जैसे ही हम दोनों ने अन्जनेरी वाले मोड़ से बस में सवार होकर कुछ देर बाद त्रयम्बक शहर में प्रवेश किया तो बस स्थानक से काफ़ी पहले, यही कोई एक किमी पहले ही उल्टे हाथ की ओर गजानन महाराज संस्थान का बोर्ड दिखायी दिया। विशाल तो यहाँ पहले भी आ चुका है इसलिये उसे पता था कि कहाँ उतरना है। विशाल इस संस्थान के सामने ही मोड़ पर बस चालक से कहकर बस रुकवाने के लिये बोलकर उतरने के खड़ा हो गया। अब भला सीट पर बैठकर मैं कौन सा भुट्टे भूनता। मैं भी विशाल के साथ ही इस संस्थान के सामने ही बस से उतर गया। बस से उतरने के बाद हम दोनों थोड़ी सी दूर तक वापिस आये। यहाँ हमने इस संस्थान के प्रवेश मार्ग से अन्दर प्रवेश किया। बाहर सड़क से देखने में यह संस्थान कुछ खास नहीं दिख रहा था। लेकिन जैसे-जैसे हम इसके अन्दर जाते गये, इसकी सुन्दरता में बढ़ोतरी होती रही। हमारा पहला लक्ष्य इस संस्थान में कमरा लेने का था इसलिये हम सीधे इसके कार्यालय पहुँचे। वहाँ पहुँचकर हमारी उम्मीदों पर जोरदार तुषारपात हो गया। कार्यालय वालों ने बताया कि यहाँ दो दिन तक कोई कमरा खाली नहीं है। विशाल ने कमरा खाली न होने का अंदाजा पहले ही लगाया हुआ था क्योंकि जिस दिन हम वहाँ त्रयम्बकेश्वर पहुँचे थे। उस दिन ही वहाँ पर तीन दिन चलने वाला श्राद्ध पक्ष आरम्भ हुआ था। यहाँ हर साल श्राद्ध के आरम्भ होने के अवसर पर भारी भीड़ रहती है अत: सम्भव हो सके तो यहाँ श्राद्ध के शुरु के दिनों में यहाँ आने से हर हालत में बचना चाहिए।
लगता है जैसे कोई विशाल मन्दिर है। |
सामने ही यहाँ के कमरे दिखायी दे रहे है। |
यह भक्त निवास है। |
गजब है भाई। |
जैसा कि ऊपर वाले नीले रंग के फ़ोटो में आप पढ़ ही रहे हो कि गजानन महाराज संस्थान, शेगाँव, लिखा हुआ है। जिस प्रकार मनमाड़ के पास मुस्लिम फ़कीर साँई बाबा Sai Baba, Shirdi शिर्ड़ी के नाम से हजारों लोग प्रतिदिन दर्शन करने जाते है, ठीक उसी प्रकार बल्कि उससे भी कही अधिक लोग महाराष्ट्र में अकोला के पास अकोला-वाशिम-हिंगोली-बसमत-नान्देड़ रेलवे व बस रुट पर आने वाले शेगाँव बाबा के दर्शन करने जाते है। मुझे भी एक बार शेगाँव जाने का मौका लग चुका है। एक बार ओंढ़ानाथ नागनाथ नागेश्वर ज्योतिलिंग के दर्शन भी कर चुका हूँ। जैसे ही नई-नई यात्राओं से पीछा छूटा तो पुरानी बची हुई यात्राएँ पूर्ण करने की कोशिश पुन: की जायेगी। इन्ही शेगाँव वाले बाबा के संस्थान वालों ने महाराष्ट्र में लगभग हर बड़े हिन्दू धर्म स्थान वाले शहर में भक्तों के निवास करने हेतू शानदार संस्थान बना दिये है। इन बाबा के मुख्य मन्दिर तक दर्शन करने का मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। यहाँ जाने के अकोला तक आसानी से रेल की सुविधा उपलब्ध है इसके बाद अकोला से शेगाँव तक बस व रेल से अलग लाइन पर जाना पड़ता है। यह वहाँ अकोला से मुश्किल से घन्टा भर की यात्रा दूरी पर ही है। जब हमें यहाँ कमरे खाली नहीं मिले तो हम वहाँ से बाहर चले आये।
श्रीक्षेत्र त्रयंबकेश्वर |
मैं बैठ गया ऑटो में, ऊपर जो पहाड़ दिख रहा है उसी पर जाना है। |
हम इस संस्थान के सामने ही एक अन्य रोड़ पर पैदल ही अन्दर की ओर चले गये। यहाँ हमने कई कमरे देखे, जिसमें से एक कमरा 500 रुपये प्रतिदिन के दाम पर हमने तय कर लिया। पहले तो ताजे पानी से नहाकर हम तरोताजा हुए, उसके बाद कुछ देर तक कैमरे की बैट्री चार्ज करने के बाद, हमने ब्रह्मगिरी पर्वत पर जाने के लिये कमरा पर ताला लगा दिया। अगर मैं अकेला होता तो कमरा लिये बिना भी यह यात्रा पूरी कर लेता। लेकिन कमरे लेने का लाभ यह हुआ कि यहाँ हम बिना सामान के घूमते रहे। जहाँ हमारा कमरा था वहाँ से मुख्य सड़क मुश्किल से 200 मीटर दूरी पर ही थी। जैसे ही हम सड़क पर आये तो एक ऑटो वाला वहाँ सवारी की इन्तजार में खड़ा हुआ था। बस ऐसे ही हमने या उसने हमें टोक दिया, तो हमने उसे कहा कि हम पहाड़ पर ऊपर जायेंगे इसलिये हमें सीढियों के एकदम नजदीक छोड़ना है। ऑटो वाला 40 रुपये में मान गया। उसमें उस समय एक सवारी और थी शायद वो हमारे से कुछ पहले उतर गयी थी। जहाँ तक मेरे ध्यान आ रहा है कि उस ऑटो में एक चाय वाला भी वैठा था जिससे लेकर विशाल ने चाय भी पी थी। चाय वाले को उसके ठिकाने पर उतारकर ऑटो वाला कुछ दूर तक वापिस भी आया था।
यहाँ से इस पहाड़ के सीढियाँ आरम्भ होती है। |
चढ़ते रहो। जाट देवता की जय करते रहो। |
जरा पीछे का नजारा तो देख ले। |
अरे यहाँ तो एक तालाब भी है। |
जब पहाड़ वाली सीढियाँ नजदीक आयी तो ऑटो वाले ने कहा कि लो जी सामने ही सीढियाँ है। ऑटो में ज्यादा से ज्यादा हम दो किमी की दूरी तय कर यहाँ तक पहुँचे होंगे। ऑटो वाले के पैसे देने के बाद हमने पहाड़ पर चढ़ना शुरु कर दिया। जैसा कि आपने ऊपर वाले फ़ोटो देखे है तो आप समझ ही गये होंगे कि कैसी सीढियाँ है? हम अपनी साधारण चाल से ऊपर चढ़ते रहे। अब मेरे साथ एक समस्या है कि मैं मैदान हो या पहाड़, दोनों में मेरी गति एक जैसी ही रहती है जिस कारण विशाल बार-बार पीछे रह जाता था। विशाल के पीछे रहने के दो कारण थे पहला कारण विशाल फ़ोटो खींच रहा था जिससे वह पीछे रह जाता, दूसरा कारण विशाल ने बताया था कि उसके पैरों में हल्का-हल्का सा दर्द महसूस हो रहा है। शायद इस कारण भी विशाल पीछे रह जाता था। जब हमने आधी दूरी चढ़ ली तो हमें वहाँ पर सीधे हाथ की ओर रामतीर्थ नाम की एक छोटे से कुन्ड़ वाली जगह दिखायी दी जिसके फ़ोटो नीचे लगाये गये है। वहाँ पर लगाये गये बोर्ड़ को पढ़ने से पता लगा कि अपने अयोध्या वाले राम वही जिसने लंका पति रावण को मारा था। सिया पति रामचन्द्र जी वनवास के दौरान लगभग साल भर यहाँ भी रहे थे। अब सच्चाई का तो कोई सबूत है नहीं, चलो मान लिया कि रहे थे। जिस कारण उन्होंने यहाँ भी जरुर कुछ कारनामे किये होंगे। ऐसा कुछ उस बोर्ड़ में लिखा हुआ है। यह स्थान देखने के उपराँत हमने पहाड़ पर चढ़ना जरी रखा। आसमान में बादल छाये हुए थे जिस कारण लग रहा था कि वहाँ जोरदार बारिश होने वाली है एक बार सोचा कि चलो यही से लौट चले, कही बारिश में फ़ँस गये तो, फ़िर याद आया कि अगर यहाँ की यात्रा आज ही कर ली तो कल औरंगाबाद के ज्योतिर्लिंग के दर्शन सम्भव हो सकते है। इसलिये हम फ़टाफ़ट ऊपर चढ़ते रहे।
कैकड़ा यहाँ भी मिला था। |
इसके बारे में कुछ लिखना जरुरी ना है। |
यह राम तीर्थ स्थान है। |
यह इसका कुन्ड़ है। |
इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दी गयी सूची में दिये गये है।
बोम्बे से भीमाशंकर यात्रा विवरण
01. दिल्ली से दादर-नेरल तक ट्रेन यात्रा, उसके बाद खंड़स से सीढ़ी घाट होकर भीमाशंकर के लिये ट्रेकिंग।
02. खंड़स के आगे सीढ़ी घाट से भीमाशंकर के लिये घने जंगलों व नदियों के बीच से कठिन चढ़ाई शुरु।
03. भीमाशंकर ट्रेकिंग में सीढ़ीघाट का सबसे कठिन टुकड़े का चित्र सहित वर्णन।
01. दिल्ली से दादर-नेरल तक ट्रेन यात्रा, उसके बाद खंड़स से सीढ़ी घाट होकर भीमाशंकर के लिये ट्रेकिंग।
02. खंड़स के आगे सीढ़ी घाट से भीमाशंकर के लिये घने जंगलों व नदियों के बीच से कठिन चढ़ाई शुरु।
03. भीमाशंकर ट्रेकिंग में सीढ़ीघाट का सबसे कठिन टुकड़े का चित्र सहित वर्णन।
05. भीमाशंकर मन्दिर के सम्पूर्ण दर्शन।
नाशिक के त्रयम्बक में गोदावरी-अन्जनेरी पर्वत-त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग आदि क विवरण
06. नाशिक त्रयम्बक के पास अन्जनेरी पर्वत पर हनुमान जन्म स्थान की ट्रेकिंग।
07. हनुमान गुफ़ा देखकर ट्रेकिंग करते हुए वापसी व त्रयम्बक शहर में आगमन।
08. त्रयम्बक शहर में गजानन संस्थान व पहाड़ पर राम तीर्थ दर्शन।
09. गुरु गोरखनाथ गुफ़ा व गंगा गोदावरी उदगम स्थल की ट्रेकिंग।
10. सन्त ज्ञानेश्वर भाई/गुरु का समाधी मन्दिर स्थल व गोदावरी मन्दिर।
11. नाशिक शहर के पास त्रयम्बक में मुख्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन
औरंगाबाद शहर के आसपास के स्थल।
12. घृष्शनेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन
13. अजंता-ऐलौरा गुफ़ा देखने की हसरत।
14. दौलताबाद किले में मैदानी भाग का भ्रमण।
15. दौलताबाद किले की पहाड़ी की जबरदस्त चढ़ाई।
16. दौलताबाद किले के शीर्ष से नाशिक होकर दिल्ली तक की यात्रा का समापन।
नाशिक के त्रयम्बक में गोदावरी-अन्जनेरी पर्वत-त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग आदि क विवरण
06. नाशिक त्रयम्बक के पास अन्जनेरी पर्वत पर हनुमान जन्म स्थान की ट्रेकिंग।
07. हनुमान गुफ़ा देखकर ट्रेकिंग करते हुए वापसी व त्रयम्बक शहर में आगमन।
08. त्रयम्बक शहर में गजानन संस्थान व पहाड़ पर राम तीर्थ दर्शन।
09. गुरु गोरखनाथ गुफ़ा व गंगा गोदावरी उदगम स्थल की ट्रेकिंग।
10. सन्त ज्ञानेश्वर भाई/गुरु का समाधी मन्दिर स्थल व गोदावरी मन्दिर।
11. नाशिक शहर के पास त्रयम्बक में मुख्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन
औरंगाबाद शहर के आसपास के स्थल।
12. घृष्शनेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन
13. अजंता-ऐलौरा गुफ़ा देखने की हसरत।
14. दौलताबाद किले में मैदानी भाग का भ्रमण।
15. दौलताबाद किले की पहाड़ी की जबरदस्त चढ़ाई।
16. दौलताबाद किले के शीर्ष से नाशिक होकर दिल्ली तक की यात्रा का समापन।
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6 टिप्पणियां:
घुमक्कड़ी के कारण कितना कुछ देखने को मिल जाता है।
संदीप जी साईं बाबा मुस्लिम नहीं थे...साईं बाबा एक हिंदू ब्राह्मण थे, और उनका लालन पालन काशी में हुआ था...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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इंजीनियर प्रदीप कुमार साहनी अभी कुछ दिनों के लिए व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है और आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (03-04-2013) के “शून्य में संसार है” (चर्चा मंच-1203) पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर..!
मनोहारी जगह दिखती है।
त्रिम्बक एक ऐसा क्षेत्र है जहा पर शान्ति का आभास होता है. मैं वहाँ ५ से ६ बार जा चूका हूँ और म वहा जाता हूँ तो दो तीन दिन रहता हूँ .
मैं त्रिम्ब्केश्वर करीब 4 बार होकर आई हूँ ..एक बार तो कुम्भ स्नान भी किया है ..कहते है यहाँ हर पहाड़ शिव के लिंग जैसा है ..यहाँ के पहाड़ों की बनावट और प्राकृतिक सौन्दर्य अपने आप में प्रभाव शाली है ...इसीलिए यहाँ के कण -कण में मंदिर बने है --आप स्वयं यहाँ हर पहाड़ को गौर से देखे ....सच होती कहावत है
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