सोमवार, 6 मई 2013

Baijhnath temple & Kot bhramri temple बैजनाथ महादेव मन्दिर व कोट भ्रामरी मन्दिर

ROOPKUND-TUNGNATH 02                                                                             SANDEEP PANWAR

सड़क किनारे एक बोर्ड़ दर्शा रहा था कि यहाँ हजारों साल पुराना मन्दिरों का समूह है। यह मन्दिर भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन होना चाहिए। चलो जब मन्दिर सामने ही है तो इसे भी देख ही आता हूँ। बाइक सड़क किनारे खड़ी कर सामने नीचे की ओर जाती हुई सीढियों पर उतरना शुरु कर दिया। लगभग 100 मीटर चलने के बाद मन्दिर के प्रांगण मॆं प्रवेश हुआ। मन्दिर के परिसर पर पहली नजर जाते ही पलके झपकनी बन्द हो गयी, कुछ पल वही खड़ा होकर मन्दिर परिसर को निहारता रहा। मन्दिर परिसर में बहुत सारे मन्दिर दिखायी दे रहे थे। इन सभी मन्दिरों में सिर्फ़ एक मन्दिर सबसे बड़ा था बाकि सभी मन्दिर बहुत छोटे थे। कुछ मन्दिर तो 3-4 फ़ुट तक के ही बने हुए थे। मन्दिर के ठीक सामने एक गरुड़ गंगा नामक नदी अपने स्वच्छ व साफ़ शीशे जैसे जल को साथ लेकर बह रही थी। इस मन्दिर समूह को बैजनाथ मन्दिर कहते है।



मन्दिर के अन्दर जाते ही एक व्यक्ति बोला "जूते यही निकालने होंगे।" ले निकाल दिये और कुछ, यहाँ सामने नदी के पानी में मछलियाँ है उनको खिलाने के लिये चने आदि ले कर ड़ाल आओ। क्यों भाई फ़्री में सामान क्यों बाँट रहे हो? सामान बेचने वाला बोला कि मछलियों को चने-आटा आदि ड़ालने से पुन्य़ मिलता है। तुम क्यों नहीं कमाते पुण्य? मेरी बात सुनकर वह सामान बेचने वाला सकपका गया। हद है कि लोगों ने अपने खाने-पीने के लिये क्या-क्या प्रबन्ध किया हुआ है। यह मन्दिर भी इसी प्रकार के खाऊ-पीऊ वाले प्रबन्ध के अन्तर्गत आते है। मुझे आजतक बहुत कम मन्दिर मन्दिर ऐसे मिले है जहाँ पर दान-दक्षिणा की परम्परा नहीं है। ऐसा ही एक मन्दिर देहरादून से मसूरी जाते समय आता है।

जूते निकाल कर, दुकान वाले का मुँह बन्द कर मन्दिर प्रांगण में टहलने लगा। यहाँ जितने भी मन्दिर थे सभी के दर्शन किये गये। मेरा मन्दिर दर्शन करने का अभिप्राय सिर्फ़ वहाँ की गयी नक्काशी से होता है, मन्दिर जाने पर पूजा-पाठ से मेरा किसी किस्म का कोई सम्बन्ध नहीं होता है। यहाँ के मन्दिर समूह में जो सबसे बड़ा मन्दिर है वह भगवान भोले के लिये बनाया गया है। जब अन्य छोटे-मोटे मन्दिर देख लिये गये तो सबसे बड़े वाले मन्दिर की बारी आयी। इस मन्दिर में जाते ही वहाँ पर एक बड़ा सा पत्थर का शिवलिंग दिखायी दिया। पुजारी ने मुझे देखते ही वहाँ रखे प्रसाद से कुछ चम्मच भर दाने निकाल कर दिये। मैंने पुजारी से कहा "क्या आप बता सकते है कि इस मन्दिर की सबसे बड़ी विशेषता कौन सी है? पुजारी ने जो बात बतायी वो शिव पुराण वाली ही बात थी। वही शिव पुराण जो पुजारियों के गैंग की करामात थी।

मन्दिर देखकर नदी किनारे जा पहुँचा। वहाँ साफ़ पानी में मछलियाँ तैरती हुई ऐसी लग रही थी, जैसे शीशे के नीचे कुछ मछलियाँ तैर रही हो। मन्दिर देखने के बाद वहाँ से आगे बढ़ना जरुरी था। मनु प्रकाश त्यागी से सुबह हुई बातचीत में यह तय हुआ था कि आज मनु वेदनी बुग्याल में जाकर रुकेगा। मैंने मनु को पूरी तरह संतुष्ट किया था कि मैं आज की रात तुम्हे वेदनी बुग्याल में हर-हालात में पकड़ लूँगा। मुझे वेदनी पहुँचने के लिये पहले वाण गाँव तक बाइक से जाना था, वाण से वेदनी होकर रुपकुन्ड़ की विधिवत पारम्परिक यात्रा की शुरुआत भी होती है। यहाँ से आगे जाते ही ग्वालदम की दूरी दिखाने वाला बोर्ड़ नजर आया। ग्वालदम आने से पहले मार्ग आकार मे बदल जाता है। सीधे हाथ जाने वाला मार्ग बागेश्वर-मुनस्यारी की ओर चला जाता है जबकि उल्टॆ हाथ वाला मार्ग ग्वालदम से कर्णप्रयाग जाने वाला सड़क मार्ग है।

यही किसी जगह एक मन्दिर के बारे में बताया गया था जिसमें हजारों घन्टियाँ बँधी हुई है। आगे बढ़ने से पहले इस कोट भ्रामरी मन्दिर को भी देखने के फ़ैसला हो गया। सड़क से ज्यादा दूरी पर ना होने के कारण इसे भी लगे हाथ देख लिया गया था। इसके बारे में मुझे पहले से ज्यादा जानकारी नहीं थी। मन्दिर परिसर तक पहुँचने के लिये कुछ चढ़ाई चढ़नी पड़ती है एक छोटे से दरवाजे से मन्दिर में प्रवेश किया। मन्दिर परिसर में जाकर देखा तो वहाँ चारों ओर घन्टियों की भरमार दिखायी दी। इस मन्दिर में घन्टी की संख्या देखकर लगता है कि यह निराला कार्य जरुर किसी घन्टी व्यवसायी की देन है। मन्दिर के आसपास दुकानों पर घन्टियाँ बिक्री के लिये उपलब्ध है।

मन्दिर से निपटने के बाद अपनी बाइक एक बार फ़िर से वाण गाँव के लिये बढ़ चली। मनु ने बताया था कि मैं जिस मार्ग से आया हूँ वह मार्ग छोटा तो अवश्य है लेकिन उसकी दुर्दशा इतनी ज्यादा खराब है कि उसके सामने दिल्ली सहारनपुर वाला (यह मार्ग वर्तमान में दिल्ली के आसपास का सबसे बेकार वाला राजमार्ग है) मार्ग स्वर्ग है। मैंने मनु की बात मानकर थराली होकर, लोहाघाट जाने के लिये बाइक लेकर चलता रहा। थराली तक तो मार्ग की हालत कुछ हद तक सही है। थराली से लोहाघाट तक की 50 किमी की यात्रा तय करने में मुझे तीन घन्टे लग गये। लोहाघाट से 18-20 किमी पहले से ही जोरदार चढ़ाई आरम्भ हो जाती है। जब लोहाघाट पहुँचा तो देखा कि यह जगह एक दर्रे नुमा है। दर्रे के बाद उतरना होता है लेकिन यहाँ आगे भी चढ़ना ही होता है।

पहाड के बिल्कुल ऊपरी छोर तक पहुँचने के बाद आगे की यात्रा पर वाण के लिये चल दिया। वाण वाली सड़क देखकर थराली से लोहाघाट तक की सड़क बढ़िया लगने लगी। लोहाघाट से वाण की दूरी लगभग 10-11 किमी ही है। इस मार्ग को बनाने का कार्य काफ़ी पहले से आरम्भ किया गया गया है। लगातार चढ़ाई होने के कारण बाइक बहुत ही सावधानी/मजबूती से पकड़ कर चलानी पड़ रही थी। इस पथरीले व कच्चे मार्ग को देखकर मुझे हर की दून में साकुंरी से आगे के दस किमी की बाइक यात्रा की याद हो आयी। लोहाघाट में ही दोपहर के 2:30 बज गये थे। अगर ऐसे ही बेकार मार्ग से पाला पड़ता रहा तो फ़िर आज वाण ही रुकना होगा।

घर से निकलने से पहले मैं हर यात्रा के दौरान कुछ पूड़े/गुलगुले बनवाकर जरुर साथ लाता हूँ। मैं बीच-बीच में जहाँ भी कुछ देर के लिये रुकता था वही बैग से दो-चार गुलगुले खा लेता था। इसलिये आज दिन में कही खाना खाना याद ही नहीं रहा। शाम के ठीक 3:30 बजे मैंने अपनी बाइक पर सवार होकर वाण की सबसे ऊपरी व आखिरी जगह जिसे स्थानीय लोग स्टेशन कहते है, जाकर बाइक रोकी। पहाडों में गाड़ी चोरी की सम्भावना लगभग नहीं के बराबर होती है। बाइक एक दुकान के सामने खड़ी कर दी। अभी शाम के चार भी नहीं बजे थे इसलिये आज ही वेदनी पहुँचने की पूरी उम्मीद थी। मनु ने बताया था कि ऊपर खाने-पीने को कुछ नहीं मिलेगा इसलिये वाण से ही अपने लिये खाने का सामान ले लेना। (क्रमश:)


रुपकुन्ड़ तुंगनाथ की इस यात्रा के सम्पूर्ण लेख के लिंक क्रमवार दिये गये है।
01. दिल्ली से हल्द्धानी होकर अल्मोड़ा तक की यात्रा का विवरण।
02. बैजनाथ व कोट भ्रामरी मन्दिर के दर्शन के बाद वाण रवाना।
03. वाण गाँव से गैरोली पाताल होकर वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
04. वेदनी बुग्याल से पत्थर नाचनी होकर कालू विनायक तक की यात्रा
05. कालू विनायक से रुपकुन्ड़ तक व वापसी वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
06. आली बुग्याल देखते हुए वाण गाँव तक की यात्रा का विवरण।
07. वाण गाँव की सम्पूर्ण (घर, खेत, खलियान आदि) सैर/भ्रमण।
08. वाण से आदि बद्री तक की यात्रा।
09. कर्णप्रयाग व नन्दप्रयाग देखते हुए, गोपेश्वर तक की ओर।
10. गोपेश्वर का जड़ी-बूटी वाला हर्बल गार्ड़न।
11. चोपता से तुंगनाथ मन्दिर के दर्शन
12. तुंगनाथ मन्दिर से ऊपर चन्द्रशिला तक
13. ऊखीमठ मन्दिर
14. रुद्रप्रयाग 
15. लैंसड़ोन छावनी की सुन्दर झील 
16. कोटद्धार का सिद्धबली हनुमान मन्दिर






















4 टिप्‍पणियां:

virendra sharma ने कहा…

जाट देवता को याद कर रहे थे कई दिन से आज अचानक दर्शन हुए साथ ही खूब सूरत झांकी मंदिरों की प्राकृत दृश्यावली की .घंटों की कतारों की .

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जितना पढ़ना होता है, भारत का विस्तार उतना ही समझ आता है।

Rajesh Kumari ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ७/५ १३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।

Ritesh Gupta ने कहा…

baijnath mandir dekha hua hain.... Bahut sundar jagah hain,.. Kot bhramani ke baare nahi pata tha,,,.. Vaise pahado me bike chalane me paresani to bahut adhik hoti hogi...

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