गुरुवार, 2 मई 2013

Tatapani-Shimla-Delhi तत्ता पानी-शिमला-दिल्ली यात्रा

हिमाचल की कांगड़ा व करसोग घाटी की यात्रा 12                                                       SANDEEP PANWAR


बस तत्तापानी पहुँच चुकी थी। सीट पर पड़े-पड़े शरीर आलस से पूरी तरह भर गया था। सीट से उठने का मन ही नहीं कर रहा था। हमने टिकट भी यही तक का लिया था उससे कुछ नहीं फ़र्क पड़ता। कंड़क्टर बस चलते ही आगे का टिकट दुबारा दे देता। यकायक फ़ैसला किया कि नहीं, फ़िर पता नहीं कब मौका लगे या ना लगे। चलो उतरो बस से नीचे। बस से नीचे उतर गये। बस से नीचे उतरते ही विपिन ने कहा संदीप भाई दो-तीन किमी पीछे शिव गुफ़ा करके, एक लम्बी सी गुफ़ा बताई गयी है। उसे देखने चले। ना, तुरन्त मुँह से निकला। ना सुनकर विपिन बोला ठीक है तत्तापानी चलो। मैं और विपिन तत्तापानी के लिये चल दिये। अभी दिन छिपने में काफ़ी समय था इसलिये फ़ैसला हुआ कि सूरज छिपने से पहले यहाँ से निकल जायेंगे। हम दोनों सतलुज नदी किनारे बने हुए तत्तापानी के गर्म कुन्ड़ देखने के लिये सतलुज के बहाव के पास पहुँचने का मार्ग देखने लगे।



तत्तापानी नाम की जगह के बारे में सुनने में आया है कि अगले कुछ सालों में यहाँ बाँध बना दिया जायेगा। बाँध बन जाने पर यह स्थल पानी में समा जायेगा। इसलिये अपुन के लिये यह स्थल देखना लाजमी हो गया था, क्योंकि इसके बाद कौन जाने अगला चक्कर कब लगे? या ना लगे। सडक पर काफ़ी दूर जाने के बाद सतलुज में नीचे धारा की ओर जाने का मार्ग दिखायी दिया। उस मार्ग से होकर गाड़ियाँ भी सतलुज के पानी तक आसानी से पहुँच पा रही थी। हमने पानी के पास पहुँचते ही एक बन्दे से कहा कि यहाँ पर गर्म पानी के श्रोत बताये गये है कहाँ है? उसने कहा कि यहाँ श्रोत के नाम पर ऐसा कुछ नहीं है। सामने जो पत्थर दिख रहे है इनमें आपको रुका हुआ पानी दिखायी देगा। आप उस पानी में हाथ ड़ालकर देखो वह बहुत गर्म मिलेगा। हम उन पत्थरों की ओर चल दिये।

पत्थरों के पास पहुँचकर देखा कि वहाँ पर जो पानी है उसमें से हल्की-हल्की भाप उठ रही है। हाथ से छूकर देखा तो पानी काफ़ी गर्म था। पानी इतना गर्म था कि उसमें नहाया नहीं जा सकता था। हम दोनों ने चप्पले पहनी हुई थी। इसलिये चप्पल निकाल कर अपने पैर उस पानी में ड़ाल कर देखे, लेकिन कुछ पल में ही पैर पानी से निकालने को मजबूर होना पड़ा। रुके हुए गर्म पानी के कई छोटे-छॊटे कुन्ड़ बनाये गये थे। एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि ऊपर कुछ होटल वाले है जिन्होंने यहाँ मोटर लगाकर गर्म पानी खीचने का काम किया हुआ है। बाँध बन जाने दो फ़िर ना पानी रहेगा, ना होटल वाले, ना देखने वाले। गर्म पानी का आनन्द उठाकर सतलुज के ठन्ड़े पानी में घुसे तो एक बार को सुबकी ही आ गयी। धीरे-धीरे शरीर ठन्ड़े पानी को सहने लायक हुआ।

सतुलुज के ठन्ड़े पानी में काफ़ी देर धमाल-चौकड़ी करने के बाद कुछ देर गर्मा-गर्म पत्थरों पर नदी किनारे बैठे रहे। उसके बाद वापसी में हमें वही किनारे पर बड़े-बड़े पत्थर दिखायी दिये। जाते समय हमने इन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था। पहले तो इन पत्थरों पर ऊपर चढ़कर नीचे कूदकर देखा गया कि गीली रेत में हमारा शरीर कितना धंसता है। फ़िर फ़ोटो लेने के चक्कर में कई बार विपिन को कूदना पड़ा। जब काफ़ी कूदा-फ़ांदी हो गयी और समय देखा तो शाम के 6 बजने वाले थे। इसलिये वहाँ से शिमला की ओर चलने में ही खैरियत समझी। तत्तापानी के बस अडड़े पहुँचे। वहाँ पर शिमला जाने वाली कोई बस खड़ी हुई दिखाई नहीं दी। इस रुट पर वैसे भी बहुत देर बाद बस आती-जाती है। इसलिये तत्तापानी में रात का भोजन करने की सोच, एक रेस्टोरेंट पर जा पहुँचे।

तत्तापानी में शाम को भोजन मैगी के रुप में किया गया था। गर्मागर्म मैगी खाकर होटल के बाहर ही सड़क पर कुर्सी पर जम गये थे। काफ़ी देर बाद शिमला जाने वाली बस आती दिखायी दी। जैसे ही बस स्थानक पर रुकी तो हम भी उसी बस में शिमला के लिये सवार हो गये। यह बस सतलुज नदी के पुल को पार करते ही उल्टे हाथ पहाड़ की चढ़ाई चढ़ने लगी। बस लगातार चढ़ाई चढ़ रही थी। जब बस सतलुज के काफ़ी ऊपर पहुँच जाती है तो वहाँ से नीचे देखने पर हजारों की संख्या में खजूर के पेड़ दिखायी दिये। यहाँ खजूर के पेड़ देखकर एक बार तो काफ़ी हैरानी हुई कि एक साथ इतने सारे पेड़ यहाँ कैसे? खैर लगाये होंगे किसी ने, हमें क्या, हमें तो आम खाने से मतलब था ना कि पेड़ गिनने से।

मशोबरा, नालदेहरा जैसी जानी पहचानी जगहों से होकर हमारी बस शिमला की ओर बढ़ रही थी कि अचानक बस चालक ने ब्रेक लगायी अचानक ब्रेक लगाते ही हमारा ध्यान सड़क पर गया। हमारी बस के सामने सड़क की चौड़ाई कम से कम 30 फ़ुट दिखायी दे रही थी। इस चौड़ी सड़क पर दो मारुति 800 कारे आपस में आमने-सामने की टक्कर से ठुकी हुई खड़ी थी। इतनी बड़ी सड़क पर इतनी छोटी कारों की भिड़न्त की चर्चा पूरी बस में मजाक का विषय बन गयी थी। दोनों कारों की जगह यदि एक बड़ी गाड़ी होती तो उनका क्या हाल होता? शिमला जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा था। सड़क पर अंधेरे का साम्राज्य धीरे-धीर बढ़ता जा रहा था। हमारी बस अभी शिमला में घुस चुकी थी लेकिन बस अड़ड़े पहुँचने से पहले बस चालक बस को अपने डिपो में ले गया। यहाँ बस चालक की अदला-बदली के चक्कर में 15-20 मिनट लग गये।

दूसरा चालक आने के बाद हमारी बस शिमला बस अड़ड़े के लिये रवाना हुई। इससे पहले मैं शिमला एक बार छोटी रेल से आया था। वापसी बस से की गयी थी। उसके बाद एक बार श्रीखन्ड़ जाते समय बाइक से आया था। लेकिन वापसी रोहडू वाले मार्ग से की गयी थी। आज दूसरी बार शिमला से दिल्ली के लिये बस से जाने का मौका हाथ लगने वाला था। बस ने हमें शिमला के पुराने बस अडड़े पर उतार दिया। कई साल पहले शिमला में यही मुख्य बस अड़ड़ा हुआ करता था जब मैं छोटी रेल से यहाँ आया था तो जाखू मन्दिर देखकर वापसी में यही से दिल्ली की बस में बैठा था। अब दिल्ली व दूसरे राज्यों के लिये नये बस अडड़े से बसे संचालित होने लगी है। पुराना बस अडड़ा केवल हिमाचल के पहाड की बसों/स्थानीय बसों के लिये रह गया है।

हम पुराने बस अडड़े से पैदल चलते हुए शिमला के रेलवे स्टेशन तक चले आये। यहाँ का स्टॆशन कई साल पहले भी ऐसा ही था आज भी ऐसा ही लगा। रात के 9 बजने वाले थे, स्टॆशन पर अन्दर जाने का मार्ग बन्द कर दिया था। जिससे हम प्लेटफ़ार्म पर नहीं जा पाये। स्टॆशन के बाहर से ही दो-तीन फ़ोटो लेने के बाद, हम पुन: सड़क पर आये। सड़क पर आने के बाद हमने दिल्ली की ओर चलना शुरु कर दिया। कुछ दूर जाते ही एक स्थानीय मिनी बस वाला हमें देखकर बस अडड़े की आवाज लगाने लगा। चूंकि बस अडड़ा अभी कई किमी (4/5) दूरी पर था इसलिये समय बचाने के लिये हम उस मिनी बस में बैठ गये। बस अडड़े पर जाने के बाद पूछताछ केन्द्र से दिल्ली वाली बस मिलने का स्थान पता किया। ऊपर सीढियाँ चढ़कर पहली मंजिल पर जाकर दिल्ली वाली बस मिलती है। जैसे ही ऊपर पहुँचे तो वहाँ हरियाणा रोड़वेज की बस का कंड़क्टर दिल्ली-गुड़गाँव की आवाज लगा रहा था। हम भी उस बस में सवार हो गये। बस की आधी सीट खाली पड़ी थी इसलिये पैर फ़ैलाकर बैठने में कोई समस्या नहीं आई।

मुझे बस में यात्रा करते समय यह विकट समस्या है कि मुझे बस में आसानी से नीन्द नहीं आ पाती है। कालका तक पहाड़ी मार्ग होने के कारण बस की रफ़्तार कुछ कम थी। उसके बाद बस चालक लगभग 90-100 की गति से बस को दौड़ाता रहा। चंड़ीगढ़ जाने पर एक लालबत्ती से दो-तीन सवारियाँ और चढ़ गयी। इसके बाद हमारी बस दे दनादन आगे चलती रही। अम्बाला-पानीपत कब पार हुआ? मुझे पता नहीं लगा शायद झपकी/नीन्द आ गयी होगी या सीट पर पड़े-पड़े अंधेरे में निकल गये होंगे। सुबह 5 बजे बस किसी जगह खड़ी हो गयी, बस से बाहर झाँककर देखा तो दिल्ली में प्रवेश करते समय लिया जाने वाला टोल बूथ अदा करने के लिये बस खड़ी थी। अब दिल्ली ज्यादा ज्यादा दूर नहीं थी। कुछ देर बाद करनाल बाई पास से हमारी बस वजीराबाद की ओर मुड़ गयी। जैसे ही बस वजीराबाद पुल के पास पहुँची तो मैंने बस रुकवाई और इस बस से उतर गया। वजीराबाद पुल से बाहरी मुद्रिका वाली बस में बैठकर मैं अपने घर के पास लोनी मोड़ गोलचक्कर फ़्लाईओवर पर उतर गया। कुछ मिनटों में ही मैं अपने घर पर मौजूद था। अब बताओ कैसी यात्रा रही? (समाप्त)      


हिमाचल की इस बस व रेल यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है। सबसे नीचे स्कारपियो वाली यात्रा के लिंक दिये है।

सतलुज की धार में जाट देवता





















हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया। 
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान 
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।


7 टिप्‍पणियां:

प्रवीण गुप्ता - PRAVEEN GUPTA ने कहा…

बहुत अच्छी ज्ञानवर्धक और आनंददायक यात्रा रही....

Ritesh Gupta ने कहा…

Aapki yatra bahut badhiya aur gyanvardhak rahi.......

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

शानदार रही यात्रा, हमेशा की तरह।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अहा, आनन्द आ गया..

Unknown ने कहा…

Hey that's very nice blog and i like your blog photo Hotels in shimla

sattyy ने कहा…

extraordinary.really nice

Unknown ने कहा…

Very Nice Blog.. Aisa lag raha tha Jaise hum aapke saath hi yatra Kar rahe Hain..

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