मैंने फ़टाफ़ट मैगी निपटायी और उस धुएँ से अपनी जान बचाकर बाहर निकल आया।

अपने टैंट में आने से पहले घोड़े वाले से कहा कि जिस टैन्ट में मैं ठहरा हूँ वहाँ मैं अकेला हूँ। यहाँ रात में कितनी ठन्ड़ होती है? उसने कहा कि लोग बता रहे है कि दिन में भी आज यहाँ बर्फ़ गिरी थी। इसलिये आज रात की माइनस 5 से नीचे तापमान जरुर जायेगा। मैंने स्लीपिंग बैग में घुसकर अपनी गर्म चददर भी उसमें घुसा कर ओढ़ ली ताकि रात को ठन्ड़ से कम से कम तकलीफ़ ली। रात को दस बजे तक मुझे नीन्द आ गयी होगी। लेकिन सुबह 3-4 बजे के बीच ठन्ड़ जब अपने उच्चतम शिखर पर रही होगी तो उस समय स्लीपिंग बैग उस ठन्ड़ को रोक नहीं पा रहा था। आखिरकार मजबूरन मुझे उठकर बैठना पड़ा। मैं किसी तरह सुबह के 5 बजने की प्रतीक्षा कर रहा था। जैसे ही पाँच बजे मैंने टैन्ट छोड़ दिया। बाहर निकल कर देखा तो रात में चारों और गिरी हुई बर्फ़ की हल्की परत बिछी हुई थी।

टैंट वाले को जगाकर उसके पैसे दे दिये। वो बोला कि रात को यही आकर रुकना तब दे देना। मैंने कहा ले ले भाई अपना कोई ठिकाना नहीं कि कल की रात कहाँ होगी? उसने मुझे ऊपर जाने वाला मार्ग समझा दिया था। मैं वेदनी कुन्ड़ के किनारे से होता हुआ, ऊपर चढ़ता रहा। ऊपर जाने पर मुझे एक पगड़न्ड़ी दिखाई दी। यह पगड़न्ड़ी अलीबुग्याल से होती हुई आ रही थी। यहाँ से मुझे उल्टे हाथ ही आगे बढ़ते रहना था। ऊपर आने तक सूरज महाराज भी दर्शन देने के लिये तैयार बैठे थे। अब चढ़ाई भी नाममात्र की ही शेष रह गयी थी। आगे जाकर घोड़ा लौटनी नामक बिन्दु से मार्ग में ढ़लान व जमी हुई बर्फ़ भी मिलनी आरम्भ हो गयी। मैं अकेले होने का पूरा लाभ तेज गति से चलकर उठा रहा था। आगे जाने पर पत्थर नाचनी/नौचनी नामक जगह पर वन विभाग के दो टीन वाले टैन्ट दिखाई दिये। (क्रमश:)

रुपकुन्ड़ तुंगनाथ की इस यात्रा के सम्पूर्ण लेख के लिंक क्रमवार दिये गये है।
01. दिल्ली से हल्द्धानी होकर अल्मोड़ा तक की यात्रा का विवरण।
02. बैजनाथ व कोट भ्रामरी मन्दिर के दर्शन के बाद वाण रवाना।
03. वाण गाँव से गैरोली पाताल होकर वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
04. वेदनी बुग्याल से पत्थर नाचनी होकर कालू विनायक तक की यात्रा
05. कालू विनायक से रुपकुन्ड़ तक व वापसी वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
06. आली बुग्याल देखते हुए वाण गाँव तक की यात्रा का विवरण।
07. वाण गाँव की सम्पूर्ण (घर, खेत, खलियान आदि) सैर/भ्रमण।
08. वाण से आदि बद्री तक की यात्रा।
09. कर्णप्रयाग व नन्दप्रयाग देखते हुए, गोपेश्वर तक की ओर।
10. गोपेश्वर का जड़ी-बूटी वाला हर्बल गार्ड़न।
11. चोपता से तुंगनाथ मन्दिर के दर्शन
12. तुंगनाथ मन्दिर से ऊपर चन्द्रशिला तक
13. ऊखीमठ मन्दिर
14. रुद्रप्रयाग 
15. लैंसड़ोन छावनी की सुन्दर झील 
16. कोटद्धार का सिद्धबली हनुमान मन्दिर



वेदनी बुग्याल







वेदनी कुन्ड़






पत्थर नाचनी/नौचनी

पीछे का नजारा देखो

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मनोरम दृश्य..

Yogi Saraswat ने कहा…

मस्त यात्रा संदीप भाई ! सफर में ऐसे लोग मिल जाएँ तो सफर आसान हो जाता है !!

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