गुरुवार, 23 मई 2013

Gopeshwar-Mandal- Chopta गोपेश्वर- मंड़ल- चोपता तक

ROOPKUND-TUNGNATH 10                                                                             SANDEEP PANWAR
हम गोपेश्वर के हर्बल पार्क (जड़ी-बूटी) से बाहर आने के बाद, एक बार फ़िर से अपनी बाइक पर सवार होकर चोपता के लिये चल दिये। अभी कुछ दूर ही बढे थे कि आगे गोपेश्वर शहर की आबादी आरम्भ हो गयी। वैसे गोपेश्वर शहर में ही जिले के सभी कार्यालय बने हुए है जबकि जिले का नाम चमोली है जो नीचे नदी किनारे पर है। चमोली में ज्यादा जगह ना होने के कारण गोपेश्वर में जिले से सम्बंधित कार्यालय बनाने पड़े है। मेरे पास कोई कैमरा नहीं था। इस यात्रा के सारे फ़ोटो मनु के कैमरे से ही लिये गये थे। मनु ने कैमरे की 4 GB की मैमोरी लगभग भर चुकी थी, अभी हमें चोपता तुंगनाथ, चन्द्रशिला देखकर उखीमठ होकर लैंसड़ाऊन भी जाना था यानि कुल मिलाकर अभी 300-400 फ़ोटो तो खजाने में बढ़ जाने वाले थे। सबसे पहले एक मोबाइल की दुकान के सामने बाइक रोककर कैमरे की मैमोरी के फ़ोटो पैन ड्राइव में स्थानांतरित कराये गये। इस कार्य में हमें लगभग आधा घन्टा लग गया था। लेकिन आधे के बदले हमारे पास कैमरे की मैमोरी पूरी तरह सुरक्षित व खाली हो गयी थी।


गोपेश्वर शहर समाप्त होते-होते मार्ग की तीखी चढ़ाई भी थोड़ी सी कम होने लग जाती है। हम दोनों अपनी-अपनी नीली परी पर बैठे हुए चोपता की ओर भागे जा रहे थे। गोपेश्वर से लगभग 5-6 किमी आगे जाने पर सगर नामक गाँव आता है इस गाँव के बाहर सड़क किनारे लगे हुए एक बोर्ड़ से यह जानकारी मिल रही थी कि यह गाँव महापुरुष मर्यादापुरुषोतम श्री राम के वशंजो से कुछ सम्बंध जरुर रखता है। हमें राम के वंशजों से कोई मतलब नहीं था। हम इस गाँव से आरम्भ होने वाली रुद्रनाथ यात्रा के लिये जाने के इच्छुक थे, लेकिन गाँव के बाहर सड़क पर कई लोगों ने बताया कि रुद्रनाथ मन्दिर के कपाट 18 नवम्बर को शीतकाल के लिये बन्द हो चुके है। रुद्रनाथ जी पंचकेदार में सबसे कठिन केदार माना जाता है। इस केदार के लिये सबसे ज्यादा कठिन व पैदल दूरी तय करनी पड़ती है। रुद्रनाथ के कपाट बन्द होने की जानकारी मिलने पर हमें एक बार तो निराशा महसूस हुई, लेकिन रुपकुन्ड़ यात्रा के दौरान पैरों की जोरदार कसरत होने से पैरों में हो रहे हल्के-हल्के दर्द को देखकर हमने कहा, ऊपर वाला जो करता है ठीक ही करता है।

सगर गाँव में रात को ठहरने के लिये कई गेस्ट हाऊस बने हुए है। यहाँ पर्य़टकों को बहुत ज्यादा सुविधा तो नहीं मिलेगी, लेकिन जितनी भी सुविधा है वो घुमक्कड़ों के हिसाब से बहुत ज्यादा है। पर्यटक और घुमक्कड़ में जमीन व आसमान का अन्तर होता है। हमने रुद्रनाथ की यात्रा अगले सीजन में करने की सोच अपनी बाइक आगे बढ़ा दी। हमारी बाइक चोपता की ओर बढ़ती जा रही थी। आगे जाकर मंड़ल नामक गाँव आता है। यहाँ से अनूसूईयाँ माता की गुफ़ा तक पहुँचने के लिये पैदल मार्ग की शुरुआत होती है। गुफ़ा यहाँ से मात्र 6 किमी की दूरी पर ही है, लेकिन चढ़ाई जोरादार है। इस गुफ़ा को रुद्रनाथ के साथ करने के लिये छोड़ दिया गया। अब हमारी मंजिल चोपता थी। अभी चोपता लगभग 20 किमी दूरी पर ही होगा कि पहाड़ की चढ़ाई व घनघोर जंगलों से होकर जाने वाला मार्ग आरम्भ हो गया। मैं कई साल पहले भी अपनी इसी नीली परी पर सवार होकर इस मार्ग से आया था। आज इस मार्ग से जाने का मौका मिल रहा था।

घने जंगलों में जगह-जगह जंगली जानवरों से सावधान रहने के बोर्ड़ दिखायी दे रहे थे। बोर्ड़ वैसे तो जंगली जानवरों की सुरक्षा के लिये लगाये गये है लेकिन इन बोर्ड़ को देखकर पैदल या बाइक से यात्रा करने वालों की हवा खराब होते देर नहीं लगती है। मंड़ल से लेकर चोपता तक इन्सान के नाम पर सड़क पर इक्का दुक्का वाहन नजर आ जाये तो ठीक नहीं तो घनघोर जंगल में जानवरों के ड़र से बाइक रोकने की इच्छा नहीं हो रही थी। पहली बार जब मैं इस मार्ग से आया था तो एक जगह एक बड़ा सा हिरण हमारी बाइक के आगे से होकर तेजी से सड़क पार कर गया था। मेरे पीछे बैठे शर्मा जी उसको भालू समझ बैठे थे। बाद में सड़क पर भालू के कई बोर्ड़ देखकर मुझे भी भालू मिलने की चिंता सताने लगी थी। ऊपर वाले अन्जान परमात्मा (यदि है तो) का शुक्र रहा कि हमें भालू मिलने नहीं आया। अगर भालू मिलने आ जाता तो क्या होता? पहले तो हम बाइक भगाकर निकलने के चक्कर में रहते, यदि भालू हमें भागने नहीं देता तो फ़िर उसका ड़ट कर मुकाबला करते। खैर इस यात्रा में भी हमें भालू नहीं मिला। हमने अपनी बाइक चोपता में तुंगानथ पैदल मार्ग आरम्भ होने वाले स्थान के ठीक सामने रोक दी। दोपहर के 12 बजने वाले थे सुबह से कुछ खाया नहीं था पहले पेट-पूजा करने की इच्छा थी उसके बाद तुंगनाथ की।

सबसे पहले पेट पूजा करने की बात तय हुई, पेट पूजा करने के लिये मैंने मनु को उसी ढाबे पर खाना खाने के लिये कहा जिस पर मैंने कई साल पहले भी भोजन किया था। मैं पहले भी एक बार चोपता में रात्रि विश्राम कर चुका हूँ, लेकिन बारिश लगातार होने के कारण तुंगनाथ नहीं जा पाया था। उस साल मेरे साथ मेरी बाइक पर मराठे संतोष तिड़के व पड़ौसी अनिल शर्मा एक ही बाइक पर मजबूरन यात्रा कर रहे थे। उस साल हमने मात्र 150 रुपये में तीन बन्दों के रहने के लिये कमरा ले लिया था। आज सबसे पहले हमने पेट भर कर स्वादिष्ट खाना खाया। खाना खाकर हमने ढाबे वाले से कमरे के बारे में कहा, साथ ही उससे कहा कि दो साल पहले भी मैं यहाँ आ चुका हूँ। हमें एक कमरा दिखाया गया। जो सड़क के व ढ़ाबे के एकदम सामने ही था। कमरे में लाइट जलाने के सौर ऊर्जा से चार्ज होने वाली बैटरी लगायी गयी थी जिससे मोबाइल भी चार्ज किये जाते थे। कमरे का किराया मोल-भाव करके 250 रुपये तय किया गया। हमने अपना सामान कमरे में रख दिया। अपनी बाइक भी कमरे के सामने ही लेकर आ गये। इसके बाद कैमरा उठाकर तुंगनाथ के लिये चलने की घड़ी आ गयी थी। (क्रमश:)

रुपकुन्ड़ तुंगनाथ की इस यात्रा के सम्पूर्ण लेख के लिंक क्रमवार दिये गये है।


















2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

दाल रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ।

Yogi Saraswat ने कहा…

बहुत बढ़िया वृतांत !

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